डॉ. महेश परिमल
लद्दाख में चीन सीमा के करीब फायरिंग रेंज में सेना के अधिकारियों और जवानों के बीच संघर्ष से रक्षामंत्री ए. के. एंटनी नाखुश हैं। उन्होंने सेना से इस सिलसिले में तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है। इस घटना पर शुरुआती जांच रिपोर्ट को लेकर रक्षामंत्री ने नाराजगी जताई है। यह रिपोर्ट शुRवार शाम रक्षा मंत्रालय को दी गई। सेना ने पूरे घटनाRम को अधिकारियों और जवानों के बीच की छोटी सी झड़प बताया। मगर, इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी। इस रिपोर्ट से नाखुश रक्षामंत्री ने मामले की विस्तृत जांच रिपोर्ट तलब की है। सेना के अधिकारियों को यह छोटी सी झड़प लग सकती है, पर इसकी गहराई में जाएं, तो कई सुराख नजर आएंगे। वैसे इन दिनों रक्षा सौदों में लगातार हुए भ्रष्टाचार की खबरों के कारण सेना पर राजनीति की पकड़ ढीली पड़ गई है। इस कारण सेना में अनुशासनहीनता लगातार बढ़ रही है। जिसे अभी चिंगारी माना जा रहा है, भविष्य में वही चिंगारी भड़क सकती है।
दस मई को सेना के अधिकारियों एवं जवानों के बीच मुठभेड़ हुई। जो सेना में लगातार हो रही लापरवाही का ही एक नतीजा है। आज से ठीक 155 वर्ष पहले भी दस मई 1957 को अंग्रेजों के खिलाफ पहली बगावत हुई थी। इसे पहले स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इसके बाद आंदोलन का जो सिलसिला शुरू हुआ, जिससे भारत में स्थापित इस्ट इंडिया कंपनी के राज का खात्मा हो गया। इसके बाद 10 मई 2012 को एक बार फिर भारतीय सैनिकों में बगावत के स्वर सुनाई पड़े। स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना में हुई इस बगावत को पहली बगावत कहा जा सकता है। यह बगावत सरकार के खिलाफ या देश के खिलाफ नहीं थी, यह बगावत थी सेना के उच्च अधिकारियों के खिलाफ जवानों की। इस बगावत ने पूरी दिल्ली को हिलाकर रख दिया। इस बगावत पर भले ही काबू पा लिया गया हो, पर इसकी गहराई में जाने की आवश्यकता है। रक्षा सौदों में हुए भ्रष्टाचार के कारण सेना के जवानों में वैसे भी मनोबल की कमी आ गई है। ऐसे में सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा अनुशासनहीनता दिखाई गई, जिससे जवान भड़क उठे। भारतीय प्रजातंत्र के लिए इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। वैसे भी भारतीय सैन्य दल हमेशा झूठे कारणों से सुर्खियों में आ जाता है। पहले भारत के सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह की उम्र को लेकर विवाद हुआ, इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने परदा डाल दिया। इसके बाद सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र लीक हो गया। जिसमें भारतीय सेना के पास दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए आवश्यक शस्त्र सामग्री का अभाव बताया गया। इसी के चलते यह बात भी सामने आई कि हरियाणा की सेना की बटालियन बिना पूर्व सूचना के दिल्ली की तरफ कूच कर गई थी। इस कारण भी रक्षा मंत्रालय में हड़कम्प मच गया था। बाद में यह स्पष्टीकरण दिया गया कि ये रुटीन परेड का एक हिस्सा था। भले ही इसकी सूचना रक्षा मंत्रालय को भी देना मुनासिब नहीं समझा गया। इसके बाद सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह ने यह रहस्योद्घाटन किया कि सेना द्वारा टेट्रा ट्रक की खरीदी के लिए उन्हें 14 करोड़ रुपए रिश्वत देने का ऑफर था। इस मामले की जाँच सीबीआई कर रही है। इन परिस्थितियों में सेना भले ही छोटी-छोटी बगावत करे, पर इससे सेना में जारी अनुशासनहीनता की एक झलक मिल ही जाती है।
