डॉ. महेश परिमल
अपनी फिल्म विश्वरूपम को लेकर कमल हासन ने जिस तरह से देश छोड़ने का बयान दिया है, उसकी सर्वत्र आलोचना की जा रही है। आज हर क्षेत्र का काम चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। क्षेत्र चाहे फिल्म का हो या साहित्य का। लोग आलोचना करने के लए तैयार बैठे हैं। लोगों की धार्मिक सहिष्णुता कम होती जा रही है। दूसरी ओर तुष्टिकरण की राजनीति के कारण कई अर्थ का अनर्थ हो जाता है। कई धार्मिक धारावाहिक बनाने वाले संजय खान ने जब इस्लाम पर धारावाहिक बनाने की घोषणा की, तब उसका विरोध होना शुरू हो गया। इसी तरह ईसा मसीह पर एक धारावाहिक दूरदर्शन पर शुरू हुआ, पर कुछ एपिसोड के बाद उसे बंद कर दिया गया। कट्टरवाद आज सभी ओर हावी है। ऐसे में कुछ नई सोच के साथ काम करना मुश्किल हो जाता है। कमल हासन ने देश छोड़ने का बयान हताशा में आकर दिया लगता है। विश्वरूपम उसका सपना है, इसमें पूरे जुनून के साथ अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। इस सपने पर ग्रहण लग जाने से हतजाशा में उन्होंने इस तरह का बयान दिया है। लोगों को उनसे ऐसे बयान की अपेक्षा नहीं थी। एक तरह से वे अपनी खैर मना सकते हैं, दूसरे देशों में ऐसा होता, तो अब तक उनके खिलाफ फतवा जारी हो गया होता। फिल्म का विरोध कतई बुरा नहीं है, विरोध करने का तरीका अवश्य बुरा है। इस मसले पर यह फैसला दर्शकों पर छोड़ देना चाहिए कि यदि वे फिल्म में कोई बुराई देखेंगे, तो उसे नकार देंगे। संगठनों को आगे आने की आवश्यकता नहीं है। दर्शक ही तय करें फिल्म को हिट करना है या फ्लाप।
कमल हासन की मानसिक स्थिति को देखकर कई लोग उनके समर्थन में आ खड़े हुए हैं। इसमें सबसे प्रमुख हैं रजनीकांत और सलमान खान। फिल्मी दुनिया में दोस्ती की बहुत सी मिसालें दी जाती हैं। पर ऐन मौके पर सारी दोस्ती एक तरफ हो जाती है। फिल्मी दोस्ती परदे पर ही अच्छी लगती है। पर आम जिंदगी में यदि दोस्ती का सही अर्थ जानना हो, तो रजनीकांत की पहल से जाना जा सकता है। यूं तो कमल हासन और रजनीकांत प्रतिस्पर्धी अभिनेता हैं। लेकिन कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम के विवादास्प्द होते ही सबसे पहले यदि अपनी दोस्ती निभाने के लिए आगे आए, तो वे थे रजनीकांत। इसके पहले जब शाहरुख खान की फिल्म ‘माय नेम इज खान’ प्रदर्शित हुई, तब बाल ठाकरे ने उसका काफी विरोध किया था। तब उनके समर्थन में कोई कलाकार सामने नहीं आया, केवल जावेद अख्तर और शबाना आजमी ने शाहरुख के समर्थन में अपना बयान दिया। इस बार रजनीकांत ने खुले रूप में कमल हासन को अपना समर्थन देकर यह बता दिया कि कमल हासन से उनके मतभेद हो सकते हैं, पर मनभेद कतई नहीं है। आज जहां अहंकार का टकराव है, गला काट स्पर्धा है, ऐसे में रजनीकांत का कमल हासन के समर्थन में आना यह साबित करता है कि मित्र हमेशा ही मित्र होता है। आज रजनीकांत ने सच में मित्रता को परिभाषित किया है। क्योंकि आज कमल हासन अपनी सोद्देश्य फिल्म को लेकर करीब एक करोड़ रुपए के तनाव में आ गए हैं। रजनीकांत ने मुस्लिमों से अपील करते हुए कहा है कि कमल हासन के मन में मुस्लिमों के खिलाफ किसी प्रकार का द्वेष नहीं है। यदि ऐसा होता, तो वे मुस्लिमों के लिए इस फिल्म की खास स्कीनिंग नहीं रखते। आज ऐसी दोस्ती बड़ी मुश्किल से दिखती है। अब तो सलमान खान भी कमल हासन का समर्थन कर रहे हैं।
