डॉ. महेश परिमल
कहा गया है कि घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। संसद का शीतकालीन सत्र विपक्ष की जिद और केंद्र सरकार की हठधर्मिता की भेंट चढ़ गया। इस शोर में हम बहुत कुछ भूल गए। इस दौरान अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र संघ की एनर्जी कानक्लेव हुई। जहाँ अमेरिाक मं भारतीय राजदूत निरुपमा राव ने यह घोषणा की कि भारत अब पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल को कुल 1200 मेगावॉट बिजली देगा। हमारे देश में आज जहाँ उद्योगों को बिजली नहीं मिल पा रही हो, सुदूर गांव अंधेरे में डूबे हुए रहते हों, किसानों की फसल बिना बिजली के बरबाद होती हों, ऐसी स्थिति में हम उन्हें बिजली देंगे, जो निश्चित रूप से इसका दुरुपयोग ही करेंगे। सदुपयोग भ भले करें, पर भारत को किसी तरह से श्रेय देने से रहे। अपने करोडें नागरिक भारत पर थोपकर बंगला देश मजे कर रहा है। उन शरणार्थियों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है। फिर भी हमारी दिलेरी है कि हम उसी देश को बिजली दे रहे हैं। पाकिस्तान भी हमसे बिजली लेकर अपने को ही सक्षम करेगा। उससे भारत को और भी खतरे में डालने की योजना बनाएगा। इन्हें बिजली देकर भारत आखिर क्या सिद्ध करना चाहता है? समझ में नहीं आता। शायद हम अच्छे पड़ोसी का धर्म निभा रहे हैं। पर पड़ोसी को भी तो यह समझना चाहिए कि उन्हें भी अच्छा पड़ोसी बनकर दिखाना है। निरुपमा राव ने इस कानक्लेव में बताया है कि अगस्त 2010 से भारत, पाकिस्तान को 400 मेगावॉट और बंगलादेश को 170 मेगावॉट बिजली राहत दर पर दे ही रहा है। बिजली देकर शायद भारत विश्व का सुपरपॉवर बनना चाहता है। संभव है इसी खैरात से नेहरुजी का सपना पूरा हो जाए।
13 दिन से संसद नहीं चली, अंदर और बाहर के इस शोर में निरुपमा राव की घोषणा पर किसनी ने ध्यान नहीं दिया। ऐसा भी नहीं है कि हमारे देश में बिजली संकट नहीं है। अभी जुलाई में ही हमने बिजली संकट का भयावह रूप देखा है। शहर ही नहीं पूरा राज्य भी अंधेर में डूब गया। जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। दूसरी तरफ ऊर्जा मंत्री ने इसे उड़ीसा और उत्तर प्रदेश पर यह आरोप लगा दिया कि उन्होंने अधिक बिजली खींच ली। सवाल यह खड़ा होता है कि जब हमारे देश में बिजली का संकट है, तो पड़ोसी देशों को बिजली देकर हम क्या बताना चाहते हैं? इसके लिए आखिर दोष किसे दिया जाए, सरकार या उसकी नीति को? हाल ही में हुए देश में बिजली संकट से यह पता चल गया कि पॉवरग्रीड की किस तरह से मनमाने रूप से आवंटन हुआ है। एक तरफ तो हम सुपरपॉवर बनने का दावा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ लोग किस तरह से बिजली संकट से जूझ रहे हैं, उसे भी देख लिया है। इस बिजली संकट ने न जाने कितनी खामियों को उजागर कर दिया है। अब हमें पता चला है कि पावरग्रीड टेक्नालॉजी की दृष्टि से हमारे संसाधन कितने कमजोर हैं। वहीं इसके आवंटन में भी जो लापरवाही बरती गई है, उसके पीछे हमारी अतार्किक नीति ही जवाबदार है।
हमें आजादी मिली, तब हम 1372 मेगावॉट बिजली पैदा करते थे। तब देश के 63 प्रतिशत क्षेत्रों को बिजली मिलती थी। आज हम 1 लाख 70 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन करते हैं, फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम इस क्षेत्र में अभी पिछड़े ही कहलाते हैं। जहाँ विदेशों में औसतन 2429 यूनिट बिजली की खपत है, वहीं हमारे देश में इसकी खपत 734 यूनिट है। प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के व्यय सहित कारकों पर ध्यान देने के बाद यह तो स्वीकारना ही होगा कि पाँवर ही विकास का ग्रोथ इंजन है। हमारा यह ग्रोथ इंजन अभी बहुत ही कमजोर है। पॉवर ग्रीड की रचना