शनिवार, 16 जनवरी 2010

बना रहे ये विश्‍वास


मनोज कुमार
भारतीय स्त्रियों के चरित्र पर विश्वास जताते हुए अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि भारतीय नारी पर संदेह नहीं किया जा सकता है। वे अपने खिलाफ बलात्कार का मामला यूंह ी दर्ज नहीं कराती हैं। अदालत ने यह टिप्पणी कर भारतीय स्त्री के गौरव को द्विगुणित किया है और कहना न होगा कि इससे भारतीय समाज का सिर गर्व से ऊंचा उठा है। भारतीय संस्कृति में स्त्रियों को सनातन काल से सर्वोपरि माना गया है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में तब स ेअब तक पूजा जाता रहा है। यकिनन समय के बदलाव के साथ सोच में परिवर्तन आया है और समाज स्त्रियों को नयी भूमिका में देख रहा है। कल तक घर की चहारदीवारी के भीतर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने वाली स्त्री आज आफिसों में अपने दायित्वों को निभा रही हैं। उनकी नयी जिम्मेदारियों के साथ उनके पहनावे में भी परिवर्तन आया है और महज पहनावा को ही यह मान लिया गया कि स्त्री बदल गयी है। उसके चरित्र पर अकारण लांछन लगाया जाने लगा। एक मामला पत्रकारिता की एक छात्रा के साथ पिछले दिनों सामने आया था। यह सब कुछ कुछ मानसिक रूप से बीमार लोगों की करतूतें हैं। स्त्री आज भी अपनी उसी भूमिका में है और इसका विस्तार ही माना जाना चाहिए।बाजार के नये रूप ने जरूर स्त्री को वस्तु बनाकर प्रदर्शन किया है और इसमें कुछ हद तक स्त्री भी दोषी हैं। उनके लिये पूरा आसमान खुला हुआ है और तब उन्हें किसी किस्म के समझौते की जरूरत नहीं होना चाहिए। हमारा
मानना है कि यह सबकुछ अकारण नहीं है बल्कि इसके पीछे भी कोई मामला होगा। स्त्रियों के साथ ज्यादती पहले भी हो रही थी और अब भी हो रही है, इस बात से भला कौन इंकार करेगा। स्त्री को दबाने और कुचलने का सर्वाधिक पीड़ादायक यातना है तो उसके साथ बलात्कार करना। इसमें भी आरोपी बच निकलते थे लेकिन अदालत ने यह कह कर स्त्री का सम्मान बढ़ाया है कि उसने कह दिया, यह ीपर्याप्त है। हम सभी को उम्मीद करना चाहिए कि भारतीय स्त्री भी अपने पक्ष में दिये गये इस सम्मान को कायम रखने में आगे रहेगी और पापी पुरूष अब अपने दानवी रूपप र काबू पा सकेंगे। नये साल में भारतीय स्त्रियों को न केवल अदालत की बल्कि पूरे समाज की ओर से शुभकामनाएं हैं।
मनोज कुमार

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