डॉ. महेश परिमल
लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का कार्य सम्पन्न हो गया। इस दौरान मतदाताओं से देश की राजनीति में काफी कुछ बदलाव देखा। इस समय आरोप-प्रत्यारोप का जैसा दौर चला, वैसा दौर पहले देखने में नहीं आया था। अत्याधुनिक तरीके से प्रचार भी पहली बार देखा गया। सबसे बड़ी बात यह रही कि इस चुनाव में जो भी प्रत्याशी खड़ा हुआ, उसकी औसत सम्पत्ति 6 करोड़ है। एक तरफ प्रजा की सम्पत्ति में भले ही कोई इजाफा न हुआ हो, पर प्रत्याशियों की सम्पत्ति में जोरदार इजाफा हुआ है। यही नहीं, प्रत्याशियों की चल-अचल सम्पत्ति भी बेशुमार बढ़ी है। आखिर ये प्रत्याशी ऐसा क्या करते हैं, जिससे इनकी सम्पत्ति बढ़ती ही रहती है? इस चुनाव में प्रत्याशियों ने अपनी सम्पत्ति का जो ब्यौरा है, उससे यह स्पष्ट होता है कि कोई भी प्रत्याशी आम आदमी या कम सम्पत्ति वाला नहीं है। कई करोड़ों से खेल रहे हैं, तो कुछ लाखों से खेल रहे हैं। कई प्रत्याशियों की सम्पत्ति पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार 40 से 50 गुना बढ़ गई है।
2014 के चुनावी जंग में उतरने वाले प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 5.83 करोड़ है। कांग्रेस के प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 54 करोड़ रुपए है, तो भाजपा के प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 8 करोड़ रुपए है। इसी तरह आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों की 3 करोड़, बसपा के 4 और सपा के प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 3 करोड़ रुपए है। प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 54 करोड़ के साथ कांग्रेस इसलिए आगे है, क्योंकि उसमें नंदन नीलकेणी और उनकी पत्नी की 7710 करोड़ की सम्पत्ति का भी समावेश होती है। राजनीतिज्ञों की सम्पत्ति दोगुनी या चौगुनी होती है, यह तो समझा जा सकता है, पर जब यह सम्पत्ति बढ़कर 30 से 40 गुना होती है, तो प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि आखिर इतनी सम्पत्ति उनके पास आती कहां से है? क्या केवल जनता की सेवा करने से ही सम्पत्ति प्राप्त होती है, या फिर और कोई कारण है? इस चुनाव में खड़े होने वाले कई प्रत्याशियों ने उम्मीदवारी फार्म में यह लिखा है कि उनके पास पेनकार्ड नहीं है। 28 प्रतिशत प्रत्याशियों ने यही कहा है कि उनके पास पेनकार्ड नहीं है। अधिकांश नेता अपनी सम्पत्ति को लेकर खूब सजग हैं। वे यह तो बताते हैं कि उनके पास इतनी सम्पत्ति है, लेकिन यह बताने को कतई तैयार नहीं है कि आखिर उनके पास यह सम्पत्ति आई कहां से? आखिर ये राजनीति में इतने अधिक व्यस्त होने के बाद ऐसा क्या कर लेते हैं कि इनकी सम्पत्ति बढ़ती ही रहती है?
