डॉ. महेश परिमल
कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है। भारत को विभाजित करने वाला और भाई-भाई को हमेशा के लिए दुश्मन बनाने वाला ग्रेट ब्रिटेन स्वयं विभाजन की राह पर खड़ा है। भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन की जवाबदार अंग्रेज सरकार थी। समय चक्र ऐसा चला कि साढ़े छह दशक बाद वह स्वयं ही उसी स्थिति में है। बहुत ही जल्द ग्रेट ब्रिटेन से ग्रेट शब्द हट जाएगा। ग्रेट ब्रिटेन के स्काटलैंड ने स्वयं को अलग करने का फैसला कर लिया है। वह भी यूरोप के अन्य देशों की तरह अलग होकर अपना अलग ही अस्तित्व बनाना चाहता है। स्वयं को स्वतंत्र करने के लिए स्कॉटलैंड काफी समय से संघर्ष कर रहा था। अब 18 सितम्बर को 42 लाख लोग वोट देकर यह तय करेंगे कि स्कॉटलैंड को ब्रिटेन के साथ रहना है या नही।
इतिहास पर एक नजर डालें, तो यह स्पष्ट होता है कि 1707 में स्कॉटलैंड और इंग्लंड का एकीकरण हुआ था। इसके बाद वह यूनाइटेड किंगडम के रूप में जाने जाने लगा। इसमें इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड और वेल्स का समावेश हुआ था। स्कॉटलैंड जब से इंग्लैंड के साथ मिला है, तब से स्थानीय लोग इसका विरोध करते आ रहे हैं। बरसों बीत गए, पर विरोध का सुर बदला नहीं। यही विरोधी सुर अब बलवे के रूप में सामने आने लगा है। आज स्कॉटलैंड की स्थिति यह है कि उसकी खुद की सरकार है। शिक्षा-स्वास्थ्य आदि सेवाओं का संचालन भी वह स्वयं करता है। रेलवे जैसी आवश्यक व्यवस्थाएं केंद्रीय स्तर पर ब्रिटेन द्वारा संचालित की जा रही है। स्कॉटलैंड के न जाने कितने ही राष्ट्रभक्तों ने यह अभियान चलाया था। स्कॉटलैंड इसलिए अलग होने की हिम्मत कर रहा है, क्योंकि इंग्लैंड के आर्थिक क्षेत्र में उसका महत्वपूर्ण योगदान है। इस समय इंग्लैंड मंदी के दौर से गुजर रहा है। आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि स्कॉटलैंड की आय के कारण ही इंग्लैंड का दिल धड़क रहा है। इस कारण मूल रूप से स्कॉटलैंड के लोग गरीब होने लगे। अपनी आय होने के बाद भी प्रजा यदि गरीब है, तो यह स्कॉटलैंड को सहन नहीं हो रहा था। इसलिए जब स्कॉटलैंड से स्वतंत्र होने की बात कही, तो इंग्लैंड चौंक उठा था। उधर ब्रिटेन की राजशाही भी टूट के कगार पर है। इसके बाद भी उनकी राजशाही का खर्च गरीब प्रजा को भारी पड़ रहा था। मंदी के कारण इंग्लैंड का काफी धन राजशाही में ही खर्च हो रहा था। स्कॉटलैंड के लोगों का कहना था कि उनकी आवक उनके उद्धार पर खर्च की जानी चाहिए।
स्कॉटलैंड ने जब स्वयं को स्वतंत्र करने की बात की, तो पहले इंग्लैंड ने इसे असंवैधानिक करार दिया। पर बाद भी स्कॉटलैंड में इसका उग्र विरोध हुआ, तो ब्रिटेन सरकार ने ऐसा समाधान खोज निकाला, जिसमें स्कॉटलैंड के सभी लोगों को स्वतंत्र नहीं किया जा सकता। इस स्थिति में इंग्लैंड सरकार जनमत संग्रह के लिए तैयार हो गई। जैसे-जैसे जनमत संग्रह की तारीख करीब आती गई, ब्रिटेन का राज परिवार और प्रधानमंत्री डेविड केमरून दोनों ही घबराने लगे। केमरुन ने स्कॉटलैंड की प्रजा से आग्रह किया कि कोई भी अलग होने के लिए मतदान न करे। उन्होंने यह भी कहा कि 307 साल से चल रहा यह संबंध यदि टूटता है, तो यह दोनों के लिए नुकसानदेह साबित होगा। उन्होंने समाधान की दिशा में एक यह रास्ता भी निकाला, वह स्कॉटलैंड को और अधिक स्वायत्तता देने को तैयार है। निश्चित रूप से स्कॉटलैंड की मांग करने वालों को यह बात उचित नहीं लगी। ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गार्डन ने भी स्कॉटलैंडवासियों से अलग न होने की अपील की है। यहां भी ब्रिटेन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। जिस तरह से ब्रिटेन ने भारत में फूट डालो और राज करो, की नीति अपनाई थी, ठीक उसी तरह उसने स्कॉटलैंड में भी यही किया। लेकिन उसकी यह चाल नाकाम साबित हुई।
