डॉ. महेश परिमल
‘केश फॉर नोट’ मामले में जिस तरह से अमरसिंह से पूछताछ हुई है, उससे स्पष्ट है कि यह मामला भी बहुत जल्द ठंडे बस्ते में चला जाएगा। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि इस मामले के एक आरोपी सुहैल हिंदुस्तानी की गिरफ्तारी के बाद दिल्ली पुलिस ने उसके हवाले से यह बताया कि इस कांड में न तो कांग्रेस का और न ही समाजवादी पार्टी के किसी नेता की मिलीभगत है। अभी तो इस मामले में पूरी जाँच ही नहीं हुई है, उस स्थिति में पुलिस का यह कहना यही दर्शाता है कि केंद्र सरकार का इरादा आखिर क्या है? अमरसिंह से जो पूछताछ हुई है, वह एक नाटक लगती है। क्योंकि अमरसिंह के जवाब ही इतने लचर हैं कि कोई मामला बनता दिखाई नहीं दे रहा है। इस मामले में किसी गुनाहगार को सजा होगी, इसकी संभावना बहुत ही कम है। इसके पीछे यही बात है कि इसके पहले भी झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड में नरसिंह राव और बूटा सिंह के खिलाफ पर्याप्त सबूत होने के बाद भी वे अदालत से निर्दोष छूट गए थे। अगर अमरसिंह का मामला अधिक उछलता है, तो यह मामला भी सामने आएगा ही। इसकी नजीर पेश की जाएगी, इसलिए कांग्रेस ही इस मामले को दबाना चाहती है।
भारतीय संसद के 58 वर्ष के इतिहास में 22 जुलाई 2008 का दिन सबसे अधिक शर्मनाक दिन के रूप में अंकित हो गया, जब सांसद प्रधानमंत्री के वक्तव्य को सुनने को आतुर थे, तब भाजपा के तीन सांसद खड़े होकर जिस तरह से हॉल के बीचों-बीच आकर टेबल पर नोटों की थप्पी उछालने लगे, तब लोकसभा के स्पीकर भी कुछ समझ नहीं पाए, सांसद भी कुछ समझ नहीं पाए, यहाँ तक कि टीवी पर इसका लाइव देखने वाले करोड़ों दर्शक भी हतप्रभ रह गए। इस मामले में भाजपा के जिन सांसदों को यदि वास्तव में रिश्वत दी गई, तो इसकी रिपोर्ट वे पुलिस थाने में कर सकते थे या फिर स्पीकर के केबिन में जाकर चुपचाप मिल सकते थे। आखिर टीवी चैनल के सामने आकर इस तरह का रहस्योद्घाटन करने का मतलब क्या था? आखिर इस नाटक को करने की क्या आवश्यकता था? इसके पहले संसद में विश्वासमत प्राप्त करने के लिए साम्यवादी दल के नेता ए.बी. वर्धन ने यह आरोप लगाया था कि एक सांसद का भाव 25 करोड़ रुपए चल रहा है। मतदान की पूर्व संध्या खबर मिली थी कि एनडीए के दस सांसदों को सरकार के खिलाफ मतदान करने अथवा सदन से अनुपस्थित रहने के लिए मना लिया गया है। जब मतदान हुआ, तब भाजपा के सात सांसदों ने क्रास वोटिंग की। क्रास वोटिंग करने वाले या अनुपस्थित रहने वाले तमाम सांसदों की सीबीआई द्वारा गहन जाँच की जाती, उनकी ब्रेन टेपिंग की जाती, तो सच्चई सामने आ जाती। पर यहाँ सबसे बड़ा सवाल यही है कि स्वयं ही इस मामले को सुलझाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है, तो फिर सच्चई सामने कैसे आएगी? इस मामले में सुप्रीमकोर्ट से ही कुछ आशा है कि वह कोई चमत्कार कर दिखाए। इसकी भी संभावना कम ही है, क्योंकि चमत्कार की उम्मीद जिन जजों से की जा सकती है, उनसे से एक सेवानिवृत्त हो गए, शेष धाकड़ जज अक्टूबर तक सेवानिवृत्त हो जाएँगे, ऐसे मे कोई यह नहीं चाहेगा कि सेवानिवृत्ति के अंतिम कुछ महीनों में कुछ ऐसा न किया जाए, जिससे उनकी फजीहत हो।
भाजपा के तीन सांसदों द्वारा रिश्वत का जो आरोप लगाया गया था, वह एक संगीन मामला है। इसके सबूत भी थे। एक न्यूज चैनल ने तो इस कांड की पूरी सीडी ही बनाकर स्पीकर को दी थी। इसमें सबसे अहम सबूत एक हजार की वे करंसी नोट थीं, ये नोट किस बैंक से निकाली गई थीं, वह आसानी से जाना जा सकता था। इसके अलावा नोटों पर फिंगर प्रिंट से भी कुछ नकुछ पता लगाया जा सकता था। दिल्ली पुलिस ने इस दिशा में कोई मेहनत की, इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है। ‘केश फॉर नोट’ कांड की तुलना झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड से की जा सकती है। इस मामले की तह में जाएँ, तो सन् 1993 में जब संसद में प्रधानमंत्री नरसिंह राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। तब झारखंड के चार सांसदों को 50-50 लाख रुपए की रिश्वत दी गई थी। रिश्वत लेने वालों में शिबू सोरेन भी थे। इन्होंने रिश्वत की इस राशि को बैंक में जमा भी किया था। जाँच एजेंसी के सामने उन्होंने यहूल भी किया था कि नरसिंह राव की तरफ से उन्हें रिश्वत दी गई है। देश की विभिनन अदालतों में यह मामला दस वर्षो तक चला, इसके बाद भी सबूत न मिलने के कारण नरसिंह राव पूरी तरह से निर्दोष साबित हुए थे।
