विलीनीकरण ने ही एयर लाइंस के घाटे को बढ़ाया
डॉ. महेश परिमल
एयर इंडिया ऐसी संस्था है, जिसके यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उसका किराया भी बढ़ रहा है। पर उसी के साथ-साथ उसका घाटा भी बढ़ता जा रहा है। अज्ञानी कालिदास की वह घटना याद आती है, जिसमें वे पेड़ की जिस शाखा पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। आज इंडियन एयरलाइंस की हालत वैसी ही हो गई है। उसके कर्मचारी हड़ताल कर शायद यही बताना चाहते हैं कि उनसे बड़ा को मूर्ख नहीं है। वैसे इसके पीछे केंद्र सरकार ही है। वह जानबूझकर इस कंपनी को बंद कर विदेशी हाथों में देना चाहती है। जानकारों का कहना है कि पाँच वर्ष पूर्व जब से एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलीनीकरण हुआ है, तब से यह कंपनी पूरी तरह से घाटे मे ंचल रही है। अब तक इस कंपनी को 45 हजार करोड़ का घाटा हुआ है। विलीनीकरण के बाद से ही तमाम समस्याएं शुरू हो गई हैं। पहले यह कहा गया था कि दोनों कंपनियां घाटे में चल रही हैं, दोनों में स्पर्धा भी तगड़ी है। यदि दोनों का मिला दिया जाए, तो स्पर्धा खत्म हो जाएगी और घाटा भी नहीं होगा। पर यह विचार थोथा निकला। अब नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि दोनों का विलीनीकरण ही कंपनी को इस हालत में पहुंचाया है। वैसे दोनों ही कंपनियों के कर्मचारियों के बीच वैमनस्यता भी इसका एक कारण है।
इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलीनीकरण हुआ, तब यह माना जा रहा था कि दोनों मिलकर दुनिया के बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ स्पर्धा करेंगी, जिसका लाभ कंपनी को मिलेगा। उस समय यह भी दलील की गई थी कि दोनों कंपनियां मिलकर अत्याधुनिक विमान खरीदेंगी, तो कंपनी विश्व की सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी बनकर अन्य कंपनियों के साथ बेहतर प्रतिस्पर्धा कर पाएगी। केंद्र सरकार ने इस दलील को उसकी फेस वेल्यू के आधार पर स्वीकार कर ली। उसके बाद 100 अत्याधुनिक विमान खरीदने के लिए कंपनी को अरबों रुपए की सहायता भी की। इस मामले में कुछ राजनेताओं ने अपने हाथ गर्म किए, ऐसा कहा जा रहा है। यही कारण है कि इस कंपनी से कर्मचारियों को कम किंतु नेताओं को अधिक उपकृत किया गया है। यही कारण है कि कंपनी बहुत ही जल्दी बीमार हो गई और घाटा देने लगी। सन् 2007 में जब से दोनों कंपनियों का विलीनीकरण हुआ, तब से कंपनी का घाटा बढ़ता ही रहा है। सन 2008 में 2225 करोड़ रुपए, 2009 में 7189 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। आखिर ये घाटा क्यों हुआ, यह जानने के बजाए इस कंपनी ने नेताओं को अपने स्वार्थ की पूर्ति का पूरा मौका दिया गया। इसमें अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैँ। जब 2010 में एयर इंडिया को 5550 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, तब यह कहा गया कि यह घाटा अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण हुआ। इसके बाद 2011 में यह घाटा बढ़कर 6885 और 2012 में दस हजार करोड़ रुपए हो गया, तब भी ऐसी कोई हलचल नहीं हुई, जिससे यह समझा जाए कि बढ़ते घाटे से सरकार चिंतित है। सरकार ने इस बीमारी का इलाज तो खोजा नहीं, पर कंपनी को 30 हजार करोड़ रुपए की और आर्थिक मदद करने की घोषणा कर दी।
2007 में जब दोनों कंपनियों का विलीनीकरण हुआ, तब भी दोनों के कर्मचारियों के वेतन में पक्षपात किया गया। विलीनीकरण के बाद भी कर्मचारियों को कभी एक कंपनी का माना ही नहीं गया। विशेषकर पायलटों के साथ खूब भेदभाव किया गया। विलीनीकरण के पहले जहां एक तरफ इंडियन एयरलाइंस के पायलट का वेतन 3 लाख रुपए था, तो दूसरी तरफ एयर इंडिया के पायलट का वेतन था 8 लाख रुपए। विलीनीकरण के बाद भूतपूर्व इंडियन एयरलाइंस के पायलटों के वेतन में अचानक उछाल आया, यह बात एयर इंडिया के पायलटों को हजम नहीं हुई, अतएव उन्होंने इसका जमकर विरोध किया। इन हालता में यह निर्णय लिया गया कि कोई केप्टन यदि दस वर्ष में किसी कारण कमांडर के पद पर नहीं पहुंच पाता, तो भी उसे कमांडर का वेतन दिया जाए। इसके बाद भी एयर इंडिया के पायलट दस नई मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गए। इसके पूर्व भी एयर इंडिया के पायलटों की कई ऐसी मांगों को भी स्वीकार कर लिया गया है, जो असंवैधानिक थीं। इसके बावजीू एयर इंडिया ने जिन पायलटों को अत्याधुनिक विमान उड़ाने के प्रशिक्षण पर विशेष पेकेज दिया जाता है, उनकी सभी मांगें मान ली जाती हैं। उसके बाद भी पायलट दुनिया के किसी भी कोने में हों, अचानक विमान उड़ाने के लिए मना कर देते हैं और हड़ताल पर चले जाते हें। इन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती। इन्हीं कारणों से कंपनी का घाटा बढ़ता जा रहा है।
एयर इंडिया के बजाए कोई निजी एयर लाइंस को इतना अधिक घाटा हुआ होता, तो वह कब की बंद हो गई होती। उनके सभी कर्मचारी बेरोजगार हो गए होते। इंडियन एयरलाइंस की मालिक केंद्र सरकार है। सरकार उसे आर्थिक मदद का इंजेक्शन दे-देकर जिंदा रखना चाहती है। सरकार की इस आर्थिक मदद से कर्मचारी अपना पोषण कर रहे हैं। यदि एयर इंडिया का संचालन व्यापारी की तरह किया जाए, तो उसके कर्मचारी जमीन पर आ जाएंगे, यह तय है। अब भले ही अजित सिंह यह कहते रहे कि विलीनीकरण सरकार की भारी भूल थी, पर इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है। सरकार यदि कंपनी का भला चाहती है, तो उसे कंपनी पर ताला लगा देना चाहिए, ताकि पायलटों की हड़ताल से होने वाला घाटा और कंपनी की साख को बचाया जा सके। वैसे देखा जाए, तो सरकार ने बार-बार आर्थिक सहायता कर कंपनी को कंगाल ही बनाया है। यदि इस दिशा में सख्ती से कार्रवाई की जाती, तो न तो पायलट इतने गैरजिम्मेदार होते और न ही हड़ताल के कारण लोगों को परेशानी होती।
डॉ. महेश परिमल