यह तो तय है कि जो ऊपर जाता है, उसे नीचे आना ही है। इस दुनिया में जो आया है, वह जाएगा ही। इसका अनुभव हम सबको हो ही चुका है। क्षेत्र चाहे राजनीति का हो या फिर खेल का। फिल्म का हो या फिर कला-संस्कृति का। सभी क्षेत्रों में कई हस्तियां ऊपर आई और अंधेरे में खोे गई। जब तक उनके हाथों में सत्ता होती है या कहा जाए कि अपनी प्रतिभा को साबित करने का अवसर मिलता है, तब तक उसकी तूती बोलती है। धीरे-धीरे लोग उन्हें भूलने लगते हैं। कई लोग इसे अपने जीते-जी देख भी लेते हैं। फिल्म के क्षेत्र में कभी दिलीप कुमार की तूती बोलती थी, फिर लोगों ने राजेश खन्ना को भी आसमान में देखा। अमिताभ बच्चन आज भी नई ऊर्जा के साथ दिखाई देते हैं। खेल के मैदान में कभी अजीत वाडेकर, सुनील गावस्कर, कपिल देव, साैरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी के बाद आज विराट कोहली की तूती बोल रही है। सभी के अच्छे दिन आते ही हैं, पर यह कितने समय तक टिके रहेंगे, कोई नहीं कह सकता।
वर्ल्ड कप के लिए भारतीय क्रिकेटरों की टीम घोषित कर दी गई है। युवराज को अनदेखा कर दिया गया। स्वयं को अनदेखा होने से पहले से ही युवराज ने इसे भांप लिया था। एक बार उन्होंने कहा था कि जब तक बल्ला चलता है, तब तक सब ठीक है, उसके बाद सबकी हालत खराब होनी ही है। इस तरह के हालात के लिए सभी को हमेशा तैयार रहना चाहिए। राजकोट में जब युवराज मैच खेलने आए थे, तब उन्हें शेयरिंग टैक्सी में बिठाया गया था। तब उन्हें लग गया था कि अब उनके बुरे दिन आने वाले हैं। उसके बारे में यह कहा जाता है कि यदि वह पिच पर जम जाए, तो प्रतिद्वंद्वी टीम को हारना होता है। 6 बॉल में 6 छक्के मारने वाले युवराज ने कैंसर से जीतकर धमाकेदार एंट्री ली थी। धीरे-धीरे उनका प्रदर्शन कमजोर होने लगा और वे हाशिए पर जाने लगे। राजकोट में भी केवले खिलाड़ियों ने ही नहीं, बल्कि आम जनता ने भी उन्हें अनदेखा किया था। यहां उसने अपने क्रिकेट के कैरियर के सूरज को अस्त होते देख लिया था। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी, अपनी उपेक्षा के बाद भी राजकोट में वे 200 रन बनाने से चूक गए थे। उनकी धुआंधार बल्लेबाजी के सभी कायल थे। पर अपने बल्ले पर अटूट विश्वास रखने वाले युवराज ने अपने अच्छे दिनों में ही कह दिया था कि जब तक बल्ला चलेगा, लोग उसके सामने नतमस्तक होंगे, जिस दिन बल्ला नहीं चला, लोग पहचानना भी छोड़ देंगे। आज उनका वही हाल हुआ।
लोग कहते हैं कि जाे हश्र युवराज का हुआ है, वही धोनी के साथ भी होने वाला है। टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने वाले धोनी के साथ विज्ञापनों के कई ब्रांड जुड़े हुए हैं। अब यह कहा जा रहा है कि धोनी की ब्रांड वेल्यू को झटका लगेगा। इन ब्रांड से करोड़ों रुपए कमाने वाली विज्ञापन एजेंसी धोनी के टेस्ट क्रिकेट से अलविदा कहने से इसका नकारात्मक प्रभाव अपने ब्रांड पर नहीं पड़ने देंगे। इससे धोनी की छवि और उसके साथ ब्रांड दोनों की स्थिति में बदलाव आएगा ही। छवि में कभी न कभी गिरावट आती ही है। इसका अनुभव हर क्षेत्र की ऊंचाई पर जाने वाले लोगों को हुआ है। राजनीति में चुनाव हारने वाले नेता हताशा में आ जाते हैं। उनके जीवन के सभी समीकरण उल्टे पड़ने लगते हैं। जिससे मिलने के लिए कभी लाइन लगती थी, उससे बात करना भी लोग अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। सत्ता के भोगी सत्ता के नहीं रहने पर स्वयं को अनाथ समझने लगते हैं। क्योंकि सत्ता का नशा बहुत ही मादक होता है। यह बहुत ही मुश्किल से छूटता है। सत्ता का चले जाना उन्हें जरा भी रास नहीं आता। इसलिए वे येन केन प्रकारेण वापस सत्ता में आना चाहते हैं।
