आदर्श घोटाला रिपोर्ट:
डॉ. महेश परिमल
आदर्श घोटाला एक ऐसा घोटाला है, जिसमें परत-दर-परत नई-नई परतें खुलती जा रही हैं। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जब इसकी रिपोर्ट को पुनर्विचार के लिए पुन: महराष्ट्र सरकार के पास भेजी, उससे तो यही लगता था कि अब निश्चित रूप से इस पर पुनर्विचार होगा। लेकिन जो रिपोर्ट आई है, उससे नहीं लगता कि रिपोर्ट पर नए सिरे से विचार हुआ है। शायद राहुल गांधी इसी तरह की रिपोर्ट चाहते थे। जो उन्हें मिल गई। सच बात तो यह है कि रिपोर्ट में मंत्रियों को पूरी तरह से साफ-शफ्फाक बताया गया है। सारे मंत्रियों को एक सिरे से बचा लिया गया है। दोषी वही हैं, जो मंत्री नहीं हैं। इसे आंशिक रिपोर्ट कहा जाए, तो गलत न होगा। इस रिपोर्ट ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये ऐसे सवाल हैं, जो न केवल महाराष्ट्र सरकार बल्कि कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा करते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने जो रिपोर्ट भेजी थी, उस पर सबसे पहली और बड़ी आपत्ति राहुल गांधी को ही थी, इसीलिए उन्होंने रिपोर्ट को वापस भेज दी थी। अब उन्हें ही यह बताना होगा कि क्या वे ऐसी ही रिपोर्ट की आशा कर रहे थे। क्या उनके सामने ऐसी ही रिपोर्ट की छवि थी, जिसमें सभी नेताओं एवं मंत्रियों को बचा लिया जाए, बाकी सभी को दोषी माना जाए।
मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान से यह उम्मीद तो कतई न थी। देश में ऐसी कई रिपोर्ट हैं, जिस पर पुनर्विचार करना है, वे अभी भी धूल खा रही हैं। इस रिपोर्ट पर इतनी जल्दी विचार हो भी गया और मंत्रियों को बचा भी लिया गया। इसी तत्परता से अन्य रिपोटरें पर भी पुनर्विचार हो जाता, तो कितना अच्छा होता। इस रिपोर्ट से यह तो स्पष्ट हो गया है किहमेशा की तरह ही इस बार भी नौकरशाह ही दोषी पाए गए हैं। एक तरफ कांग्रेस भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए तरह-तरह के जतन कर रही है, दूसरी तरफ भ्रष्टाचार का पोषण करने वाली आधी-अधूरी रिपोर्ट को स्वीकार कर रही है। शायद इसी मकसद से राहुल गांधी ने रिपोर्ट को खारिज कर दी थी, क्योंकि उसमें नेताओं-मंत्रियों को भी दोषी बताया गया था। अभी जो रिपोर्ट आई है, उसमें मंत्रियों को पूरी तरह से संरक्षण मिल रहा है। एक अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि इस घोटाले में जिसने भी थोड़ी सी भी सहायता की, उसे फ्लैट मिला है। फिर वह चाहे सेना का अधिकारी हो, या फिर किसी मंत्री-नेता का संबंधी। इस रिपोर्ट के पुनर्विचार के नाम पर ऐसे फैसले को जायज बताने की कोशिश की गई है, जिसमें नेता और मंत्री पूरी तरह से संलिप्त हो। यह कैसी रिपोर्ट है, जिसमें नौकरशाहों पर कार्रवाई हो, और मंत्री-नेता साफ बच जाएं। इस रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया कि भ्रष्टाचार में गले तक डूबे नेताओं-मंत्रियों पर किसी भी तरह की कार्रवाई करना कितना मुश्किल है। जब आदर्श घोटाला चर्चा में था, तब सोनिया गांधी ने ही कहा था कि इस मसले को सुलझा लिया जाएगा। शायद उनका संकेत इसी तरफ था कि इसे इस तरह से सुलझा लिया जाएगा। किसी समस्या को सुलझाने का यह कौन सा तरीका है, जिसमें सभी दोषी हों, पर कुछ को बचा लिया जाए और कुछ को दोषी ठहरा दिया जाए।
देश में अब तक हुए तमाम घोटालों में यही सामने आया है कि जो भी राजनैतिक घोटाला होता है, उसमें नेता और मंत्री तो किसी भी तरह से दोषी नहीं पाए जाते, हमेशा नौकरशाह ही निशाने पर होता है। भ्रष्टाचार को शह देकर कांग्रेस कभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठा सकती। क्या सोनिया गांधी अब भी यह शिकायत करेंगी कि मीडिया को विपक्षी दलों के भ्रष्टाचार पर भी नजर डालनी चाहिए। ऐसी शिकायत तो वही कर सकता है जो भ्रष्टाचार के मामले में पूरी तरह से पाक-शफ्फाक होकर फैसले करता हो। इस दौरान वह इसकी भी परवाह नहीं करता, जो इसमें कौन