डॉ. महेश परिमल
क्रिकेट मैच के दौरान बल्लेबाज बॉलर की कमजोर बाल की प्रतीक्षा करता रहता है, जैसे ही बॉल आई, वह सिक्सर मार देता है। ठीक उसी तरह राजनीति में भी जैसे ही प्रियंका गांधी ने नरेंद्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल किया, नरेंद्र मोदी ने उसे सिक्सर मारकर उसका राजनीतिक लाभ ले लिया। इसी एक शब्द के कारण पूरी राजनीति में उथल-पुथल मच गई। अमेठी में लोगों ने पहली बार देखा कि राहुल गांधी पोलिंग बूथ पर मतदान देखने पहुंचे। इसके पहले उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया। अब तक वे अपनी जीत के आंकड़े ही देखते थे, पर इस बार हालात बदले हुए हैं। बहन प्रियंका उनका प्रचार करते-करते यह भूल गई कि वे राजनीति में नई हैं और नरेंद्र मोदी एक पेशेवर राजनीतिज्ञ हैं। उनका एक शब्द अमेठी के लिए ही नहीं, पूरी कांग्रेस के लिए कितना भारी हो जाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा। ऐसा नहीं है कि इस तरह की गलती पहली बार हुई है। सोनिया गांधी ने भी नरेंद्र मोदी को चुनावी सभा में ‘मौत का सौदागर’ कहा था, मात्र एक शब्द ने पूरी राजनीति को ही बदल दिया। नरेंद्र मोदी ने इसका भरपूर लाभ उठाया और वे चुनाव जीत गए।
7 मई को 64 सीटों के लिए मतदान हुआ। यह मतदान इसलिए अधिक चर्चित हुआ, क्योंकि प्रियंका गांधी ने यह कहा दिया कि मोदी ‘नीच’ राजनीति का इस्तेमाल करते हैं। अपने भाई राहुल को जिताने के लिए वह भरसक प्रयास कर रही हैं। पूरा अमेठी ही मथकर रख दिया है, उन्होंने। इस बीच उनके कई बयान आए, जिसका पूरी शिद्दत के साथ नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया। इस बीच कई तरह की तस्वीरें भी सामने आई, जिसमें प्रियंका कहीं ईंटों के ढेर पर बैठी हैं, कहीं आम लोगों से भेंट कर रही हैं। इन सबके दौरान वे यह भूल जाती हैं कि वे एक अकुशल राजनीतिज्ञ हैं, उनकी एक-एक बात पर विपक्ष घात लगाए बैठा है। उनका मुकाबला एक पेशेवर राजनीतिज्ञ से है। जो एक शब्द पर राजनीति की दिशा बदलने में माहिर है। इसलिए प्रियंका ने जैसे ही नरेंद्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल किया, वैसे ही नरेंद्र मोदी ने इस शब्द को पिछड़ी जाति से जोड़कर पूरा वातावरण अपने पक्ष में कर लिया। अब कांग्रेस इस शब्द के कई अर्थ बताने में अपनी शक्ति लगा रही है। इसी एक शब्द ने अमेठी वालों को हैरान कर दिया कि मतदान के दिन राहुल गांधी पोलिंब बूथ में जाकर मतदान करते लोगों को देख रहे थे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इसके पहले तो वे मतदान के दिन कभी अमेठी में ही नहीं रहे। प्रियंका के इस शब्द को पहले नरेंद्र मोदी ने लपका, रही सही कसर स्मृति ईरानी ने पूरी कर दी। उन्होंने इस शब्द का खुलासा करते हुए कहा कि नीच कर्म यानी सैनिकों की विधवा के लिए तैयार किए गए आदर्श फ्लैट, नीच कर्म यानी सैनिकों के कटे हुए सर मिलने के बाद भी कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं, इसे कहते हैं नीच कर्म। चुनावी रैली में प्रियंका ने यह भी कहा कि अमेठी में भले ही सड़क बने या न बने, पर परिवार के संबंध बनें रहें, यह महत्वपूर्ण है। अब यह बात अमेठीवासियों के गले नहीं उतर रही है कि जन सुविधाएं न मिलने से कितनी परेशानी होती है, यह गांधी परिवार नहीं जानता। संबंध बने रहे, तो इसका लाभ आखिर किसको मिलेगा? क्या इसे गांधी परिवार को समझाना होगा। आवश्यक चीजों से वंचित होकर एक गरीब परिवार को आखिर संबंधों को बनाए रखने में आखिर मिलेगा क्या? प्रियंका की इस बात से कोई भी मतदाता सहमत नहीं है। इसके पहले अमेठी के ये हालात थे कि वहां राहुल गांधी खड़े हो गए, तो अन्य कोई दल वहां से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं करता था। इस बार भले ही सपा ने राहुल गांधी के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किए हैं, पर आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास पिछले दो महीनों से अमेठी में डेरा डाले हुए हैं। अरविंद केजरीवाल ने भी वहां बड़ा रोड-शो किया। देर से ही सही पर भाजपा की स्मृति ईरानी भी मैदान में उतरकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है।
