शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

शीश न झुकाने की सजा


हरिभूमि में आज प्रकाशित मेरा आलेख
शीश न झुकाने की सजा
डॉ. महेश परिमल
कहते हें कि हार इंसान को कुछ न कुछ सबक सिखाती ही है। यदि इंसान अपनी हार से यह सबक सीख ले कि अब यह गलती नहीं दोहरानी है, तो बाकी के रास्ते आसान हो जाते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई, पर कांग्रेस ने इससे कोई सबक नहीं सीखा। इसके विपरीत वह ऐसी गलतियां करती जा रही है, जिससे यह साबित हो गया है कि उसके भीतर का दंभ अभी गया नहीं है। शशि थरुर से कांग्रेस ने केवल इसलिए प्रवक्ता पद छीन लिया, क्योंकि उन्होंने कुछ मामलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी। शशि को शीश न नवाने की सजा मिली है, यह सभी जानते हैं। पर कांग्रेस इस बात को समझने के लिए तैयार ही नहीं है, उसने कोई गलती की है। इसके पहले भी कांग्रेस के खिलाफ जिसने भी मुंह खोला, उसे दरकिनार कर दिया गया। अपनी इस गलती का कांग्रेस को अभी यह आभास नहीं है कि उसे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। पर सच तो यही है कि आज व्यक्ति केंद्रित कांग्रेस को यह बताने के लिए भी कोई नहीं बचा कि उसने कब, कहां, कौन सी गलती की है?
हाल ही में हुदहुद ने तमिलनाड़ु में तबाही मचाई। पूरी सतर्कता के बाद भी करीब 30 लोगों की मौत हो गई। टीवी माध्यमों के कारण सभी ने तबाही का लाइव प्रसारण देखा। इस बार हमारे मौसम विभाग की दाद देनी होगी कि उसने हुदहुद को लेकर जो भी भविष्यवाणी की थी, वह सच साबित हुई। इस बार तो उसने नासा को भी पीछे छोड़ दिया। ठीक इसी तरह शशि थरुर को लेकर पूर्व में जो भी भविष्यवाणी की थी, वह भी सच साबित हुई। सभी कह रहे थे कि शशि को शीश न झुकाने की सजा मिलेगी या फिर मोदी प्रेम उन्हें अपने पद पर नहीं रहने देगा। हुआ भी वही। पत्नी सुनंदा पुष्कर की अकाल मौत के बाद शशि थरुर की दशा ठीक नहीं है। सुनंदा की मौत की फोरेंसिक रिपोर्ट कहती है कि उनकी मौत का कारण जहर है। इससे शशि सामाजिक रूप से बदनाम हो गए हैं। मोदी प्रेम के कारण वे वैसे ही बदनाम थे। दो बदनामी मिलकर एक बड़ी मुसीबत बन गई है। सुनंदा की शंकास्पद मौत के बाद ही कांग्रेस यदि शशि से प्रवक्ता पद छीन लेती तो उचित रहता। पर जैसे कांग्रेस की आदत बन गई है कि तुरंत निर्णय न लेना। पर जब पूरी नाव ही डूबने लगी, तो उसने मल्लाह से ही पतवार छीन ली। देर से लिया गया यह निर्णय कांग्रेस के लिए घाटे का सौदा साबित होगा, क्योंकि कांग्रेस के पास हाजिरजवाब देने वाले प्रवक्ताओं की कमी है। कांग्रेस जिस तरह के युवा चेहरे को सामने लाने का प्रयास कर रही है, उसमें शशि थरुर का नाम सबसे पहले आता है।