आखिर विवाद क्या है
विश्वरूपम में कमल हासन ने आतंकवाद को विषय बनाया है। मुस्लिम संगठनों का यह दावा है कि फिल्म में मुस्लिमों और इस्लाम को गलत तरीके से पेश किया गया है। फिल्म का एक पात्र कुरान पढ़ने के बाद आतंकवादी हरकतें करता है। इसके अलावा एक दाढ़ीवाले मुस्लिम को बम रखने की फिराक में दिखाया गया है। यही नहीं, फिल्म के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि आतंकवाद के मूल में पवित्र कुरान ही है। फिल्म में जब भी आतंकवाद के दृश्य आते हैं, तब बेकग्राउंड में कुरान की आयतें सुनाई देती हैं। फिल्म में मुस्लिमों को घातक बताया गया है। दर्शकों पर इसका असर यह होगा कि वे मुस्लिमों के बारे में वे उनके जेहन में नकारात्मक छवि ही उभरेगी। इसके अलावा फिल्म में तालिबानी नेता मुल्ला उमर को मदुराई और कोयतम्बूर में छिपा होना बताया गया है। फिल्म का विरोध करने वाले लोग यह भी मानते हैं कि यह फिल्मं अंतरराष्ट्रीय स्तर की तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गई मुस्लिम विरोधी दस्तावेजी फिल्म है। फिल्म में कमल हासन भारतीय गुप्तचर संस्था रॉ के एजेंट हैं, जो कश्मीरी आतंकी का नकली वेश धारण कर अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए के साथ मिलकर विश्व में फैले आतंकियों का सफाया करते हैं। दूसरी ओर कमल हासन कहते हैं कि फिल्म में धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले तत्वों को बताया गया है, मेरी पूरी कोशिश है कि इसमें भारतीय मुस्लिमों को किसी प्रकार से गलत तरीके से प्रस्तुत न किया जाए। उल्लेखनीय है कि इसके पहले कमल हासन की मेयर मागन और विरुमांडी जैसी फिल्में इसी तरह के विवाद में फंस चुकी हैं। इन फिल्मों में भी विशेष समुदाय पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार है। उमर और सलीम नामक दो अफगानी आतंकी न्यूयार्क शहर में सेसियम बम के विकिरण फैलाना चाहते हैं। विश्वनाथ न्यूयार्क में कथक नृत्य की शिक्षा देने का काम करता है। वास्तव में वह जासूस होता है। निरुपम परमाणु वैज्ञानिक है। केवल न्यूयार्क में रहने की इच्छा के कारण वह अपनी उम्र से बड़े विश्वनाथ से शादी कर लेती है। निरुपम अपने बॉस दीपक कुमार से प्रेम करती है, जो आतंकी उमर के साथ मिल गया है। अमेरिका को परमाणु बम से उड़ा देने की योजना में वह उसका साथ देता है। विश्वनाथ भूतकाल में अल-कायदा की आतंकी छावनी में काम कर चुका है। बाद में उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह रॉ से जुड़ जाता है। विश्वनाथ की सही पहचान उमर को पता चल जाती है, वह उसे गिरफ्तार करवा देता है। उसके बाद विश्वनाथ किस तरह से आतंकवादियों के पंजे से छूटकर किस तरह से न्यूयार्क को बचाता है, यही देखना है। कमल हासन कहते हैं कि इस फिल्म में मुस्लिमों का किसी भी