मंगलवार, 19 जून 2012

राजनीति के गलियारों में एक ही चर्चा कौन बनेगा वित्तमंत्री?

डॉ. महेश परिमल
देश गंभीर आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है। औद्योगिक विकास दर लगातार घट रही है। आर्थिक मंदी की ओर बढ़ते देश की हालत उबारने की सरकार की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं। मानसून खिंचन लगा है। दूसरी ओर महंगाई कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। देश की इससे बड़ी दुर्दशा क्या होगी कि जिससे महंगाई कुछ कम हो, उस पेट्रोल के दाम कम करने के लिए जिम्मेदार मंत्री और अफसरों के विदेश दौरे के कारण दाम कम नहीं हो पाए। क्रूड आइल के दाम कम हो गए, इसके मद्देनजर यदि पेट्रोल के दाम कम हो जाते, तो महँगाई बढ़ाने वाले कई कारकों का असर कम हो जाता। पर लालफीताशाही के कारण देश को बरबादी के कगार पर पहुंचाने वाले नेता अभी राष्ट्रपति चुनाव में उलझे हुए हैं। इन हालात में देश के कमजोर प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री का भी पद संभाल लिया और सख्त निर्णय नहीं ले पाए, तो देश की हालत बहुत ही खराब हो जाएगी।
नागरिकों ने अब प्रणब मुखर्जी को नए राष्ट्रपति के रूप में देखना शुरू कर दिया है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि तो फिर कौन होगा देश का अगला वित्तमत्री? इस पद के लिए कई नाम सामने आ रहे हैं, पर कांग्रेस यह नहीं चाहती कि 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए कोई ऐसा निर्णय लिया जाए, जिससे महँगाई बढ़े और सरकार की फजीहत हो। इसलिए ऐसे किसी व्यक्ति को वित्तमंत्री का पद देना खतरे से खाली नहीं है, जो इस पद के लिए कम अनुभवी हो। कांग्रेस के साथ मुश्किल यह है कि यह पद सीधे जनता जनार्दन से जुड़ा हुआ हे, इसलिए इस पद पर रहने वाला हमेशा नागरिकों एवं व्यापारियों के निशाने पर आकर आलोचनाओं का शिकार होता रहता है। जहां आर्थिक विकास की बात होती है, तो वित्त मंत्री की काबिलियत पर ऊंगलियां उठनी शुरू हो जाती है। प्रधानमंत्री के पास वैसे भी काम का बहुत ही दबाव है। पूर्व में जब उनके पास कोयला मंत्रालय था, तब उनकी जानकारी के बिना करोड़ों का घोटाला हो गया। कई निर्णय ऐसे लिए गए, जिसकी जानकारी प्रधानमंत्री को भी नहीं थी, इसलिए निजी कंपनियों के पौ-बारह हो गए। इसे देखते हुए वित्त पंत्री का प्रभार प्रधानमंत्री को देना खतरे से खाली नहीं है।
  वैश्विक बदहाली से भारत को बचाने में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को पूरी तरह से असफल माना जा रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री भी भी भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देने संबंधी मुखर्जी के प्रयासों से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हैं। पीएमओ सूत्रों की माने तो, वित्त मंत्री का पद खाली होने पर इस गद्दी को प्रधानमंत्री खुद अपने पास रखेंगे। वहीं पीएम के आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष सी. रंगराजन वित्त मंत्रालय चलाने में प्रधानमंत्री का सहयोग करेंगे। हालांकि प्रधानमंत्री के पास रंगराजन को अगला वित्त मंत्री बनाने का भी विकल्प होगा, लेकिन यह आसान नहीं होगा। दरअसल, रंगराजन को वित्त मंत्रालय का प्रभार देने में सबसे बड़ा रोड़ा वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बन सकते हैं। वहीं पार्टी आलाकमान के दबाव में होने के चलते भी प्रधानमंत्री की इस ख्वाहिश को पूरा किया जाना लगभग नामुमकिन माना जा रहा है। दिलचस्प है कि यूपीए एक में भी एक बार प्रधानमंत्री की ऐसी ही उम्मीदों को पार्टी झटका दे चुकी है। उस समय भी सिंह ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह को वित्त मंत्री बनाने की सिफारिश की थी। हालांकि इस संबंध में प्रधानमंत्री के सारे प्रयास विफल साबित हुए। वित्त मंत्री बनने की सूचीं जो सबसे अहम नाम सामने आ रहा हैं वो खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का है। प्रधानमंत्री कुछ समय के लिए वित्त मंत्रालय अपने पास रख सकते है। एक अर्थशास्त्री के तौर पर मनमोहन की साख अंतराष्ट्रीय स्तर की है। देश की अर्थव्यवस्था बेहद मुश्किल दौर से गुज़र रही है और अर्थशास्त्री मनमोहन से देश को संकट से वैसे ही उबारने की उम्मीद की जा रही है, जैसे उन्होनें 1991 की मंदी के दौरान कर के दिखाया था। दूसरा नाम है शहरी विकास मंत्री कमलनाथ का। कमलनाथ यूपीए की पहली पारी में वाणिज्य और उद्योग मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। आर्थिक मामलों से जुड़े कई विभागों का भी अनुभव और गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं। वित्त मंत्री की कुर्सी के लिए जो बातें कमलनाथ के खिलाफ जाती हैं उनमें सबसे पहली है, बड़े मंत्रालय संभालने का अनुभव नहीं होना। देश के मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए किसी नए आदमी को इसकी जिम्मेदारी देना मुश्किल होगा। कमलनाथ गांधी परिवार के करीबी भले ही माने जाते हों लेकिन मनमोहन की गुडलिस्ट में उनका नाम नहीं हैं। इसके अलावा नीरा राडिया टेप के मामले में उनका नाम काफी उछाला गया है। इसलिए उनके नाम पर विचार करने के पहले उन पर लगे दाग छुड़ाने होंगे। तीसरा नाम जयराम रमेश का चल रहा है। जयराम भी एक अर्थशास्त्री हैं। जयराम गांधी परिवार के काफी करीबी माने जाते हैं। लेकिन जयराम के साथ दिक्कत ये है कि उनकी छवि ज़मीन से जुड़े नेता की नहीं है और ना ही वो राजनीति के बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं। चौथा नाम मोंटेक सिंह अहलूवालिया का नाम भी चर्चा में है। अहलूवालिया योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रुप में देश की अर्थव्यवस्था को अच्छी तरह समझते हैं। अर्थशास्त्री हैं और उनके पास वर्ल्ड बैंक का भी अनुभव है। एक और बात मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर प्रधानमंत्री भरोसा करते हैं। मोंटेक सिंह का सबसे बड़ा माइनस प्वाइंट ये है कि वो राजनीतिक शख्सियत नहीं है। लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी इस पद की जिम्मेदारी जनता से जुड़े हुए नेता को देना चाहेगी। लेकिन उनके साथ दिक्कत यह है कि उनके बयान कई बार सुर्खियों में आकार विवादास्पद हो चुके हैं। फिर चाहे दिन भर की कमाई 26 रुपए हो, तो वह यथेष्ट है। हाल ही में टायलेट पर 35 लाख रुपए खर्च करने का मामला भी सामने आया है। इसलिए उन्हें गंभीर नहीं माना जाता। पांचवां नाम सी. रंगराजनहै। उनके हक में सबसे पहली बात ये है कि वो प्रधानमंत्री की खास पसंद हैं। अर्थशास्त्र के जानकार हैं और रिजर्व बैंक के गर्वनर रह चुके हैं।
सी रंगराजन के खिलाफ जो बात आती है वो ये है कि अर्थशास्त्री रंगराजन राजनेता नहीं है और पार्टी अगले लोकसभा चुनाव को देखते हुए ही किसी राजनेता को इस अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी देना चाहेगी। सरप्राइज़ पैकेज के तौर पर आनंद शर्मा का नाम भी वित्त मंत्री की दौड़ में चल पड़ा है। कैबिनेट मंत्री के तौर पर आनंद शर्मा का काम अच्छा रहा है। लेकिन आनंद शर्मा ने इतनी बड़ी जि़म्मेदारी पहले कभी नहीं उठाई है और यही बात उनके खिलाफ जा रही है।सरकार में बहुत से लोग हैं. प्रणब लोकसभा में सत्ता पक्ष के नेता भी हैं।  कांग्रेस को उनके कद के मुताबिक ही किसी नेता का चुनाव करना होगा।
एक नाम सुशील कुमार शिन्दे का भी है।  कई बार चुनाव जीत चुके शिन्दे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके है।  उन्हें एक अनुभवी और मंझे हुए नेता के तौर पर देखा जाता है। क्या सोनिया गांधी आदर्श घोटाले में आरोपों के घेरे में आ चुके शिंदे को यह जिम्मेदारी देंगी?  लोकसभा के नेता के लिए चिदंबरम का नाम भी सुर्खियों में हैं। चिदंबरम गृहमंत्री हैं, बड़े कद के नेता भी हैं।  लेकिन हाल के दिनों में कई आरोपों से घिरे चिदंबरम विपक्ष के निशाने पर रहते हैं।  ऐसे में संसद में पार्टी की ढाल बनना शायद उनके लिए मुश्किल साबित हो।
कुल मिलाकर एक तरफ है रायसीना की राजनीति तो दूसरी तरफ वित्त मंत्री की कुर्सी। दोनों का फैसला सोनिया गांधी की सहमति पर निर्भर है।  हालांकि खबर यह भी है कि पीएम वित्त मंत्रालय को खुद के पास रखने की इच्छा जता सकते हैं, क्योंकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी बजट पेश किया जाना है ऐसे में अनुभव को तवज्जो दी सकती है। पर बात वहीं आकर अटक जाती है कि क्या डॉ. मनमोहन सिंह को यह जवाबदारी सौंपी जाए? जनता उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं देखना चाहती, फिर क्या वित्त मंत्री के रूप में भी उन्हें ही देखे? कई बार ऐसे हालात सामने आए, जिस दौरान प्रधानमंत्री का एक कठोर निर्णय देश को आर्थिक मंदी से बचाने की दिशा में कारगर साबित हो सकता था,पर यह निण्रय अनिर्णय ही रहा? उनकी नाकामी के कारण देश को कई बार शर्मसार भी होना पड़ा है। देश के पिछड़ने का कारण भी कई बार उन्हें ही माना गया है। ऐसे में फिर वही सवाल राजनीति के गलियारे में गूंज रहा है कि कौन होगा अगला वित्त मंत्री?
डॉ. महेश परिमल

Post Labels