यही हाल बॉलीवुड का है। जिसकी फिल्म हिट होती है, उसका बोलबाला हो जाता है। फिर बाद में उसे कोई पूछता नहीं। नायिकाओं के हाल तो और भी बुरे हैं। मायानगरी में नायिकाएं एक-दो फिल्मों के बाद फिंक जाती हैं। अपने अच्छे दिनों में वे दुकानों, ब्यूटी पार्लर आदि की दुकानों के उद्घाटन के लिए भी जाती हैं, पर बाद में उन्हें भी कोई नहीं पूछता।
हमारे देश के नेता मोटी चमड़ी के होते हैं। वे अपनी हार से सबक लेते हैं। पर आम आदमी का जीवन जीने वाला काेई अचानक ही प्रभावशाली बनकर बदनाम हो जाए, तो वह किसी को अपना मुंह भी बताने लायक नहीं रह जाता। को-ऑपरेटिव बैंकों के चेयरमेन जब बेशुमार दौलत बटोरने के आरोप में जेल जाते हैं, तब उनके साथ के कई निर्दोष डायरेक्टरों को भी जेल जाना पड़ता है। चेयरमेन पर तो खुला आरोप होता है, वे बिंदास होकर जेल में रह भी लेते हैं। पर निर्दोष डायरेक्टरों को जेल की यातना सहनी होती है। जब वे जेल से छूट जाते हैं, तो चेयरमेन की पूछ-परख होती है, पर निर्दोष डायरेक्टरों की हालत बहुत ही खराब हो जाती है। सहारा के सुब्रतो राय हों या फिर विजय माल्या जैसे लोग करोड़ों रुपए का खाकर भी उन पर उसका कोई असर नहीं होता। पुलिस विभाग में भी महकमे के उच्च अधिकारियों की जी-हुजूरी करने वाले भी समय की राह देखते रहते हैं। जब वे ही अधिकारी सेवानिवृत्त हो जाते हैं, तो उनका फोन उठाना भी मुनासिब नहीं समझते। ऐसा उन व्यक्तियों के साथ होता है, जो अपने अधिकारों पर गर्व करते हैं, पर कर्तव्य के नाम पर शून्य होते हैं।
सबसे खराब स्थिति तो नेताओं की ही होती है। जब वे सत्ता में होते हैं, तो पुलिस वाले भी उनकी बहुत इज्जत करते हैं। पर जब वे सत्ता में नहीं होते, तो कोई पुलिस वाला उन्हें देखना भी पसंद नहीं करता। मध्यप्रदेश के पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा एक समय अपने मातहतों से घिरे रहते थे, आज वे जेल में हैं, जब कभी अदालत आते हैं, तो वह तामझाम कहीं नहीं दिखता। न लाल बत्ती, न सलाम ठोंकने वाले पुलिसकर्मी और न ही उनके कथित समर्थक। सभी गुम हो जाते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जैसा युवराज के साथ हुआ, ठीक वैसा ही पश्चिम बंगाल में सौरव गांगुली के साथ भी हुआ। हमारे यहां क्रिकेट का क्रेज है, इसलिए उसके खिलाड़ियों के नाम सामने आते रहते हैं। बाकी तो अन्य खेल जैसे बॉक्सिंग, कबड्डी, हॉकी के खिलाड़ियों को स्वयं आगे आकर सम्मान माँगना पड़ रहा है। युवराज ही नहीं धोनी हो या फिर विराट कोहली, जिनका बल्ला चलता रहेगा, उनकी तूती बोलेगी। जिस दिन बल्ले से कहना नहीं माना, तो समझो, अच्छे दिन विदा होने वाले हैं। अपने अच्छे दिनों में सचिन ने भी लोगों की जहालत झेली है। हममें से किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया चढ़ते सूरज को सलाम करती है।
डॉ. महेश परिमल
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