तरह से खराब चित्रण नहीं किया गया है। बल्कि उनका गौरव ही बढ़ाया गया है। लेकिन मुस्लिम समुदाय इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। भारतीय मुस्लिम अपनी कट्टरता के लिए जाने जाते हैं। इन हालात में फिल्मों में मुस्लिमों का किसी प्रकार से गलत चित्रण न हो, इसका पूरा खयाल रखा जाता है। कमल हासन ने भी अपनी फिल्म में इस तरह की पूरी सावधानी बरती है। इसके बाद भी मुस्लिम न जाने किस कारण इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं। क्या भारतीय मुस्लिम नेता यह मानते हैं कि भारत का कोई भी मुस्लिम देशप्रेमी नहीं हो सकता और आतंकवादियों के खिलाफ लड़ नहीं सकता? ऐसी कलात्मक फिल्म का विरोध कर मुस्लिम नेता अपनी कौम का किस प्रकार का नेतृत्व कर रहे हैं, इसे आसानी से समझा जा सकता है।
कमल हासन जैसा बुद्धिजीवी और संवेदनशील व्यक्ति देश छोड़ने की वाहियात बात करेगा, ऐसी अपेक्षा किसी ने नहीं की थी। विश्वरूपम के पहले भी कई लोगों की कई फिल्मों का विरोध हुआ है। हासन अकेले नहीं हैं। फिल्मों का विरोध हमेशा से ही होता रहा है। फिल्मों का इतिहास ही बताता है कि किसी भी फिल्म या दूसरी कला के विरोध में बंद का आयोजन भी बाधाजनक नहीं रहा। कमल हासन यह गलत सोच रहे हैं कि फिल्म का विरोध ही न हो, तो यह संभव नहीं। विश्वरूपम के खिलाफ विरोध तो अभी अदालत तक ही पहुंचा है। वे अभी से क्यों डर रहे हैं? अभी तो अदालत का फैसला नहीं आया है। जो विरोध से डरे, उसे कलाकार नहीं कह सकते। कमल हासन को यह नहीं भूलना चाहिए कि जहां भी कुछ भी यदि नया हुआ है, तो उसका विरोध हुआ ही है। आखिर उन्होंने यह कैसे सोच लिया कि उन्हें न्याय नहीं मिलेगा। मद्रास हाईकोर्ट ने पिछले दिनों ही विश्वरूपम से प्रतिबंध हटा लिया है। अन्य निर्णयों की राह भी देखनी चाहिए। इतना धीरज तो कलाकार में होना ही चाहिए। यदि अन्याय हो रहा है, तब वेदना का दबाना मुश्किल होता है, इसलिए हताशा में देश छोड़ने का बयान दे डाला।
पद्मभूषण के लिए नाम हट गया
कमल हासन के खिलाफ कुछ तत्व निश्चित रूप से काम रहे हैं। क्योंकि आजादी की पूर्व संध्या पद्मभूषण के लिए जो सूची बनाई गई थी, उसमें उनका नाम भी था, किंतु अ¨तम क्षणों में उनके नाम को हटा दिया गया। उसके पीछे उनकी इसी फिल्म का विरोध ही होगा। विरोध के कारण माहौल उनके खिलाफ पहले से ही बनने लगा था। आज कमल हासन अकेले नहीं हैं। कई हस्तियां उनके साथ हैं। इतना तो तय है कि यदि उनके साथ न्याय होता है, तो क्या वे देशवासियों से माफी मागेंगे? वास्तव में इस फिल्म के पीछे तुष्टिकरण की राजनीति हावी हो गई है। जैसा कि बहुत पहले रोम्या रोला कह चुके हैं कि कोई व्यवस्था आराम से चल रही हो, तो उसमें थोड़ी सी राजनीति डाल दो, व्यवस्था बरबाद हो जाएगी। कुछ ऐसा ही विश्वस्वरूप के साथ हो रहा है। पर रजनीकांत ने अपना मित्रवत धर्म जिस तरह से निभाया है, उसे दोस्ती की नजीर के रूप में देखा जाना चाहिए। समय की यही मांग है कि दोस्त यदि मुसीबत में हो, तो उसकी सहायता के लिए दुश्मनों को भीे आगे आना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल
अपनी फिल्म विश्वरूपम को लेकर कमल हासन ने जिस तरह से देश छोड़ने का बयान दिया है, उसकी सर्वत्र आलोचना की जा रही है। आज हर क्षेत्र का काम चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। क्षेत्र चाहे फिल्म का हो या साहित्य का। लोग आलोचना करने के लए तैयार बैठे हैं। लोगों की धार्मिक सहिष्णुता कम होती जा रही है। दूसरी ओर तुष्टिकरण की राजनीति के कारण कई अर्थ का अनर्थ हो जाता है। कई धार्मिक धारावाहिक बनाने वाले संजय खान ने जब इस्लाम पर धारावाहिक बनाने की घोषणा की, तब उसका विरोध होना शुरू हो गया। इसी तरह ईसा मसीह पर एक धारावाहिक दूरदर्शन पर शुरू हुआ, पर कुछ एपिसोड के बाद उसे बंद कर दिया गया। कट्टरवाद आज सभी ओर हावी है। ऐसे में कुछ नई सोच के साथ काम करना मुश्किल हो जाता है। कमल हासन ने देश छोड़ने का बयान हताशा में आकर दिया लगता है। विश्वरूपम उसका सपना है, इसमें पूरे जुनून के साथ अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। इस सपने पर ग्रहण लग जाने से हतजाशा में उन्होंने इस तरह का बयान दिया है। लोगों को उनसे ऐसे बयान की अपेक्षा नहीं थी। एक तरह से वे अपनी खैर मना सकते हैं, दूसरे देशों में ऐसा होता, तो अब तक उनके खिलाफ फतवा जारी हो गया होता। फिल्म का विरोध कतई बुरा नहीं है, विरोध करने का तरीका अवश्य बुरा है। इस मसले पर यह फैसला दर्शकों पर छोड़ देना चाहिए कि यदि वे फिल्म में कोई बुराई देखेंगे, तो उसे नकार देंगे। संगठनों को आगे आने की आवश्यकता नहीं है। दर्शक ही तय करें फिल्म को हिट करना है या फ्लाप।
कमल हासन की मानसिक स्थिति को देखकर कई लोग उनके समर्थन में आ खड़े हुए हैं। इसमें सबसे प्रमुख हैं रजनीकांत और सलमान खान। फिल्मी दुनिया में दोस्ती की बहुत सी मिसालें दी जाती हैं। पर ऐन मौके पर सारी दोस्ती एक तरफ हो जाती है। फिल्मी दोस्ती परदे पर ही अच्छी लगती है। पर आम जिंदगी में यदि दोस्ती का सही अर्थ जानना हो, तो रजनीकांत की पहल से जाना जा सकता है। यूं तो कमल हासन और रजनीकांत प्रतिस्पर्धी अभिनेता हैं। लेकिन कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम के विवादास्प्द होते ही सबसे पहले यदि अपनी दोस्ती निभाने के लिए आगे आए, तो वे थे रजनीकांत। इसके पहले जब शाहरुख खान की फिल्म ‘माय नेम इज खान’ प्रदर्शित हुई, तब बाल ठाकरे ने उसका काफी विरोध किया था। तब उनके समर्थन में कोई कलाकार सामने नहीं आया, केवल जावेद अख्तर और शबाना आजमी ने शाहरुख के समर्थन में अपना बयान दिया। इस बार रजनीकांत ने खुले रूप में कमल हासन को अपना समर्थन देकर यह बता दिया कि कमल हासन से उनके मतभेद हो सकते हैं, पर मनभेद कतई नहीं है। आज जहां अहंकार का टकराव है, गला काट स्पर्धा है, ऐसे में रजनीकांत का कमल हासन के समर्थन में आना यह साबित करता है कि मित्र हमेशा ही मित्र होता है। आज रजनीकांत ने सच में मित्रता को परिभाषित किया है। क्योंकि आज कमल हासन अपनी सोद्देश्य फिल्म को लेकर करीब एक करोड़ रुपए के तनाव में आ गए हैं। रजनीकांत ने मुस्लिमों से अपील करते हुए कहा है कि कमल हासन के मन में मुस्लिमों के खिलाफ किसी प्रकार का द्वेष नहीं है। यदि ऐसा होता, तो वे मुस्लिमों के लिए इस फिल्म की खास स्कीनिंग नहीं रखते। आज ऐसी दोस्ती बड़ी मुश्किल से दिखती है। अब तो सलमान खान भी कमल हासन का समर्थन कर रहे हैं।
