डॉ. महेश परिमल
नई सरकार को रातों-रात काम करने वाली सरकार बनना है, शायद वह यह सोच रही है कि जल्दबाजी में ऐसे काम किए जाएं, जिससे लोग महंगाई को भूल जाएं। वह अपनी छवि सुधारना चाहती है। इसमें कोई बुरा नहीं है। इसका मतलब यह कतई नहीं होता कि जल्दबाजी में कुछ ऐसा हो जाए, जिससे जनता का ध्यान बंट जाए। हाल ही में सरकार ने नई पर्यावरण नीति की घोषणा की है। पर्यावरण और विकास दोनों ही साथ रहें, ऐसी सोच अब तक किसी सरकार में नहीं देखी गई। आमतौर पर सरकार ऐसी नीतियां बनाती हैं, जिससे पर्यावरण का संरक्षण तो कम पर विनाश अधिक होता है। कहा यह जाता है कि इन नीतियोंसे पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ विकास होगा, पर ऐसा होता नहीं है, बल्कि विकास के नाम पर विनाश ही अधिक होता है। विकास के नाम पर मोदी सरकार ने पर्यावरण के कारण अटके प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाना चाहती है। इसलिए पहले इसकी समयसीमा 105 दिन थी, उसे घटाकर 60 दिन कर दिया गया है। सरकार की यह जल्दबाजी पर्यावरण और वन्यजीवों के लिए हानिकारक है। देश की पर्यावरण नीति गलत दिशा में जा रही है। इसके लक्षण अभी से दिखाई दे रहे हैं।
कितने ही प्रोजेक्ट्स ऐसे होते हैं, जिन्हें पर्यावरणीय अनुमति की आवश्यकता होती है। अनुमति प्राप्त होने में कई बार देर हो जाती है। किसी प्रोजेक्ट से पर्यावरण को किस तरह से हानि हो सकती है, इसकी जानकारी रातों-रात पता नहीं चलती। उसके लिए पर्यावरणविदों की एक टीम अध्ययन करती है, शोध करती है, ताकि पता चल सके कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को किस तरह से हानि होगी। कई प्रोजेक्ट के खिलाफ पर्यावरणविद लामबंद भी होते हैं। इस पर सरकार उन पर यह आरोप लगाती है कि वे लोग विकास का विरोध कर रहे हैं। सरकार इन विरोधों को गंभीरता से नहीं लेती। कुछ ऐसा ही मोदी सरकार कर रही है। वह प्रोजेक्ट्स को धड़ाधड़ अनुमति देकर विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ना चाहती है।
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पद संभालते ही यह संकेत दे दिया कि अब पर्यावरण संबंधित प्रोजेक्ट की अनुमति में विलम्ब नहीं होगा। अभी सरकार के पास एन्वायरमेंट क्लिरियंस के लिए आने वाले 358 प्रोजेक्ट विचाराधीन हैं। ये प्रोजेक्ट इसलिए विचाराधीन हैं, क्योंकि इस पर विचार-मंथन चल रहा है। मान लो किसी प्रोजेक्ट में प्राणी अभयारण्य आ रहा हो, तो प्रोजेक्ट स्थापित किए जाने के बाद वह वहां के प्राणी अभयारण्य को किस तरह से नुकसान पहुंचाएगा? वहां के प्राणियों का संरक्षण किस तरह से किया जाएगा? प्राणी संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट किस तरह का कार्य करेगा आदि तथ्यों पर विचार किया जाता है। अधिकांश मामलों में यही होता है कि पूरा अध्ययन के बाद यह बात सामने आती है कि प्रोजेक्ट के स्थापित होने से पर्यावरण को नुकसान अधिक होगा, इसलिए उन प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिल पाती। लेकिन अब सरकार जल्दबाजी में कई प्रोजेक्ट को मंजूरी देने वाली है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होगा, यह