मतदान पूर्व जब लोगों के बीच जाकर यह सर्वेक्षण किया गया कि आखिर जनता चाहती क्या है, तो स्पष्ट हुआ कि स्वतंत्र स्कॉटलैंड के लिए 51 प्रतिशत लोग तैयार हैं। यदि स्कॉटलैंड ब्रिटेन से अलग होता है, तो ब्रिटेन की आय बुरी तरह से कम हो जाएगी। मंदी और भी तेज होकर हमला करेगी। दूसरी तरफ राजशाही ठाठ का खर्चा भी संभालना मुश्किल हो रहा है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटेन की साख पर निश्चित रूप से आंच आएगी। ब्रिटेन के सामने सबसे बड़ा संकट बिजली का होगा। इस समय ब्रिटेन के लिए 90 प्रतिशत बिजली स्कॉटलैंड से आपूर्ति की जा रही है। जब भी किसी देश का विभाजन होता है, तब वह आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है। विश्व के इतिहास पर देखें, तो भारत में मुगलों का शासन खत्म होगा, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। ठीक इसी तरह भारत में व्यापारी बनकर आए अंग्रेजों को कभी यहां से जाना होगा, ऐसा भी किसी ने नहीं सोचा था। दुनिया का सबसे बड़ा शक्तिशाली देश सोवियत संघ भी कभी बिखर सकता है, ऐसा भी किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन वही हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। यदि ब्रिटेन टूटता है, तो अपनी फूट डालो और राज करो की नीति के कारण ही टूटेगा।
गुरुवार को स्कॉटलैंड के 42 लाख लोग फैसला करेंगे कि इंग्लैंड के साथ 307 साल पुराना संबंध कायम रखें या उस खत्म कर दें। ऐसी रिपोट़र्स हैं कि स्कॉटलैंड अलग होने का फैसला कर चुका है और अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या यह ब्रिटिश यूनियन के प्रतीक ध्वज का अंत होगा और क्या स्कॉटलैंड ब्रिटेन की महारानी और करेंसी पाउंड को मान्यता देता रहेगा। भले ही जनमत संग्रह में हां का बहुमत होते ही स्कॉटलैंड अलग हो जाएगा, लेकिन अभी भी आधारभूत चीजें तय नहीं हैं कि नए देश की करेंसी क्या होगी, शासक कौन होंगे, संविधान क्या होगा, स्कॉटलैंड यूरोपीय संघ का सदस्य होगा या नहीं? इस पूरे मामले में एक चीज अभी तक साफ नहीं है कि ब्रिटेन और स्कॉटलैंड के बीच मुद्दा क्या है। भाषा का कोई झगड़ा नहीं है।
कौन करेगा वोट?
स्कॉटलैंड में 42 लाख लोग वोट के लिए रजिस्टर्ड किए गए हैं, जो यह फैसला करेंगे कि उन्हें ब्रिटेन के साथ बने रहना है या नहीं। इसके लिए पूरे स्कॉटलैंड में %यस और नो कैम्पेन चलाया जा रहा है। अगर हवा बहने की बात करें तो पूरा स्कॉटलैंड एकजुट हो चुका है। 1707 तक स्कॉटलैंड एक स्वतंत्र देश था। लेकिन इसके बाद इंग्लैंड ने इस पर आधिपत्य जमा कर ग्रेट ब्रिटेन में मिला लिया। इसी तरह से नॉर्दर्न आयरलैंड भी इसी का हिस्सा है। अगर फैसला हां हुआ तो क्या स्कॉटलैंड आजाद हो जाएगा? ऐसा नहीं है। जनमत संग्रह को पूरी तरह से कानूनी शक्ति नहीं है। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने स्कॉटलैंड के लोगों से वादा किया है कि अगर वो अलग होने के पक्ष में वोट देते हैं, तो वह उन्हें आजाद कर देगा। अलग होने की प्रRिया मार्च 2016 तक पूरी होगी।
स्कॉटलैंड कौन सी करेंसी का उपयोग करेगा?
