डॉ. महेश परिमल
पाकिस्तान को शाहरुख खान की सुरक्षा की चिंता है। यह तो वही बात हुई कि घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। जिस देश में केवल आतंकी ही सुरक्षित हों, वहॉं कोई भारतीय भला कैसे सुरक्षित रह सकता है? यह बात पाकिस्तान को समझ में नहीं आ रही है। पर शाहरुख खान को यह ब्रह्मज्ञान कहां से मिला, यह कोई बताना नहीं चाहता। इस समय देश भर से ऐसे-ऐसे बयान सामने आ रहे हैं कि ऐसा लगता है हम किसी असभ्य देश में रह रहे हैं। अभी तक जितने भी बयानवीर हमारे सामने आए हैं, वे सभी शिक्षित हैं, साथ ही अपने माध्यम से दूसरों को भी शिक्षित करने का काम करते हैं। यह बयानबाजी दिल्ली के राजनैतिक गलियारों को पार करती हुई बापू के सत्संग से होते हुए अब मायानगरी में जाकर फुल, लाइट, कैमरे में जाकर अटक गई है। यहां से जो बयान जारी हुआ, उसकी प्रतिक्रिया पाकिस्तान से आ रही है। यह विवादास्पद बयान किंग खान यानी शाहरुख खान की तरफ से आया है। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि मुझे हमेशा अपने नाम के कारण इस देश में राजनीति का शिकार होना पड़ा है। अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर मैं चिंतित रहता हूं। इस पर भारत से भले ही कोई प्रतिक्रिया न आई हो, पर पाकिस्तान में रहने वाले आतंकी हाफीज सईद ने उन्हें ससम्मान अपने यहां बुलाया है। समझ में नहीं आता है कि जिस देश की धरती पर शाहरुख रह रहे हैं, उनके पिता ने स्वतंत्रता की इसी देश में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, आज इतने वर्षो बाद उन्हें यह ब्रह्मज्ञान कहां से प्राप्त हो गया कि उनका पूरा समुदाय ही खतरे में दिखाई दे रहा है। भारतीय दर्शकों की अपार प्रशंसा पाने वाला यह कलाकार अपने कैरियर के ढाई दशक बाद और अपनी आयु के साढ़े चार दशक पार करने के बाद अपने मुस्लिम धर्म को स्वयं के लिए अड़चन मानता है। इसे बीसवीं सदी का सबसे बड़ा मजाक कहा जा सकता है। शाहरुख कोई सलमान खान नहीं है, जो अपनी उद्दंडता से पहचाना जाए, शाहरुख कोई आमिर खान भी नहीं है, जो बिना किसी विरोध के अपनी बात कहता हो, शाहरुख अमिताभ बच्चन भी नहीं है, जो हमेशा धुरंधर राजनीतिज्ञों को भी पानी पिलाने की कूब्बत रखता हो और उसी सज्जनता से व्यवहार करता हो, जो हर शब्द नाप-तौल कर बोलता है।
हम सब 1988 से शाहरुख को देख रहे हैं। उन्हें अब पहचानने भी लगे हैं। फौजी, सर्कस टीवी धारावाहिक में वे दिखाई देते थे। गाल पर गड्ढे पर अब उम्र हावी होने लगी है। वे हम सबके सामने ही बड़े हुए। फिल्मी परदे पर उनकी सारी हरकतों को हमने सर आंखों पर बिठाया। वे कभी राहुल बने, कभी राज मल्होत्रा बने, कभी डॉन बने। उनके हर रूप को हमने अपने कांधों पर लिया। उनकी अच्छी फिल्मों को सराहा, कभी झटका भी दिया। उसकी खुशी में हम नाचे, तो उसके गम में शरीक भी हुए। आज ढाई दशक बाद हमें यह मालूम है कि वो एक ऐसे शख्स हैं, जो अपनी अनुकूलताओं के बीच विवादों को सुलगाने में सलमान की तरह है, सयम अनुकूल हो, तब विवादास्पद बयान देकर अपनी दृढ़ता बताते समय वे आमिर खान की तरह सख्त हो जाते हैं