डॉ. महेश परिमल
बहुत ही सुहानी होती है, सुबह की सैर। कभी देखी है आपने सुबह हाेने से पहले प्रकृति की तैयारी? कहते हैं प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती है। जो अपनी सेहत के प्रति सजग रहते हैं, उनकी सुबह तो बहुत ही फलदायी होती है। गर्मी के मौसम में सुबह निकलना कोई बड़ी बात नहीं है। ठंड की सुबह में निकलो, तो जाने। सच में ठंड की सुबह या कह ले अलसभोर में हमारे सामने बहुत कुछ ऐसा होता है, जिसे हमने पहले कभी महसूस ही नहीं किया होता है। उसे महसूस करना हो, तो सुबह से अच्छा कोई समय हो ही नहीं सकता। बात करते हैं सुबह से पहले की सुबह की। सूरज निकलने में अभी करीब डेढ़ घंटे हैं। आप अपनी रजाई से नाता तोड़ें, यह बहुत ही मुश्किल काम है। पर वह तो आपको करना ही होगा। यदि डॉक्टर ने सुबह की सैर के लिए कह दिया है, तो यह आपकी विवशता हो सकती है। पर नहीं, आप संकल्प ले लें कि सुबह उठना ही है, तब कोई व्यवधान उपस्थित नहीं होगा। कहते हैं कि जिसने सुबह की नींद त्याग दी, वह योगी होता है। सुबह की मीठी नींद के लिए लोग अपने बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण काम भी छोड़ देते हैं, पर जो नींद को छोड़ देते हैं, वे महान होते हैं। स्वयं को अच्छे रास्ते पर लाने यह एक छोटा-सा गुण है।
अलसभोर आप निकलें, तो पाएंगे कि कुछ बुजुर्गों की चहल-कदमी, मंद गति से दौड़ते युवा, बतियाती महिलाएं, इक्का-दुक्का वाहनों का गुजरना, रेल्वे या बस स्टेंड जाते लोग, दूध वाली वैन, कभी कोई भजन मंडली, दूर से मस्जिद से उठती अजान की आवाज, सड़क पर पसरे लावारिस पशु, कभी कोई कुत्ता, गाय-भैंस या फिर कोई अन्य उपेक्षित पशु। बायींंंंं तरफ पंक्तिवार आते मकान, जिसमें डॉ. शरद गुप्ता, इंजीनियर सिद्दिकी, सरदार करतार सिंह, मोहन मालवीय, जे.के.परमार, श्रीमती अंजू साहा आदि नाम तो याद हो ही जाते हैं। कभी आकाश की ओर नजर घुमा लो, तो चंद्रमा के साथ पंक्ति में शुक्र तारा दिखाई देता है। कभी-कभार कुछ पक्षी तेज आवाज से साथ ही करीब से गुजरते हैं। अभी तो चिड़ियों की आवाजें नहीं आ रही हैं, पर उनके होने का आभास होने लगा है। वापस लौटते हुए कभी किसी घर पर नजर डाल दी जाए, जहां लिखा होता है कि कुत्तों से सावधान। इन घरों के मालिक अपने डॉगी के साथ घूमने िनकलते हैं। आगे चलकर वे डॉगी को लिए हुए सड़क के एक किनारे हो जाते हैं, जहाँ उनका डॉगी ‘पोट्टी’ करता है। थोड़ी देर बाद वे डॉगी के साथ आगे बढ़ जाते हैं। अमेरिका के फिलाडेल्फिया शहर में मैंने देखा कि वहां भी डॉगी को लेकर लोग घूमने निकलते हैं, तो पूरी तैयारी के साथ निकलते हैं। इस बीच यदि डॉगी ने कहीं ‘पोट्टी’ कर दी, तो डॉगी का मालिक अपने हाथ पर प्लास्टिक के दस्ताने पहनता है, जमीन से पूरी ‘पोट्टी’ उठाता है, फिर उसी दस्ताने को कुछ इस तरह से हाथ से बाहर करता है कि ‘पोट्टी’ दस्ताने के भीतर और साफ हाथ बाहर हो जाता है। उसके बाद भी उस स्थान को और भी अच्छे से साफ कर आगे की डस्टबीन में डाल दिया जाता है। ये सारा काम डॉगी का मालिक या मालकिन ऐसे करते हैं, मानों वह उनका अपना ही काम हो। सफाई के प्रति संवेदना यहीं से जागती है। हमें वहां तक पहुंचने में काफी वक्त लगेगा।