यदि इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनती, तो निश्चित रूप से शशि थरुर विदेश मंत्री बनते। शशि से न केवल सोनिया गांधी बल्कि राहुल गांधी भी प्रभावित थे। वे तो उनसे प्रवक्ता पद छीनना ही नहीं चाहते थे, पर मोदी भक्ति उन्हें भारी पड़ी। शशि बुद्धिवादी हैं, यही उनकी खासियत भी है और बुराई भी। कांग्रेस के अन्य प्रवक्ताओं की अपेक्षा वे अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं। उनके विचार तर्कसम्मत होते हैं। ऐसे लोग बड़ी मुश्किल से राजनीति में आगे आते हैं। यूपीए सरकार में जब शशि विदेश राज्य मंत्री थे, तब विदेश मंत्री के रूप में एस.एस. कृष्णा आसीन थे। ये दोनों उस समय सुर्खियों में आए, जब लोगों को पता चला कि इस समय वे जिस फाइव स्टार होटल में रह रहे हैं, उसका दैनिक किराया 20 हजार रुपए है। एक लम्बे विवाद के बाद दोनों को 5 स्टार होटल का रुम छोड़ना पड़ा। पहले दो विवाद कर चुके शशि की तीसरी पत्नी थी सुनंदा पुष्कर। दोनों की जोड़ी एक आदर्श युगल के रूप में देखी जाती थी। अचानक सुनंदा की मौत के बाद उन दोनों के बीच तनाव की बात सामने आ गई। कांग्रेस को शायद यह डर है कि सुनंदा की मौत जहर से हुई, तो इसके बाद शशि की धरपकड़ होगी। इससे कांग्रेस की ही बदनामी होगी, इसलिए उन्हें पहले ही कांग्रेस के प्रवक्ता पद से अलग कर दिया जाए। केवल शशि ही नहीं, बल्कि सुनंदा भी पहले मोदी की प्रशंसा कर चुकी थी। तब कांग्रेसियों ने शशि को घेरे में लिया था। सुनंदा की अचानक मौत से शशि एक बार फिर बदनाम हो गए। शशि का भविष्य इस समय भाजपा के हाथ में है। भाजपा के पास इस समय केरल में ऐसा कोई प्रभावी नेता नहीं है, जो वोट बटोर सके। उसकी नजर शशि पर है। इसलिए शशि पर कांग्रेस की टेढ़ी नजर से भाजपा खुश है। उसने शशि के लिए अपने दरवाजे खोल रखे हैं, आज नहीं तो कल शशि को उसी रास्ते से भाजपा में आना ही है।
जब शशि थरुर से प्रवक्ता पद छीना गया, तो उन्होंने इस कदम को सर आंखों में लिया था। परंतु यह भी कहा था कि मुझे स्पष्टीकरण का मौका ही नहीं दिया गया। राजनीति के विशेषज्ञ मानते हैं कि उनके पास खामोश रहने के अलावा और कोई चारा ही नहीं है। जब भी गांधी परिवार किसी से नाराज होता है, तो उस समय खामोश रहने में ही सबकी भलाई होती है। यह शशि भी अच्छी तरह से जानते हें। सुनंदा की मौत का रहस्य अभी तक सुलझा नहीं है। यही रहस्य शशि को उलझन में डाल रहा है। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस फिर से अपने पांव पर खड़े होना चाहती है। वह संगठन में बदलाव करने वाली है। महाराष्ट्र में यदि वह अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उसमें एक नया जोश देखने को मिलेगा। उधर हरियाणा में उसे हुड्डा पर भरोसा है। कांग्रेस हर हालत में थके-हारे कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरना चाहती है। पर महराष्ट्र में एनसीपी ने उसका खेल बिगाड़ दिया है। शशि से प्रवक्ता पद छीनकर कांग्रेस यह बताना चाहती है कि वह अभी भी सक्रिय है। उस पर त्वरित कार्रवाई न करने का आरोप लगाया जाता है, जो गलत है। वह यह साबित करना चाहती है कि शशि को सुनंदा के मामले को लेकर नहीं, बल्कि मोदी प्रेम के कारण हटाया है। अब सब कुछ महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव के परिणाम पर निर्भर करता है कि कांग्रेस को अब क्या करना है? हमारे देश में आजकल जैसी राजनीति चल रही है, उसमें शशि थरुर जैसे लोगों को इस तरह की प्रतिक्रिया के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल

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