शनिवार, 2 जनवरी 2010
बन ही गया विश्व का पहला मोलीक्यूलर ट्रांजिस्टर
मोलीक्यूलर ट्रांजिस्टर बनाने में सफलता हासिल कर ली है। इलेक्ट्रानिक के क्षेत्र में इस कामयाबी को बहुत बडा़ कदम माना जा रहा है। आज से करीब साठ साल पहले बेल प्रयोगशाला में पहली बार प्रयोगात्मक ट्रांजिस्टर बनाए गए थे तब के बाद से अब जाकर वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में दूसरी बडी सफ्लता अजत कर समाप्ति की ओर बढ रहे वर्ष 2009 को इतिहास के पन्नों पर अंकित कर दिया। विज्ञान पत्रिका नेचर में छपे लेख के अनुसार एल विश्वविद्यालय और ग्वांजू इंस्टीटयूट आफ् साइंस एडं टेक्नोलाजी दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों के एक दल ने पता लगाया है कि रासायनिक पदार्थ बेंजीन का अणु जब स्वर्ण धातु के अणु के साथ जुडता है तो उसका व्यवहार एक सामान्य सिलिकान ट्रांजिस्टर की तरह हो जाता है। इस खोज के बाद यह माना जा सकता है कि वैज्ञानिकों ने नैनो विज्ञान के विकास के लिए एक और कदम बढा दिया है।
इस खोज की मदद से अब इलेक्ट्रानिक उपकरणों का आकार घटाने में मदद मिलेगी एवं कम्प्यूटरों की गणना में तेजी आ जाएगी। इसके अलावा आणविक कम्प्यूटर के विकास को भी बल मिलेगा। हालांकि जानकारों के अनुसार इस खोज के बाद भी आणविक कम्प्यूटर बनाने में अभी भी दशकों का समय लग सकता है।
वैज्ञानिक मार्क रीड ने दो दशक पहले 1990 में यह पता लगा लिया था कि किसी अकेले अणु को दो इलेक्ट्रिक संपर्कों के बीच रोका जा सकता है। तब से शोधकर्ता इस बात का प्रयास कर रहे थे कि इस खोज की मदद से क्रियाशील ट्रांजिस्टर अणु बना लिया जाए। वैज्ञानिकों का यह सपना अब जा कर ठोस आकार ले पाया है। खास बात यह है कि नया आविष्कार करने वाले वैज्ञानिकों के दल में स्वयं मार्क भी शामिल थे और मोलीक्यूलर ट्रांजिस्टर का आविष्कार उन्हीं के अध्ययन पर आधारित है। ट्रांजिस्टर प्राय आम समझ में पाकेट रेडियो को समझा जाता है लेकिन भौतिकी में इसका आशय रसोईघरों में इस्तेमाल होने वाली चिरौंजी की शक्ल वाले उन छोटे रंगीन उपकरणों से है जिसके कम से कम तीन सिरे होते हैं। इन्हें हम किसी भी इलेक्ट्रानिक उपकरण के भीतरी हिस्से में लगे देख सकते हैं। ट्रांजिस्टरों को अर्ध्दचालक भी कहा जाता है। ट्रांजिस्टरों का मूल काम इलेक्ट्रिक संकेतों के संवर्धन का होता है। इनका विकास वैक्यूम टयूबों को प्रतिस्थापित करने के लिए किया गया था। यह वैक्यूम टयूबें आकार में बडी और अविश्वसनीय थी। ये बिजली की भी बहुत अधिक खपत करती थीं। सिलीकान और उसके जैसे तत्वों से बनने वाले ट्रांजिस्टरों ने इन टयूबों को हमेशा के लिए हटा दिया और इलेक्ट्रानिक उपकरणों का आकार घटाने में बडी हिस्सेदारी की। इस वजह से ट्रांजिस्टरों के आविष्कार को बीसवीं सदी की एक बडी उपलब्धि भी माना गया। आज ट्रांजिस्टर किसी भी इलेक्ट्रानिक उपकरणों के लिए अपरिहार्य हैं। मार्क रीड के अनुसार बेंजीन से स्वर्ण धातु के अणु के जुडने से बने मोलीक्यूल या अणु के विभिन्न ऊर्जा स्तरों पर जाकर ही उन्हें इस अणु से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा पर नियंत्रण रखने में मदद मिली। इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि अगर एक गेंद को एक पहाडी पर धकेलकर ले जाया जा रहा हो और यदि यह कल्पना करें कि गेंद बिजली और पहाडी अणु के विभिन्न ऊर्जा स्तर है। ऐसे में पहाडी की ऊंचाई को आगे पीछे करके गेंद क ी गति पर नियंत्रण पा लिया जाए। दूसरे शब्दों में इसमें बिजली तभी जाएगी जब ऊंचाई कम हो एवं ऐसा उस समय नहीं होगा जब ऊंचाई अधिक हो। इस तरह से यह अणु या मोलीक्यूल एक साधारण ट्रांजिस्टर की तरह काम करेगा।
शोभित जायसवाल
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विज्ञान
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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