डॉ. महेश परिमल
सहिष्णुता
की बात करना अच्छा लगता है, पर सहिष्णु बनना बहुत मुश्किल काम है। दुनिया
भर के लोग तमाम तरह के जुनून से ग्रस्त हैं। इसमें भारत के लोगों का भी
समावेश किया जा सकता है। किसी को धर्म का जुनून है, तो किसी को भाषा का।
भारत में मुस्लिमों पर मजहब का जुनूनी होने का आरोप लगाया जाता है, तो
हिंदू, जैन और ईसाई भी कम मजहब जुनूनी नहीं हैं। हर कोई इसी जुनूनियत से
बुरी तरह से ग्रस्त दिखाई दे रहा है। सभी को अपने धर्म पर गर्व होना ही
चाहिए, पर यह गर्वोक्ति कहां तक सार्थक है कि केवल मेरा धर्म ही सबसे महान
है, इसे ही अंगीकार किया जाए। दूसरी ओर असांप्रदायिककता वादियों के जुनून
में किसी धार्मिक मनुष्य को कुचलकर आगे बढ़ जाने की प्रवृत्ति भी देखी जा
रही है। पूंजीवादी अपनी विचारधारा में बहते हुए जितने अधिक जुनूनी होते
हैं, उससे अधिक तो साम्यवादी हातेे हैं। हमारे देश में नारीवादियों को भी
अपने अधिकार के लिए आक्रामक बनते देखा गया है। इस संदर्भ में जब आमिर खान
का यह बयान सामने आया कि मेरी पत्नी कहती है कि अब भारत में रहने लायक
हालात नहीं है। तो ऐसा कहकर आमिर ने देश की प्रजा की कसौटी को परखा है।
इसके बाद पूरे देश ही नहीं बल्कि सात समुंदर पार से भी जो प्रतिक्रियाएं
आईं, उसे देखकर लगता है कि उस कसौटी में हम सब विफल हो गए। आमिर के बयान पर
हमारी प्रतिक्रियाएं थी, वे ही असहिष्णु थी। ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं
कि हम सहिष्णु हैं। आमिर की पत्नी किरण राव ने आज के भारत के हालात को
देखकर कहा था कि अब उन्हें इस देश में रहने से डर लग रहा है। यह बात
उन्होंने अपने कलाकार पति से की थी। अब आमिर इस बात को बिना विचारे जगजाहिर
कर दिया। पर बयान के बाद आई प्रतिक्रियाओं से जिस तरह का विरोध हो रहा है,
उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि आमिर खान या उनकी पत्नी का डर सच्चा साबित
हुआ।
हिंदूवादी पहले से ही आमिर खान का विरोध करते आ रहे हैं। उनकी प्रतिक्रिया
कुछ ऐसी थी कि यदि उन्हें भारत में डर लग रहा है, तो वे पाकिस्तान चले
जाएं। यदि वे पाकिस्तान जाना चाहें, तो उनके लिए टिकट की व्यवस्था भी की जा
सकती है। देश ने जिसे इतना सब कुछ दिया है, तो उसकी आलोचना करने की हिम्मत
आई कैसे तुममें? आखिर क्यों वेवकूफ हिंदू मुस्लिम कलाकारों के बारे में इस
तरह से कहने की आवश्यकता पड़ी? आमिर के चक्कर में इन हिंदूवादियों ने सलमान
और शाहरुख को भी लपेटे में ले लिया। इसके पहले आमिर की फिल्म ‘पीके’ में
धर्मभीरु लोगों पर कटाक्ष किया था, तब भी उनकी लोगों ने काफी खिल्ली उड़ाई
थी। तब भी आमिर खान के पोस्टर फाड़े और जलाए गए थे। उनकी यह दलील थी कि
आमिर खान ने इस्लाम के खिलाफ कटाक्ष क्यों नहीं किया? इस संदर्भ में जब
संगीतकार ए.आर. रहमान भी आमिर के साथ खड़े हो गए, तब लोगों को लगा कि इस
मामले में आमिर अकेले नहीं हैं। रहमान को भी मुस्लिम कट्टरपंथियों ने धमकी
दी थी। ईरान में बनी मोहम्मद पैगम्बर पर फिल्म में इस्लाम पर किसी तरह की
टिप्पणी नहीं की गई है और न ही मोहम्मद पैगम्बर का अपमान किया गया है। इसके
बाद भी केवल उस फिल्म में संगीत देने के एवज में मुम्बई की रजा अकादमी ने
रहमान का बहिष्कार करने की अपील की थी। आमिर ने हिंदू धर्मालंबियों का
गुस्सा देखने को मिला, उसी तरह रहमान को मुस्लिम धर्मालंबियों की नाराजगी
का शिकार होना पड़ा। ऐसे कई लोग हैं, जो विभिन्न धर्मों के लोगों के शिकार
होते ही रहते हैं। उनकी कोई खबर नहीं आती, पर ये सेलिब्रिटी हैं, इसलिए
इनके बारे में कुछ भी कहा जा सकता है। इनके बयान भी तुरंत सुर्खियां बन
जाते हैं।
आमिर भी भारत के 18 करोड़ मुस्लिमों की तरह देश का एक नागरिक है। उसे देश
