कोंडागाँव। अभी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक "बस्तर की लोक कथाएँ" के
सम्पादकों में से एक हरिहर वैष्णव पिछले दिनों इस पुस्तक के मुख्य
सम्पादक श्री लाला जगदलपुरी जी से मिल कर लौटे हैं। उन्होंने बताया कि
लालाजी दुखी हैं लोगों के पत्र और पत्रिकाओं के न आने से। लालाजी कहते
हैं, "पहले तो बहुत-सी पत्रिकाएँ आती थीं, पत्र आते थे, लोग आते थे
मिलने। अब कुछ नहीं आता, कोई नहीं आता। आप कोंडागाँव से आते हैं तो आनन्द
आ जाता है। आया कीजिये।"
हरिहर वैष्णव ने साहित्य एवं संस्कृति से जुड़े लोगों तथा आम पाठकों से
निवेदन किया है कि वे लालाजी को पत्र लिखें, उन्हें अपनी पत्रिकाएँ और
पुस्तकें भेजें ताकि उन्हें अच्छा लगे और वे प्रसन्नचित्त बने रहें।
ज्ञात हो कि इन दिनों वे अस्वस्थ हैं तथा रीढ़ की हड्डी टूट जाने के कारण
बिस्तर पर ही बने रहते हैं। उनकी स्थिति ठीक नहीं है। उनके परिजन उनकी
सेवा में लगे हुए हैं। विशेषत: उनकी बड़ी बहू कल्पना श्रीवास्तव उनका
विशेष ध्यान रखती हैं।
श्री वैष्णव ने आगे बताया कि वे लालाजी पर केन्द्रित पुस्तक "बस्तर का
साहित्य-मनीषी लाला जगदलपुरी" पर युद्ध-स्तर पर काम कर रहे हैं और चाहते
हैं कि यह पुस्तक लालाजी के जीवन-काल में आ जाये। इसलिये उन्होंने लालाजी
से जुड़े अथवा उनकी पुस्तकों के पाठकों-प्रशंसकों आदि से अपील की है कि
वे लालाजी से जुड़े अपने संस्मरण या लेख अथवा पत्र आदि श्री वैष्णव को
यथाशीघ्र उपलब्ध कराने का कष्ट करें। संस्मरण और लेख आदि का प्रकाशन
सम्बन्धित लेखक के नाम से ही होगा। उनका पता है : हरिहर वैष्णव, सरगीपाल
पारा, कोंडागाँव 494226, बस्तर-छत्तीसगढ़। अधिक जानकारी के लिये उनसे
उनके मोबाइल 76971 74308 पर सम्पर्क किया जा सकता है। उन्होंने दो लोगों
से विशेष अपील की है। पहले व्यक्ति हैं डॉ. सेठिया, जिन्होंने शानी जी पर
पीएचडी की है और जिसमें उन्होंने शानी जी और लालाजी के बीच हुए पत्राचार
तथा शानी जी के विषय में लालाजी के विचार आदि का उपयोग किया है। इसी तरह
डॉ. आरती ध्रुव से भी उन्होंने निवेदन किया है कि वे उनके द्वारा लालाजी
पर किये गये अपने एम.फिल. की थीसिस की प्रति उन्हें उपलब्ध कराने का कष्ट
करें ताकि उसका भी उनके नामोल्लेख सहित उपयोग किया जा सके। उन्होंने
बताया कि उनके पास उपर्युक्त दोनों व्यक्तियों के मोबाइल नम्बर नहीं हैं
इसलिये वे सम्पर्क नहीं कर पा रहे हैं।
सम्पादकों में से एक हरिहर वैष्णव पिछले दिनों इस पुस्तक के मुख्य
सम्पादक श्री लाला जगदलपुरी जी से मिल कर लौटे हैं। उन्होंने बताया कि
लालाजी दुखी हैं लोगों के पत्र और पत्रिकाओं के न आने से। लालाजी कहते
हैं, "पहले तो बहुत-सी पत्रिकाएँ आती थीं, पत्र आते थे, लोग आते थे
मिलने। अब कुछ नहीं आता, कोई नहीं आता। आप कोंडागाँव से आते हैं तो आनन्द
आ जाता है। आया कीजिये।"
हरिहर वैष्णव ने साहित्य एवं संस्कृति से जुड़े लोगों तथा आम पाठकों से
निवेदन किया है कि वे लालाजी को पत्र लिखें, उन्हें अपनी पत्रिकाएँ और
पुस्तकें भेजें ताकि उन्हें अच्छा लगे और वे प्रसन्नचित्त बने रहें।
ज्ञात हो कि इन दिनों वे अस्वस्थ हैं तथा रीढ़ की हड्डी टूट जाने के कारण
बिस्तर पर ही बने रहते हैं। उनकी स्थिति ठीक नहीं है। उनके परिजन उनकी
सेवा में लगे हुए हैं। विशेषत: उनकी बड़ी बहू कल्पना श्रीवास्तव उनका
विशेष ध्यान रखती हैं।
श्री वैष्णव ने आगे बताया कि वे लालाजी पर केन्द्रित पुस्तक "बस्तर का
साहित्य-मनीषी लाला जगदलपुरी" पर युद्ध-स्तर पर काम कर रहे हैं और चाहते
हैं कि यह पुस्तक लालाजी के जीवन-काल में आ जाये। इसलिये उन्होंने लालाजी
से जुड़े अथवा उनकी पुस्तकों के पाठकों-प्रशंसकों आदि से अपील की है कि
वे लालाजी से जुड़े अपने संस्मरण या लेख अथवा पत्र आदि श्री वैष्णव को
यथाशीघ्र उपलब्ध कराने का कष्ट करें। संस्मरण और लेख आदि का प्रकाशन
सम्बन्धित लेखक के नाम से ही होगा। उनका पता है : हरिहर वैष्णव, सरगीपाल
पारा, कोंडागाँव 494226, बस्तर-छत्तीसगढ़। अधिक जानकारी के लिये उनसे
उनके मोबाइल 76971 74308 पर सम्पर्क किया जा सकता है। उन्होंने दो लोगों
से विशेष अपील की है। पहले व्यक्ति हैं डॉ. सेठिया, जिन्होंने शानी जी पर
पीएचडी की है और जिसमें उन्होंने शानी जी और लालाजी के बीच हुए पत्राचार
तथा शानी जी के विषय में लालाजी के विचार आदि का उपयोग किया है। इसी तरह
डॉ. आरती ध्रुव से भी उन्होंने निवेदन किया है कि वे उनके द्वारा लालाजी
पर किये गये अपने एम.फिल. की थीसिस की प्रति उन्हें उपलब्ध कराने का कष्ट
करें ताकि उसका भी उनके नामोल्लेख सहित उपयोग किया जा सके। उन्होंने
बताया कि उनके पास उपर्युक्त दोनों व्यक्तियों के मोबाइल नम्बर नहीं हैं
इसलिये वे सम्पर्क नहीं कर पा रहे हैं।