डॉ. महेश परिमल
रुपया लगातार टूट रहा है, सरकार के माथे पर चिंता की रेखाएं गाढ़ी होती दिख रही हैं। रोजमर्रा के जीवन में लगातार टूटने वाला रुपया गंभीर असर दिखाएगा। टूटते रुपए को अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया गया है, पर जब यह आम लोगों के जीवन को प्रभावित करने लगे, तब यह समझना आवश्यक हो जाता है कि रुपया टूट रहा है, तो इसका असर आम लोगों पर क्या होगा और क्यों होगा? जब आम बजट आता है, तो उसमें बताया जाता है कि रुपया आता कहां से है और जाता कहां है। पर अभी जो रुपया है, वह लगातार घिस रहा है, इसका प्रभाव बहुत ही जल्द आम आदमी के जीवन में दिखाई देने लगेगा। रुपए का भाव गिरकर 62-63 तक पहुंच जाएगा। यह स्थिति दिसम्बर तक आएगी, तब चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। हालात यह होंगे कि सरकार के विरोध में मतदान होगा। सभी को याद है कि केवल प्याज के दाम बढ़ने से ही जनता दल सरकार गिर जाएगी। इसके पहले भी प्याज की बढ़ती कीमत ने दिल्ली सरकार बदल गई थी। दिसम्बर तक हालात ऐसे हो जाएंगे कि उस पर काबू करना मुश्किल होगा। तब तक संभवत: पेट्रोल-डीजल के भाव 10-15 रुपए तक बढ़ जाएं। निश्चित ही उस समय महंगाई का रौद्र रूप दिखाई देगा।
टूटता रुपया जितना वित्त मंत्रालय को प्रभावित करता है, उतना ही समाज कल्याण विभाग को भी प्रभावित करता है। यही नहीं इतना ही असर वह पेट्रोलियम मंत्रालय पर भी डालता है। जो कंपनियों विदेशी बैंकों से डॉलर लेती है, उन पर तो यह रुपया और अधिक असर दिखाएगा। एल्यूमिनियम जैसी धातु का आयात करने वाली कंपनियों का उत्पादन खर्च बढ़ेगा, फलस्वरूप टीवी, कार जैसी चीजों की कीमतों में बढ़ोत्तरी होगी। देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, तो यह सरकार के लिए भले ही परेशानी का कारण न हो, पर यदि उसका असर आम जीवन में पड़ता हो, तो यह निश्चित रूप से परेशानी का कारण है। एक तरफ प्रजा महंगाई से त्रस्त हो जाती है, तो दूसरी तरफ रुपया महंगाई का दबाव बढ़ाएगा। सरकार महंगाई पर काबू करने की कोशिश करेगी, निश्चित रूप से उसमें विफल भी साबित होगी,तो उसके खिलाफ विरोध शुरू हो जाएगा। सामने चुनाव होने के कारण सरकार कोई सख्त कदम भी नहीं उठा पाएगी, क्योंकि सहयोगी दल भी भावी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बनाएंगे,उसमें इस तरह के सख्त कदमों की आवश्यकता को ताक पर रख दिया जाएगा।
जो विद्यार्थी विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं, उनके लिए मुसीबतों के दिन शुरू हो गए हैं। उनके लिए चारों तरफ से परेशानी ही परेशानी है। जो विदेशों में पढ़ाई की योजना बना रहे हैं, उनके लिए भी दिन अच्छे नहीं हैं। इन विद्यार्थियों को अब वीजा से लेकर कॉलेज फीस तक अध्किा चुकानी होगी। विदेश प्रवास से जुड़े एजेंट कहते हैं कि रुपए के टूटने से धंधे में मंदी आ गई है। यह सब तो उच्च वर्ग की बातें हैं, पर मध्यम और निम्न वर्ग के लिए रुपए का टूटना कमर तोड़ने जैसा है। सरकार किसी भी तरह से पेट्रो कंपनियों का घाटा सहन नहीं कर सकती। हम पेट्रोल की जितनी खपत करते हैं, उतना उत्पादन नहीं करते, इसलिए विदेशों से पेट्रोल मंगाना पड़ता है। रुपए की कीमत कम होने से अब वह भी महंगा हो गया है। इसलिए पेट्रोल महंगा होगा ही। यदि चुनाव को देखते हुए पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ते, तो कंपनियों का घाटा बढ़ेगा, इस घाटे को सरकार उन्हें सबसिडी देकर कम करेगी। इसके बदले में सरकार न चाहते हुए भी प्रजा पर टैक्स का बोझ बढ़ाएगी। पेट्रोल-डीजल की कीमत पर निर्भर है, आवश्यक जिंसों की कीमत। निश्चित रूप से इनके भाव भी बढ़ेंगे। ऐसे में हवा सरकार के खिलाफ ही होगी। सरकार चाहे जितना भी दम लगा ले, महंगाई पर काबू नहीं पा सकती। प्रजा में सरकार का विरोध उनके द्वारा किए जाने वाले मतदान पर असर दिखाएगा।
