गुरुवार, 4 सितंबर 2014

भारत-जापान, दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता है

डॉ. महेश परिमल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जापान दौरे से कई आशाएं जागी हैं। भारत-जापान केवल व्यापार के ही क्षेत्र में आगे आएं, ऐसा कोई नहीं चाहता, दोनों देश कई क्षेत्रों में आकर साझा करें, ऐसी इच्छा सबकी है। दोनों ही देश को एक-दूसरे की आवश्यकता है। विश्व राजनीति के पटल पर दोनों देश अपना प्रभुत्व खड़ा करना चाहते हैं। भारत-जापान के बीच कई समझौते हुए। इसमें सबसे बड़ा समझौता बुलेट ट्रेन को लेकर है। भारत में बुलेट ट्रेन के लिए जापान मदद करेगा। इसके अलावा जापान अगले 5 वर्षो में भारत में 2.10 लाख करोड़ का निवेश करेगा। इसके अलावा जापानी तकनीक का उपयोग भारत में अधिक से अधिक कर उसे रोजगारोन्मुख बनाने की दिशा में भी समझौता हुआ है। इस समय भारत का दुश्मन नम्बर वन पाकिस्तान एक तरह से गृहयुद्ध को झेल रहा है। वहां राजनीतिक स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री ने जापान की यात्रा कर पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। वैश्विक अर्थतंत्र में इस समय दो मुद्दों की चर्चा है। एक है एबीनोमिक्स और दूसरा है मोदीनोमिक्स। एबीनोमिक्स जापान को मंदी से बाहर लाने की इच्छा रखते हैं, वहीं मोदीनोमिक्स 50 मिलीयन नौकरियों के अवसर को पाना चाहते हैं। इससे भारत का अर्थतंत्र मजबूत होगा। मोदी जापान की स्मार्ट सिटी से काफी प्रभावित दिखे, वे भारत में भी 100 स्मार्ट सिटी तैयार करना चाहते हैं।
जापान में 2000 मंदिरों वाले शहर क्योटो शहर की तुलना भारत के काशी से केवल मंदिरों की संख्या के आधार पर ही की जा सकती है। परंतु स्वच्छता की दृष्टि से दोनों शहरों की तुलना करना मूर्खता ही होगी। हमारे लिए गंगा अवश्य एक पवित्र पावन नदी हो सकती है। पर उसे प्रदूषित करने में हम ही सबसे आगे हैं। हमारे देश में नदियों की भले ही पूजा होती हो, पर उसमें गंदगी डालने में भी हम सबसे आगे हैं। क्योटो के लिए यह बात एकदम अलग है। वहां के निवासी नदियों की पूजा भले ही न करें, पर नदियों को स्वच्छ रखना वे अपना कर्तव्य समझते हैं। क्योटो शहर समुद्र के किनारे है। वहां समुद्र के किनारे की स्वच्छता देखकर ही हमें यह आभास हो जाता है कि पर्यावरण के संरक्षण में वे कितने आगे हैं। वहां मंदिर हैं, इसलिए वह शकर पवित्र है, ऐसी बात नहीं है, पवित्रता जापानियों की मूल संस्कृति में है। वे देश के प्रति निष्ठावान हैं। चूंकि वे सफाईपसंद हैं, इसलिए क्योटो शहर साफ-सुथरा है। यही मानसिकता यदि काशी के लोगों में भी आ जाए, तो काशी को साफ-सुथरा होने में समय नहीं लगेगा। आज जापान में दोनों प्रधानमंत्रियों की दोस्ती की ही चर्चा है।
नरेंद्र मोदी ने जब जापानी प्रधानमंत्री को पहले जापानी भाषा में ट्वीट किया, तो इसका जवाब जापानी प्रधानमंत्री ने तुरंत दिया। सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा हुई। जापान के प्रधानमंत्री को ट्वीटर पर लाखों लोग फालो करते हैं, पर वे स्वयं नरेंद्र मोदी को फालो करते हैं। नरेंद्र मोदी का मूलमंत्र भारत को आर्थिक रूप से सक्षम और समृद्ध बनाना है। जापान से वह टेक्नालॉजी लेकर भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने और अधिक बिजली उत्पन्न करने के प्लान में मोदी व्यस्त हैं। मोदी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि उनकी विजय के साथ विदेश नीति का कोई सरोकार नहीं है, परंतु उन्होंने भारतीयों से जो अच्छे दिनों का