चुनाव को सही अर्थो में देखा जाए, तो यह केवल शब्दों की मारामारी की जंग है। जब से अमेठी में चुनाव की बागडोर प्रियंका गांधी ने संभाली है, तब से कांग्रेस का कोई भी नेता वहां नहीं पहुंचा है। प्रियंका ने कई नुक्कड़ सभाओं को संबोधित किया। अपने पिता को शहीद बताते हुए उनके बलिदान के नाम पर जनता से वोट मांगा। कई तरह के विवादास्पद बयान दिए। पर नरेंद्र मोदी ने केवल एक आमसभा का आयोजन कर गांधी परिवार के मंसूबों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस की छावनी में उथल-पुथल मचा दी। नरेंद्र मोदी चाहते थे कि गांधी परिवार से कोई एक ऐसा विवादास्पद बयान आए, जिसे वे लपक लें और माहौल अपने पक्ष में कर लें। यह हुआ भी, जब प्रियंका गांधी ने हंसी-हंसी में नरेंद्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का प्रयोग किया। मोदी जो चाहते थे, वह हो गया, उन्होंने इस ‘नीच’ शब्द को जाति के साथ जोड़कर पूरा माहौल अपने पक्ष में कर लिया। अब नीच कर्म और नीच जाति को लेकर कांग्रेस में हायतौबा मची है। वह इसका खुलासा करते-करते थक गई, पर मतदाताओं को संतुष्ट नहीं कर पाई। अगली जंग वाराणसी में होगी। वहां 12 मई को मतदान है, इसके पहले बहुत से जहर बुझे तीर छोड़े जाएंगे, कौन सा तीर किस काम आएगा, यह तो वक्त ही बताएगा। पर इतना तो तय है कि प्रियंका, सोनिया, राहुल की जोरदार आम सभाएं होंगी, तो उधर सुषमा स्वराज, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह भी चुनावी सभाओं में गरजेंगे। ‘नीच’ शब्द देकर प्रियंका ने नरेंद्र मोदी को राजनीति का एक ऐसा अस्त्र दे दिया है, जिससे मोदी जब चाहे, तब चला सकते हैं। उतावलेपन में प्रियंका के मुंह से यह शब्द निकल गया, ठीक उसी तरह जब सोनिया ने नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कह दिया। इस एक शब्द के कारण मोदी ने पूरा माहौल अपने पक्ष में कर लिया। कभी-कभी एक शब्द भी किसी दल या नेता के लिए कितना भारी हो सकता है, यह आज की स्थिति से पता चल जाता है। ‘मौत का सौदागर’ शब्द को लेकर जब नरेंद्र मोदी से एक साक्षात्कार में पूछा गया, तो उन्होंने इसे हंसी में टालते हुए कह दिया था कि सोनिया गांधी को हिंदी नहीं आती, उन्हें कहना था ‘मत का सौदागर’, तो उनके मुंह से निकल गया ‘मौत का सौदागर’। इस तरह से एक शब्द ने राजनीति की दिशा बदली, शायद अब दशा भी बदल दे।
शब्दों के इस मायाजाल में कई नेता उलझ चुके हैं। दिग्विजय सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, तोगड़िया, शरद पवार, मुलायम यादव आदि जब बोलते हैं, तो उन्हें यह भान ही नहीं होता है कि वे क्या बोल रहे हैं। इसलिए कभी कोई शब्द इन पर भी भारी हो सकता है, यह इन्हें नहीं भूलना चाहिए। शब्दों की भी ताकत होती है। लाचार और विवश जनता में कई शब्द प्राण फूंक सकते हैं, तो दूसरी तरफ एक सक्रिय कार्यकर्ता को पूरी तरह से निष्क्रिय भी बना सकते हैं। इसलिए समय रहते नेता शब्दों की महत्ता को समझ जाएं, अन्यथा उन्हें भी एक शब्द भी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
डॉ. महेश परिमल
क्रिकेट मैच के दौरान बल्लेबाज बॉलर की कमजोर बाल की प्रतीक्षा करता रहता है, जैसे ही बॉल आई, वह सिक्सर मार देता है। ठीक उसी तरह राजनीति में भी जैसे ही प्रियंका गांधी ने नरेंद्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल किया, नरेंद्र मोदी ने उसे सिक्सर मारकर उसका राजनीतिक लाभ ले लिया। इसी एक शब्द के कारण पूरी राजनीति में उथल-पुथल मच गई। अमेठी में लोगों ने पहली बार देखा कि राहुल गांधी पोलिंग बूथ पर मतदान देखने पहुंचे। इसके पहले उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया। अब तक वे अपनी जीत के आंकड़े ही देखते थे, पर इस बार हालात बदले हुए हैं। बहन प्रियंका उनका प्रचार करते-करते यह भूल गई कि वे राजनीति में नई हैं और नरेंद्र मोदी एक पेशेवर राजनीतिज्ञ हैं। उनका एक शब्द अमेठी के लिए ही नहीं, पूरी कांग्रेस के लिए कितना भारी हो जाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा। ऐसा नहीं है कि इस तरह की गलती पहली बार हुई है। सोनिया गांधी ने भी नरेंद्र मोदी को चुनावी सभा में ‘मौत का सौदागर’ कहा था, मात्र एक शब्द ने पूरी राजनीति को ही बदल दिया। नरेंद्र मोदी ने इसका भरपूर लाभ उठाया और वे चुनाव जीत गए।
7 मई को 64 सीटों के लिए मतदान हुआ। यह मतदान इसलिए अधिक चर्चित हुआ, क्योंकि प्रियंका गांधी ने यह कहा दिया कि मोदी ‘नीच’ राजनीति का इस्तेमाल करते हैं। अपने भाई राहुल को जिताने के लिए वह भरसक प्रयास कर रही हैं। पूरा अमेठी ही मथकर रख दिया है, उन्होंने। इस बीच उनके कई बयान आए, जिसका पूरी शिद्दत के साथ नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया। इस बीच कई तरह की तस्वीरें भी सामने आई, जिसमें प्रियंका कहीं ईंटों के ढेर पर बैठी हैं, कहीं आम लोगों से भेंट कर रही हैं। इन सबके दौरान वे यह भूल जाती हैं कि वे एक अकुशल राजनीतिज्ञ हैं, उनकी एक-एक बात पर विपक्ष घात लगाए बैठा है। उनका मुकाबला एक पेशेवर राजनीतिज्ञ से है। जो एक शब्द पर राजनीति की दिशा बदलने में माहिर है। इसलिए प्रियंका ने जैसे ही नरेंद्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल किया, वैसे ही नरेंद्र मोदी ने इस शब्द को पिछड़ी जाति से जोड़कर पूरा वातावरण अपने पक्ष में कर लिया। अब कांग्रेस इस शब्द के कई अर्थ बताने में अपनी शक्ति लगा रही है। इसी एक शब्द ने अमेठी वालों को हैरान कर दिया कि मतदान के दिन राहुल गांधी पोलिंब बूथ में जाकर मतदान करते लोगों को देख रहे थे। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इसके पहले तो वे मतदान के दिन कभी अमेठी में ही नहीं रहे। प्रियंका के इस शब्द को पहले नरेंद्र मोदी ने लपका, रही सही कसर स्मृति ईरानी ने पूरी कर दी। उन्होंने इस शब्द का खुलासा करते हुए कहा कि नीच कर्म यानी सैनिकों की विधवा के लिए तैयार किए गए आदर्श फ्लैट, नीच कर्म यानी सैनिकों के कटे हुए सर मिलने के बाद भी कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं, इसे कहते हैं नीच कर्म। चुनावी रैली में प्रियंका ने यह भी कहा कि अमेठी में भले ही सड़क बने या न बने, पर परिवार के संबंध बनें रहें, यह महत्वपूर्ण है। अब यह बात अमेठीवासियों के गले नहीं उतर रही है कि जन सुविधाएं न मिलने से कितनी परेशानी होती है, यह गांधी परिवार नहीं जानता। संबंध बने रहे, तो इसका लाभ आखिर किसको मिलेगा? क्या इसे गांधी परिवार को समझाना होगा। आवश्यक चीजों से वंचित होकर एक गरीब परिवार को आखिर संबंधों को बनाए रखने में आखिर मिलेगा क्या? प्रियंका की इस बात से कोई भी मतदाता सहमत नहीं है। इसके पहले अमेठी के ये हालात थे कि वहां राहुल गांधी खड़े हो गए, तो अन्य कोई दल वहां से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं करता था। इस बार भले ही सपा ने राहुल गांधी के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े नहीं किए हैं, पर आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास पिछले दो महीनों से अमेठी में डेरा डाले हुए हैं। अरविंद केजरीवाल ने भी वहां बड़ा रोड-शो किया। देर से ही सही पर भाजपा की स्मृति ईरानी भी मैदान में उतरकर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है।
