डॉ. महेश परिमल
जनता के अथक परिश्रम की कमाई को डकारने वाले ममता के सभी साथी एक-एक करके कानून के हत्थे चढ़ रहे हैं। अपने साथियों से जुदा होकर ममता अपना आपा खो रही हैं। शारदा चीट फंड से जुड़े ममता के एक और साथी मदन मित्रा की गिरफ्तारी पिछले दिनों हुई। उसके तीन साथी पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं। इस कारण ममता बार-बार गलतियां कर रही हैं। पहली तो भाजपाध्यक्ष अमित शाह की रैली होने में बाधा पहुंचाई। उसके बाद जब अदालत ने अनुमति दे दी, तो वे मन मसोसकर रह गई। इसके बाद वे बार-बार ललकार रही हैं कि प्रधानमंत्री में दम हो, तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाएं। पर भाजपा यह अच्छी तरह से जानती है कि उन्हें गिरफ्तार कर उन्हें हीरो नहीं बनाना है। इसलिए उसके िवश्वसनीय साथियों की धरपकड़ कर उसे कमजोर बनाने में लगी हुई है।
ममता के आसपास कानून का घेरा लगातार कसता जा रहा है। उसकी गिरफ्तारी अभी भले ही न हो, पर उसे कमजोर बनाने में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। देखा जाए, तो शारदा घोटाला और सहारा का घोटाला दोनों एक जैसे ही हैं। जो उत्तर प्रदेश में सुब्रतो रॉय ने किया, वही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथियों ने किया। दोनों घोटालों के षड्यंत्रकारी इन समय जेल में हैं। दाेनों घोटाले राज्य सरकार की सरपरस्ती में ही हुए हैं। दोनों घोटालों में प्रजा की पाई-पाई की कमाई को जमकर लूटा गया। जब भी इन पर कानूनी शिकंजा कसा, तोेे जमकर बवाल भी हुआ। उनके समर्थक सड़कों पर आ गए। पर लोगों की हाय ने अपना काम कर दिखाया। विरोध काम नहीं आया। शारदा घोटाले में जब सरकारी एजेंसियां अपना काम कर रही थीं, तो ममता को उसकी सहायता करनी चाहिए। इसके बजाए वे बार-बार भाजपा सरकार को ललकार रही हैं। उनके इस व्यवहार से लोगों को यह शंका हो रही है कि वे भी कहीं न कहीं इस घोटाले में शामिल हैं। आखिर मामला गरीबों के सपनों के टूटने का है। उनकी जमा-पंूजी को हजम कर लिया गया है। अगर ममता वास्तव में गरीबों की हमदर्द हैं, तो उसे केंद्र सरकार की मदद करनी चाहिए।
इस समय केंद्र सरकार द्वारा जो कुछ किया जा रहा है, उसे ममता बदले की कार्रवाई बता रही है। जबकि उसे केंद्र की सहायता करनी चाहिए, ताकि उसकी साफ छवि बन सके। लेकिन जिस तरह वे मोदी सरकार को ललकार रही है, उससे तो यही लगता है कि वे अपनी खीझ ही निकाल रही हैं।
आखिर में जिस मदन मित्रा की धरपकड़ की गई, उस संबंध में ममता ने 2013 में एक आम सभा में मदन मित्रा को सबके सामने लाते हुए लोगों से यह पूछा था कि क्या ये आपको चोर दिखाई देते हैं। ममता जिन 5 लोगों को स्वच्छ छवि का बता रही थीं, उनमें से तीन आज सीबीआई की कस्टडी में हैं। वे बार-बार यही कह रहीं हैं कि मोदी सरकार उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रही हैं, इस तरह से वे अपने साथियों की गिरफ्तारी का राजनैतिक लाभ उठाना चाहतीहैं। अब तो ऐसा लगता है कि ममता खुद अपने ही बनाए जाल में फंसती जा रही है।