देश की नीति को समझना हो, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के रिश्वत कांड के इतिहास को जानना होगा। इस कांड की जाँच सीबीआई को 1995 में सौंपी गई थी। 1997 की जनवरी तक तीन चार्जशीट फाइल की गई। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव और गृह मंत्री बूटा सिंह को भी आरोपी बनाया गया था। इस पर नरसिंह राव एवं बूटा सिंह ने सुप्रीमकोर्ट में विशेष रूप से स्पेशल लीव पिटीशन की थी कि यह कार्यवाही संसद को प्रभावित कर सकती है, इसलिए हमें धारा 105 के तहत संरक्षण दिया जाए। सुप्रीमकोर्ट ने इस पर अपना फैसला दिया कि इस धारा का लाभ रिश्वत लेने वाले को मिल सकता है, रिश्वत देने वाले को नहीं, क्योंकि रिश्वत संसद के बाहर दी गई है। नरसिंह राव की तरह अन्य राजनेताओं ने भी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में रिव्यू आवेदन किया था, पर सुप्रीमकोर्ट ने आवेदन लेने से इंकार कर दिया था। आखिर 29 सितम्बर 2000 को ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में नरसिंह राव और बूटा सिंह को दोषी ठहराया था। इस फैसले के खिलाफ दोनों ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की। दिल्ली हाईकोर्ट ने मार्च 2002 में नरसिंह राव और बूटा सिंह तकनीकी कारणों से निर्दोष बताया। इस प्रकार से झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड में पर्याप्त सबूत होने के बाद भी रिश्वत देने वाले पूरी तरह से बच गए। बाद में शिबू सोरेन को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया।
पुलिस यदि चाहे तो ‘केश फॉर नोट’ मामले में भी आधुनिक संसाधनों का इस्तेमाल कर आरोपियों से सच उगलवा सकती है। अब्दुल करीम तेलगी जैसे लोगों से इसी तरह के अत्याधुनिक संसाधनों से ही चौंकाने वाली जानकारी मिली थी। यदि उक्त नेताओं पर भी इसी तरह के संसाधनों का इस्तेमाल किया जाए, तो सच्चई बाहर आने में देर नहीं होगी। पर इस दिशा में केंद्र सरकार ही गंभीर दिखाई नहीं दे रही है। उसकी नीयत भी साफ न होने के कारण इस मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। मुम्बई के एक वकील ने अमेरिका के साथ परमाणु सौदे से देश की स्वतंत्रता खतरे में आ सकती है, इस पर अदालत से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई थी। पर मुम्बई हाईकोर्ट ने इस मामले में कुछ करने से हाथ खड़े कर लिए थे। इसी तरह से जब सरकार के किसी निर्णय से देश की स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता को खतरा होने लगे, तो भी हमारी अदालतें ऐसा तमाशा देखती रहेंगी, पर कर कुछ नहीं पाएँगी। ऐसा इसलिए हो गया है कि हमारे संविधान में ही ऐसा प्रावधान है। ‘केश फॉर नोट’ मामले में पिछले तीन वर्षो से परदा पड़ा हुआ था। वह तो भला हो, भूतपूर्व चुनाव आयुक्त लिंगदोह की, जिन्होंने एक जनहित याचिका में दिल्ली पुलिस की इस काहिली पर प्रश्नचिह्न उठाया। तब पुलिस हरकत में आई और ताबड़तोड़ दो आरोपियों की धरपकड़ की गई। इनमें से एक संजीव सक्सेना के बयान के अनुसार समाजवादी पार्टी के भूतपूर्व महामंत्री अमरसिंह की गिरफ्तारी की पूरी संभावना थी, पर उनकी गिरफ्तारी से कितने ही राजनेता लपेटे में आ जाते, इसलिए दिल्ली पुलिस ने अमरसिंह से पूछताछ का केवल नाटक ही किया। अब यह कहा जा रहा है कि अमरसिंह से दोबारा पूछताछ की जाएगी, पर इस पूछताछ में क्या बातें सामने आएँगी, यह देश की जनता शायद ही कभी जान पाए। जब देश में पर्याप्त सबूत के बाद भी दो बड़े लोग बच सकते हैं, तो फिर उसकी तुलना में छोटा मामला है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ‘केश फॉर नोट’ मामले में भी दोषी आसानी से छूट जाएँगे। हम भले ही लोकतांत्रिक देश का ढिंढोरा पीटने से न थकते हों, पर सच तो यह है कि कानून आज भी बलशाली हाथों का खिलौना है। ऐसे में देश की न्यायप्रियता, निष्ठा और ईमानदारी पर सवालिया निशान लग ही जाता है।
डॉ. महेश परिमल
सोमवार, 8 अगस्त 2011
ठंडे बस्ते में जा सकता है ‘केश फॉर नोट’ का मामला
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अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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