हम सब उत्सवप्रेमी हैं। उत्सव मनाना हमें अच्छा लगता है। उत्सव के लिए हमें चाहिए व्यक्ति और इससे अपने आप ही जुड़ जाता है शोर। जैसे ही एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलता है, तो खामोशी वहां से विदा ले लेती है। रह जाता है केवल शोर। यह व्यक्तियों के आपस में मिलने का एक उपक्रम है। कहा गया है कि भीड़ के पास विवेक नहीं होता। भीड़ में केवल सिर ही होते हैं। इनसे किसी अच्छी चीज की कल्पना ही नहीं करनी चाहिए। यही कारण है कि आज जहां देखो, वहां भीड़ है। ये भीड़ कुछ भी कर सकती है। क्योंकि ये व्यक्तियों की नहीं, बल्कि अज्ञानियों की भीड़ होती है। अज्ञानी कहीं भी कुछ भी कर अपनी इस प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते हैं। यही प्रदर्शन आजकल कई स्थानों पर देखा जा रहा है। इस बार हमने देखा और जाना कि किस तरह से आस्था का सैलाब उमड़ा, भक्ति के रंग में रमा भीड़ तंत्र एक बार फिर मौत का सामना करता हुआ दिखाई दिया। लोगों को कुचलते हुए निकल गई मौत। बेबस इंसान कुछ नहीं कर पाया। प्रबंधन वह भी ई प्रबंधन के सारे प्रयास निष्फल साबित हुए। भीड़ नाम की मौत आई और शायद 30 लोगों को लील गई। कई घायल हैं, जो इलाज के लिए अस्पतालों में कैद हैं। इसके पहले भी देश में भीड़ तंत्र ने कई बार तबाही मचाई है। इस बार भी वही हुआ, जिसका अंदेशा था। आखिर भीड़ में कहां चली जाती है इंसानियत? भीड़ में व्यग्रता होती है। उतावलापन दिखाई देता है। धैर्य से इसका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता। इसलिए धक्का-मुक्की भीड़ के लिए साधारण-सी बात है।
शुक्रवार, 31 जनवरी 2025
...और मौत कुचलते हुए निकल गई...