ममता बनर्जी की सबसे बड़ी खासियत यही है कि उन्होंने अपने दम पर 34 बरसों से जमे वामपंथियों की सरकार को उखाड़ फेंका। यह एक ऐतिहासिक कार्य था। लेकिन अब लगता है कि ममता अब लोगों के बीच अपनी पकड़ कायम नहीं रख पा रही हैं। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की बढ़ती दादागिरी और नए उद्योगों को प्रदेश में न लाने के लिए उनकी जिद के अब दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। वैसे वे तो अब यह मान ही बैठी हैं कि उनकी सरकार को पलटाने के लिए केंद्र सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। उनके साथियों की धरपकड़ के पीछे यही साजिश है। पिछले महीने ही केंद्र सरकार ने कहा था कि पश्चिम बंगाल आतंकवादियों के लिए स्वर्ग के समान है। सरकार का यह बयान वर्धमान में हुए विस्फोट के संदर्भ में था, पर ममता ने इस गलत ही तरीके से लिया और केंद्र के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करने लगीं।
भाजपाध्यक्ष अमित शाह की सभा के लिए पहले तो उन्होंने अनुमति न देकर अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारी है। जब हाईकोर्ट ने मंजूरी दी, तब अमित शाह ने ममता को उनके ही गढ़ में ललकारा था। गुजरातीभाषी होने के बाद भी उन्होंने टूटी-फूटी बंगला में अमित शाह ने जो कुछ भी बोला, वह बंगालियों को अच्छा लगा। वास्तव में वहां की प्रजा भी तृणमूल कार्यकर्ताओं की गुंडागिरी से तंग आ चुकी है। सिंगूर का घाव अभी भी ताजा ही है। अब तक तो वे यही मानती आ रही थीं कि पश्चिम बंगाल में उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, पर अब वे अपनी कमजोरी को समझने लगी है, इसलिए बिफरने लगी हैं। जबान पर लगाम नहीं रख पा रही हैं। अब उसके अभिमान का गुब्बारा फूटने लगा हैा पहले वे यही मानकर चल रहीं थी कि उसके सामने केवल वामपंथी और कांग्रेस ही हैं, पर भाजपा बीच मे आ गई, इसलिए वे तीन ओर से घिर गई हैं। उनके ही गढ़ में प्रधानमंत्री की सभा के होने से लोगों में ममता के प्रति आक्रोश दिखाई देने लगा है। मोदी का विरोध करने वालों में ममता सबसे आगे रही हैं। इसलिए मुख्यमंत्रियों की बैठक का उन्होंने बहिष्कार भी किया था।
शारदा चीट फंड घोटाले के संचालकों के पास तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने घाटे में चल रही कितनी ही कंपनियों के शेयर को ऊंची कीमत पर लेने के लिए दबाव बनाया था। ऐसी एक नहीं पर कई कंपनियों के लिए कहा गया। इस तरह से शारदा चीट फंड के संचालक अपनी धनराशि गंवाते रहे। इधर प्रजा से लिए गए धन को लौटाने की चिंता वे नहीं कर पा रहे थे। जब धन लौटाने की बारी आई, तो चीटफंड के संचालकों से अपने हाथ खड़े कर दिए। लोगों ने इस दिशा में अभियान ही चला दिया। तब तृणमूल कांग्रेस जनता के साथ नहीं थी। जब शारदा चीट फंड के संचालकों की धरपकड़ शुरू हुई, तब समझ में आया कि ये सभी ममता बनर्जी के ही साथी हैं। आज ममता लाचार है। अपने ही साथियों की दगाबाजी से वे आहत हैं। क्या करें, क्या न करें की स्थिति में वे अब अपना आपा ही खोने लगी है। सही गलत का निर्णय नहीं ले पा रही हैं।
डॉ. महेश परिमल