तय है। नई सरकार की इस तरह की पहल भविष्य में पर्यावरणीय नुकसान के लिए दोषी होगी। सरकार ने अब नीति बनाई है, जिसमें प्रोजेक्ट स्थापित करने के इच्छुक कंपनी ही यह तय करेगी कि उनके प्रोजेक्ट के असर का पर्यावरणीय अध्ययन कौन करेगा? यानी यदि ए नाम की कोई कंपनी जंगल के पास या पर्यावरण को हानि पहुंचाए, इस तरह से वह प्रोजेक्ट स्थापित करती है, तो उसे ही यह तय करना होगा कि वे कौन सी कंपनियां होंगी, जो यह इस बात की जांच करेंगी कि कंपनी द्वारा स्थापित प्रोजेक्ट से पर्यावरण को हानि पहुंचेगी या नहीं। यह तो वही बात हुई कि अपराधी से कहा जाए कि तुम निर्दोष हो, इसके लिए चार ऐसे इंसानों को सामने लाओ, जो तुम्हें निर्दोष बताए। तय है कि इसमें भ्रष्टाचार होगा ही। कंपनी उन्हीं संस्थाओं को जांच के लिए सामने लाएगी, जो उसके समर्थन में रिपोर्ट देंगी। इससे कंपनी भी स्थापित हो जाएगी और पर्यावरण को नुकसान होगा, सो अलग। पिछली सरकार प्रोजेक्ट की फाइल आने के बाद 105 दिनों के अंदर उसे पर्यावरणीय मंजूरी देनी है या नहीं, यह तय करने का नियम रखा था। यानी प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने वाली कंपनी को कम से कम 105 दिन तक तो इंतजार करना ही होता था। इसके बाद भी यह इंतजार काफी लंबा हो जाता था, इसलिए प्रोजेक्ट ताक पर रख दिए जाते थे। यूपीए सरकार के समय आखिर-आखिर में जयंती नटराजन जब पर्यावरण मंत्री थीं, तब उन्होंने ऐसे बहाने बनाकर कई प्रोजेक्ट को दबा कर रख दिया था। परिणामस्वरूप काफी आलोचना हुइ। उन्हें मंत्रीपद छोड़ना पड़ा था।
नई सरकार ने 105 दिन की इस समय सीमा को 60 दिन कर दिया है। ये 60 दिन पूरी तरह से सख्त होकर अमल करने का है, यदि अमल में नहीं लाया जाता, तो संबंधित विभाग-अधिकारी को दंड दिया जाएगा, ऐसा प्रावधान भी किया गया है। यह काम सरलता से हो, इसके लिए कितने ही काम ऑनलाइन हो जाएं, इसकी सुविधा भी दी जाएगी। परंतु हकीकत यह है कि पर्यावरण के तमाम प्रोजेक्ट्स का अध्ययन 60 दिनों में संभव ही नहीं है। मान लो किसी पक्षी अभयारण्य के आसपास कोई प्रोजेक्ट स्थापित किया जाना है। कंपनी इसके लिए सरकार को ग्रीष्म ऋतु में फाइल देती है। इसके बाद 60 दिनों के नियम के अनुसार उस प्रोजेक्ट के लिए हां या ना कह दिया जाता है। किंतु पक्षी अभयारण्य में कितने ही अप्रवासी पक्षी केवल शीत ऋतु में ही आते हैं। इसे सरकार समझ नहीं पाएगी। शीत ऋतु में जब यायावर पक्षी वहां पहुंचेंगे, तब तो उन्हें पता चलेगा कि जहां उन्हें अंडे देने हैं, वहां तो फैक्टरी बन रही है। इस तरह से जल्दबाजी में यदि निर्णय ले लेती है, तो पक्षी अभयारण्य का क्या होगा? भूतकाल में नर्मदा बांध, कुंदनकुलम परमाणु संयंत्र, निरमा प्रोजेक्ट, नियमागिरी में पॉस्को स्टील कारखाना आदि का काफी विरोध हुआ। कितने ही विरोध सही होने के कारण प्रोजेक्ट बंद भी कर दिए गए। पर कई स्थानों पर गलत इरादे के कारण विरोध भी होता आया है। सरकार ने इस मुद्दे को भी ध्यान में रखा है। नए नियम के अनुसार प्रोजेक्ट की घोषणा होने के दो महीने बाद यदि किसी संगठन या व्यक्ति द्वारा विरोध नहीं किया जाता, तो यह मान लिया जाएगा कि इस प्रोजेक्ट से किसी को भी किसी तरह का नुकसान नहीं हो रहा है। पर्यावरणविद सरकार के कितने ही फैसलों को चुनौती दी है। जैसा कि प्रोजेक्ट की मंजूरी के लिए समयसीमा तय होनी चाहिए। मंजूरी के लिए प्रक्रिया ऑनलाइन भी होनी चाहिए। प्रोजेक्ट में किसी प्रकार का विलंब न हो, यह सरकार की मंशा है, इससे कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं नाराज भी हैं।