गुरुवार, 30 जनवरी 2025
एंबुलेंस की स्टीयरिंग पर क्विक कॉमर्स का हाथ
क्विक कॉमर्स की घोषणा और हमारी मानसिकता
हाल ही में क्विक कॉमर्स ने घोषणा की है कि उसके कदम अब अब एम्बुलेंस सेवा के क्षेत्र की ओर बढ़ रहे हैं। वह सूचना मिलने के दस मिनट के भीतर मरीज तक पहुंच जाएगी। इस घोषणा से त्वरित सेवा के कई परिदृश्यों में बदलाव आएगा, यह तय है। इसके बारे में कुछ जानने के पहले यह जान लें कि आखिर यह क्विक कामर्स है क्या? क्यू-कॉमर्स, जिसे क्विक कॉमर्स भी कहा जाता है, एक प्रकार का ई-कॉमर्स है, जिसमें आमतौर पर एक घंटे से भी कम समय में त्वरित डिलीवरी पर जोर दिया जाता है। क्यू-कॉमर्स मूल रूप से खाद्य वितरण के साथ शुरू हुआ था और यह अभी भी व्यवसाय का सबसे बड़ा हिस्सा है। यह विशेष रूप से किराने की डिलीवरी, दवाओं, उपहारों और परिधान आदि के लिए अन्य श्रेणियों में तेजी से फैल गया है।
आखिर क्विक कामर्स को एम्बुलेंस सेवा के क्षेत्र में आने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पेीछे हमारे देश में होने वाली सड़क दुर्घटनाएं हैं। जिसमें हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवाते हैं। इनमें से 50 प्रतिशत वे लोग होते हैं, जिन्हें तुरंत चिकित्सा सुविधा मिल जाती, तो उनकी जान बच सकती थी। अब यदि आंकड़ों पर नजर डालें, तो हमें पता चलेगा कि 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में 1 लाख 70 हजार 924 लोग काल-कवलित हुए। लोग बार-बार कहते हैं कि यदि 108 समय पर पहुंच जाती, तो दुर्घटना के शिकार व्यक्तियों की जान बच सकती थी। एम्बुलेंस पर यह आरोप लगाया बहुत ही आसान है। इस पर केवल ऊंगलियां ही उठती हैं। इनकी नजर से भी एक बार हालात को देख लिया जाए, तो हमें शर्म भी आने लगेगी। खैर सरकारी एम्बुलेंस के अलावा प्राइवेट अस्पतालों की भी एम्बुलेंस होती हैं, जो सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं।
अब जब कंपनी यह दावा कर रही है कि वह दस मिनट के भीतर मरीज तक पहुँच जाएगी, तो आश्चर्य होता है। सबसे पहले तो हमारे देश की सड़कें, उसके बाद वह मानसिकता, जिसमें हम सब कैद हैं। आज जहां समय पर पहुंचकर भी फायर ब्रिगेड अपना काम सही तरीके से नहीं कर पा रही है, उसके पीछे हमारी ओछी मानसिकता ही है। छोटी-तंग गलियां, उस पर अतिक्रमण, जहां किसी तरह से वाहन का निकल जाना ही बहुत बड़ी बात है। ऐसे में एक एम्बुलेंस किस तरह से सही समय पर मरीज तक पहुँच पाएगी। यह एक बहुत बड़ा सवाल है।
आज जब हम सड़कों पर चलते हैं, तो एम्बुलेंस को जगह देने के बजाए अपना वाहन और तेजी से चलाने लगते हैं। एम्बुलेंस को अनदेखा करते हुए अपने बाजू वाले साथी से बात करना नहीं छोड़ते। साथी के साथ समानांतर अपना वाहन चलाते रहते हैं। ऐसे में एम्बुलेंस दुर्घटनास्थल के काफी करीब होने के बाद भी मरीज के पास समय पर कैसे पहुंच पाएगी, यह भी एक बड़ा सवाल है। यातायात नियमों को जानते हुए भी उसे तोड़ने में हमें मजा आता है। हममें 5 सेकेंड का भी सब्र नहीं है। लाल लाइट बुझने के पहले ही हम अपना वाहन आगे बढ़ा देते हैं। यदि हम हरी लाइट का इंतजार करें, तो पीछे के वाहनों के हार्न तेजी से बजने लगते हैं। ऐसे में हम कैसे कह दें कि एम्बुलेंस को जगह देकर उसे आगे बढ़ने में मदद करेंगै?
सबसे पहले हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा। सभी काम आसानी से पूरे हो सकते हैं, यदि हममें थोड़ा-सा भी घैर्य हो। हममें धैर्य नहीं है। यातायात किे नियमों को ताक पर रखकर हम अपना वाहन चलाते हैं। पकड़े जाने पर खुद के रसूखदार होने का सबूत देते फिरते हैं। किसी भी दृष्टि से हमें आम आदमी बनना ही नहीं आता। हमेशा वीआईपी होने का लबादा ओढ़े रखना चाहते हैं। इसके विपरीत यदि उनके सामने वास्तव में कोई वीआईपी आ जाए, तो घिग्घी बंध जाती है। कोई सरफिरा अफसर ही मिल जाए, तो सारी हेकड़ी भूल जाते हैं। केवल 40-50 रुपए के टोल टैक्स के लिए कर्मचारियों से हुज्जत करने वाले बहुत से लोग मिल जाएंगे। 50 रुपए टिप देना अपनी शान समझने वालों के लिए 50 रुपए टोल टैक्स देना बहुत मुश्किल लगता है।
इन हालात में कोई यह घोषणा करे कि हमारी एम्बुलेंस दस मिनट में दुर्घटनास्थल पर पहुंच जाएगी, तो यह कपोल-कल्पित लगता है। विशेषकर हमारी ओछी मानसिकता के चलते।
हमारे देश में सभी चाहते हैं कि सारी बातें व्यवस्थित हों, कोई भी अव्यवस्था न हो। पर व्यवस्था के चलते अव्यवस्थित होना हमें अच्छी तरह से आता है। एयरपोर्ट के बाहर हम अपने हाथ का कचरा कहीं भी फेंक सकते हैं, लेकिन एयरपोर्ट में प्रवेश के बाद हम उसी कचरे को फेंकने के लिए डस्टबिन तलाशते हैं। ये कैसी मानसिकता? इस दृष्टि से देखा जाए, तो हमारे भीतर एक अच्छा इंसान है, पर हम ही इसे बाहर नहीं निकालना चाहते। संभव है, हालात ही उस इंसान को बाहर नहीं आने देते होंगे। कुछ भी कहो, हमारे भीतर का अच्छा इंसान बाहर आ ही नहीं पाता। हम ही उसे दबोचकर रखते हैं। इस बीच हमारे बीच में से कोई यातायात के नियमों का पूरी तरह से पालन करता दिखाई देता है, तो हम उसे मूर्ख समझते हैं। यह समझ उस समय काफूर हो जाती है, जब वही चालान के जूझता नजर आता है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि आज हमें कानून से खिलवाड़ करने में हमें कोई गिला नहीं होता। जिस दिन हम यह समझने लगेंगे कि आज ग्रीन लाइट होने के 5 सेकेंड पहले हमें अपना वाहन आगे नहीं बढ़ाना था, तो यह सोच धीरे-धीरे पल्लवित होगी और आगे भी बड़ी सोच का कारण बनेगी। 20 से 50 सेकेंड लगते हैं, लाल को ग्रीन होने में। इस बीच यदि आजू-बाजू के साथी को थोड़ी-सी मुस्कराहट देकर तो देखो, कितना अच्छा लगता है? उसे भी और आपको भी। संभव है कुछ समय बाद वह आपका सच्चा साथी बन जाए। मुस्कराहट देने से हमारा कुछ जाएगा नहीं, पर सामने वाले का दिन अवश्य ही अच्छा जाएगा। यह तय है। एक बार अपनी मुस्कराहट देकर तो देखो...नवजीवन आपका प्रतीक्षा कर रहा है।
डॉ. महेश परिमल

शनिवार, 25 जनवरी 2025
मतदाता दिवस-दाता होकर भी गरीब

सोमवार, 20 जनवरी 2025
चीनी मांझे से टूटती जिंदगी की डोर

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