और अपना स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद विवाद को विराम देने में अमिताभ की तरह डिप्लोमेटिक भी हैं। उनके जीवन के कुछ उतार-चढ़ाव को थोड़ा स्लो-मोशन में देखें, तो स्पष्ट होगा कि वे किस तरह के इंसान हैं:- एक जमाना था, जब वे कुंदन शाह, अजीज मिर्जा के साथ उनकी अच्छी जमती थी। टीवी के जमाने की वह दोस्ती ने ही राजू बन गया जेंटलमेन और कभी हां कभी ना, जैसी फिल्में मिली। इसके बाद कुंदन शाह के साथ कुछ विवाद हुआ, तो उन्होंने कुंदन शाह के लिए कहा-कुंदन थिंक्स एंड एक्ट लाइट मेजोरिटी हिंदू, और उनसे नाता तोड़ लिया। उधर अजीज मिर्जा को फाइनेंस करना जारी रखा। एक समय वे सलमान को अपना भाई कहते थे, उसी सलमान के साथ उनकी कैटरीना कैफ की बर्थ डे पार्टी पर जोरदार बहसबाजी हुई, आज दोनों के बीच अबोला है।
इसी तरह वीर-जारा के प्रदर्शन के समय जानबूझकर सलमान और ऐश्वर्या के संबंधों को लेकर अभद्र भाषा का प्रयोग सलमान के साथ आने वाली फिल्म ‘मुझसे शादी करोगे’ पर अपनी जीत हासिल करने की कोशिश की। इन्हीं दिनों आने वाली सलमान की फिल्म ‘द प्राइड आफ ऑनर’ के लिए शाहरुख ने यह कहा कि इस फिल्म का नाम ‘गर्व द फिल्म ऑफ फुलिश’ होना था। इसके बाद सलमान के सितारे बुलंद होते गए, वक्त की नजाकत को समझते हुए उन्होंने सलमान को उपहार भेजा और सलमान के दुश्मन विवेक ओबेराय के साथ की फिल्म में काम करने से इंकार कर सलमान को खुश करने की कोशिश की। सलमान को छेड़ते वक्त और सलमान को रिझाने के दौरान उनका मकसद एक ही था, अपना लाभ। ऐसा ही उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ भी किया। अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म ‘पहेली’ के लिए उन्हें अमिताभ की आवश्यकता थी, तब कोरी चेकबुक भेजी, फिर जब सफलता के लिए उन्हीं शाहरुख ने खुद को बड़ा साबित करने अमिताभ के लिए बंबु डांस कहकर उनके डांस करने की स्टाइल की खिल्ली भी उड़ाते हैं। ‘मोहब्बतें’ के लिए अमिताभ से बड़ी भूमिका, दमदार संवाद और छा जाने वाले सीन प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। उधर खुले आम यह भी कह रहे हैं कि एक्टिंग की स्कूल के साथ काम कर रहा हूं। यह शाहरुख की फितरत है। उनके इस स्वभाव को सभी जान गए हैं। इसलिए न तो अमिताभ, न सलमान और न ही आमिर खान उनके बयानों को गंभीरता से लेते हैं। इनके मौन से ही सब कुछ समझ में आ जाता है।
एक समय ऐसा भी था, जब शाहरुख और फरहा खान की खूब जमती थी। वे फरहा को हमेशा मेरी अजीज दोस्त कहकर अवार्ड फंक्शन में मिनटों तक उसे बाहों में भर लेते थे। क्योंकि उस समय फरहा प्रोमिसिंग फिल्म मेकर मानी जाती थीं। सन 2000 में प्रदर्शित ‘मोहब्बतें’ के बाद लगातार 5 फिल्में उनके खाते में आईं। फरहा खान की ‘मैं हूं ना’ से उन्हें आशा जागी थी। इसके बाद तो ‘ओम शांति ओम’ के बाद फरहा के साथ ऐसा छूटा कि शाहरुख ने उनके पति शिरीष कुंदर को पत्नी से घबराने वाला पति कह दिया, उसके बाद एक फंक्शन में उन्हें थप्पड़ भी रसीद कर दिया। दूसरे दिन भले ही दोनों में सुलह हो गई, पर यह बात फरहा के दिल में चुभ गई। ‘माय नेम