वादा किया है,उसे वे निभाना चाहते हैं। जापान के प्रधानमंत्री भी मोदी की मुलाकाता का मर्म समझते हैं। परंतु चीनअमेरिका के लिए भारत-जापान के बढ़ते संबंध चिंता का विषय हैं। भारत में सबसे अधिक निवेश करने वालों में जापान चौथे नम्बर पर है। ¨कतु यह निवेश पिछले कुछ वर्षो में घटा है। जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल को-ऑपरेशन ने ऐसे संकेत दिए हैं कि जापानी निवेशकों को भारत में दिलचस्पी है। इधर रिजर्व बैंक की 2012-13 की रिपोर्ट बताती है कि जापान का भारत में निवेश पहले दो अरब डॉलर था, जो घटकर 1.3 डॉलर रह गया है। मोदी इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट के लिए निवेश चाहते हैं, जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी के प्रमुख अकीहीको तनाका के अनुसार जापान भारत को चीन की तरह विकसित करने में मदद कर सकता है। गुजरात के द्वार जिस तरह से निवेशकों के लिए खुला रखा था, उसी तरह भारत के द्वार भी वे निवेशकों के लिए खुला रखना चाहते हैं।
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब पहली बार 2007 में जापान की यात्रा पर गए थे। तब जापान के प्रधानमंत्री शिंजो ऐब ही थे। तब मोदी अपने बिजनेस मिशन पर थे। वहां उन्होंने लोगों को खूब प्रभावित किया। इसके बाद जब वे 2012 में जापान गए, तब वहां सत्ता पलट चुकी थी। इसके बाद भी उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री एब से भेंट की थी, ऐब ने भी उनका जोशीला स्वागत किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री योशीहीको नोडा ने भी मोदी का जोश पूर्ण स्वागत किया था। गुजरात के विकास से जापानी प्रधानमंत्री भी काफी प्रभावित हुए थे। दिसम्बर 2012 में ऐब फिर सत्ता में आ गए, तो सबसे पहले उन्हें नरेंद्र मोदी का ही अभिनंदन मिला। ऐब ने भी इसका तुरंत प्रत्युत्तर दिया था। मोदी जब प्रधानमंत्री नहीं थे, तब भी वे संबंधों को बनाए रखने में विश्वास रखते थे, अभी भी वे ऐसा ही करते हैं। अभी जब वे जापान में बसे भारतीयों से मिले, तब उसमें से कई गुजराती ऐस थे, जिन्हें वे नाम से जानते थे और उन्होंने उन्हें उनके नाम से पुकारा, तो सभी को अच्छा लगा। दोनों ही प्रधानमंत्रियों में एक समानता है कि दोनों ही स्पष्ट बहुमत से अपनी सरकार बनाई है। जापान अब बदल रहा है। लोग अंग्रेजी बोलने लगे हैं। एयरपोर्ट में भी अंग्रेजी में एनाउंसमेंट होने लगा है। अब उनके मुंह से ‘हेलो’ भी निकल जाता है। भारत-जापान के बीच व्यापारिक संबंधों में अब तक जो सुस्ती थी, अब उसमें नई ऊर्जा आएगी, यह प्रधानमंत्री की जापान यात्रा से स्पष्ट हो गया है।
जापान के बाद नरेंद्र मोदी की नजर अमेरिका पर है। मोदी को मित्र बनाने की कला से देश को काफी लाभ हो सकता है। काशी को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए क्योटो के साथ हुए एमओयू ने भी देश का ध्यान खींचा है। एक तरफ गंगा के शुद्धिकरण की योजना चल रही है, तो दूसरी तरफ काशी के विकास को नया आयाम जापान से मिलेगा। एमओयू के अमलीकरण में काफी समय लगता है, परंतु उस दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं, यह प्रशंसनीय है। यह भेंट यह दर्शाती है कि अब तक अमेरिका भारत की नाक दबाता रहा है, लेकिन वह भी सचेत हो जाएगा। दो विकासशील देश किस तरह से विकसित देशों को टक्कर दे सकते हैं, यह दोनों प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के बाद स्पष्ट हो गया है।
डॉ. महेश परिमल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels