डॉ. महेश परिमल
यूपीए सरकार ने तीन वर्ष पूरे कर लिए। इस बार सरकार सभी दलों के सदस्यों को डीनर पार्टी देने जा रही है। निश्चित रूप से यह साथी दलों को अपने वश में रखने की एक नाकाम कोशिश ही होगी। क्योंकि पिछले तीन वर्षो में सरकार ने तीन सौगातें देश को दी हैं, महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटाले। अभी दो वर्ष और बाकी हैं, तो दो और सौगातों के लिए देश के नागरिक तेयार रहें। वे सौगातें कौन सी होगी, यह भविष्य के गर्त में है। पर यह तय मानो कि बहुत ही जल्द हमें इस सरकार ने पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोत्तरी की सौगात मिलने वाली है। जो निश्चित रूप से महंगाई के बोझ से दबी जनता के लिए पीड़ादायी होगी। यदि इस बार भी पेट्रोल के दाम बढ़े,तो यह तय है कि ये सरकार अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी। वेसे भी समय पूर्व चुनाव की सुगबुगाहट अभी से ही शुरू हो गई है। क्योंकि सहयोगी दलों पर सरकार की पकड़ ढीली पड़ गई है। ममता बनर्जी के नखरों के बाद सरकार की अपनी कमजोरी और उस पर घोटाले दर घोटाले से आम जनता बुरी तरह से त्रस्त हो चुकी है। यह त्रस्त जनता के पास अपना अधिकार बताने का दिन आ रहा है। इस बार ये जनता ऐसे चौंकाने वाला निर्णय देगी कि सभी हतप्रभ रह जाएंगे।
सरकार रोज ही नई-नई समस्याओं का सामना कर रही है। कालेधन पर श्वेत पत्र तो जारी कर दिया, पर सरकार को ही नहीं पता कि कितना काला धन है। हर कोई इसे अपनी तरह से परिभाषित और रेखांकित कर रहा है। कांग्रेस नेतृत्व यह सरकार अभी तक हो रहे घोटालों को रोक नहीं पाई है। सरकार द्वारा निर्णय लेने में आनाकानी हर मामले में देखनी पड़ी है। रिटेल क्षेत्र में एफडीआई के मामले पर राज्यसभा में सरकार ने मुँह की खाई है। सहयोगी दलों से उसका मतभेद बराबर सामने आ रहा है। इस समय राजा की रिहाई से डीएमके भले ही कुछ शांत हो जाए, पर ममता बनर्जी का मनाना मुश्किल है। आश्चर्य की बात यह है कि यूपीए एक में सरकार के सामने वामपंथी दल परेशानी का सबब थे, अब ममता बनर्जी है। यानी दोनों में पश्चिम बंगाल। सरकार पर कई आरोप लगाए गए हैं, इस पर पहला मुख्य आरोप है कि वह न तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाई है और न ही भ्रष्टाचारियों पर। यही सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई है। सरकार की सबसे बड़ी दुविधा यह रही है कि कई केंद्रीय मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। गृहमंत्री चिदम्बरम के पुत्र द्वारा किए गए एक टेलिकॉम सौदे में हुआ आक्षेप सबसे ताजा है। वैसे भी केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन, उत्तर प्रदेश चुनाव में करारी हार से सरकार त्रस्त है। सरकार ने कई निर्णय सहयोगी दलों को विश्वास में लिए बिना ही लिए गए, जिसके कारण उसे मुंह की खानी पड़ी। सरकार की कमजोरी कई बार सामने आई। ऐसा कई बार हुआ है, जब सरकार ने महत्वपूर्ण मामलों में कदम बढ़ाकर पीछे लेने पड़े हैं। सेना में व्याप्त असंतोष सामने आए, उसके पीछे स्वयं सरकार ही दोषी है। सरकार इसे यदि चुपचाप चर्चा करके सुलझा लेती, तो ठीक होता। पर ये मामले मीडिया के लिए चर्चा का विषय बन गए। सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र जब लीक होता है, तो प्रशासन चौंक जाता है। सेना की बगावत की जाँच रिपोर्ट पर भी रक्षा मंत्री संतुष्ट नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में मिली करारी हार के बाद सरकार में अब पहले जैसा उत्साह नहीं रहा। सहयोगी दल कांग्रेस की कमजोरी जान-समझ गए हैं। पिछले वर्ष डीएमके ने यूपीए सरकार की नाक दबाई थी, इस वर्ष यह काम ममता बनर्जी ने किया। ममता पश्चिम बंगाल के लिए केंद्र से विशेष आर्थिक पैकेज माँग रहीं हैं। यदि सरकार इसे मान लेती है, तो उसके घाटा बढ़ जाएगा। ममता और जयललिता ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया है, इन दोनों ने ही केंद्र सरकार को बुरी तरह से परेशान कर रखा है। अपनी तमाम हरकतों के कारण ममता बनर्जी राजनीति के क्षितिज में तेजी से उभर रही हैं, जबकि पार्टी अध्यक्ष होते हुए भी सोनिया गांधी लगातार पीछे होती जा रही हैं।
