डॉ. महेश परिमल
गुजरात की राजधानी में वायब्रंट समिट का सफल आयोजन हुआ। अन्य राज्यों की आंखें ही चौंधिया गई। इन राज्यों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि विदेशियों को आमंत्रित कर उनसे राज्य में निवेश के लिए इस तरह से लुभाया जा सकता है। अब तो पश्चिम बंगाल, केरल और ओडिसा भी इस लाइन में देखे जा रहे हैं। वे अब अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी तरह से हमारे देश के अप्रवासी भारतीय आएं और अपनी पूंजी लगाएं। इसमें गुजरात सबसे आगे निकल गया है, इसमें कोई शक नहीं। पर कई राज्य अभी तक इस बात पर आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें उक्त राज्य में पूरा संरक्षण मिल पाएगा भी नहीं। इन राज्यों को अब कड़ी मेहनत करनी होगी। क्योंकि जब तक पूंजी निवेशकों में आश्वस्ति का भाव नहीं आएगा, तब तक वे एक पैसा भी निवेश नहीं करेंगे।
गुजरात वायब्रंट में करोड़ों रुपए का एमओयू हुआ। सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि इस महाआयोजन की सफलता को देखकर कई राज्यों के मुंह में लार टपकने लगी है। अब इसका वायरस देश भर में फैलने लगा है। गुजरात में आयोजित इस महा आयोजन के पहले पश्चिम बंगाल में इस तरह का आयोजन हुआ था, जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोगों को राज्य में निवेश के लिए गुहार लगाई थी। यह आयोजन गुजरात की तरह चमकीला नहीं था। पर इसमें ममता बनर्जी ने आमंत्रित लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि वे पश्चिम बंगाल में पूंजी निवेश करें। कार्पोरेट सर्कल के सामने कहा कि मैं विश्वास दिलाती हंू कि यहां निवेश कर आप सभी को बहुत लाभ होगा। इस दौरान ममता जितनी मुलायम दिखाई दी, उससे यही लग रहा था कि ममता का लोगों के सामने हाथ जोड़ना ही बाकी रह गया था। इस समारोह में वित्त अरुण जेटली भी उपस्थित थे।
देश-विदेश के पूंजी निवेशक यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में पंूजी लगाना खतरनाक है। ममता ने जिस तरह से टाटा-नैनो प्रोजेक्ट के खिलाफ खुली गंुडागर्दी दिखाई, उसे सबने देखा और समझा। लोगों ने देखा कि ममता की गुंडागर्दी की वजह से ही टाटा का नैनो प्रोजेेक्ट किस तरह से गुजरात पहुंच गया। गुजरात इसके लिए पहले से ही तैयार था। उसने उद्याेगों के लिए लाल जाजम बिछाकर रखा था। अपने राज्य से एक उद्योग को बाहर करने वाली ममता आज स्वयं उद्याेगों को अपने राज्य में लाने के लिए मशक्कत कर रहीं हैं। उस समय पश्चिम बंगाल उद्योगों की कीमत नहीं जानता था, आज उसे उद्योगों की आवश्यकता है। इसके बाद भी वह केंद्र से किसी प्रकार का तालमेल नहीं करना चाहती। किसी राज्य के विकास के लिए उद्योगों की कितनी आवश्यकता है, इसे गुजरात ने बता दिया। इसे अब सभी राज्य समझने लगे हैं। गुजरात वायब्रंट की तरह इस समय केरल में भी इसी तरह का आयोजन किया जा रहा है। वहां भी इन्वेस्टर समिट चल रहा है। ओडिसा में भी माहांत में इस तरह का आयोजन होने वाला है। उत्तर प्रदेश में भी इसकी तैयारियां चल रही हैं। कुछ दिनों पहले अखबारों में उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस तरह से विज्ञापन दिए, उससे लगता है कि वह भी तैयार है, पूंजी निवेशकों को लुभाने के लिए।
आश्चर्य इस बात का है कि इसके पहले किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने यह प्रयास नहीं किया कि उनके राज्य में भी वायब्रंट जैसा आयोेजन कर पूंजी निवेशकों को आमंत्रित किया जाए। पर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने पहली बार विदेश में बसे भारतीयों को भारत में पूंजी निवेश के लिए प्रेेरित किया। इसे नाम दिया वायब्र्रंट गुजरात। 2003 में पहली बार जब यह समारोह आयोजित किया गया, तब केवल कुछ एनआरआई ही इसमें शामिल हुए। आज दस साल बाद वायब्रंट उद्योगों एवं कार्पोरेट गृहों के लिए स्वयंबर की तरह हो गया है। गुजरात सरकार ने इस आइडिए को इसलिए अमल में लाया था कि देश-विदेश के उद्योगपतियों से सीधा सम्पर्क कर और उन्हें उद्योग लगाने में होने वाली समस्याओं को समझा जा सके। उनके आइडिए को भी समझने की कोशिश की जाए। उस समय हालात यह थे कि यदि विदेश के उद्योगों को भारत में पूंजी निवेश करना होता था, तो पहले योजना आयोग से सम्पर्क करना पड़ता था। आयोग इस प्रपोजल को फाइल कर देती थी। क्योंकि उसके पास यह अधिकार नहीं था कि वह उक्त उद्योग को किसी राज्य में स्थापित करने की सिफारिश करे। इस तरह से निवेश के पहले ही उसकी भ्रूण हत्या हो जाती थी। गुजरात ने इन कंपनियों को जब आमंत्रित किया था, तब उन्हें जमीन, फाइनांस जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का वचन दिया था। सभी यह मानकर चल रहे थे कि ये वायब्रंट एक नाटक की तरह है। परंतु जब सबने इसका परिणाम देखा, तो दंग रह गए।
राज्यों में स्थिर सरकार के बिना कोई भी इस दिशा में पूंजी निवेश के लिए विचार तक नहीं करता। जब राज्यों में बेरोजगारी की समस्या मुंह फाड़कर खड़ी हो, तो सभी को उद्योगों और पूंजी निवेशकों की याद आने लगती है। अब सभी राज्य उद्योगों को सुविधाएं देने का वचन देने लगे हैं। सस्ती जमीन, सस्ता लोन, लंबे समय तक चलने वाली करों में राहत, प्रोजेक्ट को तुरंत स्वीकृति आदि की बात भी जोर-शोर से होने लगी है। अब सभी राज्य बिजनेस फ्रेंडली बनने लगे हैं। जब ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में टाटा-नैनो प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन की छेड़ दिया था, तब वे स्वयं भी विरोधी पार्टी की नेता थी, आज सत्ता पर काबिज हैं। आज उन्हें यह समझ में आ रहा है कि टाटा-नैनो प्रोजेक्ट का विरोध कर उन्होंने कितना गलत किया है। उसके कारण उसे कितना नुकसान उठाना पड़ा है। आज भारत के बड़े उद्योग गृहों टाटा, रिलायंस, एस्सार, टोरंट आदि गुजरात में अपने विशाल यूनिट खड़े किए हैं, उसके पीछे गुजरात सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के अलावा वह वचन भी है, जो उसने दिए और उसे अमल में लाया। गुजरात सरकार का आइडिया गुजरात का गौरव बन गया है।
कितने राज्यों की नीयत में ही खोट है, क्योंकि पूंजी निवेशक उनकी मंशा समझ चुके हैं। पूंजी निवेशक उत्तर प्रदेश, ओडिसा जाने को तैयार ही नहीं हैं। देश का सबसे बड़ा पूंजी निवेश पॉस्को प्रोेजेक्ट ओडिसा में ही स्थापित होने वाला था। वहां उस प्रोजेक्ट के खिलाफ कई आंदोलन हुए, आखिरकार वह प्रोेजेक्ट कर्नाटक में स्थापित किया गया। ऐसे उद्योग विरोधी राज्यों के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। भाजपा सरकार ने एनडीएफ के लिए लाल जाजम बिछा रही है, तब विदेश के उद्योग गृहों उद्योग लगाने के लिए सुरक्षित राज्यों की तलाश में हैं। केंद्र सरकार ऐसे प्रोजेक्टों का आतुरता से प्रतीक्षा कर रही है। ताकि बेराेजगारों को रोजगार मिल सके। रोजगार मिले, तो राज्यों का विकास होगा ही, यह विकास दिखाई भी देने लगेगा। हम जिसे सर्वांगीण विकास कहते हैं, वह नए पूंजी निवेशकों के आने से ही हो सकता है।
डॉ. महेश परिमल
गुजरात की राजधानी में वायब्रंट समिट का सफल आयोजन हुआ। अन्य राज्यों की आंखें ही चौंधिया गई। इन राज्यों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि विदेशियों को आमंत्रित कर उनसे राज्य में निवेश के लिए इस तरह से लुभाया जा सकता है। अब तो पश्चिम बंगाल, केरल और ओडिसा भी इस लाइन में देखे जा रहे हैं। वे अब अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहे हैं कि किसी भी तरह से हमारे देश के अप्रवासी भारतीय आएं और अपनी पूंजी लगाएं। इसमें गुजरात सबसे आगे निकल गया है, इसमें कोई शक नहीं। पर कई राज्य अभी तक इस बात पर आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें उक्त राज्य में पूरा संरक्षण मिल पाएगा भी नहीं। इन राज्यों को अब कड़ी मेहनत करनी होगी। क्योंकि जब तक पूंजी निवेशकों में आश्वस्ति का भाव नहीं आएगा, तब तक वे एक पैसा भी निवेश नहीं करेंगे।
गुजरात वायब्रंट में करोड़ों रुपए का एमओयू हुआ। सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि इस महाआयोजन की सफलता को देखकर कई राज्यों के मुंह में लार टपकने लगी है। अब इसका वायरस देश भर में फैलने लगा है। गुजरात में आयोजित इस महा आयोजन के पहले पश्चिम बंगाल में इस तरह का आयोजन हुआ था, जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोगों को राज्य में निवेश के लिए गुहार लगाई थी। यह आयोजन गुजरात की तरह चमकीला नहीं था। पर इसमें ममता बनर्जी ने आमंत्रित लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि वे पश्चिम बंगाल में पूंजी निवेश करें। कार्पोरेट सर्कल के सामने कहा कि मैं विश्वास दिलाती हंू कि यहां निवेश कर आप सभी को बहुत लाभ होगा। इस दौरान ममता जितनी मुलायम दिखाई दी, उससे यही लग रहा था कि ममता का लोगों के सामने हाथ जोड़ना ही बाकी रह गया था। इस समारोह में वित्त अरुण जेटली भी उपस्थित थे।
देश-विदेश के पूंजी निवेशक यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में पंूजी लगाना खतरनाक है। ममता ने जिस तरह से टाटा-नैनो प्रोजेक्ट के खिलाफ खुली गंुडागर्दी दिखाई, उसे सबने देखा और समझा। लोगों ने देखा कि ममता की गुंडागर्दी की वजह से ही टाटा का नैनो प्रोजेेक्ट किस तरह से गुजरात पहुंच गया। गुजरात इसके लिए पहले से ही तैयार था। उसने उद्याेगों के लिए लाल जाजम बिछाकर रखा था। अपने राज्य से एक उद्योग को बाहर करने वाली ममता आज स्वयं उद्याेगों को अपने राज्य में लाने के लिए मशक्कत कर रहीं हैं। उस समय पश्चिम बंगाल उद्योगों की कीमत नहीं जानता था, आज उसे उद्योगों की आवश्यकता है। इसके बाद भी वह केंद्र से किसी प्रकार का तालमेल नहीं करना चाहती। किसी राज्य के विकास के लिए उद्योगों की कितनी आवश्यकता है, इसे गुजरात ने बता दिया। इसे अब सभी राज्य समझने लगे हैं। गुजरात वायब्रंट की तरह इस समय केरल में भी इसी तरह का आयोजन किया जा रहा है। वहां भी इन्वेस्टर समिट चल रहा है। ओडिसा में भी माहांत में इस तरह का आयोजन होने वाला है। उत्तर प्रदेश में भी इसकी तैयारियां चल रही हैं। कुछ दिनों पहले अखबारों में उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस तरह से विज्ञापन दिए, उससे लगता है कि वह भी तैयार है, पूंजी निवेशकों को लुभाने के लिए।
आश्चर्य इस बात का है कि इसके पहले किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने यह प्रयास नहीं किया कि उनके राज्य में भी वायब्रंट जैसा आयोेजन कर पूंजी निवेशकों को आमंत्रित किया जाए। पर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने पहली बार विदेश में बसे भारतीयों को भारत में पूंजी निवेश के लिए प्रेेरित किया। इसे नाम दिया वायब्र्रंट गुजरात। 2003 में पहली बार जब यह समारोह आयोजित किया गया, तब केवल कुछ एनआरआई ही इसमें शामिल हुए। आज दस साल बाद वायब्रंट उद्योगों एवं कार्पोरेट गृहों के लिए स्वयंबर की तरह हो गया है। गुजरात सरकार ने इस आइडिए को इसलिए अमल में लाया था कि देश-विदेश के उद्योगपतियों से सीधा सम्पर्क कर और उन्हें उद्योग लगाने में होने वाली समस्याओं को समझा जा सके। उनके आइडिए को भी समझने की कोशिश की जाए। उस समय हालात यह थे कि यदि विदेश के उद्योगों को भारत में पूंजी निवेश करना होता था, तो पहले योजना आयोग से सम्पर्क करना पड़ता था। आयोग इस प्रपोजल को फाइल कर देती थी। क्योंकि उसके पास यह अधिकार नहीं था कि वह उक्त उद्योग को किसी राज्य में स्थापित करने की सिफारिश करे। इस तरह से निवेश के पहले ही उसकी भ्रूण हत्या हो जाती थी। गुजरात ने इन कंपनियों को जब आमंत्रित किया था, तब उन्हें जमीन, फाइनांस जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का वचन दिया था। सभी यह मानकर चल रहे थे कि ये वायब्रंट एक नाटक की तरह है। परंतु जब सबने इसका परिणाम देखा, तो दंग रह गए।
राज्यों में स्थिर सरकार के बिना कोई भी इस दिशा में पूंजी निवेश के लिए विचार तक नहीं करता। जब राज्यों में बेरोजगारी की समस्या मुंह फाड़कर खड़ी हो, तो सभी को उद्योगों और पूंजी निवेशकों की याद आने लगती है। अब सभी राज्य उद्योगों को सुविधाएं देने का वचन देने लगे हैं। सस्ती जमीन, सस्ता लोन, लंबे समय तक चलने वाली करों में राहत, प्रोजेक्ट को तुरंत स्वीकृति आदि की बात भी जोर-शोर से होने लगी है। अब सभी राज्य बिजनेस फ्रेंडली बनने लगे हैं। जब ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में टाटा-नैनो प्रोजेक्ट के खिलाफ आंदोलन की छेड़ दिया था, तब वे स्वयं भी विरोधी पार्टी की नेता थी, आज सत्ता पर काबिज हैं। आज उन्हें यह समझ में आ रहा है कि टाटा-नैनो प्रोजेक्ट का विरोध कर उन्होंने कितना गलत किया है। उसके कारण उसे कितना नुकसान उठाना पड़ा है। आज भारत के बड़े उद्योग गृहों टाटा, रिलायंस, एस्सार, टोरंट आदि गुजरात में अपने विशाल यूनिट खड़े किए हैं, उसके पीछे गुजरात सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के अलावा वह वचन भी है, जो उसने दिए और उसे अमल में लाया। गुजरात सरकार का आइडिया गुजरात का गौरव बन गया है।
कितने राज्यों की नीयत में ही खोट है, क्योंकि पूंजी निवेशक उनकी मंशा समझ चुके हैं। पूंजी निवेशक उत्तर प्रदेश, ओडिसा जाने को तैयार ही नहीं हैं। देश का सबसे बड़ा पूंजी निवेश पॉस्को प्रोेजेक्ट ओडिसा में ही स्थापित होने वाला था। वहां उस प्रोजेक्ट के खिलाफ कई आंदोलन हुए, आखिरकार वह प्रोेजेक्ट कर्नाटक में स्थापित किया गया। ऐसे उद्योग विरोधी राज्यों के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। भाजपा सरकार ने एनडीएफ के लिए लाल जाजम बिछा रही है, तब विदेश के उद्योग गृहों उद्योग लगाने के लिए सुरक्षित राज्यों की तलाश में हैं। केंद्र सरकार ऐसे प्रोजेक्टों का आतुरता से प्रतीक्षा कर रही है। ताकि बेराेजगारों को रोजगार मिल सके। रोजगार मिले, तो राज्यों का विकास होगा ही, यह विकास दिखाई भी देने लगेगा। हम जिसे सर्वांगीण विकास कहते हैं, वह नए पूंजी निवेशकों के आने से ही हो सकता है।
डॉ. महेश परिमल
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