लद्दाख की फायरिंग रेंज में तैनात किए गए 226 फील्ड रेजीमेंट के करीब 500 जवानों ने पिछले दिनों अपने ही अधिकारियों के खिलाफ बगावत की थी। इसके पहले सेना के जवानों द्वारा इस तरह से बगावत की हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। 226 फील्ड रेजीमेंट के जवान-अधिकारी फायरिंग प्रेक्टिस के लिए लद्दाख के काबरुक क्षेत्र के भीतरी इलाकों में गए थे। उनके रहने के लिए तम्बुओं की व्यवस्था की गई थी। सेना का यह नियम है कि सेना की इस तरह की कोई गतिविधि यदि जारी हो, तो अधिकारी अपनी पत्नियों को नहीं ले जा सकते। पर इस मामले में वहाँ सेना के 5 अफसरों की पत्नियां भी गई हुई थीं। इन महिलाओं को भी तम्बुओं में ही रखा गया था। यह एक गंभीर अनुशासनहीनता है। इससे यह स्पष्ट है कि ऐसा काफी समय से होता आ रहा था। दस मई को एक ओर जब फायरिंग की प्रेक्टिस चल रही थी, तो दूसरी तरफ एक मेजर की पत्नी तम्बू में कपड़े बदल रही थी, तभी सेना में ही काम करने वाला एक नाई सुमन घोष वहाँ पहुँच गया। कहा जाता है कि उसने मेजर की पत्नी से छेड़छाड़ करने की कोशिश की। मेजर की पत्नी द्वारा शोर करने से यह नाई भाग गया था। जब मेजर को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने किसी तरह से उक्त नाई को खोज निकाला। उसके बाद उसकी खूब पिटाई की गई। मेजर के इस काम में दूसरे अन्य अधिकारी भी शामिल हो गए। सेना के जवानों ने उक्त नाई को बचाने की कोशिश की गई, तो अधिकारियों ने इसका विरोध किया। बुरी तरह से घायल नाई को अधिकारियों ने सेना के अस्पताल ले जाने भी नहीं दिया गया। अंतत: कमांडिंग आफिसर कदम के हस्तक्षेप के बाद नाई को गंभीर हालत में सेना के अस्पताल में भर्ती किया गया। यहाँ भी अनुशासनहीनता दिखाई देती है। सेना का कोई जवान यदि इस तरह की हरकत करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनहीनता का आरोप लगता है और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है। पर जवान से मारपीट करने की छूट किसी भी हालत में नहीं दी जाती।
मेजर की पत्नी से कथित रूप से छेड़छाड़ करने वाले नाई की पिटाई और उसके बाद उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराने की खबर जब रेजीमेंट में फैेल गई, तब जवानों में उत्तेजना फैल गई। फिर यह अफवाह भी उड़ गई कि इलाज के दौरान सुमन घोष की मौत हो गई, तो जवानों के धर्य की सीमा टूट गई और उन्होंने अधिकारियों की मैस में जाकर पहले तो वहाँ तोड़फोड की, फिर अधिकारियों की पिटाई कर दी। इसकी जानकारी जब रेजीमेंट के कर्नल कदम को हुई, तो उन्होंने तुरंत ही मेस में जाकर जवानों को समझाने की कोशिश की। अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि एक पत्थर कर्नल कदम के माथे पर लगा। बस फिर क्या था, अधिकारियों और जवानों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। इस दौरान मेस में आग लगा दी गई। जवान चूंकि संख्या में अधिक थे, इसलिए अधिकारियों ने भाग कर पास के तम्बुओं में शरण ली। जो अधिकारी भाग नहीं पाए, वे आवेश में आकर जवानों की हत्या के लिए तैयार हो गए। कई अधिकारियों ने अपनी पत्नी की ओट में आकर अपनी जान बचाई। जवानों ने अधिकारियों की पत्नियों से भी मारपीट की। इस बीच यह भी अफवाह उड़ी कि सेना के जवानों ने शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया है। दूसरे दिन तक स्थिति नियंत्रण में आ गई। सेना के वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँच गए थे। सेना की इस छोटी सी बगावत से चौंक उठे सेना के उच्च अधिकारी और रक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों में विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है। अब क्या किया जाए? इधर आत्ममंथन का दौर जारी है, उधर 226 फील्ड रेजीमेट को इसके पहले संभालने वाले कर्नल योगी शेरोन को इस कैम्प में भेजा गया है। उनके बारे में यह कहा जाता है कि उनका व्यवहार सैनिकों के प्रति सकारात्मक रहा है। सैनिकों में इस तरह की अनुशासनहीनता आखिर कैसे आई, इसकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। इस मामले में जो अधिकारी दोषी पाए जाएंगे, उनका कोर्ट मार्शल होने की भी पूरी संभावना है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि 226 फील्ड रेजीमेंट के खिलाफ इसके पहले भी अनुशासनहीनता की शिकायत की जा चुकी है। इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया था। इस बगावत का यह भी एक कारण हो सकता है।
शांतिप्रिय और अनुशासित माने जाने वाले भारतीय सेना में हाल ही में अनेक विवाद और घोटाले सामने आए हैं। महाराष्ट्र के आदर्श घोटाले में सेना के कई भूतपूर्व अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जाँच चल रही है। सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह का जिस तरह से अपमान किया गया, उससे भी जवानों में नेताओं के प्रति रोष फैल गया है। यही नहीं समय-समय पर नेताओं द्वारा सेना पर कटाक्ष किए जाते रहे हैं। खास बात यह है कि सेना की अच्छाइयों की उतनी चर्चा नहीं होती, जितनी उनके विवादों की। इसलिए जवानों का मनोबल टूटना लाजिमी है। केंद्र सरकार द्वारा भी ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे जवानों का हौसला बढ़े। आखिर घर-परिवार से दूर होकर ये ेजवान देश की सेवा ही तो कर रहे हैं। इनके बलिदानों का लेखा-जोखा आखिर कौन रखेगा?
डॉ. महेश परिमल
लद्दाख में चीन सीमा के करीब फायरिंग रेंज में सेना के अधिकारियों और जवानों के बीच संघर्ष से रक्षामंत्री ए. के. एंटनी नाखुश हैं। उन्होंने सेना से इस सिलसिले में तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है। इस घटना पर शुरुआती जांच रिपोर्ट को लेकर रक्षामंत्री ने नाराजगी जताई है। यह रिपोर्ट शुRवार शाम रक्षा मंत्रालय को दी गई। सेना ने पूरे घटनाRम को अधिकारियों और जवानों के बीच की छोटी सी झड़प बताया। मगर, इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी। इस रिपोर्ट से नाखुश रक्षामंत्री ने मामले की विस्तृत जांच रिपोर्ट तलब की है। सेना के अधिकारियों को यह छोटी सी झड़प लग सकती है, पर इसकी गहराई में जाएं, तो कई सुराख नजर आएंगे। वैसे इन दिनों रक्षा सौदों में लगातार हुए भ्रष्टाचार की खबरों के कारण सेना पर राजनीति की पकड़ ढीली पड़ गई है। इस कारण सेना में अनुशासनहीनता लगातार बढ़ रही है। जिसे अभी चिंगारी माना जा रहा है, भविष्य में वही चिंगारी भड़क सकती है।
दस मई को सेना के अधिकारियों एवं जवानों के बीच मुठभेड़ हुई। जो सेना में लगातार हो रही लापरवाही का ही एक नतीजा है। आज से ठीक 155 वर्ष पहले भी दस मई 1957 को अंग्रेजों के खिलाफ पहली बगावत हुई थी। इसे पहले स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इसके बाद आंदोलन का जो सिलसिला शुरू हुआ, जिससे भारत में स्थापित इस्ट इंडिया कंपनी के राज का खात्मा हो गया। इसके बाद 10 मई 2012 को एक बार फिर भारतीय सैनिकों में बगावत के स्वर सुनाई पड़े। स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना में हुई इस बगावत को पहली बगावत कहा जा सकता है। यह बगावत सरकार के खिलाफ या देश के खिलाफ नहीं थी, यह बगावत थी सेना के उच्च