डॉ. महेश परिमल
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की सूची में सबसे ऊपर माने जाते हैं। भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी मोदी का समर्थन कई बार किया है। यही कारण है कि हाल ही में हुए चुनाव में नरेंद्र मोदी को वक्ता के रूप में कई राज्यों में भेजा गया। मोदी की लोकप्रियता से भाजपा के ही कई दिग्गज नेता भीतर ही भीतर आहत हैं। उनका सोचना है कि वे बरसों से राष्ट्रीय राजनीति में हैं, लेकिन अब क्षेत्रीय नेता नरेंद्र मोदी को आगे करके पार्टी उनके साथ अन्याय कर रही है। आहत नेताओं में सबसे ऊपर लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज हैं। ये लोग नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में लाना नहीं चाहते। पर हालात ऐसे बन रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को सामने लाए बिना भाजपा की नैया पार नहीं हो सकती। अब 8 और 9 जून को गोवा के पणजी में होने वाली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी का राजनैतिक कद मापा जाएगा। बैठक कई मामलों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। पर इतना तो तय है कि इस बार नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रचार अभियान की कमान सौंपी जा सकती है। एक ओर जहां इस बैठक में नक्सली हिंसा, भ्रष्टाचार घोटालों और महंगाई के मुद्दे पर केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्ववाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को नए सिरे से घेरने की रणनीति बनाने की तैयारी चल रही है, वहीं वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने श्री मोदी और श्री चौहान की तुलना करके नई बहस छेड़ दी है ।
इस बैठक में इसी साल होने वाले छह विधानसभा चुनावों के अगले लोकसभा चुनावों की तैयारी पर भी निर्णायक बहस होगी। जब लोकसभा चुनावों की रणनीति पर चर्चा होगी तो लाजिमी है कि प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का उम्मीदवार कौन हो यह सवाल जरुर उठेंगे। ऐसे में श्री आडवाणी ने श्री मोदी के साथ तुलना करते हुए श्री चौहान की तारीफों के जो पुल बांधे हैं, उससे इस पर पार्टी में मतभिन्नता खुलकर सामने आ सकती है। श्री आडवाणी ने दोनों मुख्यमंत्रियों की तुलना करते हुए यहां तक कहा है कि गुजरात तो पहले से स्वस्थ था और श्री मोदी ने उत्कृष्ट बना दिया लेकिन श्री चौहान की उपलब्धि इस मायने में सराहनीय है कि उन्होंने मध्यप्रदेश जैसे बीमारु राज्य को विकसित राज्यों की कतार में ला दिया। यही नहीं श्री चौहान द्वारा शुरु की गई जनकल्याण योजनाओं का अब दूसरे राज्य अनुसरण कर रहे हैं। श्री आडवाणी का कद भाजपा में इतना बड़ा है कि उनकी कथनी और करनी को फिलहाल चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। मोदी बनाम शिवराज की नई बहस की शुरुआत श्री आडवाणी के बयान से शुरु हुई है और पार्टी में हर कोई इस पर दो टूक राय देने से हिचकिचा रहा है। श्री चौहान की कार्यशैली लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी बहुत पसंद करती हैं और राज्य में विदिशा लोकसभा सीट से भारी मतों से पिछली बार चुनाव जीतने के बाद से मध्यप्रदेश उनका पसंदीदा राज्य बन गया है। बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में श्रीमती स्वराज ने श्री मोदी के वहां पर प्रचार करने की जरुरत नहीं बताई थी और इसके बाद दोनों नेताओं के बीच छिड़ा शीत युद्ध अभी तक थमा नहीं है। श्री आडवाणी के ताजा बयान ने श्री मोदी के साथ श्री चौहान को राजनाथ सिंह, श्रीमती सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी रेस में आगे कर दिया है। खुद भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि श्री चौहान के नाम पर कोई विवाद नहीं है। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि श्री चौहान लंबी रेस का घोड़ा साबित हो सकते हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलने की स्थिति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बाकी सहयोगी श्री मोदी के बजाय श्री चौहान के नाम पर आसानी से राजी हो सकते हैं। मोदी बनाम शिवराज का मुद्दा कहीं गोवा बैठक के बाकी मुद्दों पर ग्रहण न लगा दे । भजपा के लिए यही बेहतर होगा कि इस मुद्दे पर जितनी जल्दी हो सके, विराम लगा दे।