और वहां जमा बिजली का आवंटन काफी हद तक बांध की तरह है। बांध में जिस तरह से पानी जमा किया जाता है, फिर नहरों के माध्यम से आवश्यकतानुसार क्षेत्र में पहुंचाया जाता है, ठीक उसी तरह पॉवरग्रीड में बिजली जमा की जाती है। फिर उसे हाईटेंशन लाइनों के माध्यम अन्यत्र पहुंचाया जाता है। जुलाई में आए बिजली संकट के समय हमें पता चला कि हाईटेंशन लाइन के माध्यम से कई राज्यों ने आवश्यकता से अधिक बिजली खींच ली। बांध की नहरों में से यदि कुछ नहरों में अधिक पानी चला जाए, तो अन्य नहरों में पानी ही नहीं बचेगा। वही स्थिति इस बिजली संकट के दौरान आई। यही वजह है कि पूरा उत्तर भारत बिजली संकट से बुरी तरह से घिर गया।
पड़ोसी देशों को बिजली देने की जल्दबाजी को कई संदेहों से भी देखा जा रहा है। क्योंकि इस समय नार्दन और ईस्टर्न सर्किल में बिजली उत्पादन पिछले 8 वर्षो से लगातार घट रहा है। इस की को पूरा करने के लिए भारत ने लेह-लद्दाख और सियाचीन समेत नार्दन सेक्टर में विंड पॉवर प्लांट लगाने की योजना बनाई है। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो आगामी तीन वर्षो में इससे 1800 मेगावॉट बिजली मिलने लगेगी। पर जिसका पड़ोसी पाकिस्तान हो, तब यह नहीं कहा जा सकता है कि सब कुछ ठीक ठाक होगा। इस दिशा में भारत ने अभी प्रस्ताव ही तैयार किया है, तो पाकिस्तान ने अपना अलग ही राग अलापना शुरू कर दिया है। अब पाकिस्तान प्रस्तावित जगह को विवादास्पद बता रहा है। एक तरफ वह कटोरा लेकर बिजली की भीख हमसे मांग रहा है, दूसरी तरफ बिजली उत्पादन की हमारी योजना को ही कार्यान्वित नहीं करने दे रहा है। ऐसे देश से आखिर क्या अपेक्षा रखी जाए? आखिर हम उस पर रहम क्यों कर रहे हैं? उधर बंगलादेश भी कम नहीं है। वह भी भारत को छेड़ने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देता। नदी के जल वितरण के मामले पर हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वयं प्रधानमंत्री के साथ एक मंच पर बैठने का आग्रह टाल दिया था। ब्रह्मपुत्र और गंगा के प्रवाह को रोककर भारत ने वहां कुल 1300 मेगावॉट के हाइड्रोपॉवर प्लांट लगाया है। इसमें बंगलादेश को 100 मेगावॉट बिजली देने की शर्त भी स्वीकार कर ली गई। इसके बाद भी योजना भारत की, खर्च भारत करे, विस्थापितों की समस्या का समाधान भी भारत करे और आधी यानी 650 मेगावॉट बिजली बंगलादेश को दी जाए, ऐसे अतार्किक और बेहूदा मांगों पर बंगलादेश अकड़ रहा है। हालत यह है कि ढाई वर्ष बाद भी वह प्लांट अभी तक कार्यरत नहीं हो पाया है।
हमारा देश अभी 1 लाख 70 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन कर रहा है। इसके बाद भी यदि ऊर्जा मंत्रालय की मानें, तो अभी भी शाम 7 से रात 11 बजे तक देश के 56 प्रतिशत क्षेत्रों में उनकी मांग के अनुसार 10 प्रतिशत कम बिजली दी जा रही है। आजादी के 64 वर्षो बाद भी अभी तक केवल 9 राज्य ही बिजली के नाम पर आत्मनिर्भर हैं, शेष अन्य राज्यों में 8 से 37 प्रतिशत क्षेत्रों में अभी भी 24 घंटे बिजली नहीं मिल पा रही है। उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में बिजली नहीं मिल पा रही है। उनकी शिकायत हमेशा बिजली की आपूर्ति को लेकर ही रहती है। आम आदमी गर्मी के दिनों में दोपहर बिना बिजली के रहने को विवश है, कभी रात में दीवाली मनाता रहता है। ऐसे में यदि हम पड़ोसी राज्यों को बिजली देने लगें, तो इसे क्या कहा जाएगा। घर फूंक तमाशा देख। एक तरफ विश्व स्तर पर सुपर पॉवर बनने का सपना, तो दूसरी तरफ चेहरे का तेज ही खत्म हो जाए, वैसे हालात। देश की सम्पति पर सबसे पहला अधिकार नागरिकों का ही होता है। इसे भारत सरकार ही अनदेखा कर रही है। पाकिस्तान को छोटा भाई मानकर क्या हम अपना घर लुटाकर उसकी सहायता करते रहें?