इज खान’ को सफल होना ही था, क्योंकि दो वर्ष से शाहरुख की एक भी ब्लॉक बस्टर फिल्म नहीं आई थी। दूसरी ओर सलमान, आमिर तेजी से आगे बढ़ रहे थे। इसलिए शाहरुख ने अमेरिका के एयरपोर्ट पर उनके साथ हुई कड़ी पूछताछ को विवाद के रूप में पेश किया। यहां पर पहली बार उन्होंने अपने अल्पसंख्यक कार्ड खेला। इसके बाद आईपीएल में वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख ने सुरक्षा गार्ड से बद्तमीजी की। पहले तो उन्होंने गार्ड पर यह आरोप लगाया कि उसने मेरे धर्म के खिलाफ कुछ कहा है, बाद में पता चला कि वह सुरक्षा गार्ड भी मुस्लिम है, तो शाहरुख ने अपना बचाव करते हुए कहा कि उसने मेरी संतानों को धक्का मारा था, इसलिए मैं अपने गुस्से को रोक नहीं पाया। सुरक्षा गार्ड से हुई झड़प को लोगों ने टीवी पर कई बार देखा भी होगा। आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को न खिलाने के मामले पर विरोध करने वाली शिवसेना के खिलाफ भी शाहरुख ने पहले तो अल्पसंख्यक कार्ड का ही इस्तेमाल किया। बाद में जब आईपीएल खत्म हो गया, तो सारे जहां से अच्छा की ट्यून बजाकर बाल ठाकरे, शिवसेना को प्रखर देशभक्त बताकर उनकी खुशामद भी की। यही नहीं, जब तक है जान, में स्वयं को एक सैनिक अधिकारी बताया, ताकि शिवसेना किसी भी प्रकार का विरोध ही न कर सके।
अब वही शाहरुख खान कह रहे हैं कि मैं बार-बार नेताओं का निशाना बनता रहा हूं। भारत में मुस्लिमों के साथ बहुत बुरा सलूक हो रहा है। उनकी निष्ठा को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। मैं उनका प्रतीक हूं। शाहरुख खान से यह पूछा जाए कि पिछले 25 सालों से जब हमें उनकी फिल्मों को सुपर-डुपर हिट बना रहे थे, तब उन्हें यह अहसास नहीं हुआ कि वे मुस्लिम हैं। फौेजी धारावाहिक में वे अभिनय के नाम पर क्या कर रहे थे, फिर भी हमने उन्हें सर आंखों पर बिठाया और उन्हें वालीवुड किंग बनाया। तब याद नहीं आया कि वे मुस्लिम हैं। अब अचानक ही आपको मुस्लिमों के लिए इंडिया अनकम्फर्टेबल लगने लगा। वक्त की नजाकत को समझते हुए उन्होंने फिर पैंतरा बदला और कहने लगे कि भारत में खुद को असुरक्षित कहे जाने संबंधी मीडिया में आए उनके कथित बयान पर उपजे विवाद को कोरी बकवास करार देते हुए कहा कि इसे लेकर बेवजह हंगामा खड़ा किया गया है। उन्होंने कहा कि लोग मेरे लेख को पढ़े बिना किसी तरह की टिप्पणी नहीं करे तो बेहतर होगा। मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही है। मुझे भारतीय होने पर गर्व है। मुझे इस देश में करोड़ों लोगों का प्यार मिला है। अब वे कह रहे हैं कि हम भारत में पूरी तरह महफूज और खुश हैं। मेरी सुरक्षा कभी कोई मुद्दा नहीं रहा है। ये तो कुछ लोग हैं जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाने का काम करते हैं और हम जैसे भारतीय मुसलमानों को इसके लिए इस्तेमाल करने की नापाक कोशिश करते हैं। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे किस तरह की फिल्मी राजनीति करते हैं। पल में तोला-पल में माशा जैसा मुहावरा उनके व्यक्तित्व को सही रूप में परिभाषित करता है।
डॉ. महेश परिमल