जमीनी स्तर पर जो हालात है, उसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर जनता में अच्छा रिस्पांस है। यह बात न केवल सवेंक्षण कह रहे हैं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पास जमीनी कार्यकर्ताओं की राय भी यही आ रही है। भाजपा में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्शन को लेकर उत्साह है जबकि आडवाणी की लाबी के नेता मुस्लिम पोलराइजेशन का डर बताकर मोदी के आगमन को रोक रहे हैं। मोदी ने दिल्ली आने की पहली सीढ़ी तो संसदीय बोर्ड में आकर पार कर ली है, लेकिन दूसरी सीढ़ी यह है कि लोकसभा चुनाव की कैम्पेन कमेटी की कमान हाथ में आए। लालकृष्ण आडवाणी ने यह सलाह दी कि अभी लोकसभा चुनाव तो दूर है इसलिए चार राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कैम्पेन कमेटी बना दी जाए जिसके लिए उन्होंने पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी का नाम सुझाया लेकिन यह फामरूला नहीं चला। गोवा बैठक से पहले पदाधिकारियों की बैठक होने वाली है, जिसमें एजेंडे पर चर्चा होगी। भाजपा चुनाव के लिए दो कैम्पेन कमेटी बनाने के बजाय एक कमेटी से काम चलाएगी और यही कमेटी लोकसभा और विधानसभा दोनों का कामकाज देखेगी। इस कमेटी की कमान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपने की पूरी तैयारी हो गई है। भाजपा में इस बात का तर्क दिया जा रहा है कि कैम्पेन कमेटी में नरेंद्र मोदी को ही रखा जाएगा क्योंकि यही कमेटी फिर लोकसभा चुनाव का संचालन भी देखेगी। कैम्पेन कमेटी भाजपा में एक तरीके से पूरे चुनाव का संचालन करती है और चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव प्रबंधन तक को देखती है। गोवा बैठक में मोदी को चुनाव प्रबंधन की कमान मिलने में रुकावट डालने की कोशिश जरूर हो रही है, लेकिन पार्टी का मन बन चुका है कि अब मोदी को आगे बढ़ाना है।
डॉ. महेश परिमल
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की सूची में सबसे ऊपर माने जाते हैं। भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी मोदी का समर्थन कई बार किया है। यही कारण है कि हाल ही में हुए चुनाव में नरेंद्र मोदी को वक्ता के रूप में कई राज्यों में भेजा गया। मोदी की लोकप्रियता से भाजपा के ही कई दिग्गज नेता भीतर ही भीतर आहत हैं। उनका सोचना है कि वे बरसों से राष्ट्रीय राजनीति में हैं, लेकिन अब क्षेत्रीय नेता नरेंद्र मोदी को आगे करके पार्टी उनके साथ अन्याय कर रही है। आहत नेताओं में सबसे ऊपर लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज हैं। ये लोग नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में लाना नहीं चाहते। पर हालात ऐसे बन रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को सामने लाए बिना भाजपा की नैया पार नहीं हो सकती। अब 8 और 9 जून को गोवा के पणजी में होने वाली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मोदी का राजनैतिक कद मापा जाएगा। बैठक कई मामलों में महत्वपूर्ण मानी जा रही है। पर इतना तो तय है कि इस बार नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रचार अभियान की कमान सौंपी जा सकती है। एक ओर जहां इस बैठक में नक्सली हिंसा, भ्रष्टाचार घोटालों और महंगाई के मुद्दे पर केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्ववाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार को नए सिरे से घेरने की रणनीति बनाने की तैयारी चल रही है, वहीं वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने श्री मोदी और श्री चौहान की तुलना करके नई बहस छेड़ दी है ।