महंगाई के बढ़ने के कारणों में से एक और कारण होगा, करंट एकाउंट डेफीशीट, यानी सीएडी, इसे भी समझना होगा। यह टर्म विदेशी चेक्स की आवक के साथ जुड़ी है। दूसरे शब्दों में इसे ट्रेड डेकीशीट कहा जा सकता है। यानी निर्यात की आवक और आयात की आवक के बीच का अंतर, इसमें एक्सपोर्ट सर्विस, नान रेसीडेंट भारतीय द्वारा भारत में भेजी गई राशि या फिर जो निवेश किया है आदि का समावेश होता है। सीएडी की ऊंची दर अर्थात आयात और निर्यात की आय में बढ़ने वाला अंतर। भारत में पिछले अक्टूबर-दिसम्बर के दौरान जीडीपी का 6.7 प्रतिशत सीएडी था। यूरोप और अमेरिका में भारतीया माल की मांग घटने से निर्यात भी घट गया। अब जब रुपया टूट रहा है, तब आयात महंगा साबित हो रहा है। विदेशी ब्रांड की चीजों का इस्तेमाल कम होगा, इसके साथ ही ई कामर्स में भी कटौती देखने को मिलेगी। टूटता रुपया अर्थतंत्र को भी तोड़ देगा, अभी तो मध्यम वर्ग कीमतों के बढ़ते ग्राफ को ही देख रहा है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉलर के मुकाबले रुपया टूटकर 62-63 तक पहुंच जाएगा। अभी डॉलर के मुकाबले रुपएा की कीमत 60.77 है। जब यह 42-43 तक पहुंचेगा, तब पेट्रोल-डीजल पर दस से 15 रुपए की वृद्धि होगी। सरकार का टेंशन यह है कि महंगाई अपना असर दिसम्बर के अंत तक दिखाएगी। तब चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे समय पर सरकार लाख कोशिश कर ले, महंगाई पर काबू नहीं पा सकती। तब सरकार के खिलाफ मतदान होगा। ऐसी स्थिति में सरकार का जाना तय है। जुलाई शुरू होने में अभी कुछ ही दिन शेष हैं। नवम्बर माह की पहली तारीख को धनतेरस है, अर्थात दिवाली में केवल चार महीने ही बाकी है। तब महंगाई लोगों की दिवाली बिगाड़ देगी। आर्थिक विश्लेषक कहते हैं कि यदि रुपया को नहीं थामा बया, तो हालात बेकाबू होते ही जाएंगे। अब सरकार को यह समझना है कि किस तरह से सख्त कदम उठाएं जाएं।
डॉ. महेश परिमल
रुपया लगातार टूट रहा है, सरकार के माथे पर चिंता की रेखाएं गाढ़ी होती दिख रही हैं। रोजमर्रा के जीवन में लगातार टूटने वाला रुपया गंभीर असर दिखाएगा। टूटते रुपए को अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया गया है, पर जब यह आम लोगों के जीवन को प्रभावित करने लगे, तब यह समझना आवश्यक हो जाता है कि रुपया टूट रहा है, तो इसका असर आम लोगों पर क्या होगा और क्यों होगा? जब आम बजट आता है, तो उसमें बताया जाता है कि रुपया आता कहां से है और जाता कहां है। पर अभी जो रुपया है, वह लगातार घिस रहा है, इसका प्रभाव बहुत ही जल्द आम आदमी के जीवन में दिखाई देने लगेगा। रुपए का भाव गिरकर 62-63 तक पहुंच जाएगा। यह स्थिति दिसम्बर तक आएगी, तब चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। हालात यह होंगे कि सरकार के विरोध में मतदान होगा। सभी को याद है कि केवल प्याज के दाम बढ़ने से ही जनता दल सरकार गिर जाएगी। इसके पहले भी प्याज की बढ़ती कीमत ने दिल्ली सरकार बदल गई थी। दिसम्बर तक हालात ऐसे हो जाएंगे कि उस पर काबू करना मुश्किल होगा। तब तक संभवत: पेट्रोल-डीजल के भाव 10-15 रुपए तक बढ़ जाएं। निश्चित ही उस समय महंगाई का रौद्र रूप दिखाई देगा।
टूटता रुपया जितना वित्त मंत्रालय को प्रभावित करता है, उतना ही समाज कल्याण विभाग को भी प्रभावित करता है। यही नहीं इतना ही असर वह पेट्रोलियम मंत्रालय पर भी डालता है। जो कंपनियों विदेशी बैंकों से डॉलर लेती है, उन पर तो यह रुपया और अधिक असर दिखाएगा। एल्यूमिनियम जैसी धातु का आयात करने वाली कंपनियों का उत्पादन खर्च बढ़ेगा, फलस्वरूप टीवी, कार जैसी चीजों की कीमतों में बढ़ोत्तरी होगी। देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, तो यह सरकार के लिए भले ही परेशानी का कारण न हो, पर यदि उसका असर आम जीवन में पड़ता हो, तो यह निश्चित रूप से परेशानी का कारण है। एक तरफ प्रजा महंगाई से त्रस्त हो जाती है, तो दूसरी तरफ रुपया महंगाई का दबाव बढ़ाएगा। सरकार महंगाई पर काबू करने की कोशिश करेगी, निश्चित रूप से उसमें विफल भी साबित होगी,तो उसके खिलाफ विरोध शुरू हो जाएगा। सामने चुनाव होने के कारण सरकार कोई सख्त कदम भी नहीं उठा पाएगी, क्योंकि सहयोगी दल भी भावी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बनाएंगे,उसमें इस तरह के सख्त कदमों की आवश्यकता को ताक पर रख दिया जाएगा।