जो लोग नौकरी-व्यवसाय नहीं करते, दिन भर राजनीति में ही उलझे रते हैं, उनके पास करोड़ों की सम्पत्ति कहां से आती है, उनकी सम्पत्ति में दिन-राज बढ़ोत्तरी कैसे होती रहती है? इन प्रश्नों का सही उत्तर इस देश में शायद ही किसी को मिल पाए। सूचना का अधिकार कानून तो है, पर वह यहां पर लाचार नजर आता है? प्रत्याशी अपने फार्म में अपनी सम्पत्ति का विवरण देते हैं, उसमें चल-अचल सम्पत्ति दोनों का ब्यौरा देते हैं। इसमें वे अपनी नकद राशि, बैंक डिपाजिट, बांड, म्युच्युअल फंड, पोस्ट ऑफिस सेविंग, लोन, सोन-चांदी आदि की जानकारी देते हैं। कांग्रेस प्रत्याशी नंदन नीलकेणी और उनकी पत्नी की सम्पत्ति 7710 करोड़ है, इसमें उनके इम्फोसिस शेयर का भी समावेश किया गया है। प्रत्याशियों को अपने जीवन साथी की सम्पत्ति को भी बताना होता है। प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा ने नरेंद्र मोदी को आगे किया है, उनकी चल सम्पत्ति 51.6 लाख रुपए, राहुल गांधी की 8 करोड़ रुपए और अरविंद केजरीवाल की चल सम्पत्ति 1.6 लाख रुपए और अचल सम्पत्ति 92 लाख रुपए है। दूसरी ओर उनकी पत्नी की सम्पत्ति 1.17 करोड़ रुपए है।
सामान्य रूप से यह चर्चा चल रही है कि प्रत्याशी अपने फार्म में जो सम्पत्ति दर्शाते हैं, वह सच्ची नहीं होती। महत्वपूर्ण यह है कि 5 वर्ष में सम्पत्ति 30 से 40 गुना कैसे बढ़ गई? फार्म में यह कॉलम भी होना चाहिए। आय का स्रोत यानी आय कहां से प्राप्त की? इसका भी उल्लेख फार्म में होना चाहिए। 5 वर्ष में सम्पत्ति 30 गुना बढ़ गई, तो यह किसी भी व्यापार में संभव नही है। परंतु हमारे देश के नेताओं से इसे सिद्ध कर दिखाया है। इससे यही स्पष्ट होता है कि राजनीति का धंधा सबसे लाभप्रद और सुरक्षित धंधा है। आश्चर्य इस बात का है कि देश के 80 प्रतिशत लोगों की सम्पत्ति वहीं के वहीं है। कई बार तो यह सम्पत्ति घटी भी है। उसके हाथ में आई राशि, जो वेतन के रूप में प्राप्त होती है, वह तो कुछ ही दिनों में खत्म हो जाती है। इन 80 प्रतिशत लोगों के पास बचत का कोई प्रावधान नहीं है। वे न तो बांड खरीद सकते हैं, न ही म्युच्युअल में धन लगा सकते हैं। भीषण महंगाई के बीच यह वर्ग अपनी सम्पत्ति तो बढ़ा नहीं सकता, पर उसे बचाए रखने में अपनी पूरी कोशिश लगा देता है। किसी की सम्पत्ति 30 से 40 गुना बढ़े, यह तो आम आदमी के लिए या कहें देश की 80 प्रतिशत जनता के लिए एक सपने की तरह ही है। 30 गुना सम्पत्ति तभी बढ़ सकती है, जब किसी बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जाए। या फिर अचानक ही विरासत में सम्पत्ति मिल जाए। इस तरह की सम्पत्ति सभी के भाग्य में नहीं होती। इसलिए मध्यम वर्ग की सम्पत्ति तो वहीं के वहीं रहती है। यह वर्ग लाख कोशिश कर ले, पर सम्पत्ति है कि बढ़ती ही नहीं, फिर जब यही वर्ग हमारे देश के नताओं को देखता है, तो आश्चर्य में पड़ जाता है कि आखिर राजनीति में ऐसा क्या है, जो सम्पत्ति को बेशुमार बढ़ाने में मदद करता है?
शपथ लेते हुए हर नेता यही कहता है कि वह ईमानदारी पूर्वक अपना कर्तव्य निभाएगा। पर यह शपथ आखिर कहां काफूर हो जाती है, इसे कोई देखने वाला नहीं है। सम्पत्ति में बढ़ोत्तरी अप्रत्याशित हो, तो आश्चर्य होता ही है। पर यह सम्पत्ति बढ़ती कैसे है, यह बताने को कोई तैयार नहीं। आरटीआई कानून भी यहां बेबस दिखाई देता है। क्या देश में ऐसा कभी कोई कानून आएगा, जिससे यह पता चल सके कि अमुक नेता की सम्पत्ति 30 से 40 गुना कैसे बढ़ोत्तरी हो गई? या फिर ऐसा कोई साफ्टवेयर इजाद होगा, जो यह बताने में सक्षम होगा? तब तक हम नेताओं की सम्पत्ति को बढ़ता देख केवल आहें ही भर सकते हैं?
डॉ. महेश परिमल
लोकसभा चुनाव के लिए मतदान का कार्य सम्पन्न हो गया। इस दौरान मतदाताओं से देश की राजनीति में काफी कुछ बदलाव देखा। इस समय आरोप-प्रत्यारोप का जैसा दौर चला, वैसा दौर पहले देखने में नहीं आया था। अत्याधुनिक तरीके से प्रचार भी पहली बार देखा गया। सबसे बड़ी बात यह रही कि इस चुनाव में जो भी प्रत्याशी खड़ा हुआ, उसकी औसत सम्पत्ति 6 करोड़ है। एक तरफ प्रजा की सम्पत्ति में भले ही कोई इजाफा न हुआ हो, पर प्रत्याशियों की सम्पत्ति में जोरदार इजाफा हुआ है। यही नहीं, प्रत्याशियों की चल-अचल सम्पत्ति भी बेशुमार बढ़ी है। आखिर ये प्रत्याशी ऐसा क्या करते हैं, जिससे इनकी सम्पत्ति बढ़ती ही रहती है? इस चुनाव में प्रत्याशियों ने अपनी सम्पत्ति का जो ब्यौरा है, उससे यह स्पष्ट होता है कि कोई भी प्रत्याशी आम आदमी या कम सम्पत्ति वाला नहीं है। कई करोड़ों से खेल रहे हैं, तो कुछ लाखों से खेल रहे हैं। कई प्रत्याशियों की सम्पत्ति पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार 40 से 50 गुना बढ़ गई है।
2014 के चुनावी जंग में उतरने वाले प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 5.83 करोड़ है। कांग्रेस के प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 54 करोड़ रुपए है, तो भाजपा के प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 8 करोड़ रुपए है। इसी तरह आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों की 3 करोड़, बसपा के 4 और सपा के प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 3 करोड़ रुपए है। प्रत्याशियों की औसत सम्पत्ति 54 करोड़ के साथ कांग्रेस इसलिए आगे है, क्योंकि उसमें नंदन नीलकेणी और उनकी पत्नी की 7710 करोड़ की सम्पत्ति का भी समावेश होती है। राजनीतिज्ञों की सम्पत्ति दोगुनी या चौगुनी होती है, यह तो समझा जा सकता है, पर जब यह सम्पत्ति बढ़कर 30 से 40 गुना होती है, तो प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि आखिर इतनी सम्पत्ति उनके पास आती कहां से है? क्या केवल जनता की सेवा करने से ही सम्पत्ति प्राप्त होती है, या फिर और कोई कारण है? इस चुनाव में खड़े होने वाले कई प्रत्याशियों ने उम्मीदवारी फार्म में यह लिखा है कि उनके पास पेनकार्ड नहीं है। 28 प्रतिशत प्रत्याशियों ने यही कहा है कि उनके पास पेनकार्ड नहीं है। अधिकांश नेता अपनी सम्पत्ति को लेकर खूब सजग हैं। वे यह तो बताते हैं कि उनके पास इतनी सम्पत्ति है, लेकिन यह बताने को कतई तैयार नहीं है कि आखिर उनके पास यह सम्पत्ति आई कहां से? आखिर ये राजनीति में इतने अधिक व्यस्त होने के बाद ऐसा क्या कर लेते हैं कि इनकी सम्पत्ति बढ़ती ही रहती है?