पाकिस्तान को शाहरुख खान की सुरक्षा की चिंता है। यह तो वही बात हुई कि घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने। जिस देश में केवल आतंकी ही सुरक्षित हों, वहॉं कोई भारतीय भला कैसे सुरक्षित रह सकता है? यह बात पाकिस्तान को समझ में नहीं आ रही है। पर शाहरुख खान को यह ब्रह्मज्ञान कहां से मिला, यह कोई बताना नहीं चाहता। इस समय देश भर से ऐसे-ऐसे बयान सामने आ रहे हैं कि ऐसा लगता है हम किसी असभ्य देश में रह रहे हैं। अभी तक जितने भी बयानवीर हमारे सामने आए हैं, वे सभी शिक्षित हैं, साथ ही अपने माध्यम से दूसरों को भी शिक्षित करने का काम करते हैं। यह बयानबाजी दिल्ली के राजनैतिक गलियारों को पार करती हुई बापू के सत्संग से होते हुए अब मायानगरी में जाकर फुल, लाइट, कैमरे में जाकर अटक गई है। यहां से जो बयान जारी हुआ, उसकी प्रतिक्रिया पाकिस्तान से आ रही है। यह विवादास्पद बयान किंग खान यानी शाहरुख खान की तरफ से आया है। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि मुझे हमेशा अपने नाम के कारण इस देश में राजनीति का शिकार होना पड़ा है। अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर मैं चिंतित रहता हूं। इस पर भारत से भले ही कोई प्रतिक्रिया न आई हो, पर पाकिस्तान में रहने वाले आतंकी हाफीज सईद ने उन्हें ससम्मान अपने यहां बुलाया है। समझ में नहीं आता है कि जिस देश की धरती पर शाहरुख रह रहे हैं, उनके पिता ने स्वतंत्रता की इसी देश में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, आज इतने वर्षो बाद उन्हें यह ब्रह्मज्ञान कहां से प्राप्त हो गया कि उनका पूरा समुदाय ही खतरे में दिखाई दे रहा है। भारतीय दर्शकों की अपार प्रशंसा पाने वाला यह कलाकार अपने कैरियर के ढाई दशक बाद और अपनी आयु के साढ़े चार दशक पार करने के बाद अपने मुस्लिम धर्म को स्वयं के लिए अड़चन मानता है। इसे बीसवीं सदी का सबसे बड़ा मजाक कहा जा सकता है। शाहरुख कोई सलमान खान नहीं है, जो अपनी उद्दंडता से पहचाना जाए, शाहरुख कोई आमिर खान भी नहीं है, जो बिना किसी विरोध के अपनी बात कहता हो, शाहरुख अमिताभ बच्चन भी नहीं है, जो हमेशा धुरंधर राजनीतिज्ञों को भी पानी पिलाने की कूब्बत रखता हो और उसी सज्जनता से व्यवहार करता हो, जो हर शब्द नाप-तौल कर बोलता है।
हम सब 1988 से शाहरुख को देख रहे हैं। उन्हें अब पहचानने भी लगे हैं। फौजी, सर्कस टीवी धारावाहिक में वे दिखाई देते थे। गाल पर गड्ढे पर अब उम्र हावी होने लगी है। वे हम सबके सामने ही बड़े हुए। फिल्मी परदे पर उनकी सारी हरकतों को हमने सर आंखों पर बिठाया। वे कभी राहुल बने, कभी राज मल्होत्रा बने, कभी डॉन बने। उनके हर रूप को हमने अपने कांधों पर लिया। उनकी अच्छी फिल्मों को सराहा, कभी झटका भी दिया। उसकी खुशी में हम नाचे, तो उसके गम में शरीक भी हुए। आज ढाई दशक बाद हमें यह मालूम है कि वो एक ऐसे शख्स हैं, जो अपनी अनुकूलताओं के बीच विवादों को सुलगाने में सलमान की तरह है, सयम अनुकूल हो, तब विवादास्पद बयान देकर अपनी दृढ़ता बताते समय वे आमिर खान की तरह सख्त हो जाते हैं और अपना