अपना है और कौन पराया। यहां तो यह नजर आ रहा है कि दूसरे के भ्रष्टाचार में सभी नेता ही दोषी, और अपने भ्रष्टाचार में नेताओं को छोड़कर सभी दोषी। यह भी कोई बात हुई। वैसे भी कांग्रेस पर यह आरोप लगता रहा है कि वह भ्रष्टाचार की पोषक है। भ्रष्टाचार के मामलों में आधी-अधूरी और एक पक्षीय कार्रवाई करके कांग्रेस आखिर क्या हासिल करना चाहती है? इससे उसे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। नेताओं द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के प्रति राजनीतिक दलों का रवैया अभी भी दिखावटी है। पृथ्वीराज चौहान ऐसा कैसे कह सकते हैं कि आदर्श घोटाले में जो भी गलत हुआ, उसे नौकरशाहों ने किया। जो सही हुआ, वह नेताओं-मंत्रियों ने किया। यह हास्यास्पद है। जस्टिस पाटिल की रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि आदर्श घोटाले में नेताओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। उसे कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। एक तरह से जस्टिस पाटिल की रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया गया है। इसे लोकतंत्र तो कतई नहीं कहा जा सकता।
महाराष्ट्र सरकार के पुनर्विचार के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चौहान का मामला वहीं के वहीं है। सीबीआई उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहती है, पर राज्यपाल इसकी अनुमति नहीं दे रहे हैं। हमेशा यही कहा जाता है कि राज्यपाल के फैसले में सरकार और पार्टी की कोई भूमिका नहीं होती। पर देखा यही जा रहा है कि राज्यपाल वही फैसले लेते हैं, जो पार्टी चाहती है। इस मामले में भी यही बात सामने आई है। पुनर्विचार रिपोर्ट के माध्यम से कांग्रेस स्वयं को निरापद नहीं रख पाई है। यह रिपोर्ट उसके लिए महंगी साबित होगी। उस स्थिति में जब आज पूरा देश भ्रष्टाचार की ही चर्चा है। इसमें कांग्रेस को सबसे आगे माना जा रहा है।
डॉ. महेश परिमल
डॉ. महेश परिमल
आदर्श घोटाला एक ऐसा घोटाला है, जिसमें परत-दर-परत नई-नई परतें खुलती जा रही हैं। कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जब इसकी रिपोर्ट को पुनर्विचार के लिए पुन: महराष्ट्र सरकार के पास भेजी, उससे तो यही लगता था कि अब निश्चित रूप से इस पर पुनर्विचार होगा। लेकिन जो रिपोर्ट आई है, उससे नहीं लगता कि रिपोर्ट पर नए सिरे से विचार हुआ है। शायद राहुल गांधी इसी तरह की रिपोर्ट चाहते थे। जो उन्हें मिल गई। सच बात तो यह है कि रिपोर्ट में मंत्रियों को पूरी तरह से साफ-शफ्फाक बताया गया है। सारे मंत्रियों को एक सिरे से बचा लिया गया है। दोषी वही हैं, जो मंत्री नहीं हैं। इसे आंशिक रिपोर्ट कहा जाए, तो गलत न होगा। इस रिपोर्ट ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ये ऐसे सवाल हैं, जो न केवल महाराष्ट्र सरकार बल्कि कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा करते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने जो रिपोर्ट भेजी थी, उस पर सबसे पहली और बड़ी आपत्ति राहुल गांधी को ही थी, इसीलिए उन्होंने रिपोर्ट को वापस भेज दी थी। अब उन्हें ही यह बताना होगा कि क्या वे ऐसी ही रिपोर्ट की आशा कर रहे थे। क्या उनके सामने ऐसी ही रिपोर्ट की छवि थी, जिसमें सभी नेताओं एवं मंत्रियों को बचा लिया जाए, बाकी सभी को दोषी माना जाए।
मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान से यह उम्मीद तो कतई न थी। देश में ऐसी कई रिपोर्ट हैं, जिस पर पुनर्विचार करना है, वे अभी भी धूल खा रही हैं। इस रिपोर्ट पर इतनी जल्दी विचार हो भी गया और मंत्रियों को बचा भी लिया गया। इसी तत्परता से अन्य रिपोटरें पर भी पुनर्विचार हो जाता, तो कितना अच्छा होता। इस रिपोर्ट से यह तो स्पष्ट हो गया है किहमेशा की तरह ही इस बार भी नौकरशाह ही दोषी पाए गए हैं। एक तरफ कांग्रेस भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए तरह-तरह के जतन कर रही है, दूसरी तरफ भ्रष्टाचार का पोषण करने वाली आधी-अधूरी रिपोर्ट को स्वीकार कर रही है। शायद इसी मकसद से राहुल गांधी ने रिपोर्ट को खारिज कर दी थी, क्योंकि उसमें नेताओं-मंत्रियों को भी दोषी बताया गया था। अभी जो रिपोर्ट आई है, उसमें मंत्रियों को पूरी तरह से संरक्षण मिल रहा है। एक अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि इस घोटाले में जिसने भी थोड़ी सी भी सहायता की, उसे फ्लैट मिला है। फिर वह चाहे सेना का अधिकारी हो, या फिर किसी मंत्री-नेता का संबंधी। इस रिपोर्ट के पुनर्विचार के नाम पर ऐसे फैसले को जायज बताने की कोशिश की गई है, जिसमें नेता और मंत्री पूरी तरह से संलिप्त हो। यह कैसी रिपोर्ट है, जिसमें नौकरशाहों पर कार्रवाई हो, और मंत्री-नेता साफ बच जाएं। इस रिपोर्ट ने यह साबित कर दिया कि भ्रष्टाचार में गले तक डूबे नेताओं-मंत्रियों पर किसी भी तरह की कार्रवाई करना कितना मुश्किल है। जब आदर्श घोटाला चर्चा में था, तब सोनिया गांधी ने ही कहा था कि इस मसले को सुलझा लिया जाएगा। शायद उनका संकेत इसी तरफ था कि इसे इस तरह से सुलझा लिया जाएगा। किसी समस्या को सुलझाने का यह कौन सा तरीका है, जिसमें सभी दोषी हों, पर कुछ को बचा लिया जाए और कुछ को दोषी ठहरा दिया जाए।
देश में अब तक हुए तमाम घोटालों में यही सामने आया है कि जो भी राजनैतिक घोटाला होता है, उसमें नेता और मंत्री तो किसी भी तरह से दोषी नहीं पाए जाते, हमेशा नौकरशाह ही निशाने पर होता है। भ्रष्टाचार को शह देकर कांग्रेस कभी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठा सकती। क्या सोनिया गांधी अब भी यह शिकायत करेंगी कि मीडिया को विपक्षी दलों के भ्रष्टाचार पर भी नजर डालनी चाहिए। ऐसी शिकायत तो वही कर सकता है जो भ्रष्टाचार के मामले में पूरी तरह से पाक-शफ्फाक होकर फैसले करता हो। इस दौरान वह इसकी भी परवाह नहीं करता, जो इसमें कौन अपना है और कौन पराया। यहां तो यह नजर आ रहा है कि दूसरे के भ्रष्टाचार में सभी नेता ही दोषी, और अपने भ्रष्टाचार में नेताओं को छोड़कर सभी दोषी। यह भी कोई बात हुई। वैसे भी कांग्रेस पर यह आरोप लगता रहा है कि वह भ्रष्टाचार की पोषक है। भ्रष्टाचार के मामलों में आधी-अधूरी और एक पक्षीय कार्रवाई करके कांग्रेस आखिर क्या हासिल करना चाहती है? इससे उसे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। नेताओं द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के प्रति राजनीतिक दलों का रवैया अभी भी दिखावटी है। पृथ्वीराज चौहान ऐसा कैसे कह सकते हैं कि आदर्श घोटाले में जो भी गलत हुआ, उसे नौकरशाहों ने किया। जो सही हुआ, वह नेताओं-मंत्रियों ने किया। यह हास्यास्पद है। जस्टिस पाटिल की रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि आदर्श घोटाले में नेताओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। उसे कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। एक तरह से जस्टिस पाटिल की रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया गया है। इसे लोकतंत्र तो कतई नहीं कहा जा सकता।
महाराष्ट्र सरकार के पुनर्विचार के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चौहान का मामला वहीं के वहीं है। सीबीआई उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहती है, पर राज्यपाल इसकी अनुमति नहीं दे रहे हैं। हमेशा यही कहा जाता है कि राज्यपाल के फैसले में सरकार और पार्टी की कोई भूमिका नहीं होती। पर देखा यही जा रहा है कि राज्यपाल वही फैसले लेते हैं, जो पार्टी चाहती है। इस मामले में भी यही बात सामने आई है। पुनर्विचार रिपोर्ट के माध्यम से कांग्रेस स्वयं को निरापद नहीं रख पाई है। यह रिपोर्ट उसके लिए महंगी साबित होगी। उस स्थिति में जब आज पूरा देश भ्रष्टाचार की ही चर्चा है। इसमें कांग्रेस को सबसे आगे माना जा रहा है।
डॉ. महेश परिमल
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