जनता के अथक परिश्रम की कमाई को डकारने वाले ममता के सभी साथी एक-एक करके कानून के हत्थे चढ़ रहे हैं। अपने साथियों से जुदा होकर ममता अपना आपा खो रही हैं। शारदा चीट फंड से जुड़े ममता के एक और साथी मदन मित्रा की गिरफ्तारी पिछले दिनों हुई। उसके तीन साथी पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं। इस कारण ममता बार-बार गलतियां कर रही हैं। पहली तो भाजपाध्यक्ष अमित शाह की रैली होने में बाधा पहुंचाई। उसके बाद जब अदालत ने अनुमति दे दी, तो वे मन मसोसकर रह गई। इसके बाद वे बार-बार ललकार रही हैं कि प्रधानमंत्री में दम हो, तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाएं। पर भाजपा यह अच्छी तरह से जानती है कि उन्हें गिरफ्तार कर उन्हें हीरो नहीं बनाना है। इसलिए उसके िवश्वसनीय साथियों की धरपकड़ कर उसे कमजोर बनाने में लगी हुई है।
ममता के आसपास कानून का घेरा लगातार कसता जा रहा है। उसकी गिरफ्तारी अभी भले ही न हो, पर उसे कमजोर बनाने में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। देखा जाए, तो शारदा घोटाला और सहारा का घोटाला दोनों एक जैसे ही हैं। जो उत्तर प्रदेश में सुब्रतो रॉय ने किया, वही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथियों ने किया। दोनों घोटालों के षड्यंत्रकारी इन समय जेल में हैं। दाेनों घोटाले राज्य सरकार की सरपरस्ती में ही हुए हैं। दोनों घोटालों में प्रजा की पाई-पाई की कमाई को जमकर लूटा गया। जब भी इन पर कानूनी शिकंजा कसा, तोेे जमकर बवाल भी हुआ। उनके समर्थक सड़कों पर आ गए। पर लोगों की हाय ने अपना काम कर दिखाया। विरोध काम नहीं आया। शारदा घोटाले में जब सरकारी एजेंसियां अपना काम कर रही थीं, तो ममता को उसकी सहायता करनी चाहिए। इसके बजाए वे बार-बार भाजपा सरकार को ललकार रही हैं। उनके इस व्यवहार से लोगों को यह शंका हो रही है कि वे भी कहीं न कहीं इस घोटाले में शामिल हैं। आखिर मामला गरीबों के सपनों के टूटने का है। उनकी जमा-पंूजी को हजम कर लिया गया है। अगर ममता वास्तव में गरीबों की हमदर्द हैं, तो उसे केंद्र सरकार की मदद करनी चाहिए।
इस समय केंद्र सरकार द्वारा जो कुछ किया जा रहा है, उसे ममता बदले की कार्रवाई बता रही है। जबकि उसे केंद्र की सहायता करनी चाहिए, ताकि उसकी साफ छवि बन सके। लेकिन जिस तरह वे मोदी सरकार को ललकार रही है, उससे तो यही लगता है कि वे अपनी खीझ ही निकाल रही हैं।
आखिर में जिस मदन मित्रा की धरपकड़ की गई, उस संबंध में ममता ने 2013 में एक आम सभा में मदन मित्रा को सबके सामने लाते हुए लोगों से यह पूछा था कि क्या ये आपको चोर दिखाई देते हैं। ममता जिन 5 लोगों को स्वच्छ छवि का बता रही थीं, उनमें से तीन आज सीबीआई की कस्टडी में हैं। वे बार-बार यही कह रहीं हैं कि मोदी सरकार उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रही हैं, इस तरह से वे अपने साथियों की गिरफ्तारी का राजनैतिक लाभ उठाना चाहतीहैं। अब तो ऐसा लगता है कि ममता खुद अपने ही बनाए जाल में फंसती जा रही है।
ममता बनर्जी की सबसे बड़ी खासियत यही है कि उन्होंने अपने दम पर 34 बरसों से जमे वामपंथियों की सरकार को उखाड़ फेंका। यह एक ऐतिहासिक कार्य था। लेकिन अब लगता है कि ममता अब लोगों के बीच अपनी पकड़ कायम नहीं रख पा रही हैं। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की बढ़ती दादागिरी और नए उद्योगों को प्रदेश में न लाने के लिए उनकी जिद के अब दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। वैसे वे तो अब यह मान ही बैठी हैं कि उनकी सरकार को पलटाने के लिए केंद्र सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। उनके साथियों की धरपकड़ के पीछे यही साजिश है। पिछले महीने ही केंद्र सरकार ने कहा था कि पश्चिम बंगाल आतंकवादियों के लिए स्वर्ग के समान है। सरकार का यह बयान वर्धमान में हुए विस्फोट के संदर्भ में था, पर ममता ने इस गलत ही तरीके से लिया और केंद्र के खिलाफ अनर्गल प्रलाप करने लगीं।
