डॉ. महेश परिमल
प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत एक ही दिन में डेढ़ करोड़ खाते खुल गए। इसे एक क्रांति का नाम दिया जा रहा है। पर क्या एक विकासशील देश के लिए यह शर्म की बात नहीं है कि उस देश में अभी तक साढ़े सात करोड़ लोगों के बैंक खाते ही नहीं हैं। वैसे यह सच है कि करोड़ों बैंक खाते खुल जाने से रातों-रात गरीबी दूर होने वाली नहीं है। कोई चमत्कार नहीं होने वाला। वैसे भी हमारे देश में बैंकों की कमी नहीं है, पर उनकी शाखाओं की अवश्य बेहद कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बैंकों की शाखाएं नहीं पहुंच पाई हैं। वैसे शहरों में जो भी बैंक हैं, उन्हें मालदार खाताधारी चाहिए। जिसके पास लाखों रुपए हो, जिसका पूरा लेन-देन बैंक के माध्यम से हो, वही ग्राहक बैंक के लिए लाभदायी हो। अब गरीब के खाते खुल भी गए, तो उससे जो लेन-देन होगा, वह बहुत ही कम राशि का होगा। इससे बैंक ही इस पर दिलचस्पी नहीं लेगी कि किसी गरीब का खाता खुले। प्रधानमंत्री की जन-धन योजना के तहत खाते तो खुल गए, पर अब उससे व्यवहार किस तरह होगा। खाता खुलने का आशय यही है कि उसमें राशि जमा हो और उसकी निकासी भी। गरीब के पास राशि ही नहीं होगी, तो खाते खुल जाने का क्या मतलब?
आज शहरी क्षेत्रों में बैंकों की कमी नहीं है, फिर भी एटीएम की कमी बरकरार है। कितनी ही सरकारी बैंके ऐसी हैं, जो आज भी संकुचित मानसिकता से ग्रस्त है। कोई गरीब बैंक में आए, ऐसा वह चाहती ही नहीं। कोई अमीर बैंक में पहुंचता है, तो बैंककर्मियों की लार टपकती है। गरीब यदि बैंक जाकर राशि निकालता भी चाहता है, तो कैशियर का व्यवहार ऐसा होता है, जैसे वह अपनी जेब से राशि दे रहा हो। इसके लिए पहले बैंकों की मानसिकता को बदलना आवश्यक है। आज एक विद्यार्थी का खाता बहुत ही जल्द खुल जाता है। क्योंकि उसके पास अपनी पहचान के कई साधन हैं। पर गाँव के किसी किसान को खाता खुलवाने में इसलिए परेशानी होती है कि उसके पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं होता, जिससे वह अपनी पहचान बता सके। प्रधानमंत्री ने गरीबों की परेशानी को समझते हुए गरीबों का बैंक खाता खुलवाने की दिशा में एक कारगर कदम उठाया है। इसे क्रांति नहीं कहा जा सकता। क्योंकि खाते इसलिए नहीं खुले, क्योंकि गरीबों के पास गरीबी के अलावा कुछ है ही नहीं। पर खाता खुल जाने से उन सभी का बीमा भी हो गया, अब दुर्घटना होने पर खाताधारी को 30 हजार रुपए बीमे के मिलेंगे। अनजाने में ही सही, उनके परिवार को कुछ सहायता तो मिल ही जाएगी।
कई लोगों के बैंक खाते नहीं हैं, उसके कई कारण हो सकते हैं। बैंकिंग व्यवहार के लिए जितनी राशि की आवश्यकता होती है, उतनी राशि ही लोगों के पास नहीं होती। कई लोग बैंक खाते खुलवाने की प्रक्रिया से ही अनजान हैं। इसके अलावा बैंकों को केवल उन्हीं खाताधारकों से लाभ होता है, जो बड़ी राशि का व्यवहार करते हैं। अब बैंकिंग के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिखने लगी है, इसलिए खाता खुलवाना आसान हो गया है। आज भी कई सहकारी बैंकों में खाता खुलवाना एक परेशानी से भरा काम है। क्योंकि ये बार-बार एक ही दस्तावेज की मांग करती हैं। कई बार तो बैंक में दिया गया दस्तावेज दूसरी बैंक स्वीकार ही नहीं