डॉ. महेश परिमल
एक समय ऐसा भी था, जब बिहार को लेकर कई जोक्स बन गए थे। जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे, तब एक लतीफा विशेष रूप से प्रचारित हुआ था। बात यूं हुई कि एक बार मियां मुशर्रफ कश्मीर के लिए अड़ गए? कई लोगों ने समझाया कि जिद छोड़ दो, ये पाकिस्तान के लिए अच्छा नहीं होगा। मियां मुशर्रफ नहीं माने? तब उन्हें मनाने के लिए लालू उनके पास पहूंचे? थोड़ी ही देर बाद मियां मुशर्रफ यह कहते हुए बाहर आए कि मुझे नहीं चाहिए कश्मीर? अब कान पकड़ता हूं, कभी कश्मीर के लिए नहीं अड़ूँगा। लोग हतप्रभ रह गए, आखिर लालू ने उन्हें ऐसा क्या कह दिया कि मियां भाग खड़े हुए? बाद में लालू से लोगों ने पूछा तो लालू ने बताया कि कुछ नहीं मैंने उनसे यही कहा कि हम कश्मीर अकेले नहीं देंगे, उसके साथ आपको बिहार भी लेना होगा। बस मियां भाग गए। लालू ने बिहार को एक अराजक राज्य बना दिया था। वहां जंगलराज कायम हो गया था। आज हालात एकदम विपरीत हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान का एक प्रतिनिधि मंडल बिहार के विकास के अध्ययन के लिए पटना आया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के नेतृत्व ने जिस तरह से विकास की इबारत लिखी है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि उन्होंने एक संकल्प के साथ बिहार को विकास का रास्ता दिखाया है। अब तक बिहार को जिसने भी विकास का रास्ता दिखाया, उसने बिहार की अवाम के साथ धोखा ही किया। इस बार हालात बदले हुए हैं। बिहार ने गति पकड़ी है। यह विकास की गति है, जिसे रोकना अब मुश्किल है। आखिर पाकिस्तान को क्या पड़ी थी कि गुजरात छोड़कर वह विकास का अध्ययन करने के लिए बिहार जाए। कहीं तो कुछ है, जिसने पाकिस्तान को लुभाया। आखिरकार उसने यह फैसला लिया कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को पाकिस्तान बुलाकर उनसे विकास पर चर्चा की जाए।
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने बिहार में नीतिश कुमार के कामकाज की जोरदार प्रशंसा की है। इस प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सचिव एवं सांसद जहांगीर बदर कर रहे थे। बिहार की प्रशंसा पाकिस्तान से सुनकर बिहार के जनसम्पर्क विभाग ने एक प्रेस नोट देश भर के पत्रकारों को भेज दिया। अब यह बात सोचने के लायक है कि लालू के शासनकाल में बिहार में जंगलराज था, तो क्या नीतिश कुमार के राज में बिहार पूरी तरह से स्वर्ग बन गया है? बिहार स्वर्ग तो नहीं बन पाया है, पर जंगलराज से मुक्त हुआ है, यह कहा जा सकता है। नीतिश कुमार के बारे में यह कहा जाता है कि वे कोल्ड ब्लडेड और शांत प्रकृति के राजनीतिज्ञ हैं। सामान्य रूप से विदेश प्रवास नहीं करना चाहते। विदेश जाने के नाम पर वे इसे टालने की कोशिश करते हैं। पर जब पाकिस्तान जैसे देश से बुलावा आए, तो वे झटपट तैयार भी हो जाते हैं। पर क्या हमारे देश में सब कुछ सामान्य रूप से संभव है। नीतिश के लिए पाकिस्तान से बुलावा क्या आया, लालू यादव और कांग्रेस की तो निकल पड़ी। दोनों मिलकर एक स्वर में इसका विरोध कर रहे हैं। इन्हें नीतिश के खिलाफ मुद्दा चाहिए था, जो उन्हें मिल गया। पाकिस्तान की नजर में उनका नम्बर वन दुश्मन भारत ही है। लेकिन दूसरी ओर आज भी दोनों देशों के बीच कलाकारों का आना-जाना, क्रिकेट का होना इस बात का सूचक है कि हालात पूरी तरह से बिगड़े नहीं है। यह भी सच है कि भारत में जो आतंकवाद पसर रहा है, उसमें पाकिस्तान का हाथ है।
