मंगलवार, 17 मई 2011
महँगे सोने ने बदली चेहरे की रंगत
अखबार के पहले पन्ने पर सोने का भाव देखती हुई।
दैनिक अखबार और मोबाइल फोन बने उपयोगी
रमेश शर्मा/ पत्थलगांव
वह गाँव बड़ा अजीब है? कोई टीवी देखते-देखते अचानक चिल्ला पड़ता है। कोई दूसरा जब उस टीवी को देखे, तो पता ही न चले कि आखिर माजरा क्या हे? कोई मोबाइल पर बात करते-करते खुशी से उछल पड़ता है। कभी-कभी तो यह हालत होती है कि अखबार पढ़ते ही या तो वह गम में डूब जाता है, या फिर खुशी से उछलने लगता है। गम और खुशी के बीच जीने वाले कई गाँव हें, जिन्हें ईब नदी ने अपने आँचल में समेटा है। गाँव में शिक्षा का प्रसार बहुत ही कम है, पर लोग बड़े जागरुक हैं। ईब नदी ने अपने साथ स्वर्ण कण भी लाती है, जिसे यहाँ के लोग बहुत ही परिश्रम से ढँए़ते हैं, एक-एक कण सोना उनके लिए बहुत ही मूल्यवान होता है। इसलिए साने के भाव जेसे ही बढ़ते हैं, इनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। भाव जैसे ही कम होता है, तो ये दु:खी हो जाते हैं। सोने का ताजा भाव जानने के लिए ये मोबाइल, टीवी और अखबार का सहारा लेते हैं। टीवी पर इनकी नजर धारावाहिकों पर कम पर नीचे की पट्टी पर अधिक होता है। ताकि सोने का भाव जाना जा सके। खुशी और गम के साथ-साथ जीने वाले ईब नदी के तट पर बसने वाले ये आदिवासी अब आधुनिकता के साथ इस तरह से जुड़ने लगे हैं।
सोने के भाव में इन दिनो निरतंर हो रही वृद्धि के चलते यहॉं पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले गरीब परिवार के लोगों का रहन सहन बदल गया है। जशपुर जिले के पत्थलगांव और फरसाबहार विकास खंड अन्तर्गत अनेक गांव के लोग ईब नदी के तट पर मिटटी और रेत में स्वर्ण कण तलाशने का काम करते हैं। यहां ईब नदी के तट पर मिटटी में कीमती स्वर्णकणों की तलाश का काम करने वाले इन ग्रामीणों को सोने के दाम में बेतहास वृध्दि हो जाने से अब अच्छी खासी आमदनी होने लगी है। मिटटी और रेत को पानी में धोने की कठिन प्रRिया पूरी करके इन ग्रामीणों के पास प्रति दिन 5 सौ से एक हजार रुपऐ कीमत के स्वर्ण कण इकटठे हो जाते हैं। सोने के भाव में प्रति दिन होने वाले उतार चढ़ाव के चलते इन ग्रामीणों ने मोबाइल फोन और दैनिक अखबार का सहारा लेना शुरू कर दिया है।
बागबहार की श्रीमती दशोबाई भुइहर एवं उर्वशी मोबाइल पर सोने के भाव की जानकारी लेती हुई।
ईब नदी के तट पर स्वर्ण कणों की तलाश करके अपना जीवन यापन करने वाले ज्यादातर ग्रामीणों के जीवन स्तर में इन दिनों अच्छा क्ष्ज्ञसा बदलाव दिखने लगा है। पत्थलगांव विकास खंड के बागबहार व कोतबा क्षेत्र तथा फरसाबहार विकास खंड के ग्राम सोनाजोरी धौरासांड़ पण्डरीपानी आदि गांवों के सैकड़ों गरीब मजदूर दिन निकलते ही इस काम में जुट जाते हैं। कीमती स्वर्ण कणों की तलाश करने वाले ग्रामीणों की इस काम में अच्छी आमदनी हो जाने से ज्यादातर लोगो ने दुपहिया वाहन तथा अपने घर में मनोरंजन के लिए टीवी लगा ली है। ग्राम तपकरा के जगन्नाथ राम ने बताया कि सोने की नई दर जानने के लिए ज्यादातर मजदूरों ने मोबाइल फोन खरीद रखे हैं । मोबाइल फोन का उपयोग करके आसपास में सोने चांदी का व्यवसाय करने वाले दुकानदारों से उन्हे सोने के भाव की ताजा स्थिति पता चल जाती है। इस ग्रामीण का कहना था कि दैनिक अखबार में सोने के भाव पढ़ कर यहां के खरीददारों की ठगी से बच जाते हैं। यदाकदा सोने का भाव कम रहने की स्थिति में वे स्वर्ण कण बेचने के लिए कुछ दिनों का इन्तजार भी कर लेते हैं। ग्राम बागबहार की श्रीमती दशोबाई की बेटी उर्वशी पढ़ी लिखी होने के कारण वह पड़ोस की दुकान में प्रति दिन अखबार देखने पहुंच जाती है। अखबार में सोने का भाव देख कर ही वह मिटटी से एकत्रित किए स्वर्ण कण बेचती है। इस परिवार के पास मोबाइल फोन भी उपलब्ध है। गांव गांव तक पहुंच चुकी संचार Rांति की बदौलत ऐसे सैकड़ो लोगो का रहन सहन बदल गया है।
एक एक रुपए का हिसाब
तपकरा के थाना प्रभारी ए.आर.छात्रे ने बताया कि आदिवासी बाहुल्य यहॉं के गांवों में दैनिक अखबार और संचार सुविधा के चलते यहॉं का माहौल बदल गया है। इस बदले हुऐ परिवेश में स्वर्ण कण बेचने वाले ग्रामीण भी अछूते नहीं हैं। श्री छात्रे ने बताया कि मिटटी और रेत में स्वर्णकणों की तलाश करने वालों के पास सचांर सुविधा उपलब्ध रहने से इनके ठगे जाने की शिकायत नहीं मिल रही हैं। उन्होने बताया कि पहले यहॉं स्वर्ण कण संग्राहकों से स्थानीय व्यापारी छोटे तराजू में बाट के स्थान पर धान से स्वर्णकणों को तौल कर खरीदी करते थे। लेकिन अब सोना बेचने वालों द्वारा कम्प्यूटराइज तराजू में तौल कर एक एक रुपए का हिसाब ले लिया जाता है।
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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