यूपीए सरकार अपने तीन वर्ष के कार्यकाल के पूरे होने पर एक पुस्तिका का प्रकाशन किया गया है। मीडिया में जब इस पुस्तिका को टीवी पर दिखाया, तो इसका प्रदर्शन करते हुए पहले पृष्ठ पर प्रकाशित अपनी तस्वीर को सोनिया गांधी ने छिपा लिया, इसे टीवी पर कई बार दिखाया गया। इससे क्या संदेश जाता है, इस पर अभी कुछ कहना संभव नहीं है। वैसे लोकसभा चुनाव कब होंगे, यह इस वर्ष के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा। इस चुनाव में कांग्रेस की अग्निपरीक्षा होगी। हाल में सोनिया गांधी ने जिस तरह से पार्टी में जान फूंकने की कोशिश की है, उसका असर गुजरात चुनाव तक रह पाता है या नहीं, यह भी स्पष्ट हो जाएगा। गुजरात में कांग्रेस का मुकाबला केवल भाजपा से ही है। समय पूर्व चुनाव के विचार से ही कांग्रेस सरकार के हाथ-पांव फूल जाते हैं। उसे अपनी कमजोरी याद आने लगती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बार बार कहते हैं कि सरकार अब सख्ती दिखाएगी। अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी, पर इसका कोई असर न तो पार्टी में दिखाई देता है और न ही प्रशासनिक क्षेत्र में। सोनिया गांधी में भी अब पहले जैसा जोश नहीं है। अपनी शारीरिक अस्वस्थता को लेकर उनकी कमजोरी सामने आने लगी है। यदि सरकार को अपनी छवि सुधारनी है, तो पहले प्रजा को यह विश्वास दिला दे कि अगले तीन साल तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ेंगे, तो जनता सरकार के प्रति नरम रवैया अपना सकती है। सरकार अपने जंगी खर्चो पर कटौती करना शुरू करे, मंत्रियों की फिजूल विदेश यात्राओं पर रोक लगाए, या फिर ऐसी जनहित घोषणाएँ करें, जिसका असर तुरंत दिखाई देता हो। पर सरकार ऐसा कुछ कर पाएगी, ऐसा लगता नहीं। डीनर पार्टी देकर वह सहयोगी दलों को करीब आने का निमंत्रण तो दे रही है, पर इससे क्या कभी कोई करीब आ पाया है? सरकार यह तय कर ले कि पेट्रोलियम कंपनी का घाटा बढ़ रहा है, तो उसकी आपूर्ति आम जनता पर पेट्रोल के दाम बढ़ाकर नहीं की जा सकती। उनके घाटे को पूरा करने के लिए कुछ और इंतजाम किए जा सकते हैं। पर यह तय मानो कि अब बहुत ही जल्द पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढ़ने वाले हैं। जो सरकार के ताबूत में आखिर कील साबित होगा।
डॉ. महेश परिमलसरकार रोज ही नई-नई समस्याओं का सामना कर रही है। कालेधन पर श्वेत पत्र तो जारी कर दिया, पर सरकार को ही नहीं पता कि कितना काला धन है। हर कोई इसे अपनी तरह से परिभाषित और रेखांकित कर रहा है। कांग्रेस नेतृत्व यह सरकार अभी तक हो रहे घोटालों को रोक नहीं पाई है। सरकार द्वारा निर्णय लेने में आनाकानी हर मामले में देखनी पड़ी है। रिटेल क्षेत्र में एफडीआई के मामले पर राज्यसभा में सरकार ने मुँह की खाई है। सहयोगी दलों से उसका मतभेद बराबर सामने आ रहा है। इस समय राजा की रिहाई से डीएमके भले ही कुछ शांत हो जाए, पर ममता बनर्जी का मनाना मुश्किल है। आश्चर्य की बात यह है कि यूपीए एक में सरकार के सामने वामपंथी दल परेशानी का सबब थे, अब ममता बनर्जी है। यानी दोनों में पश्चिम बंगाल। सरकार पर कई आरोप लगाए गए हैं, इस पर पहला मुख्य आरोप है कि वह न तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाई है और न ही भ्रष्टाचारियों पर। यही सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई है। सरकार की सबसे बड़ी दुविधा यह रही है कि कई केंद्रीय मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। गृहमंत्री चिदम्बरम के पुत्र द्वारा किए गए एक टेलिकॉम सौदे में हुआ आक्षेप सबसे ताजा है। वैसे भी केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन, उत्तर प्रदेश चुनाव में करारी हार से सरकार त्रस्त है। सरकार ने कई निर्णय सहयोगी दलों को विश्वास में लिए बिना ही लिए गए, जिसके कारण उसे मुंह की खानी पड़ी। सरकार की कमजोरी कई बार सामने आई। ऐसा कई बार हुआ है, जब सरकार ने महत्वपूर्ण मामलों में कदम बढ़ाकर पीछे लेने पड़े हैं। सेना में व्याप्त असंतोष सामने आए, उसके पीछे स्वयं सरकार ही दोषी है। सरकार इसे यदि चुपचाप चर्चा करके सुलझा लेती, तो ठीक होता। पर ये मामले मीडिया के लिए चर्चा का विषय बन गए। सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र जब लीक होता है, तो प्रशासन चौंक जाता है। सेना की बगावत की जाँच रिपोर्ट पर भी रक्षा मंत्री संतुष्ट नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में मिली करारी हार के बाद सरकार में अब पहले जैसा उत्साह नहीं रहा। सहयोगी दल कांग्रेस की कमजोरी जान-समझ गए हैं। पिछले वर्ष डीएमके ने यूपीए सरकार की नाक दबाई थी, इस वर्ष यह काम ममता बनर्जी ने किया। ममता पश्चिम बंगाल के लिए केंद्र से विशेष आर्थिक पैकेज माँग रहीं हैं। यदि सरकार इसे मान लेती है, तो उसके घाटा बढ़ जाएगा। ममता और जयललिता ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा कर लिया है, इन दोनों ने ही केंद्र सरकार को बुरी तरह से परेशान कर रखा है। अपनी तमाम हरकतों के कारण ममता बनर्जी राजनीति के क्षितिज में तेजी से उभर रही हैं, जबकि पार्टी अध्यक्ष होते हुए भी सोनिया गांधी लगातार पीछे होती जा रही हैं।
यूपीए सरकार अपने तीन वर्ष के कार्यकाल के पूरे होने पर एक पुस्तिका का प्रकाशन किया गया है। मीडिया में जब इस पुस्तिका को टीवी पर दिखाया, तो इसका प्रदर्शन करते हुए पहले पृष्ठ पर प्रकाशित अपनी तस्वीर को सोनिया गांधी ने छिपा लिया, इसे टीवी पर कई बार दिखाया गया। इससे क्या संदेश जाता है, इस पर अभी कुछ कहना संभव नहीं है। वैसे लोकसभा चुनाव कब होंगे, यह इस वर्ष के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा। इस चुनाव में कांग्रेस की अग्निपरीक्षा होगी। हाल में सोनिया गांधी ने जिस तरह से पार्टी में जान फूंकने की कोशिश की है, उसका असर गुजरात चुनाव तक रह पाता है या नहीं, यह भी स्पष्ट हो जाएगा। गुजरात में कांग्रेस का मुकाबला केवल भाजपा से ही है। समय पूर्व चुनाव के विचार से ही कांग्रेस सरकार के हाथ-पांव फूल जाते हैं। उसे अपनी कमजोरी याद आने लगती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बार बार कहते हैं कि सरकार अब सख्ती दिखाएगी। अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी, पर इसका कोई असर न तो पार्टी में दिखाई देता है और न ही प्रशासनिक क्षेत्र में। सोनिया गांधी में भी अब पहले जैसा जोश नहीं है। अपनी शारीरिक अस्वस्थता को लेकर उनकी कमजोरी सामने आने लगी है। यदि सरकार को अपनी छवि सुधारनी है, तो पहले प्रजा को यह विश्वास दिला दे कि अगले तीन साल तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ेंगे, तो जनता सरकार के प्रति नरम रवैया अपना सकती है। सरकार अपने जंगी खर्चो पर कटौती करना शुरू करे, मंत्रियों की फिजूल विदेश यात्राओं पर रोक लगाए, या फिर ऐसी जनहित घोषणाएँ करें, जिसका असर तुरंत दिखाई देता हो। पर सरकार ऐसा कुछ कर पाएगी, ऐसा लगता नहीं। डीनर पार्टी देकर वह सहयोगी दलों को करीब आने का निमंत्रण तो दे रही है, पर इससे क्या कभी कोई करीब आ पाया है? सरकार यह तय कर ले कि पेट्रोलियम कंपनी का घाटा बढ़ रहा है, तो उसकी आपूर्ति आम जनता पर पेट्रोल के दाम बढ़ाकर नहीं की जा सकती। उनके घाटे को पूरा करने के लिए कुछ और इंतजाम किए जा सकते हैं। पर यह तय मानो कि अब बहुत ही जल्द पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढ़ने वाले हैं। जो सरकार के ताबूत में आखिर कील साबित होगा।