स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद विवाद को विराम देने में अमिताभ की तरह डिप्लोमेटिक भी हैं। उनके जीवन के कुछ उतार-चढ़ाव को थोड़ा स्लो-मोशन में देखें, तो स्पष्ट होगा कि वे किस तरह के इंसान हैं:- एक जमाना था, जब वे कुंदन शाह, अजीज मिर्जा के साथ उनकी अच्छी जमती थी। टीवी के जमाने की वह दोस्ती ने ही राजू बन गया जेंटलमेन और कभी हां कभी ना, जैसी फिल्में मिली। इसके बाद कुंदन शाह के साथ कुछ विवाद हुआ, तो उन्होंने कुंदन शाह के लिए कहा-कुंदन थिंक्स एंड एक्ट लाइट मेजोरिटी हिंदू, और उनसे नाता तोड़ लिया। उधर अजीज मिर्जा को फाइनेंस करना जारी रखा। एक समय वे सलमान को अपना भाई कहते थे, उसी सलमान के साथ उनकी कैटरीना कैफ की बर्थ डे पार्टी पर जोरदार बहसबाजी हुई, आज दोनों के बीच अबोला है।
इसी तरह वीर-जारा के प्रदर्शन के समय जानबूझकर सलमान और ऐश्वर्या के संबंधों को लेकर अभद्र भाषा का प्रयोग सलमान के साथ आने वाली फिल्म ‘मुझसे शादी करोगे’ पर अपनी जीत हासिल करने की कोशिश की। इन्हीं दिनों आने वाली सलमान की फिल्म ‘द प्राइड आफ ऑनर’ के लिए शाहरुख ने यह कहा कि इस फिल्म का नाम ‘गर्व द फिल्म ऑफ फुलिश’ होना था। इसके बाद सलमान के सितारे बुलंद होते गए, वक्त की नजाकत को समझते हुए उन्होंने सलमान को उपहार भेजा और सलमान के दुश्मन विवेक ओबेराय के साथ की फिल्म में काम करने से इंकार कर सलमान को खुश करने की कोशिश की। सलमान को छेड़ते वक्त और सलमान को रिझाने के दौरान उनका मकसद एक ही था, अपना लाभ। ऐसा ही उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ भी किया। अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म ‘पहेली’ के लिए उन्हें अमिताभ की आवश्यकता थी, तब कोरी चेकबुक भेजी, फिर जब सफलता के लिए उन्हीं शाहरुख ने खुद को बड़ा साबित करने अमिताभ के लिए बंबु डांस कहकर उनके डांस करने की स्टाइल की खिल्ली भी उड़ाते हैं। ‘मोहब्बतें’ के लिए अमिताभ से बड़ी भूमिका, दमदार संवाद और छा जाने वाले सीन प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। उधर खुले आम यह भी कह रहे हैं कि एक्टिंग की स्कूल के साथ काम कर रहा हूं। यह शाहरुख की फितरत है। उनके इस स्वभाव को सभी जान गए हैं। इसलिए न तो अमिताभ, न सलमान और न ही आमिर खान उनके बयानों को गंभीरता से लेते हैं। इनके मौन से ही सब कुछ समझ में आ जाता है।
एक समय ऐसा भी था, जब शाहरुख और फरहा खान की खूब जमती थी। वे फरहा को हमेशा मेरी अजीज दोस्त कहकर अवार्ड फंक्शन में मिनटों तक उसे बाहों में भर लेते थे। क्योंकि उस समय फरहा प्रोमिसिंग फिल्म मेकर मानी जाती थीं। सन 2000 में प्रदर्शित ‘मोहब्बतें’ के बाद लगातार 5 फिल्में उनके खाते में आईं। फरहा खान की ‘मैं हूं ना’ से उन्हें आशा जागी थी। इसके बाद तो ‘ओम शांति ओम’ के बाद फरहा के साथ ऐसा छूटा कि शाहरुख ने उनके पति शिरीष कुंदर को पत्नी से घबराने वाला पति कह दिया, उसके बाद एक फंक्शन में उन्हें थप्पड़ भी रसीद कर दिया। दूसरे दिन भले ही दोनों में सुलह हो गई, पर यह बात फरहा के दिल में चुभ गई। ‘माय नेम इज खान’ को सफल होना ही था, क्योंकि दो वर्ष से शाहरुख की एक भी ब्लॉक बस्टर फिल्म नहीं आई थी। दूसरी ओर सलमान, आमिर तेजी से आगे बढ़ रहे थे। इसलिए शाहरुख ने अमेरिका के एयरपोर्ट पर उनके साथ हुई कड़ी पूछताछ को विवाद के रूप में पेश किया। यहां पर पहली बार उन्होंने अपने अल्पसंख्यक कार्ड खेला। इसके बाद आईपीएल में वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख ने सुरक्षा गार्ड से बद्तमीजी की। पहले तो उन्होंने गार्ड पर यह आरोप लगाया कि उसने मेरे धर्म के खिलाफ कुछ कहा है, बाद में पता चला कि वह सुरक्षा गार्ड भी मुस्लिम है, तो शाहरुख ने अपना बचाव करते हुए कहा कि उसने मेरी संतानों को धक्का मारा था, इसलिए मैं अपने गुस्से को रोक नहीं पाया। सुरक्षा गार्ड से हुई झड़प को लोगों ने टीवी पर कई बार देखा भी होगा। आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को न खिलाने के मामले पर विरोध करने वाली शिवसेना के खिलाफ भी शाहरुख ने पहले तो अल्पसंख्यक कार्ड का ही इस्तेमाल किया। बाद में जब आईपीएल खत्म हो गया, तो सारे जहां से अच्छा की ट्यून बजाकर बाल ठाकरे, शिवसेना को प्रखर देशभक्त बताकर उनकी खुशामद भी की। यही नहीं, जब तक है जान, में स्वयं को एक सैनिक अधिकारी बताया, ताकि शिवसेना किसी भी प्रकार का विरोध ही न कर सके।
अब वही शाहरुख खान कह रहे हैं कि मैं बार-बार नेताओं का निशाना बनता रहा हूं। भारत में मुस्लिमों के साथ बहुत बुरा सलूक हो रहा है। उनकी निष्ठा को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। मैं उनका प्रतीक हूं। शाहरुख खान से यह पूछा जाए कि पिछले 25 सालों से जब हमें उनकी फिल्मों को सुपर-डुपर हिट बना रहे थे, तब उन्हें यह अहसास नहीं हुआ कि वे मुस्लिम हैं। फौेजी धारावाहिक में वे अभिनय के नाम पर क्या कर रहे थे, फिर भी हमने उन्हें सर आंखों पर बिठाया और उन्हें वालीवुड किंग बनाया। तब याद नहीं आया कि वे मुस्लिम हैं। अब अचानक ही आपको मुस्लिमों के लिए इंडिया अनकम्फर्टेबल लगने लगा। वक्त की नजाकत को समझते हुए उन्होंने फिर पैंतरा बदला और कहने लगे कि भारत में खुद को असुरक्षित कहे जाने संबंधी मीडिया में आए उनके कथित बयान पर उपजे विवाद को कोरी बकवास करार देते हुए कहा कि इसे लेकर बेवजह हंगामा खड़ा किया गया है। उन्होंने कहा कि लोग मेरे लेख को पढ़े बिना किसी तरह की टिप्पणी नहीं करे तो बेहतर होगा। मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही है। मुझे भारतीय होने पर गर्व है। मुझे इस देश में करोड़ों लोगों का प्यार मिला है। अब वे कह रहे हैं कि हम भारत में पूरी तरह महफूज और खुश हैं। मेरी सुरक्षा कभी कोई मुद्दा नहीं रहा है। ये तो कुछ लोग हैं जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाने का काम करते हैं और हम जैसे भारतीय मुसलमानों को इसके लिए इस्तेमाल करने की नापाक कोशिश करते हैं। इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे किस तरह की फिल्मी राजनीति करते हैं। पल में तोला-पल में माशा जैसा मुहावरा उनके व्यक्तित्व को सही रूप में परिभाषित करता है।
डॉ. महेश परिमल