http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2012-11-10&pageno=9#id=111754571932600790_49_2012-11-10http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2012-11-10&pageno=9#id=111754571932600790_49_2012-11-10
यह भाजपा की सबसे बड़ी भूल है
डॉ. महेश परिमल
भाजपा इस समय गहरे संकट से गुजर
रही है। जिन नीतिन गडकरी को वह पार्टी के लिए भाग्यशाली मान रही थी, अब वही गडकरी
पार्टी के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं। 2014 का लोकसभा चुनाव सामने है। ऐसे में
गडकरी को बचाकर भाजपा भारी भूल कर रही है। यह भूल उसे महंगी पड़ेगी। संघ के उर्वर
मस्तिष्क को भी शायद लकवा मार गया है, जो गडकरी को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभा रहा है। अगर संघ और भाजपा गडकरी को बचाते हैं, तो फिर कांग्रेस भी रॉबर्ट
वाड्रा और सलमान खुर्शीद को बचाकर कोई गलत नहीं कर रही है। दोनों में फिर फर्क ही
क्या रहा। इसका असर चुनाव में भी दिखाई देगा। अपनी कंपनी के चलते पहले से ही विवाद
में उलझे गडकरी ने दाऊद की तुलना स्वामी विवेकानंद से करते वक्त जरा भी नहीं सोचा
कि लोगों पर इसका क्या असर होगा? यह बयान सामने आते ही लोगों को लग गया था कि अब
गडकरी के दिन लद गए। उन्हें इस्तीफा देना पड़ेगा। खुद गडकरी भी इसके लिए मानसिक रूप
से तैयार हो गए थे, पर ऐन मौके पर संघ ने उन्हें क्लीन चिट दे दी। पार्टी के कुछ
लोगों को अच्छा लगा होगा, पर अधिकांश नाराज हैं। राम जेठमलानी और महेश जेठमलानी तो
खुलकर सामने आ गए हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस तरह के विवादास्पद बयान देने वाले
गडकरी अकेले ही हैं। इंदिरा गांधी को इंदिरा इज इंडिया कहने वाले भी इसी देश में
हैं, लेकिन दाऊद जैसे मोस्ट वांटेड के साथ विवेकानंद की तुलना करके गडकरी ने अपना
ही आईक्यू प्रजा के सामने प्रस्तुत किया है। पार्टी के नेता तो मौन हो गए हैं, पर
भीतर ही भीतर कुछ पक भी रहा है। संदेश जा रहा है कि गडकरी का बचाव कर पार्टी ने गलत
किया है। वैसे भी कई नेता गडकरी को दूसरा मौका नहीं देना चाहते थे। अनुशासन के नाम
पर भाजपा में अनुशासनहीनता चल रही है। साधारण नेता पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ कुछ बोल
नहीं पा रहे हैं। संघ शायद समझ रहा है कि लोग हमेशा की तरह गडकरी के इस बयान को भी
भूल जाएंगे। इसका असर गुजरात के चुनाव में भी दिखाई देगा। यहां भाजपा विवेकानंद को
अपना आदर्श मानकर चुनाव प्रचार कर रही है। चुनावी पोस्टरों में विवेकानंद दिखाई दे
रहे हैं, पर अब भाजपा के चुनावी पोस्टर से गडकरी को हटाया जा रहा है। आखिर गडकरी कब
तक भाजपा पर बोझ बने रहेंगे?
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)