इस पर विवाद है। लेकिन यह यूरो नहीं होगी। स्कॉटलैंड की सरकार चाहती है कि बैंक ऑफ इंग्लैंड से जुड़ी करेंसी पाउंड स्टलिर्ंग का इस्तेमाल करे। फिर भी ब्रिटेन ने चेतावनी दी है कि बाकी बचा यूके इसके लिए तैयार नहीं होगा। अगर स्कॉटलैंड अलग होगा तो उसे खुद की करेंसी बनानी होगी।
कौन है आजादी कैम्पेन के पीछे
नेशनल स्कॉटिश पार्टी के नेता और स्कॉटलैंड के पहले मंत्री एलेक्स सेल्मंड पूरे स्कॉटलैंड में यस कैम्पेन चला रहे हैं। वे स्कॉटिश आजादी के सबसे पहले समर्थकों में से एक हैं। उन्हें 21वीं सदी का बहादुर दिल वाला व्यक्ति कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब स्कॉटलैंड के इतिहास को नए सिरे से बनाने की जरूरत है। सेल्मंड को एक बार उन्हीं की पार्टी से निलंबित किया जा चुका है। राजनेता से पहले वे इकोनॉमिस्ट के रूप में काम कर चुके हैं। कहा जाता था कि ग्रेट ब्रिटेन का सूर्य कभी अस्ताचल की ओर नहीं जाता। वह भी कभी टूटने के कगार पर आ खड़ा हो सकता है, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। स्कॉटलैंड ने ब्रिटेन से जुड़ी इस मान्यता को झूठा साबित कर दिया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ब्रिटेन का सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहा है।
डॉ. महेश परिमल
कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है। भारत को विभाजित करने वाला और भाई-भाई को हमेशा के लिए दुश्मन बनाने वाला ग्रेट ब्रिटेन स्वयं विभाजन की राह पर खड़ा है। भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन की जवाबदार अंग्रेज सरकार थी। समय चक्र ऐसा चला कि साढ़े छह दशक बाद वह स्वयं ही उसी स्थिति में है। बहुत ही जल्द ग्रेट ब्रिटेन से ग्रेट शब्द हट जाएगा। ग्रेट ब्रिटेन के स्काटलैंड ने स्वयं को अलग करने का फैसला कर लिया है। वह भी यूरोप के अन्य देशों की तरह अलग होकर अपना अलग ही अस्तित्व बनाना चाहता है। स्वयं को स्वतंत्र करने के लिए स्कॉटलैंड काफी समय से संघर्ष कर रहा था। अब 18 सितम्बर को 42 लाख लोग वोट देकर यह तय करेंगे कि स्कॉटलैंड को ब्रिटेन के साथ रहना है या नही।
इतिहास पर एक नजर डालें, तो यह स्पष्ट होता है कि 1707 में स्कॉटलैंड और इंग्लंड का एकीकरण हुआ था। इसके बाद वह यूनाइटेड किंगडम के रूप में जाने जाने लगा। इसमें इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड और वेल्स का समावेश हुआ था। स्कॉटलैंड जब से इंग्लैंड के साथ मिला है, तब से स्थानीय लोग इसका विरोध करते आ रहे हैं। बरसों बीत गए, पर विरोध का सुर बदला नहीं। यही विरोधी सुर अब बलवे के रूप में सामने आने लगा है। आज स्कॉटलैंड की स्थिति यह है कि उसकी खुद की सरकार है। शिक्षा-स्वास्थ्य आदि सेवाओं का संचालन भी वह स्वयं करता है। रेलवे जैसी आवश्यक व्यवस्थाएं केंद्रीय स्तर पर ब्रिटेन द्वारा संचालित की जा रही है। स्कॉटलैंड के न जाने कितने ही राष्ट्रभक्तों ने यह अभियान चलाया था। स्कॉटलैंड इसलिए अलग होने की हिम्मत कर रहा है, क्योंकि इंग्लैंड के आर्थिक क्षेत्र में उसका महत्वपूर्ण योगदान है। इस समय इंग्लैंड मंदी के दौर से गुजर रहा है। आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि स्कॉटलैंड की आय के कारण ही इंग्लैंड का दिल धड़क रहा है। इस कारण मूल रूप से स्कॉटलैंड के लोग गरीब होने लगे। अपनी आय होने के बाद भी प्रजा यदि गरीब है, तो यह स्कॉटलैंड को सहन नहीं हो रहा था। इसलिए जब स्कॉटलैंड से स्वतंत्र होने की बात कही, तो इंग्लैंड चौंक उठा था। उधर ब्रिटेन की राजशाही भी टूट के कगार पर है। इसके बाद भी उनकी राजशाही का खर्च गरीब प्रजा को भारी पड़ रहा था। मंदी के कारण इंग्लैंड का काफी धन राजशाही में ही खर्च हो रहा था। स्कॉटलैंड के लोगों का कहना था कि उनकी आवक उनके उद्धार पर खर्च की जानी चाहिए।
स्कॉटलैंड ने जब स्वयं को स्वतंत्र करने की बात की, तो पहले इंग्लैंड ने इसे असंवैधानिक करार दिया। पर बाद भी स्कॉटलैंड में इसका उग्र विरोध हुआ, तो ब्रिटेन सरकार ने ऐसा समाधान खोज निकाला, जिसमें स्कॉटलैंड के सभी लोगों को स्वतंत्र नहीं किया जा सकता। इस स्थिति में इंग्लैंड सरकार जनमत संग्रह के लिए तैयार हो गई। जैसे-जैसे जनमत संग्रह की तारीख करीब आती गई, ब्रिटेन का राज परिवार और प्रधानमंत्री डेविड केमरून दोनों ही घबराने लगे। केमरुन ने स्कॉटलैंड की प्रजा से आग्रह किया कि कोई भी अलग होने के लिए मतदान न करे। उन्होंने यह भी कहा कि 307 साल से चल रहा यह संबंध यदि टूटता है, तो यह दोनों के लिए नुकसानदेह साबित होगा। उन्होंने समाधान की दिशा में एक यह रास्ता भी निकाला, वह स्कॉटलैंड को और अधिक स्वायत्तता देने को तैयार है। निश्चित रूप से स्कॉटलैंड की मांग करने वालों को यह बात उचित नहीं लगी। ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधानमंत्री गार्डन ने भी स्कॉटलैंडवासियों से अलग न होने की अपील की है। यहां भी ब्रिटेन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। जिस तरह से ब्रिटेन ने भारत में फूट डालो और राज करो, की नीति अपनाई थी, ठीक उसी तरह उसने स्कॉटलैंड में भी यही किया। लेकिन उसकी यह चाल नाकाम साबित हुई।
मतदान पूर्व जब लोगों के बीच जाकर यह सर्वेक्षण किया गया कि आखिर जनता चाहती क्या है, तो स्पष्ट हुआ कि स्वतंत्र स्कॉटलैंड के लिए 51 प्रतिशत लोग तैयार हैं। यदि स्कॉटलैंड ब्रिटेन से अलग होता है, तो ब्रिटेन की आय बुरी तरह से कम हो जाएगी। मंदी और भी तेज होकर हमला करेगी। दूसरी तरफ राजशाही ठाठ का खर्चा भी संभालना मुश्किल हो रहा है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटेन की साख पर निश्चित रूप से आंच आएगी। ब्रिटेन के सामने सबसे बड़ा संकट बिजली का होगा। इस समय ब्रिटेन के लिए 90 प्रतिशत बिजली स्कॉटलैंड से आपूर्ति की जा रही है। जब भी किसी देश का विभाजन होता है, तब वह आर्थिक रूप से कमजोर हो जाता है। विश्व के इतिहास पर देखें, तो भारत में मुगलों का शासन खत्म होगा, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था। ठीक इसी तरह भारत में व्यापारी बनकर आए अंग्रेजों को कभी यहां से जाना होगा, ऐसा भी किसी ने नहीं सोचा था। दुनिया का सबसे बड़ा शक्तिशाली देश सोवियत संघ भी कभी बिखर सकता है, ऐसा भी किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन वही हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। यदि ब्रिटेन टूटता है, तो अपनी फूट डालो और राज करो की नीति के कारण ही टूटेगा।