आखिर विवाद क्या है
विश्वरूपम में कमल हासन ने आतंकवाद को विषय बनाया है। मुस्लिम संगठनों का यह दावा है कि फिल्म में मुस्लिमों और इस्लाम को गलत तरीके से पेश किया गया है। फिल्म का एक पात्र कुरान पढ़ने के बाद आतंकवादी हरकतें करता है। इसके अलावा एक दाढ़ीवाले मुस्लिम को बम रखने की फिराक में दिखाया गया है। यही नहीं, फिल्म के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि आतंकवाद के मूल में पवित्र कुरान ही है। फिल्म में जब भी आतंकवाद के दृश्य आते हैं, तब बेकग्राउंड में कुरान की आयतें सुनाई देती हैं। फिल्म में मुस्लिमों को घातक बताया गया है। दर्शकों पर इसका असर यह होगा कि वे मुस्लिमों के बारे में वे उनके जेहन में नकारात्मक छवि ही उभरेगी। इसके अलावा फिल्म में तालिबानी नेता मुल्ला उमर को मदुराई और कोयतम्बूर में छिपा होना बताया गया है। फिल्म का विरोध करने वाले लोग यह भी मानते हैं कि यह फिल्मं अंतरराष्ट्रीय स्तर की तकनीक का इस्तेमाल कर बनाई गई मुस्लिम विरोधी दस्तावेजी फिल्म है। फिल्म में कमल हासन भारतीय गुप्तचर संस्था रॉ के एजेंट हैं, जो कश्मीरी आतंकी का नकली वेश धारण कर अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए के साथ मिलकर विश्व में फैले आतंकियों का सफाया करते हैं। दूसरी ओर कमल हासन कहते हैं कि फिल्म में धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले तत्वों को बताया गया है, मेरी पूरी कोशिश है कि इसमें भारतीय मुस्लिमों को किसी प्रकार से गलत तरीके से प्रस्तुत न किया जाए। उल्लेखनीय है कि इसके पहले कमल हासन की मेयर मागन और विरुमांडी जैसी फिल्में इसी तरह के विवाद में फंस चुकी हैं। इन फिल्मों में भी विशेष समुदाय पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार है। उमर और सलीम नामक दो अफगानी आतंकी न्यूयार्क शहर में सेसियम बम के विकिरण फैलाना चाहते हैं। विश्वनाथ न्यूयार्क में कथक नृत्य की शिक्षा देने का काम करता है। वास्तव में वह जासूस होता है। निरुपम परमाणु वैज्ञानिक है। केवल न्यूयार्क में रहने की इच्छा के कारण वह अपनी उम्र से बड़े विश्वनाथ से शादी कर लेती है। निरुपम अपने बॉस दीपक कुमार से प्रेम करती है, जो आतंकी उमर के साथ मिल गया है। अमेरिका को परमाणु बम से उड़ा देने की योजना में वह उसका साथ देता है। विश्वनाथ भूतकाल में अल-कायदा की आतंकी छावनी में काम कर चुका है। बाद में उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह रॉ से जुड़ जाता है। विश्वनाथ की सही पहचान उमर को पता चल जाती है, वह उसे गिरफ्तार करवा देता है। उसके बाद विश्वनाथ किस तरह से आतंकवादियों के पंजे से छूटकर किस तरह से न्यूयार्क को बचाता है, यही देखना है। कमल हासन कहते हैं कि इस फिल्म में मुस्लिमों का किसी भी तरह से खराब चित्रण नहीं