सरकार इतने पर भी खामोश नहीं है। भूतकाल में न जाने कितने रद्द हुए प्रोजेक्ट्स को सरकार पर्यावरणीय मंजूरी देना चाह रही है। यह भी पर्यावरण की दिशा में एक नुकसानदेह कदम साबित होगा। क्योंकि पर्यावरण का नुकसान हो रहा है, इसीलिए पॉस्को की योजना धराशायी हो गई, यदि इसे मंजूरी मिल गई होती, तो उड़ीसा में स्थापित होने वाला यह सबसे बड़ा स्टील प्लांट होता। गोवा में खनन कार्य बंद हो गया है। नई सरकार ये सब फिर से शुरू करना चाहती है। यदि यह सब होता रहा, तो किस तरह से पर्यावरण का संरक्षण हो पाएगा। वैसे भी भाजपा सरकार पर यह आरोप है कि वह उद्योगपतियों को संरक्षण देती है। ऐसे में वह अपनी दलगत नीति से अलग तो नहीं हो सकती। तब तो फिर पर्यावरण के संरक्षण की बात करना ही बेमानी है। इस समय सरकार के पास पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जो पेंडिंग प्रोजेक्ट हैं, उसकी संख्या 358 है। इसमें औद्योगिक137, इंफ्रास्टक्चर 69, अन्य खानें 63, कोयले की खान 36, रीवर वेली 21, नए निर्माण 17 और थर्मल प्रोजेक्ट के 14 प्रोजेक्ट पेंडिंग हैं।
डॉ. महेश परिमल
नई सरकार को रातों-रात काम करने वाली सरकार बनना है, शायद वह यह सोच रही है कि जल्दबाजी में ऐसे काम किए जाएं, जिससे लोग महंगाई को भूल जाएं। वह अपनी छवि सुधारना चाहती है। इसमें कोई बुरा नहीं है। इसका मतलब यह कतई नहीं होता कि जल्दबाजी में कुछ ऐसा हो जाए, जिससे जनता का ध्यान बंट जाए। हाल ही में सरकार ने नई पर्यावरण नीति की घोषणा की है। पर्यावरण और विकास दोनों ही साथ रहें, ऐसी सोच अब तक किसी सरकार में नहीं देखी गई। आमतौर पर सरकार ऐसी नीतियां बनाती हैं, जिससे पर्यावरण का संरक्षण तो कम पर विनाश अधिक होता है। कहा यह जाता है कि इन नीतियोंसे पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ विकास होगा, पर ऐसा होता नहीं है, बल्कि विकास के नाम पर विनाश ही अधिक होता है। विकास के नाम पर मोदी सरकार ने पर्यावरण के कारण अटके प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाना चाहती है। इसलिए पहले इसकी समयसीमा 105 दिन थी, उसे घटाकर 60 दिन कर दिया गया है। सरकार की यह जल्दबाजी पर्यावरण और वन्यजीवों के लिए हानिकारक है। देश की पर्यावरण नीति गलत दिशा में जा रही है। इसके लक्षण अभी से दिखाई दे रहे हैं।