इस बैठक में इसी साल होने वाले छह विधानसभा चुनावों के अगले लोकसभा चुनावों की तैयारी पर भी निर्णायक बहस होगी। जब लोकसभा चुनावों की रणनीति पर चर्चा होगी तो लाजिमी है कि प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का उम्मीदवार कौन हो यह सवाल जरुर उठेंगे। ऐसे में श्री आडवाणी ने श्री मोदी के साथ तुलना करते हुए श्री चौहान की तारीफों के जो पुल बांधे हैं, उससे इस पर पार्टी में मतभिन्नता खुलकर सामने आ सकती है। श्री आडवाणी ने दोनों मुख्यमंत्रियों की तुलना करते हुए यहां तक कहा है कि गुजरात तो पहले से स्वस्थ था और श्री मोदी ने उत्कृष्ट बना दिया लेकिन श्री चौहान की उपलब्धि इस मायने में सराहनीय है कि उन्होंने मध्यप्रदेश जैसे बीमारु राज्य को विकसित राज्यों की कतार में ला दिया। यही नहीं श्री चौहान द्वारा शुरु की गई जनकल्याण योजनाओं का अब दूसरे राज्य अनुसरण कर रहे हैं। श्री आडवाणी का कद भाजपा में इतना बड़ा है कि उनकी कथनी और करनी को फिलहाल चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। मोदी बनाम शिवराज की नई बहस की शुरुआत श्री आडवाणी के बयान से शुरु हुई है और पार्टी में हर कोई इस पर दो टूक राय देने से हिचकिचा रहा है। श्री चौहान की कार्यशैली लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज भी बहुत पसंद करती हैं और राज्य में विदिशा लोकसभा सीट से भारी मतों से पिछली बार चुनाव जीतने के बाद से मध्यप्रदेश उनका पसंदीदा राज्य बन गया है। बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में श्रीमती स्वराज ने श्री मोदी के वहां पर प्रचार करने की जरुरत नहीं बताई थी और इसके बाद दोनों नेताओं के बीच छिड़ा शीत युद्ध अभी तक थमा नहीं है। श्री आडवाणी के ताजा बयान ने श्री मोदी के साथ श्री चौहान को राजनाथ सिंह, श्रीमती सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी रेस में आगे कर दिया है। खुद भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि श्री चौहान के नाम पर कोई विवाद नहीं है। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया कि श्री चौहान लंबी रेस का घोड़ा साबित हो सकते हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलने की स्थिति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के बाकी सहयोगी श्री मोदी के बजाय श्री चौहान के नाम पर आसानी से राजी हो सकते हैं। मोदी बनाम शिवराज का मुद्दा कहीं गोवा बैठक के बाकी मुद्दों पर ग्रहण न लगा दे । भजपा के लिए यही बेहतर होगा कि इस मुद्दे पर जितनी जल्दी हो सके, विराम लगा दे।
जमीनी स्तर पर जो हालात है, उसमें गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर जनता में अच्छा रिस्पांस है। यह बात न केवल सवेंक्षण कह रहे हैं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पास जमीनी कार्यकर्ताओं की राय भी यही आ रही है। भाजपा में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री के तौर पर प्रोजेक्शन को लेकर उत्साह है जबकि आडवाणी की लाबी के नेता मुस्लिम पोलराइजेशन का डर बताकर मोदी के आगमन को रोक रहे हैं। मोदी ने दिल्ली आने की पहली सीढ़ी तो संसदीय बोर्ड में आकर पार कर ली है, लेकिन दूसरी सीढ़ी यह है कि लोकसभा चुनाव की कैम्पेन कमेटी की कमान हाथ में आए। लालकृष्ण आडवाणी ने यह सलाह दी कि अभी लोकसभा चुनाव तो दूर है इसलिए चार राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कैम्पेन कमेटी बना दी जाए जिसके लिए उन्होंने पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी का नाम सुझाया लेकिन यह फामरूला नहीं चला। गोवा बैठक से पहले पदाधिकारियों की बैठक होने वाली है, जिसमें एजेंडे पर चर्चा होगी। भाजपा चुनाव के लिए दो कैम्पेन कमेटी बनाने के बजाय एक कमेटी से काम चलाएगी और यही कमेटी लोकसभा और विधानसभा दोनों का कामकाज देखेगी। इस कमेटी की कमान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपने की पूरी तैयारी हो गई है। भाजपा में इस बात का तर्क दिया जा रहा है कि कैम्पेन कमेटी में नरेंद्र मोदी को ही रखा जाएगा क्योंकि यही कमेटी फिर लोकसभा चुनाव का संचालन भी देखेगी। कैम्पेन कमेटी भाजपा में एक तरीके से पूरे चुनाव का संचालन करती है और चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव प्रबंधन तक को देखती है। गोवा बैठक में मोदी को चुनाव प्रबंधन की कमान मिलने में रुकावट डालने की कोशिश जरूर हो रही है, लेकिन पार्टी का मन बन चुका है कि अब मोदी को आगे बढ़ाना है।
डॉ. महेश परिमल