गुरुवार, 7 जनवरी 2010

अपराधियों की कठपुतली बन गए हैं राजनेता


मधुकर द्विवेदी
राजनीति के क्षेत्र में जिस तरह से अपराधियों की घुसपैठ बढ़ती जा रही है या यूं कहें कि राजनीति का अपराधीकरण हो गया है, वह वाकई पूरे समाज के लिए गहन चिन्ता का विषय है। कुछ सालों पूर्व जब समाचार पत्रों में यह खबर प्रकाशित होती थी कि अमुक राजनैतिक दल ने किसी ऐसे व्यक्ति को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है अथवा उसे चुनाव लड़ने के लिए टिकट दे दिया है जिसका वास्ता आपराधिक दुनिया से है, तो उसकी जबर्दस्त प्रतिक्रिया होती थी परन्तु आज स्थिति यह है कि प्राय: सभी राजनैतिक दल एक ही रंग में रंगे नजर आते हैं और राजनीति में आदर्श व सिद्धांत कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। राजनैतिक दलों में अपराधियों को चश्म-ए-नूर बनाने की होड़-सी लगी हुई है और राजनेता अपराधियों की कठपुतली बनकर उनके पीछे दुम हिलाते नजर आ रहे हैं। अगर ऐसा न होता तो झारखंड की विधान सभा में ऐसे 31 विधायक चुनकर नहीं आ पाते, जिन पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। बानगी देखिए कि झारखंड मुक्ति मोर्चा, जिसके 18 विधायक चुनकर आए हैं, के 17 विधायक ऐसे हैं जिनके विरुद्ध विभिन्न प्रकार के आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं। सिर्फ मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की पुत्रवधू सीता सोरेन ही एक मात्र ऐसी विधायक हैं, जिनके विरुद्ध कोई अपराध पंजीबद्ध नहीं है।
राजनीति में शुचिता की बात करने वाले उन मठाधीश राजनीतिज्ञों को भी अब कतई शर्म नहीं आती, जो मंचों अथवा टीवी चैनलों में यह कहते हुए अक्सर नजर आते हैं कि हमारी पार्टी आपराधिक छवि वालों को कतई टिकट नहीं देती। ऐसा बड़बोलापन सिर्फ दिखावटी होता है, सच्चाई से कोसों दूर। चुनाव के वक्त सारे राजनैतिक दल अपराधी व बाहुबली नेताओं के सामने नतमस्तक हो जाते हैं। अपराधी टिकट हासिल करने के लिए नेता को भेंट-पूजा प्रस्तुत करता है और नेता चुनाव जीतने के लिए अपराधी तत्वों, गुंडों-बदमाशों व असामाजिक तत्वों का सहारा लेता है। नेता चुनाव जीत जाता है तो वह जीत अपराधी के खाते में दर्ज हो जाती है और यदि अपराधी जीत जाता है तो वह भी नेता जी की ही जीत मानी जाती है। दरअसल, कुछ सालों पूर्व तक राजनीति के क्षेत्र में अपराधी तत्वों का समावेश यदा-कदा सुनाई पड़ता था। इक्की-दुक्की राजनैतिक पार्टियां ही गंदे क्रियाकलापों में लिप्त व अपराध कर्म में शामिल लोगों को अपने साथ रखती थीं। मतदाता गंदी छवि व कुख्यात उम्मीदवार को नकार देते थे। चाहे संसद हो या फिर विधानसभा, अपराधी प्रवृत्ति के लोग वहां पहुंचने से वंचित रह जाते थे, मगर शनै:-शनै: अपराधियों और राजनेताओं का गठजोड़ इतनी तेजी से मजबूत होता गया कि आपराधिक छवि के लोग संसद व विधानसभा के माननीय सदस्य बनने लगे। इस घातक तालमेल ने ऐसा गुल खिलाया कि प्राय: सभी राज्यों में अपराधी किस्म के तथाकथित नेता बहुतायत में राज्यों की विधान सभाओं में नजर आने लगे। पिछले कुछ सालों के दौरान ऐसे तत्वों ने अपनी जड़ें काफी मजबूत कर ली हैं। अब तो आलम यह है कि यदि किसी कारणवश आपराधिक छवि का दागी नेता अपनी पार्टी से टिकट हासिल नहीं कर पाता तो किसी अन्य राजनैतिक पार्टी से टिकट जुगाड़ने में उसे देर नहीं लगती। किसी वजह से वह अपनी पार्टी से निकाल दिया जाता है तो दूसरी पार्टी उसका स्वागत करने के लिए तैयार खड़ी रहती है। लब्बोलुआब यह कि आज राजनीति में अपराधी तत्वों की भरमार हो गई है, उनकी पौ बारह है, कोई भी राजनैतिक पार्टी इस बीमारी से मुक्त नहीं है। यदि ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब राजनीति का क्षेत्र अपराधी तत्वों का एक संगठित गिरोह नजर आएगा और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी के भारत में चारों ओर हिंसा के पुरोधा ही नजर आएंगे। अपराधियों को गले का हार बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले ऐसे राजनीतिज्ञ मठाधीश आत्मचिंतन करें। अन्यथा सिद्धांतों की बात कहने वाले तथा राजनीति में आदर्शवाद का अलाप करने वाले राजनीतिज्ञों को भी एक तरह से अपराधी की ही श्रेणी में माना जाएगा क्योंकि उन्हीं की वजह से ही तो अपराधी राजनीति के क्षेत्र में शह पाते हैं।
मधुकर द्विवेदी

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