कितने ही प्रोजेक्ट्स ऐसे होते हैं, जिन्हें पर्यावरणीय अनुमति की आवश्यकता होती है। अनुमति प्राप्त होने में कई बार देर हो जाती है। किसी प्रोजेक्ट से पर्यावरण को किस तरह से हानि हो सकती है, इसकी जानकारी रातों-रात पता नहीं चलती। उसके लिए पर्यावरणविदों की एक टीम अध्ययन करती है, शोध करती है, ताकि पता चल सके कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को किस तरह से हानि होगी। कई प्रोजेक्ट के खिलाफ पर्यावरणविद लामबंद भी होते हैं। इस पर सरकार उन पर यह आरोप लगाती है कि वे लोग विकास का विरोध कर रहे हैं। सरकार इन विरोधों को गंभीरता से नहीं लेती। कुछ ऐसा ही मोदी सरकार कर रही है। वह प्रोजेक्ट्स को धड़ाधड़ अनुमति देकर विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ना चाहती है।
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पद संभालते ही यह संकेत दे दिया कि अब पर्यावरण संबंधित प्रोजेक्ट की अनुमति में विलम्ब नहीं होगा। अभी सरकार के पास एन्वायरमेंट क्लिरियंस के लिए आने वाले 358 प्रोजेक्ट विचाराधीन हैं। ये प्रोजेक्ट इसलिए विचाराधीन हैं, क्योंकि इस पर विचार-मंथन चल रहा है। मान लो किसी प्रोजेक्ट में प्राणी अभयारण्य आ रहा हो, तो प्रोजेक्ट स्थापित किए जाने के बाद वह वहां के प्राणी अभयारण्य को किस तरह से नुकसान पहुंचाएगा? वहां के प्राणियों का संरक्षण किस तरह से किया जाएगा? प्राणी संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट किस तरह का कार्य करेगा आदि तथ्यों पर विचार किया जाता है। अधिकांश मामलों में यही होता है कि पूरा अध्ययन के बाद यह बात सामने आती है कि प्रोजेक्ट के स्थापित होने से पर्यावरण को नुकसान अधिक होगा, इसलिए उन प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिल पाती। लेकिन अब सरकार जल्दबाजी में कई प्रोजेक्ट को मंजूरी देने वाली है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होगा, यह तय है। नई सरकार की इस तरह की पहल भविष्य में पर्यावरणीय नुकसान के लिए दोषी होगी। सरकार ने अब नीति बनाई है, जिसमें प्रोजेक्ट स्थापित करने के इच्छुक कंपनी ही यह तय करेगी कि उनके प्रोजेक्ट के असर का पर्यावरणीय अध्ययन कौन करेगा? यानी यदि ए नाम की कोई कंपनी जंगल के पास या पर्यावरण को हानि पहुंचाए, इस तरह से वह प्रोजेक्ट स्थापित करती है, तो उसे ही यह तय करना होगा कि वे कौन सी कंपनियां होंगी, जो यह इस बात की जांच करेंगी कि कंपनी द्वारा स्थापित प्रोजेक्ट से पर्यावरण को हानि पहुंचेगी या नहीं। यह तो वही बात हुई कि अपराधी से कहा जाए कि तुम निर्दोष हो, इसके लिए चार ऐसे इंसानों को सामने लाओ, जो तुम्हें निर्दोष बताए। तय है कि इसमें भ्रष्टाचार होगा ही। कंपनी उन्हीं संस्थाओं को जांच के लिए सामने लाएगी, जो उसके समर्थन में रिपोर्ट देंगी। इससे कंपनी भी स्थापित हो जाएगी और पर्यावरण को नुकसान होगा, सो अलग। पिछली सरकार प्रोजेक्ट की फाइल आने के बाद 105 दिनों के अंदर उसे पर्यावरणीय मंजूरी देनी है या नहीं, यह तय करने का नियम रखा था। यानी प्रोजेक्ट प्रस्तुत करने वाली कंपनी को कम से कम 105 दिन तक तो इंतजार करना ही होता था। इसके बाद भी यह इंतजार काफी लंबा हो जाता था, इसलिए प्रोजेक्ट ताक पर रख दिए जाते थे। यूपीए सरकार के समय आखिर-आखिर में जयंती नटराजन जब पर्यावरण मंत्री थीं, तब उन्होंने ऐसे बहाने बनाकर कई प्रोजेक्ट को दबा कर रख दिया था। परिणामस्वरूप काफी आलोचना हुइ। उन्हें मंत्रीपद छोड़ना पड़ा था।