चिड़ियों की चहचहाट के साथ सुबह अब आगे बढ़ चुकी है, अब तो स्कूल की बसें में दिखाई देने लगी है। अखबार बांटने वाले युवा भी दिखाई देने लगे हैं। जो तेजी से अपना काम कर रहे होते हैं, क्योंकि इन्हीं में से कुछ को स्कूल और कॉलेज जाना हाेता है। अब सड़क पर काफी लोग दिखने लगे हैं। जिसमें युवतियां भी शामिल हैं। ऐसे में तीन युवकों के साथ एक युवती भी दिखाई दे जाए, तो आश्चर्य होता है। वह इसलिए कि वे किसी कंपनी के द्वारा अपने उत्पाद को बेचने के उद्देश्य से लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं। युवती इसलिए शामिल होती है कि सुबह सैर को निकली अन्य युवती को स्वास्थ्य परीक्षण कराने में किसी प्रकार की झिझक महसूस न हो। सोचता हूं कितने कठोर होते हैं कंपनी के नियम। ये सैर को नहीं निकले हैं, बल्कि अपने उत्पाद के प्रचार के लिए उन्होंने सुबह का समय चुना है। अब तो मंदिरों के घंटों की आवाजें भी आने लगी हैं। इस दौरान देखा गया कि सचमुच लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील हैं, क्योंकि सुबह की सैर को निकले बुजुर्गों या युवाओं को धूम्रपान करते नहीं देखा। शायद सेहत के सामने इसकी नहीं चलती। एक बात यह भी नोटिस की, किसी चेहरे पर खीझ नहीं होती। लोग इत्मीनान से चलते हुए आगे बढ़ते हैं। कुछ लोग मोबाइल से भजन सुनते हैं, तो कुछ लोग आधुनिक गीत। पर ये संगीत कभी कानफोड़ नहीं होता। मोबाइलधारी इसका विशेष खयाल रखते हैं, तब वे ईयरफोन का इस्तेमाल करते हैं। संगीत उन्हीं तक सीमित होता है।
सुबह के इन संयोगों के दर्शन केवल उन्हें ही होते हैं, जो सेहत के अलावा अपना अनुशासित जीवन जीना चाहते हैं। जो सुबह जल्दी उठते हैं, उनका दिन भी अच्छे से गुजरता है। सारे काम आराम से निपटते हैं। दोपहर नींद का हल्का और प्यारा सा झोंका भी आता है। जो केवल 15 या 20 मिनट में ही तरोताजा कर देता है। यह झोंका सुबह की मीठी नींद से भी प्यारा होता है। संकल्प के साथ शुरू हुई जीवन की यह सुबह हमें कई संदेश दे जाती है। तो आओ, इन संदेशों को जानने-समझने की एक छोटी-सी शुरुआत करते हैं, सुबह जल्दी उठकर, नींद से नाता तोड़कर, रजाई को एक और फेंककर। एक कोशिश...बस एक कोशिश.....
डॉ. महेश परिमल
बहुत ही सुहानी होती है, सुबह की सैर। कभी देखी है आपने सुबह हाेने से पहले प्रकृति की तैयारी? कहते हैं प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती है। जो अपनी सेहत के प्रति सजग रहते हैं, उनकी सुबह तो बहुत ही फलदायी होती है। गर्मी के मौसम में सुबह निकलना कोई बड़ी बात नहीं है। ठंड की सुबह में निकलो, तो जाने। सच में ठंड की सुबह या कह ले अलसभोर में हमारे सामने बहुत कुछ ऐसा होता है, जिसे हमने पहले कभी महसूस ही नहीं किया होता है। उसे महसूस करना हो, तो सुबह से अच्छा कोई समय हो ही नहीं सकता। बात करते हैं सुबह से पहले की सुबह की। सूरज निकलने में अभी करीब डेढ़ घंटे हैं। आप अपनी रजाई से नाता तोड़ें, यह बहुत ही मुश्किल काम है। पर वह तो आपको करना ही होगा। यदि डॉक्टर ने सुबह की सैर के लिए कह दिया है, तो यह आपकी विवशता हो सकती है। पर नहीं, आप संकल्प ले लें कि सुबह उठना ही है, तब कोई व्यवधान उपस्थित नहीं होगा। कहते हैं कि जिसने सुबह की नींद त्याग दी, वह योगी होता है। सुबह की मीठी नींद के लिए लोग अपने बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण काम भी छोड़ देते हैं, पर जो नींद को छोड़ देते हैं, वे महान होते हैं। स्वयं को अच्छे रास्ते पर लाने यह एक छोटा-सा गुण है।
अलसभोर आप निकलें, तो पाएंगे कि कुछ बुजुर्गों की चहल-कदमी, मंद गति से दौड़ते युवा, बतियाती महिलाएं, इक्का-दुक्का वाहनों का गुजरना, रेल्वे या बस स्टेंड जाते लोग, दूध वाली वैन, कभी कोई भजन मंडली, दूर से मस्जिद से उठती अजान की आवाज, सड़क पर पसरे लावारिस पशु, कभी कोई कुत्ता, गाय-भैंस या फिर कोई अन्य उपेक्षित पशु। बायींंंंं तरफ पंक्तिवार आते मकान, जिसमें डॉ. शरद गुप्ता, इंजीनियर सिद्दिकी, सरदार करतार सिंह, मोहन मालवीय, जे.के.