करती। इससे उपभोक्ता को आश्चर्य होता है कि एक बैंक के लिए उनके दस्तावेज मान्य हैं, तो दूसरी बंक लिए वह अमान्य कैसे हो सकते हैं? सरकारी बैंकों के कर्मचारियों का व्यवहार भी कई बार ग्राहकों के लिए उचित नहीं होता। एक तरफ ग्रहकों की लंबी लाइन लगी होती है, दूसरी तरफ कर्मचारी कंप्यूटर पर गेम खेलता होता है। ऐसे दृश्य अक्सर दिखाई देते हैं। जैसे ही भीड़ बढ़ती है, वैसे ही कर्मचारी अपनी जगह से गायब हो जाता है। कई बैंकों के कर्मचारी कंप्यूटर पर भी इतने धीरे-धीरे काम करते हैं, मानों वे ग्राहक पर अहसान कर रहे हों। अक्सर बैंकों में ग्राहक-कर्मचारियों में विवाद हो जाता है। निजी क्षेत्र की बैंकों ने अभी तक ग्राहकों का विश्वास जीतने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। फिर भी सरकारी बैंकों से सबक लेते हुए वे ग्राहकों को उचित सुविधाएं देकर तुरंत काम करने की योजना पर काम कर रही हैं। बैंकों द्वारा लोन आदि दिए जाने पर उनके विज्ञापनों में कुछ और बात होती है, लेकिन जब लोन लेने जाओ, तो कई गुप्त शुल्क लिए जाते हैं, जिसकी जानकारी ग्राहकों को नहीं होती। ग्राहकों की सुरक्षा का लाभ देने की घोषणाएं करने वाली बैंकें अपनी सुरक्षा भी नहीं कर पा रही हैं। ग्राहकों द्वारा दिए गए नोट को मशीन से देखकर असली-नकली की पहचान करती हैं, पर उन्हीं के एटीएम से नकली नोट निकलने पर वे ग्राहकों की बात पर विश्वास नहीं करती। ऐसी स्थिति में ग्राहक का बैंक के प्रति विश्वास टूट जाता है। रिजर्व बैंक के बार-बार कड़े निर्देश से बैंके अब ग्राहकों को अधिक से अधिक सुविधाएं देने का वादा कर रही हैं। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री की जन-धन योजना द्वारा बैंकिंग सेक्टर में लोगों के लिए सच्चे अर्थ में उपयोगी साबित होगी, ऐसा कहा जा सकता है। इसे एक छोटी किंतु अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है।
बैंक में खाताधारी होना सामान्य व्यक्ति के लिए गर्व की बात भी हो सकती है। कई बार पासबुक भी बड़े काम आती है। छोटी-छोटी बचत यदि बैंक में जमा होने लगे, तो बचत को प्रोत्साहन मिलता है। आजकल कर्मचारियों का वेतन सीधे बैंकों में ही जमा होने लगा है, इससे व्यक्ति उतनी ही राशि निकालता है, जितनी उसे आवश्यकता होती है। फालतू खचरे से एक तरह से लगाम ही कस जाती है। देश का अर्थतंत्र छोटी-छोटी बचत से सबल होता है। सन 2008 में जब वैश्विक मंदी दिखाई दी थी, तो भारत को इसलिए फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि देश का अधिकांश वर्ग बचत करना जानता है। अब बैंक खातों से बचत का क्षेत्र बढ़ेगा। इसमें कोई शक नहीं। अब खाताधारी को एक लाख का दुर्घटना बीमा और 30 हजार जीवन बीमा के अलावा 5 हजार के ओव्हरड्राफ्ट की भी सुविधा मिलेगी। इससे लोगों में आशा का संचार हुआ है। अब किसान भी खाताधारी बनकर बैंकों से व्यवहार कर सकेंगे। जन-धन योजना को लागू करते समय कई मुद्दों पर ध्यान दिया गया है। अब तो केवल एक ही पहचान पत्र से खाता खुल जाएगा। खाते में लघुतम राशि रखने की चिंता नहीं रहेगी। बैंक में खाता खुल जाने से देश में क्रांति नहीं होने वाली, पर यह भी सच है कि बैंक में खाता खुल जाने के बाद क्रांति को रोका नहीं जा सकता।
डॉ. महेश परिमल
प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत एक ही दिन में डेढ़ करोड़ खाते खुल गए। इसे एक क्रांति का नाम दिया जा रहा है। पर क्या एक विकासशील देश के लिए यह शर्म की बात नहीं है कि उस देश में अभी तक साढ़े सात करोड़ लोगों के बैंक खाते ही नहीं हैं। वैसे यह सच है कि करोड़ों बैंक खाते खुल जाने से रातों-रात गरीबी दूर होने वाली नहीं है। कोई चमत्कार नहीं होने वाला। वैसे भी हमारे देश में बैंकों की कमी नहीं है, पर उनकी शाखाओं की अवश्य बेहद कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बैंकों की शाखाएं नहीं पहुंच पाई हैं। वैसे शहरों में जो भी बैंक हैं, उन्हें मालदार खाताधारी चाहिए। जिसके पास लाखों रुपए हो, जिसका पूरा लेन-देन बैंक के माध्यम से हो, वही ग्राहक बैंक के लिए लाभदायी हो। अब गरीब के खाते खुल भी गए, तो उससे जो लेन-देन होगा, वह बहुत ही कम राशि का होगा। इससे बैंक ही इस पर दिलचस्पी नहीं लेगी कि किसी गरीब का खाता खुले। प्रधानमंत्री की जन-धन योजना के तहत खाते तो खुल गए, पर अब उससे व्यवहार किस तरह होगा। खाता खुलने का आशय यही है कि उसमें राशि जमा हो और उसकी निकासी भी। गरीब के पास राशि ही नहीं होगी, तो खाते खुल जाने का क्या मतलब?
आज शहरी क्षेत्रों में बैंकों की कमी नहीं है, फिर भी एटीएम की कमी बरकरार है। कितनी ही सरकारी बैंके ऐसी हैं, जो आज भी संकुचित मानसिकता से ग्रस्त है। कोई गरीब बैंक में आए, ऐसा वह चाहती ही नहीं। कोई अमीर बैंक में पहुंचता है, तो बैंककर्मियों की लार टपकती है। गरीब यदि बैंक जाकर राशि निकालता भी चाहता है, तो कैशियर का व्यवहार ऐसा होता है, जैसे वह अपनी जेब से राशि दे रहा हो। इसके लिए पहले बैंकों की मानसिकता को बदलना आवश्यक है। आज एक विद्यार्थी का खाता बहुत ही जल्द खुल जाता है। क्योंकि उसके पास अपनी पहचान के कई साधन हैं। पर गाँव के किसी किसान को खाता खुलवाने में इसलिए परेशानी होती है कि उसके पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं होता, जिससे वह अपनी पहचान बता सके। प्रधानमंत्री ने गरीबों की परेशानी को समझते हुए गरीबों का बैंक खाता खुलवाने की दिशा में एक कारगर कदम उठाया है। इसे क्रांति नहीं कहा जा सकता। क्योंकि खाते इसलिए नहीं खुले, क्योंकि गरीबों के पास गरीबी के अलावा कुछ है ही नहीं। पर खाता खुल जाने से उन सभी का बीमा भी हो गया, अब दुर्घटना होने पर खाताधारी को 30 हजार रुपए बीमे के मिलेंगे। अनजाने में ही सही, उनके परिवार को कुछ सहायता तो मिल ही जाएगी।
कई लोगों के बैंक खाते नहीं हैं, उसके कई कारण हो सकते हैं। बैंकिंग व्यवहार के लिए जितनी राशि की आवश्यकता होती है, उतनी राशि ही लोगों के पास नहीं होती। कई लोग बैंक खाते खुलवाने की प्रक्रिया से ही अनजान हैं। इसके अलावा बैंकों को केवल उन्हीं खाताधारकों से लाभ होता है, जो बड़ी राशि का व्यवहार करते हैं। अब बैंकिंग के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिखने लगी है, इसलिए खाता खुलवाना आसान हो गया है। आज भी कई सहकारी बैंकों में खाता खुलवाना एक परेशानी से भरा काम है। क्योंकि ये बार-बार एक ही दस्तावेज की मांग करती हैं। कई बार तो बैंक में दिया गया दस्तावेज दूसरी बैंक स्वीकार ही नहीं करती। इससे उपभोक्ता को आश्चर्य होता है कि एक बैंक के लिए उनके दस्तावेज मान्य हैं, तो दूसरी बंक लिए वह अमान्य कैसे हो सकते हैं? सरकारी बैंकों के कर्मचारियों का व्यवहार भी कई बार ग्राहकों के लिए उचित नहीं होता। एक तरफ ग्रहकों की लंबी लाइन लगी होती है, दूसरी तरफ कर्मचारी कंप्यूटर पर गेम खेलता होता है। ऐसे दृश्य अक्सर दिखाई देते हैं। जैसे ही भीड़ बढ़ती है, वैसे ही कर्मचारी अपनी जगह से गायब हो जाता है। कई बैंकों के कर्मचारी कंप्यूटर पर भी इतने धीरे-धीरे काम करते हैं, मानों वे ग्राहक पर अहसान कर रहे हों। अक्सर बैंकों में ग्राहक-कर्मचारियों में विवाद हो जाता है। निजी क्षेत्र की बैंकों ने अभी तक ग्राहकों का विश्वास जीतने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। फिर भी सरकारी बैंकों से सबक लेते हुए वे ग्राहकों को उचित सुविधाएं देकर तुरंत काम करने की योजना पर काम कर रही हैं। बैंकों द्वारा लोन आदि दिए जाने पर उनके विज्ञापनों में कुछ और बात होती है, लेकिन जब लोन लेने जाओ, तो कई गुप्त शुल्क लिए जाते हैं, जिसकी जानकारी ग्राहकों को नहीं होती। ग्राहकों की सुरक्षा का लाभ देने की घोषणाएं करने वाली बैंकें अपनी सुरक्षा भी नहीं कर पा रही हैं। ग्राहकों द्वारा दिए गए नोट को मशीन से देखकर असली-नकली की पहचान करती हैं, पर उन्हीं के एटीएम से नकली नोट निकलने पर वे ग्राहकों की बात पर विश्वास नहीं करती। ऐसी स्थिति में ग्राहक का बैंक के प्रति विश्वास टूट जाता है। रिजर्व बैंक के बार-बार कड़े निर्देश से बैंके अब ग्राहकों को अधिक से अधिक सुविधाएं देने का वादा कर रही हैं। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री की जन-धन योजना द्वारा बैंकिंग सेक्टर में लोगों के लिए सच्चे अर्थ में उपयोगी साबित होगी, ऐसा कहा जा सकता है। इसे एक छोटी किंतु अच्छी शुरुआत कहा जा सकता है।
बैंक में खाताधारी होना सामान्य व्यक्ति के लिए गर्व की बात भी हो सकती है। कई बार पासबुक भी बड़े काम आती है। छोटी-छोटी बचत यदि बैंक में जमा होने लगे, तो बचत को प्रोत्साहन मिलता है। आजकल कर्मचारियों का वेतन सीधे बैंकों में ही जमा होने लगा है, इससे व्यक्ति उतनी ही राशि निकालता है, जितनी उसे आवश्यकता होती है। फालतू खचरे से एक तरह से लगाम ही कस जाती है। देश का अर्थतंत्र छोटी-छोटी बचत से सबल होता है। सन 2008 में जब वैश्विक मंदी दिखाई दी थी, तो भारत को इसलिए फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि देश का अधिकांश वर्ग बचत करना जानता है। अब बैंक खातों से बचत का क्षेत्र बढ़ेगा। इसमें कोई शक नहीं। अब खाताधारी को एक लाख का दुर्घटना बीमा और 30 हजार जीवन बीमा के अलावा 5 हजार के ओव्हरड्राफ्ट की भी सुविधा मिलेगी। इससे लोगों में आशा का संचार हुआ है। अब किसान भी खाताधारी बनकर बैंकों से व्यवहार कर सकेंगे। जन-धन योजना को लागू करते समय कई मुद्दों पर ध्यान दिया गया है। अब तो केवल एक ही पहचान पत्र से खाता खुल जाएगा। खाते में लघुतम राशि रखने की चिंता नहीं रहेगी। बैंक में खाता खुल जाने से देश में क्रांति नहीं होने वाली, पर यह भी सच है कि बैंक में खाता खुल जाने के बाद क्रांति को रोका नहीं जा सकता।
डॉ. महेश परिमल
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