लघुकथा -
सारा झगड़ा खत्म
शुभदा और सुमति दोनों बहनें हैं। शुभदा का विवाह पास ही डोंगरगढ़ में हुआ है और सुमति तो और पास मतलब यहीं राजनांदगाँव में ब्याही गई है। सुमति का बेटा पुलकित, शुभदा के बेटे सुरभित से एक साल बड़ा है, पर दोनों एक समान दिखते हैं- हमउम्र! दोनों में दोस्ती भी खूब है पर कब लड़ बैठें इसका भी भरोसा नहीं। दोनों की उम्र अभी इतनी छोटी है कि वे जब कभी एक-दूसरे से मिलते हैं, तुरंत हाथ पकड़कर, जूते बजाते हुए, बाहर सिर्फ सड़क पर घूमने निकल पड़ते हैं। तब दोनों के हाव-भाव देख मन पुलकित हो उठता है। और जब लड़ते हैं तो उनकी प्यारी-प्यारी तार्किक बातों से पूरा घर सुरभित हो जाता है।
इस बार छुट्टियों में शुभदा जब राजनांदगाँव के ब्राह्मणपारा में मायके आई तो खबर पा सुमति भी गौरी नगर से आ गई। पुलकित को देखते रही। फिर तो सुरभित अपना मचलना भूलकर चट पुलकित दादा का हाथ पकड दसरथ टेलर की दुकान तक घूमने निकल पड़ा।
कुछ क्षण बाद ही दोनों रंग-बिरंगे कपड़ों की कतरनें लिए घर आ गए और फिर कतरन को लेकर उनकी दोस्ती, लड़ाई में बदल गई। पुलकित बड़ा है तो उसके पास शब्द अधिक है। वह खूब बोलता है। कहाँ-कहाँ की बातें करता है। किस बात को कहाँ कब जोड़ दे, इसे वही समझता है। इससे एकदम उल्टा है सुरभित। वह चुप शांत रहता है, पर कभी अचानक ऐसी बातें कह उठता है कि नाना-नानी के साथ-साथ पड़ोसी भी विस्मय विमुग्ध हो जाते है।
हाँ, तो कतरन से अपनी लड़ाई में बातूनी पुलकित ने कहा - ये सब मेरा है।
सुरभित पूछ उठा - और मेरा?
पुलकित ने जवाब दिया - तुम्हारा डोंगरगढ़ में है, यहाँ मेरा है।
सुरभित कुछ क्षण सोचता रहा फिर एकाएक बोला - ये बैठने की चैकी मेरी है और वह तुरंत चैकी पर जा बैठा।
पुलकित कब चुप रहने वाला था। उसने कहा - ये कुर्सी मेरी है।
सुरभित बोला - तो ये सोफा मेरा है।
पुलकित उछलकर तखत पर जा चढ़ा और चिल्लाया - ये... देखो! ये तखत मेरा है।
इसी तरह से मेरा-मेरी की लड़ाई में धीरे-धीरे पूरे घर के सामान एक-दूसरे के हो गए। सामान के बाद घर के लोग भी बँटने लगे -
- ये मेरी मम्मी है।
- ये मेरे पापा है।
- ये मेरी नानी है।
- ये मेरे नाना है।
क्षण भर में सबका बँटवारा हो गया। अब पुलकित क्या बोले? किस पर अपना अधिकार जताए? वह एकदम उत्तेजित हो गया! हाथ दिखाते हुए एक साँस में बोल गया - ये...ये... घर.... ये सड़क... ये... ये...सब और... और.... वो.... वो...दूर... खूब..दूर... वो बादल तक... सब मेरा है।
अब तो सुरभित भारी सोच में पड़ गया। उसके लिए तो कुछ बचा ही नहीं। वह क्या करे? हठात वह एकदम उठ खड़ा हुआ और दौड़कर पुलकित से लिपटकर बोला - ये पुलकित दादा मेरा है।
पुलकित खुश हो गया। उसने सुरभित को और जोर से लिपटा कर कहा - ये छोटा भैया मेरा है। और फिर सारा झगड़ा खतम हो गया।
गिरीश बख्शी
ब्राह्मणपारा,राजनांदगाँव (छ.ग.)