डॉ. महेश परिमल
कहा गया है कि घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। संसद का शीतकालीन सत्र विपक्ष की जिद और केंद्र सरकार की हठधर्मिता की भेंट चढ़ गया। इस शोर में हम बहुत कुछ भूल गए। इस दौरान अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र संघ की एनर्जी कानक्लेव हुई। जहाँ अमेरिाक मं भारतीय राजदूत निरुपमा राव ने यह घोषणा की कि भारत अब पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल को कुल 1200 मेगावॉट बिजली देगा। हमारे देश में आज जहाँ उद्योगों को बिजली नहीं मिल पा रही हो, सुदूर गांव अंधेरे में डूबे हुए रहते हों, किसानों की फसल बिना बिजली के बरबाद होती हों, ऐसी स्थिति में हम उन्हें बिजली देंगे, जो निश्चित रूप से इसका दुरुपयोग ही करेंगे। सदुपयोग भ भले करें, पर भारत को किसी तरह से श्रेय देने से रहे। अपने करोडें नागरिक भारत पर थोपकर बंगला देश मजे कर रहा है। उन शरणार्थियों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ रही है। फिर भी हमारी दिलेरी है कि हम उसी देश को बिजली दे रहे हैं। पाकिस्तान भी हमसे बिजली लेकर अपने को ही सक्षम करेगा। उससे भारत को और भी खतरे में डालने की योजना बनाएगा। इन्हें बिजली देकर भारत आखिर क्या सिद्ध करना चाहता है? समझ में नहीं आता। शायद हम अच्छे पड़ोसी का धर्म निभा रहे हैं। पर पड़ोसी को भी तो यह समझना चाहिए कि उन्हें भी अच्छा पड़ोसी बनकर दिखाना है। निरुपमा राव ने इस कानक्लेव में बताया है कि अगस्त 2010 से भारत, पाकिस्तान को 400 मेगावॉट और बंगलादेश को 170 मेगावॉट बिजली राहत दर पर दे ही रहा है। बिजली देकर शायद भारत विश्व का सुपरपॉवर बनना चाहता है। संभव है इसी खैरात से नेहरुजी का सपना पूरा हो जाए।
13 दिन से संसद नहीं चली, अंदर और बाहर के इस शोर में निरुपमा राव की घोषणा पर किसनी ने ध्यान नहीं दिया। ऐसा भी नहीं है कि हमारे देश में बिजली संकट नहीं है। अभी जुलाई में ही हमने बिजली संकट का भयावह रूप देखा है। शहर ही नहीं पूरा राज्य भी अंधेर में डूब गया। जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। दूसरी तरफ ऊर्जा मंत्री ने इसे उड़ीसा और उत्तर प्रदेश पर यह आरोप लगा दिया कि उन्होंने अधिक बिजली खींच ली। सवाल यह खड़ा होता है कि जब हमारे देश में बिजली का संकट है, तो पड़ोसी देशों को बिजली देकर हम क्या बताना चाहते हैं? इसके लिए आखिर दोष किसे दिया जाए, सरकार या उसकी नीति को? हाल ही में हुए देश में बिजली संकट से यह पता चल गया कि पॉवरग्रीड की किस तरह से मनमाने रूप से आवंटन हुआ है। एक तरफ तो हम सुपरपॉवर बनने का दावा कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ लोग किस तरह से बिजली संकट से जूझ रहे हैं, उसे भी देख लिया है। इस बिजली संकट ने न जाने कितनी खामियों को उजागर कर दिया है। अब हमें पता चला है कि पावरग्रीड टेक्नालॉजी की दृष्टि से हमारे संसाधन कितने कमजोर हैं। वहीं इसके आवंटन में भी जो लापरवाही बरती गई है, उसके पीछे हमारी अतार्किक नीति ही जवाबदार है।
हमें आजादी मिली, तब हम 1372 मेगावॉट बिजली पैदा करते थे। तब देश के 63 प्रतिशत क्षेत्रों को बिजली मिलती थी। आज हम 1 लाख 70 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन करते हैं, फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम इस क्षेत्र में अभी पिछड़े ही कहलाते हैं। जहाँ विदेशों में औसतन 2429 यूनिट बिजली की खपत है, वहीं हमारे देश में इसकी खपत 734 यूनिट है। प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के व्यय सहित कारकों पर ध्यान देने के बाद यह तो स्वीकारना ही होगा कि पाँवर ही विकास का ग्रोथ इंजन है। हमारा यह ग्रोथ इंजन अभी बहुत ही कमजोर है। पॉवर ग्रीड की रचना और वहां जमा बिजली का आवंटन काफी हद तक बांध की तरह है। बांध में जिस तरह से पानी जमा किया जाता है, फिर नहरों के माध्यम से आवश्यकतानुसार क्षेत्र में पहुंचाया जाता है, ठीक उसी तरह पॉवरग्रीड में बिजली जमा की जाती है। फिर उसे हाईटेंशन लाइनों के माध्यम अन्यत्र पहुंचाया जाता है। जुलाई में आए बिजली संकट के समय हमें पता चला कि हाईटेंशन लाइन के माध्यम से कई राज्यों ने आवश्यकता से अधिक बिजली खींच ली। बांध की नहरों में से यदि कुछ नहरों में अधिक पानी चला जाए, तो अन्य नहरों में पानी ही नहीं बचेगा। वही स्थिति इस बिजली संकट के दौरान आई। यही वजह है कि पूरा उत्तर भारत बिजली संकट से बुरी तरह से घिर गया।
पड़ोसी देशों को बिजली देने की जल्दबाजी को कई संदेहों से भी देखा जा रहा है। क्योंकि इस समय नार्दन और ईस्टर्न सर्किल में बिजली उत्पादन पिछले 8 वर्षो से लगातार घट रहा है। इस की को पूरा करने के लिए भारत ने लेह-लद्दाख और सियाचीन समेत नार्दन सेक्टर में विंड पॉवर प्लांट लगाने की योजना बनाई है। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो आगामी तीन वर्षो में इससे 1800 मेगावॉट बिजली मिलने लगेगी। पर जिसका पड़ोसी पाकिस्तान हो, तब यह नहीं कहा जा सकता है कि सब कुछ ठीक ठाक होगा। इस दिशा में भारत ने अभी प्रस्ताव ही तैयार किया है, तो पाकिस्तान ने अपना अलग ही राग अलापना शुरू कर दिया है। अब पाकिस्तान प्रस्तावित जगह को विवादास्पद बता रहा है। एक तरफ वह कटोरा लेकर बिजली की भीख हमसे मांग रहा है, दूसरी तरफ बिजली उत्पादन की हमारी योजना को ही कार्यान्वित नहीं करने दे रहा है। ऐसे देश से आखिर क्या अपेक्षा रखी जाए? आखिर हम उस पर रहम क्यों कर रहे हैं? उधर बंगलादेश भी कम नहीं है। वह भी भारत को छेड़ने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देता। नदी के जल वितरण के मामले पर हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वयं प्रधानमंत्री के साथ एक मंच पर बैठने का आग्रह टाल दिया था। ब्रह्मपुत्र और गंगा के प्रवाह को रोककर भारत ने वहां कुल 1300 मेगावॉट के हाइड्रोपॉवर प्लांट लगाया है। इसमें बंगलादेश को 100 मेगावॉट बिजली देने की शर्त भी स्वीकार कर ली गई। इसके बाद भी योजना भारत की, खर्च भारत करे, विस्थापितों की समस्या का समाधान भी भारत करे और आधी यानी 650 मेगावॉट बिजली बंगलादेश को दी जाए, ऐसे अतार्किक और बेहूदा मांगों पर बंगलादेश अकड़ रहा है। हालत यह है कि ढाई वर्ष बाद भी वह प्लांट अभी तक कार्यरत नहीं हो पाया है।
हमारा देश अभी 1 लाख 70 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन कर रहा है। इसके बाद भी यदि ऊर्जा मंत्रालय की मानें, तो अभी भी शाम 7 से रात 11 बजे तक देश के 56 प्रतिशत क्षेत्रों में उनकी मांग के अनुसार 10 प्रतिशत कम बिजली दी जा रही है। आजादी के 64 वर्षो बाद भी अभी तक केवल 9 राज्य ही बिजली के नाम पर आत्मनिर्भर हैं, शेष अन्य राज्यों में 8 से 37 प्रतिशत क्षेत्रों में अभी भी 24 घंटे बिजली नहीं मिल पा रही है। उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में बिजली नहीं मिल पा रही है। उनकी शिकायत हमेशा बिजली की आपूर्ति को लेकर ही रहती है। आम आदमी गर्मी के दिनों में दोपहर बिना बिजली के रहने को विवश है, कभी रात में दीवाली मनाता रहता है। ऐसे में यदि हम पड़ोसी राज्यों को बिजली देने लगें, तो इसे क्या कहा जाएगा। घर फूंक तमाशा देख। एक तरफ विश्व स्तर पर सुपर पॉवर बनने का सपना, तो दूसरी तरफ चेहरे का तेज ही खत्म हो जाए, वैसे हालात। देश की सम्पति पर सबसे पहला अधिकार नागरिकों का ही होता है। इसे भारत सरकार ही अनदेखा कर रही है। पाकिस्तान को छोटा भाई मानकर क्या हम अपना घर लुटाकर उसकी सहायता करते रहें?
डॉ. महेश परिमल