भाजपाध्यक्ष अमित शाह की सभा के लिए पहले तो उन्होंने अनुमति न देकर अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारी है। जब हाईकोर्ट ने मंजूरी दी, तब अमित शाह ने ममता को उनके ही गढ़ में ललकारा था। गुजरातीभाषी होने के बाद भी उन्होंने टूटी-फूटी बंगला में अमित शाह ने जो कुछ भी बोला, वह बंगालियों को अच्छा लगा। वास्तव में वहां की प्रजा भी तृणमूल कार्यकर्ताओं की गुंडागिरी से तंग आ चुकी है। सिंगूर का घाव अभी भी ताजा ही है। अब तक तो वे यही मानती आ रही थीं कि पश्चिम बंगाल में उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, पर अब वे अपनी कमजोरी को समझने लगी है, इसलिए बिफरने लगी हैं। जबान पर लगाम नहीं रख पा रही हैं। अब उसके अभिमान का गुब्बारा फूटने लगा हैा पहले वे यही मानकर चल रहीं थी कि उसके सामने केवल वामपंथी और कांग्रेस ही हैं, पर भाजपा बीच मे आ गई, इसलिए वे तीन ओर से घिर गई हैं। उनके ही गढ़ में प्रधानमंत्री की सभा के होने से लोगों में ममता के प्रति आक्रोश दिखाई देने लगा है। मोदी का विरोध करने वालों में ममता सबसे आगे रही हैं। इसलिए मुख्यमंत्रियों की बैठक का उन्होंने बहिष्कार भी किया था।
शारदा चीट फंड घोटाले के संचालकों के पास तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने घाटे में चल रही कितनी ही कंपनियों के शेयर को ऊंची कीमत पर लेने के लिए दबाव बनाया था। ऐसी एक नहीं पर कई कंपनियों के लिए कहा गया। इस तरह से शारदा चीट फंड के संचालक अपनी धनराशि गंवाते रहे। इधर प्रजा से लिए गए धन को लौटाने की चिंता वे नहीं कर पा रहे थे। जब धन लौटाने की बारी आई, तो चीटफंड के संचालकों से अपने हाथ खड़े कर दिए। लोगों ने इस दिशा में अभियान ही चला दिया। तब तृणमूल कांग्रेस जनता के साथ नहीं थी। जब शारदा चीट फंड के संचालकों की धरपकड़ शुरू हुई, तब समझ में आया कि ये सभी ममता बनर्जी के ही साथी हैं। आज ममता लाचार है। अपने ही साथियों की दगाबाजी से वे आहत हैं। क्या करें, क्या न करें की स्थिति में वे अब अपना आपा ही खोने लगी है। सही गलत का निर्णय नहीं ले पा रही हैं।
डॉ. महेश परिमल
ममता इस बात को नहीं चाह रही कि अब सी बी आई द्वारा की जा रही जांच,केन्द्र सरकार नहीं, सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में हो रही है अब उबलने से काम नहीं चल पायेगा पहली बात तो यह अभी निश्चित नहीं कि वे इस घोटाले में शामिल नहीं हैं ,लेकिन उनकी ही पार्टी के गिरफ्तार हुए नेता इसमें उनका पूर्ण हाथ बता रहे हैं ऐसे में विरोध कर वे अपने आप को दोषी होने के शक के करीब ला रही हैं 2016 में चुनाव होने हैं और वे खिसकते जनाधार से परेशान हैं बांग्ला देशी मुसलमानों को संरक्षण दे कर वे देश व खुद के लिए समस्या खड़ी कर रही हैं
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