अमेरिका के दो बैंक बंद हो गए, अब तीसरा बैंक भी बंद होने वाला है। इसके अलावा सात और बंद पर भी तलवार लटक रही है। इससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि अब पूरा विश्व आर्थिक मंदी की चपेट में आने वाला है। सिलिकॉन वेली के बंद होने से भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के विकसित देशों की नींद हराम हो गई है। अमेरिकी बैंकिंग सेक्टर में इस समय जो सुनामी आई है, उससे हर देश प्रभावित हो रहा है। पहले सिलिकॉन वैली बैंक फिर सिग्नेचर बैंक के बाद अब तीसरे बैंक की हालत खराब है। सिलिकॉन बैंक के बारे में तो यह कहा गया है कि जिस तरह से यह बैंक रातों-रात प्रसिद्ध हो गई थी, ठीक उसी तरह रातों-रात यह रसातल में भी पहुंच गई है। इसीलिए आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि अपनी सारी जमा-पूंजी किसी एक बैंक में न रखें।
अडानी के शेयर जब गिरने लगे थे, तक अमेरिका खुश हो गया था। अब अब हालात बदल गए हैं। अब उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा है। सिलिकॉन बैंक के बंद होने से भारत में आईटी क्षेत्र पर होने वाले कम निवेश से एक आघात अवश्य लगेगा, पर विश्वास है कि इस चुनौती का भी भारत मुकाबला कर लेगा। हमारे देश में भी सहकारी बैंक रातों-रात उठ जाते हैं, फिर उनमें कब ताला लग जाता है, पता ही नहीं चलता। सिलिकॉन वेली में गूगल, माइक्रोसाफ्ट, एपल, फेसबुक, इंस्टाग्राम, वीसा, मास्टर कार्ड, शेवरोन, वेल्स फार्गो जैसे अनेक कंपनियां हैं, ऐसी बैंक यदि रातों-रात बंद हो जाए, तो इसे आश्चर्य ही माना जाएगा।
विश्व की प्रतिष्ठित आर्थिक मैगजीन "फोर्ब्स" की तरफ से सिलिकॉन वेली को एक श्रेष्ठ बैंक निरुपित किया था। बंद होने के 5 दिन पहले ही सिलिकॉन वेली ने यह घोषणा की थी कि "फोर्ब्स" ने हमें श्रेष्ठ बैंक कहा है। इस पर हम गौरवान्वित हैं। भारत के लिए "फोर्ब्स" का कहा गया एक-एक वाक्य किसी ब्रह्म वाक्य से कम नहीं होता। इन हालात में अब फोर्ब्स की रेकिंग भी संदेह के दायरे में आ गई है। भारत के स्टार्ट-अप पर अमेरिकी बैंक के बंद होने का सीधा असर हो सकता है। एक आम आदमी बैंक में किसी सपने की तरह अपनी जमा-पूंजी रखता है। जिससे वह उस राशि का ब्याज प्राप्त करता है। वही बैंक हमारे ही धन को दूसरे को कर्ज के रूप में देता है, उससे वह ब्याज कमाता है। इस तरह से वह अपनी कमाई करता है। उसके बाद भी उसका हाथ ऊपर ही होता है। सिलिकॉन वेली में करोड़ों डॉलर का लेन-देन होता था। इस बैंक में दिग्गज तकनीकी कंपनियों के 100 मिलियन डॉलर जैसे डिपॉजिट वेंचर कैपिटल फंड से आए थे। इस वेंचर कैपिटल फंड के लिए सिलिकॉन वैली बैंक एक ऐसा प्लेटफॉर्म था, जहां से टेक कंपनियां पैसे जुटाती थीं। बैंकों को भी आमदनी बढ़ानी है, इसलिए सिलिकॉन वैली बैंक ने लोगों का पैसा सरकारी बॉन्ड में लगाया। हर देश की सरकारें अपने खर्चों को निकालने के लिए लोगों को सरकारी बॉण्ड योजनाओं में आमंत्रित करती हैं। सरकारी बॉण्ड में निवेश सबसे अधिक सुरक्षित माना जाता है। सिलिकॉन बैंक ने भी अमेरिकी सरकारी बॉण्ड खरीदा था, बस मुश्किलें तभी से बढ़ना शुरू हाे गई।
सिलिकॉन वेली बैंक ने जो बॉण्ड लिए थे, वे लम्बे समय के लिए थे। इसमें ब्याज दर कम थी। बॉण्ड मार्केट की प्रतिस्पर्धा में टिक पाए, ऐसे नहीं थे। इसमें ब्याज बढ़ने से उसकी कीमत गिरती चली गई। बैंक के पास 117 बिलियन डॉलर के बॉण्ड थे। जब उसे खरीदा गया था, तब उसकी कीमत 127 बिलियन डॉलर थी। इसमें ब्याज चुकाने के बाद बैंक की सारी राशि एक ही रात में डूब गई। जमाकर्ताओं को लगभग ढाई मिलियन डॉलर तक की राशि चुकाने में कोई कठिनाई नहीं होती है, लेकिन जिन्होंने इससे अधिक पैसा जमा किया है, उनकी परेशानी बढ़ गई है। बैंक के पास लगभग 151 बिलियन डॉलर असुरक्षित थे। यह राशि अब डूबत खाते में गई मान लो। सबसे अधिक नुकसान (करीब 487 मिलियन डॉलर) रोकू नामक कपंनी ने गंवाए हैं। ब्लॉक फी नामक क्रिप्टो कंपनी को 227 मिलियन का नुकसान हुआ है।
बैंकों में नागरिकों के सपने पलते हैं। जिस बैंक से वे कर्ज लेते हैं, उसी बैंक में वे अपने पसीने की कमाई भी जमा करते हैं, ताकि मुसीबत में वह राशि काम आए। पर जब बैंक में वही राशि खतरे में पड़ जाए, तो नागरिकों के सपनों का आहत होना लाजिमी है। बैंक इंसानों के सपनों को पालता है। उसे संवारता है। पर वही बैंक जब इंसानों के सपनों को कुचलने की कोशिश करता है, तो इंसानों की हाय उस बैंक पर भारी पड़ती है।
डॉ. महेश परिमल
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