अधिकारियों के खिलाफ जवानों की। इस बगावत ने पूरी दिल्ली को हिलाकर रख दिया। इस बगावत पर भले ही काबू पा लिया गया हो, पर इसकी गहराई में जाने की आवश्यकता है। रक्षा सौदों में हुए भ्रष्टाचार के कारण सेना के जवानों में वैसे भी मनोबल की कमी आ गई है। ऐसे में सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा अनुशासनहीनता दिखाई गई, जिससे जवान भड़क उठे। भारतीय प्रजातंत्र के लिए इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। वैसे भी भारतीय सैन्य दल हमेशा झूठे कारणों से सुर्खियों में आ जाता है। पहले भारत के सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह की उम्र को लेकर विवाद हुआ, इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने परदा डाल दिया। इसके बाद सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र लीक हो गया। जिसमें भारतीय सेना के पास दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए आवश्यक शस्त्र सामग्री का अभाव बताया गया। इसी के चलते यह बात भी सामने आई कि हरियाणा की सेना की बटालियन बिना पूर्व सूचना के दिल्ली की तरफ कूच कर गई थी। इस कारण भी रक्षा मंत्रालय में हड़कम्प मच गया था। बाद में यह स्पष्टीकरण दिया गया कि ये रुटीन परेड का एक हिस्सा था। भले ही इसकी सूचना रक्षा मंत्रालय को भी देना मुनासिब नहीं समझा गया। इसके बाद सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह ने यह रहस्योद्घाटन किया कि सेना द्वारा टेट्रा ट्रक की खरीदी के लिए उन्हें 14 करोड़ रुपए रिश्वत देने का ऑफर था। इस मामले की जाँच सीबीआई कर रही है। इन परिस्थितियों में सेना भले ही छोटी-छोटी बगावत करे, पर इससे सेना में जारी अनुशासनहीनता की एक झलक मिल ही जाती है।
लद्दाख की फायरिंग रेंज में तैनात किए गए 226 फील्ड रेजीमेंट के करीब 500 जवानों ने पिछले दिनों अपने ही अधिकारियों के खिलाफ बगावत की थी। इसके पहले सेना के जवानों द्वारा इस तरह से बगावत की हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। 226 फील्ड रेजीमेंट के जवान-अधिकारी फायरिंग प्रेक्टिस के लिए लद्दाख के काबरुक क्षेत्र के भीतरी इलाकों में गए थे। उनके रहने के लिए तम्बुओं की व्यवस्था की गई थी। सेना का यह नियम है कि सेना की इस तरह की कोई गतिविधि यदि जारी हो, तो अधिकारी अपनी पत्नियों को नहीं ले जा सकते। पर इस मामले में वहाँ सेना के 5 अफसरों की पत्नियां भी गई हुई थीं। इन महिलाओं को भी तम्बुओं में ही रखा गया था। यह एक गंभीर अनुशासनहीनता है। इससे यह स्पष्ट है कि ऐसा काफी समय से होता आ रहा था। दस मई को एक ओर जब फायरिंग की प्रेक्टिस चल रही थी, तो दूसरी तरफ एक मेजर की पत्नी तम्बू में कपड़े बदल रही थी, तभी सेना में ही काम करने वाला एक नाई सुमन घोष वहाँ पहुँच गया। कहा जाता है कि उसने मेजर की पत्नी से छेड़छाड़ करने की कोशिश की। मेजर की पत्नी द्वारा शोर करने से यह नाई भाग गया था। जब मेजर को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने किसी तरह से उक्त नाई को खोज निकाला। उसके बाद उसकी खूब पिटाई की गई। मेजर के इस काम में दूसरे अन्य अधिकारी भी शामिल हो गए। सेना के जवानों ने उक्त नाई को बचाने की कोशिश की गई, तो अधिकारियों ने इसका विरोध किया। बुरी तरह से घायल नाई को अधिकारियों ने सेना के अस्पताल ले जाने भी नहीं दिया गया। अंतत: कमांडिंग आफिसर कदम के हस्तक्षेप के बाद नाई को गंभीर हालत में सेना के अस्पताल में भर्ती किया गया। यहाँ भी अनुशासनहीनता दिखाई देती है। सेना का कोई जवान यदि इस तरह की हरकत करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनहीनता का आरोप लगता है और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है। पर जवान से मारपीट करने की छूट किसी भी हालत में नहीं दी जाती।
