गुरुवार, 14 जनवरी 2010
जनप्रतिनिधियों ने फिर किया शर्मसार
अशोक त्रिपाठी
लोकतंत्र में नेताओं अर्थात् जनप्रतिनिधियों की स्वार्थपरता के किस्से तो आम हो चुके हैं। विशेष रूप से चुनाव के समय जनता इसका एहसास भी दिलाती है और पूछती है कि अब दोबारा इस गांव में कब होगा आगमन, उन्हें पुराने वादे भी याद दिलाये जाते हैं और स्वार्थी नेता इन चुभते नश्तरों को बेशर्मी की हंसी के साथ बर्दाश्त कर लेते हैं।
अभी गत 8 जनवरी को ऐसे ही जनप्रतिनिधियों ने संवेदनहीनता की हद ही पार कर दी। यह घटना तमिलनाडु की है और वहां की सत्तारूढ़ द्रमुक के दो मंत्री अपने काफिले के साथ जा रहे थे लेकिन एक घायल दरोगा को किसी ने भी अस्पताल पहुंचाने की जरूरत नहीं समझी। बाद में जब तक उस बहादुर सब इंस्पेक्टर को अस्पताल पहुचांया जाता, तब तक उसकी जान जा चुकी थी। मीडिया ने इस खबर को प्रमुखता दी है तो शायद मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि अपने मंत्रियों से जवाब तलब करें लेकिन जनप्रतिनिधि इतना खूबसूरत बहाना करेंगे कि जनता यह कहने पर मजबूर हो जायेगी कि वे बेचारे क्या कर सकते थे..। इसी बहाने उसकी मौत होनी थी। तमिलनाडु के तिरुनेलविली जिले में राज्य पुलिस का एक सबइंस्पेक्टर वेट्रिवल, जिसने चंदन तस्कर और आतंक के पर्याय बन चुके वीरप्पन को सन् 2006 में गोली का निशाना बनाया था, गत सात जनवरी की शाम मोटरसाइकिल से जा रहे थे। वह हेल्मेट लगाये था और ऐसा उसने यातायात नियमों का पालन करने के लिये किया था, वरना कई पुलिस वाले शहर से बाहर तो दूर शहर के अंदर भी पुलिस कैप के ऊपर हेल्मेट नहीं लगाते हैं। बहरहाल सब इंस्पेक्टर वेट्रिवल के लिये यही हेल्मेट मौत का कारण बन गया। वरना उसकी जान बच जाती। इसका एक कारण यह था कि वहीं का एक दरोगा, जिसका नाम शिव सुब्रमण्यम है, उससे परिवार के ही लोगों का झगड़ा चल रहा है और पता चला कि सुब्रमण्यम् की हत्या के लिये कुछ बदमाशों को सुपारी दी गयी थी। हेल्मेट की वजह से बदमाश दरोगा सुब्रमण्यम के धोखे में दरोगा वेट्रिवल को गोली मारकर भाग गये। निश्चित रूप से यह दरोगा वेट्रिवल का दुर्भाग्य था अथवा बुरे ग्रहों का प्रभाव कि वे किसी और के बदले गोलियों का शिकार हुए लेकिन इस घटना के बाद का जो वाक्या है, वह बेहद शर्मनाक रहा और जनप्रतिनिधियों की छवि पर कलंक लगाने वाला भी। बदमाशों की गोली से घायल दरोगा वेट्रिवल सड़क पर गिरकर छटपटा रहे थे। उसी दौरान राज्य के स्वास्थ्य मंत्री एम-आर- के पन्नीरी से लवम और युवा एवं खेलमंत्री मोहिदीन खान का काफिला वहां से गुजरा। इन मंत्रियों के साथ जिलाधिकारी समेत विभिन्न अधिकारी भी थे। काफिले में एम्बुलेंस भी रही हो तो कोई आश्चर्य नहीं। बताते हैं घायल दरोगा वेट्रिवल मदद के लिये चीख रहा था। मंत्रियों का काफिला वहां थोड़ी देर के लिये ठहरा लेकिन पता नहीं उस जांबाज दरोगा की जान से बढ़कर उन्हें कौन सा काम था जो घायल वेट्रिवल को पहले अस्पताल पहुंचाना जरूरी नहीं समझा। जिलाधिकारी समेत अन्य अधिकारियों को भी इंसानियत या तो दिखी नहीं अथवा राजनेताओं की चाटुकारिता के आगे उनके हाथ बंध गये। बहरहाल, नेताओं और जिले के वरिष्ठतम अधिकारी के कर्तव्यहीन बनने से एक जांबाज दरोगा की जान चली गयी, समय से उसको इलाज नहीं मिल पाया।
यही नौकरशाही जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा में अपनी जान की परवाह नहीं करती है। हमला होने पर पहले वह गोली खाती है, बाद में नेता तक आंच पहुंचती है। अभी पता चला है कि आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआर की हेलीकाप्टर दुर्घटना में मौत के मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की गयी क्योंकि कुछ लोगों ने आरोप लगाया था कि इस हादसे के पीछे अम्बानी बंधुओं ने किसी भी साजिश से साफ इंकार करते हुए उसे अपने विरोधियों की चाल बताया है। जनप्रतिनिधि अपने मामले में तो इतनी सावधानी बरत रहे हैं तो नौकरशाही के प्रति उनकी घोर उपेक्षा के लिये भी सवाल-जवाब किया जाना चाहिए। दरोगा वेट्रिवल की शहादत व्यर्थ नहीं जाना चाहिए।
अशोक त्रिपाठी
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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