में किसी भी प्रकार का डर लगता है, तो उसे कहने का अधिकार है। पर उसके कारण
उसे देशद्रोही करार देना न्यायोचित नहीं है। कानपुर की अदालत में मनोज
कुमार दीक्षित नामके वकील ने आमिर खान पर राजद्रोह के तहत मुकदमा चलाने की
अनुमति मांगकर हद ही कर दी। सेशन्स कोर्ट ने यह अपील पर तीन दिसम्बर को
सुनवाई करने के लिए कहा है। हमारी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को शांत
करने के लिए असहिष्णु बन जाती है। इसके अलावा ब्रिटिश सरकार द्वारा तैयार
किए गए राजद्रोह के कानून का दुरुपयोग भी किया जा रहा है। इसी आधार पर आमिर
को परेशान करने की कोिशश की जा रही है। हमारे देश में ऐसा है कि जिस
व्यक्ति की चमड़ी को थोड़ा सा छिल दिया जाए, तो उसमें से असहिष्णुता के वाइरस
निकलने लगते हैं। दादरी में गाय के संभावित हत्यारे को शंका के आधार पर
जला दिया गया, तो मेंगलोर मंे गाय की रक्षा करने के लिए निकले हिंदू युवा
की हत्या कर दी गई। हमारा मीडिया हिंदुओं की असहिष्णुता को जितना अधिक
बढ़ाचढ़ाकर दिखाता है, उतना मुस्लिमों की असहिष्णुता को कभी नहीं बताता।
हमारे देश में असहिष्णुता बहुत बढ़ गई है, इसी आक्षेप के साथ अवार्ड वापस
करने वाले कितने जुनूनी बन गए हैं। उन्होेंने इस असहिष्णुता के प्रति
थोड़ी-सी भी सहिष्णुता दिखाई होती, तो छोटी सी बात इतनी अधिक तूल नहीं
पकड़ती। आमिर का विरोध करने वाले ही अब उनकी हिंदू पत्नी किरण राव को भी
चपेट में ले लिया है। वे अब किरण को यह सलाह देने लगे हैं कि यदि आमिर भारत
में ही रहकर तुम्हारी रक्षा नहीं करने में सक्षम नहीं हैं, तो देश छोड़ने
के बदले आमिर को ही छोड़ देना चाहिए। इस सलाह में हमें कहीं भी शालीनता
दिखाई नहीं देती, न ही नारी के प्रति अच्छे विचारों का प्रादुर्भाव होता
है। भारत की प्रजा असहिष्णु है, यह सच है, पर दुनिया के अन्य नागरिक भी
हमसे अधिक असहिष्णु हैं। इसलिए आमिर को यह समझ लेना चाहिए कि भारत छोड़कर वे
अन्य किसी देश में बस सकते हैं, ऐसा वे सोच भी नहीं सकते।
यह भी सच है कि आमिर अपने बयान पर अडिग रहते हुए यह भी कहा है कि भारत भी
मेरा देश है, मैं इस देश में रहकर गर्व का अनुभव करता हूँ। देश छोड़ने का
मेरा कोई इरादा नहीं है। पर एक सवाल आमिर से हर कोई पूछना चाहता है कि जब
वे अपनी फिल्म में हिंदू धर्म के पाखंड की पोल खोल रहे थे, तब उस फिल्म ने
आय के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। कुछ हद तक मुस्लिमों और ईसाई समाज में भी
हो रहे पाखंड पर भी कटाक्ष किया गया था, पर मुख्य रूप से कटाक्ष तो हिंदू
धर्म के पाखंडों को ही दर्शाया गया था। इसके बाद भी फिल्म सुपर-डुपर हिट
रही, क्योंकि अधिकांश दर्शक भी धार्मिक पाखंडों, ढोंग और अंधश्रद्धा के
खिलाफ पीके के सवालो को स्वीकार किया। इस मानसिकता में खुलापन नहीं है, तो
आखिर क्या है? तब किरण राव को भारत में रहने पर डर नहीं लगा? बस यही सवाल
है, जो आज हर भारतीय जानना चाहता है। हिंदू धर्म कितना सहिष्णु है, इस बात
का अंदाजा इस बात से साफ लग जाता है कि हमारे यहां लक्ष्मी पटाखे, गणेश छाप
बीड़ी भी मिल जाएंगी, पर हमारे विरोध कभी नहीं होता। पर ऐसा यदि दूसरे
धर्मों में हो, तो हंगामा हो जाएगा। यही देश है, जहाँ जीसस क्राइस्ट पर
बनने वाला धारावाहिक बीच में ही बंद कर दिया जाता है, इस्लाम के बारे में
आज तक किसी ने धारावाहिक से बताने की कोशिश भी नहीं की। संजय खान बजरंग बली
पर धारावाहिक बना सकते हैं, जो हिट भी साबित हो सकता है। टीपू सुल्तान पर
धारावाहिक बना सकते हैं, पर इस्लाम आखिर क्या है, यह बताने का साहस आज तक
जुटा नहीं पाए। तो आखिर सहिष्णु कौन है?
डॉ. महेश परिमल
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