जय राम जी की, के भीतर छिपी अदृश्य भावना
आसान है राममय होना, मुश्किल है राम होना
डॉ. महेश परिमल
आजकल पूरे देश में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में राम की ही चर्चा है। विश्व भले ही राममय नहीं हो पाया हो, पर देश पूरी तरह से राममय हो गया है। सोशल मीडिया के केंद्र में राम ही हैं। राम के बिना अब कुछ भी संभव नहीं है। राम ही हमारे जीवन का आधार हैं, राम ही हमारी जीवन नैया को पार लगाएंगे। अखबारों की बात ही न पूछो, वे तो राम पर श्रृंखलाबद्ध कुछ न कुछ लिख रहे हैं। अखबार का शायद ही कोई पन्ना हो, जिसमें राम की चर्चा न हो। यहां चर्चा का विषय राम नहीं, बल्कि राममय होना है। क्योंकि राममय होना तो बहुत ही आसान है, पर राम होना उससे भी अधिक मुश्किल है। बहुत अंतर है राम में और राम का होने में।
कुछ दिनों पहले अपने जन्म स्थान जाना हुआ। 44 साल पहले जिस शहर को छोड़ दिया हो, वहां जाना यानी एकदम नई पीढ़ी के सामने होना। पुरानी पीढ़ी तो न जाने कब की चल बसी। आज वहां जो भी मिलता है, उसे अपना परिचय अपने पिता या भाई के नाम से नहीं देना होता है। उसे अपने भाई के बच्चों का चाचा बताना होता है, तब वह पीढ़ी पहचान पाती है। ऐसे में कहीं भी चले जाएं, भले ही सामने वाला हमें न पहचानता हो, पर एक बात तय है, वह अपनी तरफ से जय राम जी की अवश्य कहता है। प्रत्युत्तर में हम हाथ उठाकर वही वाक्यांश दोहरा देते हैं। शहरों में ऐसा नहीं होता, गांवों में होता है। शहरों ने अब चालाकी सीख ली है। गांव के लोग अभी भी भोले-भाले हैं। शहर में जब किसी का किसी से कोई लेना-देना ही नहीं है, तो काहे को बोलें-जय राम जी की। हाथ उठाने की भी जहमत क्यों उठाएं? गांव में कोई अनजाना दिख जाए, तो हाथ खुद ब खुद उठ जाता है, मुंह से निकल ही आता है...जय राम जी की।
आखिर ऐसा अभिवादन क्यों? क्या है राम में? शायद इसका आशय यही है कि मैं आपके भीतर के राम को प्रणाम करता हूं। मतलब यही है कि हम सबके भीतर राम हैं। हम सब उसे जगाने का प्रयास करते रहते हैं। आप क्या करते हैं, इससे हमें कोई मतलब नहीं, हम तो आपके राम को अपने भीतर के राम से परिचय करवाते हैं और बोल उठते हैं...जय राम जी की। आप क्या करके आए हैं, आप क्या करने जो रहे हैं, हम तो कुछ भी नहीं जानते, आप सामने आए और हमने कह दिया..जय राम जी की। आखिर इस राम में ऐसा क्या है, जो सबके भीतर बसते भी हैं और बाहर दिखाई भी नहीं देते। वास्तव में राम के कार्य ही हैं, जो हमें उसका परिचय देते हैं। कष्टों को भी अपने अनुकूल बनाकर जो सब कुछ निभा ले जाए, वह है राम। विषम परिस्थितियों को भी सरल बना दे, वह है राम। बड़ी से बड़ी विपदा में शांत चित्त होकर धैर्य के साथ उनका मुकाबला करने की क्रिया है राम। क्या हममें है, उतनी सहनशक्ति या सहज भाव से सब कुछ ग्रहण करने की क्षमता?
नहीं, ऐसा संभव भी नहीं है। हमारे राम तो हमारे कार्य के साथ नहीं होते। न ही वे हमारे विचारों के साथ होते हैं। वे होते हैं, टीवी पर घंटों तक भाषण करने वाले हमारे तथाकथित साधु-संतों के पास। जो सादा जीवन जीने की बात तो करते हैं, पर अपने वाणी-विलास की फीस लाखों में लेते हैं। उनकी तथाकथित कैमरे के सामने लगनी वाली भीड़ भी दिखावे का मुखौटा लगाकर आती है। बस किसी तरह हम कैमरे में आ जाएं, ताकि लोग हमें देख सकें। हमारे शालीन होने का नाटक देखें, हमारे सुंदर वस्त्रों को देखें। फिर बाद में वे हमारे वस्त्र, हमारे नाटक और हमारी प्रशंसा में कुछ कहें।
आजकल समाज में दिखावे के राम अधिक हैं। वरण करने वाले राम नहीं के बराबर। यहां पर हम देख रहे हैं कि राममय होना कितना आसान है। पर राम बनना कितना मुश्किल है। हममें से कौन ऐसा होगा, जिसे सुबह राजा होना है, वह सुबह होने के पहले ही वनवासी बनकर जंगलों में जाने का साहस रखता हो। यहीं है, राम बनने का दुर्गम रास्ता। राम जैसी सादगी पाने के लिए भी काफी संघर्ष करना होता है, उसके बाद भी हम उनके पांव की धूल के बराबर भी नहीं हो पाते। आज स्वार्थ और दिखावे की दुनिया में राममय होना बहुत ही आसान हो गया है, पर राम बनकर दुर्गम रास्ता चुनना बहुत दुरुह है।
जय राम जी की, कहकर हम सब परस्पर अपने राम को जगाते हैं। राम जागें या न जागें, पर हमारा प्रयास उन्हें जगाने का अवश्य होता है। आज की दुनिया में राम जाग भी नहीं सकते। क्योंकि दुनिया दिखावे की है। जो दिखावे के लिए होता है, वह क्षणभंगुर होता है। दिखावा यानी झूठ का आलीशान महल। सच की झोपड़ी में यह इमारत नहीं समा सकती। सच झोपड़ी में ही सुशोभित होता है। यह महलों में तब सुशोभित होगा, जब वहां भीतर के राम जागते हुए पाए जाएंगे।
...तो जय राम जी की कहकर, हम सब अपने-अपने राम को परिचय स्वयं से करते हैं। हम सब जय राम जी की, बोलते रहेंगे, हमारे राम हम पर प्रसन्न होते रहेंगे। राम का प्रसन्न होना हमें यह बताता है कि आज हमसे कोई न कोई अच्छा कार्य होना है। बिना किसी तामझाम, मीडिया, या कैमरे वाले को सूचना दिए। अच्छे काम का चुपचाप होना ही राम बनने की पहली सीढ़ी है। ऐसे राम बहुत ही कम मिलते हैं। कहना यह होगा कि मिलते ही नहीं है। वे लोग कुछ अच्छा करने जाएं, उसके पहले ही मीडिया को सूचना मिल जाती है। अच्छा करने के लिए अच्छा सोचना होता है। अच्छा सोचना सदैव यह सूचना देता है कि यह बात किसी को भी पता न चले। आपने अच्छा काम कर दिया, उसकी सूचना किसी को नहीं मिली, तो यही मौन ही आपको संतुष्टि देगा। आपके भीतर के राम को बहुत ही प्यार से निहारेगा। हम सब ऐसे ही राम को निहारते रहें, अच्छे काम करते रहें, यही कामना...जय राम जी की...
डॉ. महेश परिमल