गुरुवार, 26 जनवरी 2017

कविता - कब लोगे अवतार हमारी धरती पर - रोहित कुमार 'हैप्पी'

कविता का अंश... फैला है अंधकार हमारी धरती पर हर जन है लाचार हमारी धरती पर हे देव! धरा है पूछ रही... कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! तुम तो कहते थे धर्म की हानि होगी जब-जब हर लोगे तुम पाप धरा के आओगे तुम तब-तब जरा सुनों कि त्राहि-त्राहि चारों ओर से होती है कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! सीता झेल रही संताप रोके रुके नहीं है पाप हानि धर्म की होती है कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! द्रोपदी कलयुग में लाचार तुम्हें क्यों सुनती नहीं पुकार दुर्योधन मुँह बिचकाता है कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! दुर्योधन लाख सिरों वाला टलता नहीं टले टाला दुर्योधन हमें चिढ़ाता है कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! यहाँ रावण राज लगा चलने मिलकर विभीषण-रावण से श्रीराम को रोज सताता है कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! अब आ जाओ हरि जल्दी से प्रभु देर ना करना गलती से जग आँख लगाए बैठा है कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! यहां रंग नहीं हैं होली के नित खून बहे है गोली से मन व्याकुल तुम्हें ध्याता है कब लोगे अवतार हमारी धरती पर ! इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...

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