चुनाव को सही अर्थो में देखा जाए, तो यह केवल शब्दों की मारामारी की जंग है। जब से अमेठी में चुनाव की बागडोर प्रियंका गांधी ने संभाली है, तब से कांग्रेस का कोई भी नेता वहां नहीं पहुंचा है। प्रियंका ने कई नुक्कड़ सभाओं को संबोधित किया। अपने पिता को शहीद बताते हुए उनके बलिदान के नाम पर जनता से वोट मांगा। कई तरह के विवादास्पद बयान दिए। पर नरेंद्र मोदी ने केवल एक आमसभा का आयोजन कर गांधी परिवार के मंसूबों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस की छावनी में उथल-पुथल मचा दी। नरेंद्र मोदी चाहते थे कि गांधी परिवार से कोई एक ऐसा विवादास्पद बयान आए, जिसे वे लपक लें और माहौल अपने पक्ष में कर लें। यह हुआ भी, जब प्रियंका गांधी ने हंसी-हंसी में नरेंद्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का प्रयोग किया। मोदी जो चाहते थे, वह हो गया, उन्होंने इस ‘नीच’ शब्द को जाति के साथ जोड़कर पूरा माहौल अपने पक्ष में कर लिया। अब नीच कर्म और नीच जाति को लेकर कांग्रेस में हायतौबा मची है। वह इसका खुलासा करते-करते थक गई, पर मतदाताओं को संतुष्ट नहीं कर पाई। अगली जंग वाराणसी में होगी। वहां 12 मई को मतदान है, इसके पहले बहुत से जहर बुझे तीर छोड़े जाएंगे, कौन सा तीर किस काम आएगा, यह तो वक्त ही बताएगा। पर इतना तो तय है कि प्रियंका, सोनिया, राहुल की जोरदार आम सभाएं होंगी, तो उधर सुषमा स्वराज, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह भी चुनावी सभाओं में गरजेंगे। ‘नीच’ शब्द देकर प्रियंका ने नरेंद्र मोदी को राजनीति का एक ऐसा अस्त्र दे दिया है, जिससे मोदी जब चाहे, तब चला सकते हैं। उतावलेपन में प्रियंका के मुंह से यह शब्द निकल गया, ठीक उसी तरह जब सोनिया ने नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कह दिया। इस एक शब्द के कारण मोदी ने पूरा माहौल अपने पक्ष में कर लिया। कभी-कभी एक शब्द भी किसी दल या नेता के लिए कितना भारी हो सकता है, यह आज की स्थिति से पता चल जाता है। ‘मौत का सौदागर’ शब्द को लेकर जब नरेंद्र मोदी से एक साक्षात्कार में पूछा गया, तो उन्होंने इसे हंसी में टालते हुए कह दिया था कि सोनिया गांधी को हिंदी नहीं आती, उन्हें कहना था ‘मत का सौदागर’, तो उनके मुंह से निकल गया ‘मौत का सौदागर’। इस तरह से एक शब्द ने राजनीति की दिशा बदली, शायद अब दशा भी बदल दे।
शब्दों के इस मायाजाल में कई नेता उलझ चुके हैं। दिग्विजय सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, तोगड़िया, शरद पवार, मुलायम यादव आदि जब बोलते हैं, तो उन्हें यह भान ही नहीं होता है कि वे क्या बोल रहे हैं। इसलिए कभी कोई शब्द इन पर भी भारी हो सकता है, यह इन्हें नहीं भूलना चाहिए। शब्दों की भी ताकत होती है। लाचार और विवश जनता में कई शब्द प्राण फूंक सकते हैं, तो दूसरी तरफ एक सक्रिय कार्यकर्ता को पूरी तरह से निष्क्रिय भी बना सकते हैं। इसलिए समय रहते नेता शब्दों की महत्ता को समझ जाएं, अन्यथा उन्हें भी एक शब्द भी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
डॉ. महेश परिमल
कुछ शब्द अर्थ का अनर्थ कर देते हैं कांग्रेस इस बात की पहले भी भुक्तभोगी रही है पर वह अभी भी सत्ता के गरूर में है और इसका खामियाजा फिर भुगतना ही पड़ेगा चाहे वह अमेठी की सीट निकल ले जाये पर अन्य जगहों पर इसका प्रभाव पड़ेगा राहुल व सोनिआ के कुछ शब्द भी इसी प्रकार के बवाल का सबब बने हैं
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