मेजर की पत्नी से कथित रूप से छेड़छाड़ करने वाले नाई की पिटाई और उसके बाद उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराने की खबर जब रेजीमेंट में फैेल गई, तब जवानों में उत्तेजना फैल गई। फिर यह अफवाह भी उड़ गई कि इलाज के दौरान सुमन घोष की मौत हो गई, तो जवानों के धर्य की सीमा टूट गई और उन्होंने अधिकारियों की मैस में जाकर पहले तो वहाँ तोड़फोड की, फिर अधिकारियों की पिटाई कर दी। इसकी जानकारी जब रेजीमेंट के कर्नल कदम को हुई, तो उन्होंने तुरंत ही मेस में जाकर जवानों को समझाने की कोशिश की। अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि एक पत्थर कर्नल कदम के माथे पर लगा। बस फिर क्या था, अधिकारियों और जवानों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। इस दौरान मेस में आग लगा दी गई। जवान चूंकि संख्या में अधिक थे, इसलिए अधिकारियों ने भाग कर पास के तम्बुओं में शरण ली। जो अधिकारी भाग नहीं पाए, वे आवेश में आकर जवानों की हत्या के लिए तैयार हो गए। कई अधिकारियों ने अपनी पत्नी की ओट में आकर अपनी जान बचाई। जवानों ने अधिकारियों की पत्नियों से भी मारपीट की। इस बीच यह भी अफवाह उड़ी कि सेना के जवानों ने शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया है। दूसरे दिन तक स्थिति नियंत्रण में आ गई। सेना के वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँच गए थे। सेना की इस छोटी सी बगावत से चौंक उठे सेना के उच्च अधिकारी और रक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों में विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है। अब क्या किया जाए? इधर आत्ममंथन का दौर जारी है, उधर 226 फील्ड रेजीमेट को इसके पहले संभालने वाले कर्नल योगी शेरोन को इस कैम्प में भेजा गया है। उनके बारे में यह कहा जाता है कि उनका व्यवहार सैनिकों के प्रति सकारात्मक रहा है। सैनिकों में इस तरह की अनुशासनहीनता आखिर कैसे आई, इसकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। इस मामले में जो अधिकारी दोषी पाए जाएंगे, उनका कोर्ट मार्शल होने की भी पूरी संभावना है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि 226 फील्ड रेजीमेंट के खिलाफ इसके पहले भी अनुशासनहीनता की शिकायत की जा चुकी है। इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया था। इस बगावत का यह भी एक कारण हो सकता है।
शांतिप्रिय और अनुशासित माने जाने वाले भारतीय सेना में हाल ही में अनेक विवाद और घोटाले सामने आए हैं। महाराष्ट्र के आदर्श घोटाले में सेना के कई भूतपूर्व अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जाँच चल रही है। सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह का जिस तरह से अपमान किया गया, उससे भी जवानों में नेताओं के प्रति रोष फैल गया है। यही नहीं समय-समय पर नेताओं द्वारा सेना पर कटाक्ष किए जाते रहे हैं। खास बात यह है कि सेना की अच्छाइयों की उतनी चर्चा नहीं होती, जितनी उनके विवादों की। इसलिए जवानों का मनोबल टूटना लाजिमी है। केंद्र सरकार द्वारा भी ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे जवानों का हौसला बढ़े। आखिर घर-परिवार से दूर होकर ये ेजवान देश की सेवा ही तो कर रहे हैं। इनके बलिदानों का लेखा-जोखा आखिर कौन रखेगा?
डॉ. महेश परिमल