गुरुवार को स्कॉटलैंड के 42 लाख लोग फैसला करेंगे कि इंग्लैंड के साथ 307 साल पुराना संबंध कायम रखें या उस खत्म कर दें। ऐसी रिपोट़र्स हैं कि स्कॉटलैंड अलग होने का फैसला कर चुका है और अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या यह ब्रिटिश यूनियन के प्रतीक ध्वज का अंत होगा और क्या स्कॉटलैंड ब्रिटेन की महारानी और करेंसी पाउंड को मान्यता देता रहेगा। भले ही जनमत संग्रह में हां का बहुमत होते ही स्कॉटलैंड अलग हो जाएगा, लेकिन अभी भी आधारभूत चीजें तय नहीं हैं कि नए देश की करेंसी क्या होगी, शासक कौन होंगे, संविधान क्या होगा, स्कॉटलैंड यूरोपीय संघ का सदस्य होगा या नहीं? इस पूरे मामले में एक चीज अभी तक साफ नहीं है कि ब्रिटेन और स्कॉटलैंड के बीच मुद्दा क्या है। भाषा का कोई झगड़ा नहीं है।
कौन करेगा वोट?
स्कॉटलैंड में 42 लाख लोग वोट के लिए रजिस्टर्ड किए गए हैं, जो यह फैसला करेंगे कि उन्हें ब्रिटेन के साथ बने रहना है या नहीं। इसके लिए पूरे स्कॉटलैंड में %यस और नो कैम्पेन चलाया जा रहा है। अगर हवा बहने की बात करें तो पूरा स्कॉटलैंड एकजुट हो चुका है। 1707 तक स्कॉटलैंड एक स्वतंत्र देश था। लेकिन इसके बाद इंग्लैंड ने इस पर आधिपत्य जमा कर ग्रेट ब्रिटेन में मिला लिया। इसी तरह से नॉर्दर्न आयरलैंड भी इसी का हिस्सा है। अगर फैसला हां हुआ तो क्या स्कॉटलैंड आजाद हो जाएगा? ऐसा नहीं है। जनमत संग्रह को पूरी तरह से कानूनी शक्ति नहीं है। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने स्कॉटलैंड के लोगों से वादा किया है कि अगर वो अलग होने के पक्ष में वोट देते हैं, तो वह उन्हें आजाद कर देगा। अलग होने की प्रRिया मार्च 2016 तक पूरी होगी।
स्कॉटलैंड कौन सी करेंसी का उपयोग करेगा?
इस पर विवाद है। लेकिन यह यूरो नहीं होगी। स्कॉटलैंड की सरकार चाहती है कि बैंक ऑफ इंग्लैंड से जुड़ी करेंसी पाउंड स्टलिर्ंग का इस्तेमाल करे। फिर भी ब्रिटेन ने चेतावनी दी है कि बाकी बचा यूके इसके लिए तैयार नहीं होगा। अगर स्कॉटलैंड अलग होगा तो उसे खुद की करेंसी बनानी होगी।
कौन है आजादी कैम्पेन के पीछे
नेशनल स्कॉटिश पार्टी के नेता और स्कॉटलैंड के पहले मंत्री एलेक्स सेल्मंड पूरे स्कॉटलैंड में यस कैम्पेन चला रहे हैं। वे स्कॉटिश आजादी के सबसे पहले समर्थकों में से एक हैं। उन्हें 21वीं सदी का बहादुर दिल वाला व्यक्ति कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब स्कॉटलैंड के इतिहास को नए सिरे से बनाने की जरूरत है। सेल्मंड को एक बार उन्हीं की पार्टी से निलंबित किया जा चुका है। राजनेता से पहले वे इकोनॉमिस्ट के रूप में काम कर चुके हैं। कहा जाता था कि ग्रेट ब्रिटेन का सूर्य कभी अस्ताचल की ओर नहीं जाता। वह भी कभी टूटने के कगार पर आ खड़ा हो सकता है, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। स्कॉटलैंड ने ब्रिटेन से जुड़ी इस मान्यता को झूठा साबित कर दिया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ब्रिटेन का सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहा है।
डॉ. महेश परिमल
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