जो विद्यार्थी विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं, उनके लिए मुसीबतों के दिन शुरू हो गए हैं। उनके लिए चारों तरफ से परेशानी ही परेशानी है। जो विदेशों में पढ़ाई की योजना बना रहे हैं, उनके लिए भी दिन अच्छे नहीं हैं। इन विद्यार्थियों को अब वीजा से लेकर कॉलेज फीस तक अध्किा चुकानी होगी। विदेश प्रवास से जुड़े एजेंट कहते हैं कि रुपए के टूटने से धंधे में मंदी आ गई है। यह सब तो उच्च वर्ग की बातें हैं, पर मध्यम और निम्न वर्ग के लिए रुपए का टूटना कमर तोड़ने जैसा है। सरकार किसी भी तरह से पेट्रो कंपनियों का घाटा सहन नहीं कर सकती। हम पेट्रोल की जितनी खपत करते हैं, उतना उत्पादन नहीं करते, इसलिए विदेशों से पेट्रोल मंगाना पड़ता है। रुपए की कीमत कम होने से अब वह भी महंगा हो गया है। इसलिए पेट्रोल महंगा होगा ही। यदि चुनाव को देखते हुए पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ते, तो कंपनियों का घाटा बढ़ेगा, इस घाटे को सरकार उन्हें सबसिडी देकर कम करेगी। इसके बदले में सरकार न चाहते हुए भी प्रजा पर टैक्स का बोझ बढ़ाएगी। पेट्रोल-डीजल की कीमत पर निर्भर है, आवश्यक जिंसों की कीमत। निश्चित रूप से इनके भाव भी बढ़ेंगे। ऐसे में हवा सरकार के खिलाफ ही होगी। सरकार चाहे जितना भी दम लगा ले, महंगाई पर काबू नहीं पा सकती। प्रजा में सरकार का विरोध उनके द्वारा किए जाने वाले मतदान पर असर दिखाएगा।
महंगाई के बढ़ने के कारणों में से एक और कारण होगा, करंट एकाउंट डेफीशीट, यानी सीएडी, इसे भी समझना होगा। यह टर्म विदेशी चेक्स की आवक के साथ जुड़ी है। दूसरे शब्दों में इसे ट्रेड डेकीशीट कहा जा सकता है। यानी निर्यात की आवक और आयात की आवक के बीच का अंतर, इसमें एक्सपोर्ट सर्विस, नान रेसीडेंट भारतीय द्वारा भारत में भेजी गई राशि या फिर जो निवेश किया है आदि का समावेश होता है। सीएडी की ऊंची दर अर्थात आयात और निर्यात की आय में बढ़ने वाला अंतर। भारत में पिछले अक्टूबर-दिसम्बर के दौरान जीडीपी का 6.7 प्रतिशत सीएडी था। यूरोप और अमेरिका में भारतीया माल की मांग घटने से निर्यात भी घट गया। अब जब रुपया टूट रहा है, तब आयात महंगा साबित हो रहा है। विदेशी ब्रांड की चीजों का इस्तेमाल कम होगा, इसके साथ ही ई कामर्स में भी कटौती देखने को मिलेगी। टूटता रुपया अर्थतंत्र को भी तोड़ देगा, अभी तो मध्यम वर्ग कीमतों के बढ़ते ग्राफ को ही देख रहा है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि डॉलर के मुकाबले रुपया टूटकर 62-63 तक पहुंच जाएगा। अभी डॉलर के मुकाबले रुपएा की कीमत 60.77 है। जब यह 42-43 तक पहुंचेगा, तब पेट्रोल-डीजल पर दस से 15 रुपए की वृद्धि होगी। सरकार का टेंशन यह है कि महंगाई अपना असर दिसम्बर के अंत तक दिखाएगी। तब चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे समय पर सरकार लाख कोशिश कर ले, महंगाई पर काबू नहीं पा सकती। तब सरकार के खिलाफ मतदान होगा। ऐसी स्थिति में सरकार का जाना तय है। जुलाई शुरू होने में अभी कुछ ही दिन शेष हैं। नवम्बर माह की पहली तारीख को धनतेरस है, अर्थात दिवाली में केवल चार महीने ही बाकी है। तब महंगाई लोगों की दिवाली बिगाड़ देगी। आर्थिक विश्लेषक कहते हैं कि यदि रुपया को नहीं थामा बया, तो हालात बेकाबू होते ही जाएंगे। अब सरकार को यह समझना है कि किस तरह से सख्त कदम उठाएं जाएं।
डॉ. महेश परिमल