इसे यदि राजनैतिक दृष्टि से देखा जाए, तो स्पष्ट होगा कि आज विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के अलावा कोई नाम नहीं है। जो भी नाम सामने आता है, उसका विरोध शुरू हो जाता है। इनमे ंसे नीतिश कुमार का नाम भी शामिल है। अब नीतिश की प्रशंसा यदि हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान कर रहा है, तो विरोध तो होना ही चाहिए। हमारे देश में यह तय है कि जिसमें भी पाकिस्तान का नाम जुड़ा, उसका विरोध तय है। इसलिए नीतिश का भ विरोध शुरू हो गया है। भारत-पािकस्तान के बीच मतभेद किसी से छिपा नहीं है। संबंध कतई अच्छे नहंीं है। कठिन हालात बार-बार सामने आते रहते हैं। वैसे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध पहले से सुधरे हैं। अपनी आतंकवादी प्रवृत्ति के कारण पाकिस्तान पूरे विश्व में बदनाम है। हमारे यहां हर बात को वोट की दृष्टि से देखा जाता है। पाकिस्तान का विरोध भी वोट बैंक की राजनीति का एक हिस्सा ही है। वोट बैंक की राजनीति में नीतिश कुमार भी सिद्धहस्त है। पाकिस्तान द्वारा की गई तारीफ से वे बिहार में अपना मत विस्तार बढ़ा रहे हैं। वे बार-बार सभाओं में यही कहते हैं कि उन्होंने बिहार से जंगलराज का खात्मा किया है।
नीतिश कुमार ने सोचा है कि इस वर्ष के अंत तक वे पाकिस्तान की यात्रा पर जाएंगे। वैसे भी इस समय नीतिश कुमार जोश में हैं। हाल ही में सर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उनकी पीठ थपथपाई है। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा है कि आम लोग ये मानते हैं कि बिहार का शासन गुजरात से बेहतर है। कुछ विदेशी पत्रकारों से बातचीत के दौरान भागवत ने कहा कि आम लोग ये मानते हैं कि बिहार गुजरात से बेहतर शासित प्रदेश है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने बीजेपी के अंदर भी बवाल मचा दिया है। विदेशी पत्रकारों से बातचीत के दौरान मोहन भागवत ने बिहार के सुशासन पर चर्चा करते हुये कहा है कि लोग बिहार के बारे में लगातार ये बात कह रहे हैं इसलिए इस विषय में उनका खुद का मत बहुत मायने नहीं रखता। तय है कि नीतिश कुमार को अभी बहुत कुछ करना है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती नरेंद्र मोदी ही हैं। दोनों के मतभेद सामने आते ही रहते हैं। अब यदि नीतिश गुजरात जाकर चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ कहते हैं, तो संबंध बिगड़ने ही हैं। उधर राज्य में लालू भी चुप बैठने वालों में से नहीं हैं। विकास की गति में वे सबसे बड़े अवरोधक के रूप में सामने हैं। यह मुकाबला भी कड़ा है। ऐसे में पाकिस्तानी प्रशंसा से वे गर्वित न होकर एक चुनौती के रूप में लेते हैं, तो यह उनके लिए उचित होगा।
डॉ. महेश परिमल
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने बिहार में नीतिश कुमार के कामकाज की जोरदार प्रशंसा की है। इस प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सचिव एवं सांसद जहांगीर बदर कर रहे थे। बिहार की प्रशंसा पाकिस्तान से सुनकर बिहार के जनसम्पर्क विभाग ने एक प्रेस नोट देश भर के पत्रकारों को भेज दिया। अब यह बात सोचने के लायक है कि लालू के शासनकाल में बिहार में जंगलराज था, तो क्या नीतिश कुमार के राज में बिहार पूरी तरह से स्वर्ग बन गया है? बिहार स्वर्ग तो नहीं बन पाया है, पर जंगलराज से मुक्त हुआ है, यह कहा जा सकता है। नीतिश कुमार के बारे में यह कहा जाता है कि वे कोल्ड ब्लडेड और शांत प्रकृति के राजनीतिज्ञ हैं। सामान्य रूप से विदेश प्रवास नहीं करना