परमार, श्रीमती अंजू साहा आदि नाम तो याद हो ही जाते हैं। कभी आकाश की ओर नजर घुमा लो, तो चंद्रमा के साथ पंक्ति में शुक्र तारा दिखाई देता है। कभी-कभार कुछ पक्षी तेज आवाज से साथ ही करीब से गुजरते हैं। अभी तो चिड़ियों की आवाजें नहीं आ रही हैं, पर उनके होने का आभास होने लगा है। वापस लौटते हुए कभी किसी घर पर नजर डाल दी जाए, जहां लिखा होता है कि कुत्तों से सावधान। इन घरों के मालिक अपने डॉगी के साथ घूमने िनकलते हैं। आगे चलकर वे डॉगी को लिए हुए सड़क के एक किनारे हो जाते हैं, जहाँ उनका डॉगी ‘पोट्टी’ करता है। थोड़ी देर बाद वे डॉगी के साथ आगे बढ़ जाते हैं। अमेरिका के फिलाडेल्फिया शहर में मैंने देखा कि वहां भी डॉगी को लेकर लोग घूमने निकलते हैं, तो पूरी तैयारी के साथ निकलते हैं। इस बीच यदि डॉगी ने कहीं ‘पोट्टी’ कर दी, तो डॉगी का मालिक अपने हाथ पर प्लास्टिक के दस्ताने पहनता है, जमीन से पूरी ‘पोट्टी’ उठाता है, फिर उसी दस्ताने को कुछ इस तरह से हाथ से बाहर करता है कि ‘पोट्टी’ दस्ताने के भीतर और साफ हाथ बाहर हो जाता है। उसके बाद भी उस स्थान को और भी अच्छे से साफ कर आगे की डस्टबीन में डाल दिया जाता है। ये सारा काम डॉगी का मालिक या मालकिन ऐसे करते हैं, मानों वह उनका अपना ही काम हो। सफाई के प्रति संवेदना यहीं से जागती है। हमें वहां तक पहुंचने में काफी वक्त लगेगा।
चिड़ियों की चहचहाट के साथ सुबह अब आगे बढ़ चुकी है, अब तो स्कूल की बसें में दिखाई देने लगी है। अखबार बांटने वाले युवा भी दिखाई देने लगे हैं। जो तेजी से अपना काम कर रहे होते हैं, क्योंकि इन्हीं में से कुछ को स्कूल और कॉलेज जाना हाेता है। अब सड़क पर काफी लोग दिखने लगे हैं। जिसमें युवतियां भी शामिल हैं। ऐसे में तीन युवकों के साथ एक युवती भी दिखाई दे जाए, तो आश्चर्य होता है। वह इसलिए कि वे किसी कंपनी के द्वारा अपने उत्पाद को बेचने के उद्देश्य से लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं। युवती इसलिए शामिल होती है कि सुबह सैर को निकली अन्य युवती को स्वास्थ्य परीक्षण कराने में किसी प्रकार की झिझक महसूस न हो। सोचता हूं कितने कठोर होते हैं कंपनी के नियम। ये सैर को नहीं निकले हैं, बल्कि अपने उत्पाद के प्रचार के लिए उन्होंने सुबह का समय चुना है। अब तो मंदिरों के घंटों की आवाजें भी आने लगी हैं। इस दौरान देखा गया कि सचमुच लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील हैं, क्योंकि सुबह की सैर को निकले बुजुर्गों या युवाओं को धूम्रपान करते नहीं देखा। शायद सेहत के सामने इसकी नहीं चलती। एक बात यह भी नोटिस की, किसी चेहरे पर खीझ नहीं होती। लोग इत्मीनान से चलते हुए आगे बढ़ते हैं। कुछ लोग मोबाइल से भजन सुनते हैं, तो कुछ लोग आधुनिक गीत। पर ये संगीत कभी कानफोड़ नहीं होता। मोबाइलधारी इसका विशेष खयाल रखते हैं, तब वे ईयरफोन का इस्तेमाल करते हैं। संगीत उन्हीं तक सीमित होता है।
सुबह के इन संयोगों के दर्शन केवल उन्हें ही होते हैं, जो सेहत के अलावा अपना अनुशासित जीवन जीना चाहते हैं। जो सुबह जल्दी उठते हैं, उनका दिन भी अच्छे से गुजरता है। सारे काम आराम से निपटते हैं। दोपहर नींद का हल्का और प्यारा सा झोंका भी आता है। जो केवल 15 या 20 मिनट में ही तरोताजा कर देता है। यह झोंका सुबह की मीठी नींद से भी प्यारा होता है। संकल्प के साथ शुरू हुई जीवन की यह सुबह हमें कई संदेश दे जाती है। तो आओ, इन संदेशों को जानने-समझने की एक छोटी-सी शुरुआत करते हैं, सुबह जल्दी उठकर, नींद से नाता तोड़कर, रजाई को एक और फेंककर। एक कोशिश...बस एक कोशिश.....
डॉ. महेश परिमल
Bahut achchha.
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