नई सरकार ने 105 दिन की इस समय सीमा को 60 दिन कर दिया है। ये 60 दिन पूरी तरह से सख्त होकर अमल करने का है, यदि अमल में नहीं लाया जाता, तो संबंधित विभाग-अधिकारी को दंड दिया जाएगा, ऐसा प्रावधान भी किया गया है। यह काम सरलता से हो, इसके लिए कितने ही काम ऑनलाइन हो जाएं, इसकी सुविधा भी दी जाएगी। परंतु हकीकत यह है कि पर्यावरण के तमाम प्रोजेक्ट्स का अध्ययन 60 दिनों में संभव ही नहीं है। मान लो किसी पक्षी अभयारण्य के आसपास कोई प्रोजेक्ट स्थापित किया जाना है। कंपनी इसके लिए सरकार को ग्रीष्म ऋतु में फाइल देती है। इसके बाद 60 दिनों के नियम के अनुसार उस प्रोजेक्ट के लिए हां या ना कह दिया जाता है। किंतु पक्षी अभयारण्य में कितने ही अप्रवासी पक्षी केवल शीत ऋतु में ही आते हैं। इसे सरकार समझ नहीं पाएगी। शीत ऋतु में जब यायावर पक्षी वहां पहुंचेंगे, तब तो उन्हें पता चलेगा कि जहां उन्हें अंडे देने हैं, वहां तो फैक्टरी बन रही है। इस तरह से जल्दबाजी में यदि निर्णय ले लेती है, तो पक्षी अभयारण्य का क्या होगा? भूतकाल में नर्मदा बांध, कुंदनकुलम परमाणु संयंत्र, निरमा प्रोजेक्ट, नियमागिरी में पॉस्को स्टील कारखाना आदि का काफी विरोध हुआ। कितने ही विरोध सही होने के कारण प्रोजेक्ट बंद भी कर दिए गए। पर कई स्थानों पर गलत इरादे के कारण विरोध भी होता आया है। सरकार ने इस मुद्दे को भी ध्यान में रखा है। नए नियम के अनुसार प्रोजेक्ट की घोषणा होने के दो महीने बाद यदि किसी संगठन या व्यक्ति द्वारा विरोध नहीं किया जाता, तो यह मान लिया जाएगा कि इस प्रोजेक्ट से किसी को भी किसी तरह का नुकसान नहीं हो रहा है। पर्यावरणविद सरकार के कितने ही फैसलों को चुनौती दी है। जैसा कि प्रोजेक्ट की मंजूरी के लिए समयसीमा तय होनी चाहिए। मंजूरी के लिए प्रक्रिया ऑनलाइन भी होनी चाहिए। प्रोजेक्ट में किसी प्रकार का विलंब न हो, यह सरकार की मंशा है, इससे कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं नाराज भी हैं।
सरकार इतने पर भी खामोश नहीं है। भूतकाल में न जाने कितने रद्द हुए प्रोजेक्ट्स को सरकार पर्यावरणीय मंजूरी देना चाह रही है। यह भी पर्यावरण की दिशा में एक नुकसानदेह कदम साबित होगा। क्योंकि पर्यावरण का नुकसान हो रहा है, इसीलिए पॉस्को की योजना धराशायी हो गई, यदि इसे मंजूरी मिल गई होती, तो उड़ीसा में स्थापित होने वाला यह सबसे बड़ा स्टील प्लांट होता। गोवा में खनन कार्य बंद हो गया है। नई सरकार ये सब फिर से शुरू करना चाहती है। यदि यह सब होता रहा, तो किस तरह से पर्यावरण का संरक्षण हो पाएगा। वैसे भी भाजपा सरकार पर यह आरोप है कि वह उद्योगपतियों को संरक्षण देती है। ऐसे में वह अपनी दलगत नीति से अलग तो नहीं हो सकती। तब तो फिर पर्यावरण के संरक्षण की बात करना ही बेमानी है। इस समय सरकार के पास पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जो पेंडिंग प्रोजेक्ट हैं, उसकी संख्या 358 है। इसमें औद्योगिक137, इंफ्रास्टक्चर 69, अन्य खानें 63, कोयले की खान 36, रीवर वेली 21, नए निर्माण 17 और थर्मल प्रोजेक्ट के 14 प्रोजेक्ट पेंडिंग हैं।
डॉ. महेश परिमल
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