चाहते। विदेश जाने के नाम पर वे इसे टालने की कोशिश करते हैं। पर जब पाकिस्तान जैसे देश से बुलावा आए, तो वे झटपट तैयार भी हो जाते हैं। पर क्या हमारे देश में सब कुछ सामान्य रूप से संभव है। नीतिश के लिए पाकिस्तान से बुलावा क्या आया, लालू यादव और कांग्रेस की तो निकल पड़ी। दोनों मिलकर एक स्वर में इसका विरोध कर रहे हैं। इन्हें नीतिश के खिलाफ मुद्दा चाहिए था, जो उन्हें मिल गया। पाकिस्तान की नजर में उनका नम्बर वन दुश्मन भारत ही है। लेकिन दूसरी ओर आज भी दोनों देशों के बीच कलाकारों का आना-जाना, क्रिकेट का होना इस बात का सूचक है कि हालात पूरी तरह से बिगड़े नहीं है। यह भी सच है कि भारत में जो आतंकवाद पसर रहा है, उसमें पाकिस्तान का हाथ है।
इसे यदि राजनैतिक दृष्टि से देखा जाए, तो स्पष्ट होगा कि आज विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के अलावा कोई नाम नहीं है। जो भी नाम सामने आता है, उसका विरोध शुरू हो जाता है। इनमे ंसे नीतिश कुमार का नाम भी शामिल है। अब नीतिश की प्रशंसा यदि हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान कर रहा है, तो विरोध तो होना ही चाहिए। हमारे देश में यह तय है कि जिसमें भी पाकिस्तान का नाम जुड़ा, उसका विरोध तय है। इसलिए नीतिश का भ विरोध शुरू हो गया है। भारत-पािकस्तान के बीच मतभेद किसी से छिपा नहीं है। संबंध कतई अच्छे नहंीं है। कठिन हालात बार-बार सामने आते रहते हैं। वैसे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध पहले से सुधरे हैं। अपनी आतंकवादी प्रवृत्ति के कारण पाकिस्तान पूरे विश्व में बदनाम है। हमारे यहां हर बात को वोट की दृष्टि से देखा जाता है। पाकिस्तान का विरोध भी वोट बैंक की राजनीति का एक हिस्सा ही है। वोट बैंक की राजनीति में नीतिश कुमार भी सिद्धहस्त है। पाकिस्तान द्वारा की गई तारीफ से वे बिहार में अपना मत विस्तार बढ़ा रहे हैं। वे बार-बार सभाओं में यही कहते हैं कि उन्होंने बिहार से जंगलराज का खात्मा किया है।
नीतिश कुमार ने सोचा है कि इस वर्ष के अंत तक वे पाकिस्तान की यात्रा पर जाएंगे। वैसे भी इस समय नीतिश कुमार जोश में हैं। हाल ही में सर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उनकी पीठ थपथपाई है। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा है कि आम लोग ये मानते हैं कि बिहार का शासन गुजरात से बेहतर है। कुछ विदेशी पत्रकारों से बातचीत के दौरान भागवत ने कहा कि आम लोग ये मानते हैं कि बिहार गुजरात से बेहतर शासित प्रदेश है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने बीजेपी के अंदर भी बवाल मचा दिया है। विदेशी पत्रकारों से बातचीत के दौरान मोहन भागवत ने बिहार के सुशासन पर चर्चा करते हुये कहा है कि लोग बिहार के बारे में लगातार ये बात कह रहे हैं इसलिए इस विषय में उनका खुद का मत बहुत मायने नहीं रखता। तय है कि नीतिश कुमार को अभी बहुत कुछ करना है। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती नरेंद्र मोदी ही हैं। दोनों के मतभेद सामने आते ही रहते हैं। अब यदि नीतिश गुजरात जाकर चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ कहते हैं, तो संबंध बिगड़ने ही हैं। उधर राज्य में लालू भी चुप बैठने वालों में से नहीं हैं। विकास की गति में वे सबसे बड़े अवरोधक के रूप में सामने हैं। यह मुकाबला भी कड़ा है। ऐसे में पाकिस्तानी प्रशंसा से वे गर्वित न होकर एक चुनौती के रूप में लेते हैं, तो यह उनके लिए उचित होगा।
डॉ. महेश परिमल