जो लोग नौकरी-व्यवसाय नहीं करते, दिन भर राजनीति में ही उलझे रते हैं, उनके पास करोड़ों की सम्पत्ति कहां से आती है, उनकी सम्पत्ति में दिन-राज बढ़ोत्तरी कैसे होती रहती है? इन प्रश्नों का सही उत्तर इस देश में शायद ही किसी को मिल पाए। सूचना का अधिकार कानून तो है, पर वह यहां पर लाचार नजर आता है? प्रत्याशी अपने फार्म में अपनी सम्पत्ति का विवरण देते हैं, उसमें चल-अचल सम्पत्ति दोनों का ब्यौरा देते हैं। इसमें वे अपनी नकद राशि, बैंक डिपाजिट, बांड, म्युच्युअल फंड, पोस्ट ऑफिस सेविंग, लोन, सोन-चांदी आदि की जानकारी देते हैं। कांग्रेस प्रत्याशी नंदन नीलकेणी और उनकी पत्नी की सम्पत्ति 7710 करोड़ है, इसमें उनके इम्फोसिस शेयर का भी समावेश किया गया है। प्रत्याशियों को अपने जीवन साथी की सम्पत्ति को भी बताना होता है। प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा ने नरेंद्र मोदी को आगे किया है, उनकी चल सम्पत्ति 51.6 लाख रुपए, राहुल गांधी की 8 करोड़ रुपए और अरविंद केजरीवाल की चल सम्पत्ति 1.6 लाख रुपए और अचल सम्पत्ति 92 लाख रुपए है। दूसरी ओर उनकी पत्नी की सम्पत्ति 1.17 करोड़ रुपए है।
सामान्य रूप से यह चर्चा चल रही है कि प्रत्याशी अपने फार्म में जो सम्पत्ति दर्शाते हैं, वह सच्ची नहीं होती। महत्वपूर्ण यह है कि 5 वर्ष में सम्पत्ति 30 से 40 गुना कैसे बढ़ गई? फार्म में यह कॉलम भी होना चाहिए। आय का स्रोत यानी आय कहां से प्राप्त की? इसका भी उल्लेख फार्म में होना चाहिए। 5 वर्ष में सम्पत्ति 30 गुना बढ़ गई, तो यह किसी भी व्यापार में संभव नही है। परंतु हमारे देश के नेताओं से इसे सिद्ध कर दिखाया है। इससे यही स्पष्ट होता है कि राजनीति का धंधा सबसे लाभप्रद और सुरक्षित धंधा है। आश्चर्य इस बात का है कि देश के 80 प्रतिशत लोगों की सम्पत्ति वहीं के वहीं है। कई बार तो यह सम्पत्ति घटी भी है। उसके हाथ में आई राशि, जो वेतन के रूप में प्राप्त होती है, वह तो कुछ ही दिनों में खत्म हो जाती है। इन 80 प्रतिशत लोगों के पास बचत का कोई प्रावधान नहीं है। वे न तो बांड खरीद सकते हैं, न ही म्युच्युअल में धन लगा सकते हैं। भीषण महंगाई के बीच यह वर्ग अपनी सम्पत्ति तो बढ़ा नहीं सकता, पर उसे बचाए रखने में अपनी पूरी कोशिश लगा देता है। किसी की सम्पत्ति 30 से 40 गुना बढ़े, यह तो आम आदमी के लिए या कहें देश की 80 प्रतिशत जनता के लिए एक सपने की तरह ही है। 30 गुना सम्पत्ति तभी बढ़ सकती है, जब किसी बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जाए। या फिर अचानक ही विरासत में सम्पत्ति मिल जाए। इस तरह की सम्पत्ति सभी के भाग्य में नहीं होती। इसलिए मध्यम वर्ग की सम्पत्ति तो वहीं के वहीं रहती है। यह वर्ग लाख कोशिश कर ले, पर सम्पत्ति है कि बढ़ती ही नहीं, फिर जब यही वर्ग हमारे देश के नताओं को देखता है, तो आश्चर्य में पड़ जाता है कि आखिर राजनीति में ऐसा क्या है, जो सम्पत्ति को बेशुमार बढ़ाने में मदद करता है?
शपथ लेते हुए हर नेता यही कहता है कि वह ईमानदारी पूर्वक अपना कर्तव्य निभाएगा। पर यह शपथ आखिर कहां काफूर हो जाती है, इसे कोई देखने वाला नहीं है। सम्पत्ति में बढ़ोत्तरी अप्रत्याशित हो, तो आश्चर्य होता ही है। पर यह सम्पत्ति बढ़ती कैसे है, यह बताने को कोई तैयार नहीं। आरटीआई कानून भी यहां बेबस दिखाई देता है। क्या देश में ऐसा कभी कोई कानून आएगा, जिससे यह पता चल सके कि अमुक नेता की सम्पत्ति 30 से 40 गुना कैसे बढ़ोत्तरी हो गई? या फिर ऐसा कोई साफ्टवेयर इजाद होगा, जो यह बताने में सक्षम होगा? तब तक हम नेताओं की सम्पत्ति को बढ़ता देख केवल आहें ही भर सकते हैं?
डॉ. महेश परिमल
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