किया गया है। बल्कि उनका गौरव ही बढ़ाया गया है। लेकिन मुस्लिम समुदाय इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं है। भारतीय मुस्लिम अपनी कट्टरता के लिए जाने जाते हैं। इन हालात में फिल्मों में मुस्लिमों का किसी प्रकार से गलत चित्रण न हो, इसका पूरा खयाल रखा जाता है। कमल हासन ने भी अपनी फिल्म में इस तरह की पूरी सावधानी बरती है। इसके बाद भी मुस्लिम न जाने किस कारण इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं। क्या भारतीय मुस्लिम नेता यह मानते हैं कि भारत का कोई भी मुस्लिम देशप्रेमी नहीं हो सकता और आतंकवादियों के खिलाफ लड़ नहीं सकता? ऐसी कलात्मक फिल्म का विरोध कर मुस्लिम नेता अपनी कौम का किस प्रकार का नेतृत्व कर रहे हैं, इसे आसानी से समझा जा सकता है।
कमल हासन जैसा बुद्धिजीवी और संवेदनशील व्यक्ति देश छोड़ने की वाहियात बात करेगा, ऐसी अपेक्षा किसी ने नहीं की थी। विश्वरूपम के पहले भी कई लोगों की कई फिल्मों का विरोध हुआ है। हासन अकेले नहीं हैं। फिल्मों का विरोध हमेशा से ही होता रहा है। फिल्मों का इतिहास ही बताता है कि किसी भी फिल्म या दूसरी कला के विरोध में बंद का आयोजन भी बाधाजनक नहीं रहा। कमल हासन यह गलत सोच रहे हैं कि फिल्म का विरोध ही न हो, तो यह संभव नहीं। विश्वरूपम के खिलाफ विरोध तो अभी अदालत तक ही पहुंचा है। वे अभी से क्यों डर रहे हैं? अभी तो अदालत का फैसला नहीं आया है। जो विरोध से डरे, उसे कलाकार नहीं कह सकते। कमल हासन को यह नहीं भूलना चाहिए कि जहां भी कुछ भी यदि नया हुआ है, तो उसका विरोध हुआ ही है। आखिर उन्होंने यह कैसे सोच लिया कि उन्हें न्याय नहीं मिलेगा। मद्रास हाईकोर्ट ने पिछले दिनों ही विश्वरूपम से प्रतिबंध हटा लिया है। अन्य निर्णयों की राह भी देखनी चाहिए। इतना धीरज तो कलाकार में होना ही चाहिए। यदि अन्याय हो रहा है, तब वेदना का दबाना मुश्किल होता है, इसलिए हताशा में देश छोड़ने का बयान दे डाला।
पद्मभूषण के लिए नाम हट गया
कमल हासन के खिलाफ कुछ तत्व निश्चित रूप से काम रहे हैं। क्योंकि आजादी की पूर्व संध्या पद्मभूषण के लिए जो सूची बनाई गई थी, उसमें उनका नाम भी था, किंतु अ¨तम क्षणों में उनके नाम को हटा दिया गया। उसके पीछे उनकी इसी फिल्म का विरोध ही होगा। विरोध के कारण माहौल उनके खिलाफ पहले से ही बनने लगा था। आज कमल हासन अकेले नहीं हैं। कई हस्तियां उनके साथ हैं। इतना तो तय है कि यदि उनके साथ न्याय होता है, तो क्या वे देशवासियों से माफी मागेंगे? वास्तव में इस फिल्म के पीछे तुष्टिकरण की राजनीति हावी हो गई है। जैसा कि बहुत पहले रोम्या रोला कह चुके हैं कि कोई व्यवस्था आराम से चल रही हो, तो उसमें थोड़ी सी राजनीति डाल दो, व्यवस्था बरबाद हो जाएगी। कुछ ऐसा ही विश्वस्वरूप के साथ हो रहा है। पर रजनीकांत ने अपना मित्रवत धर्म जिस तरह से निभाया है, उसे दोस्ती की नजीर के रूप में देखा जाना चाहिए। समय की यही मांग है कि दोस्त यदि मुसीबत में हो, तो उसकी सहायता के लिए दुश्मनों को भीे आगे आना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल