बुधवार, 25 जनवरी 2017
बाल कहानी – छम-छम करती आईं परियाँ
कहानी का अंश… अरुण अपने घर में सबसे छोटा था। कोई भी उसकी परवाह न करता था। माँ के अलावा कोई उसे नहीं चाहता था। उसके पिता और भाई उसे निरा मूर्ख और आलसी समझते थे। हर कोइ्र उससे अपना काम करवा लेता और फिर भगा देता। अरुण इन बातों का बुरा नहीं मानता था और उनकी बातों को हँस कर टाल देता था। वह उपेक्षित था फिर भी खुश रहता था। उसकी माँ उसे प्यार से खाना बनाकर देती और फिर खेतों की रखवाली के लिए खेत पर भेज देती। अरुण खेतों में जाकर बहुत खुश रहता। वहाँ सुनहरे खेतों में उसे अपनी मेहनत फलती-फूलती नजर आती। हरे-भरे पेड़ों पर चहचहाती चिडिया उसे बहुत अच्छी लगती थी। वह भी उनकी तरह ही इधर-उधर फुदकता फिरता। अपने खेतों में मन लगाकर काम करता। यहाँ आकर वह अपने सारे दुख भूल जाता था। उसे बाँसुरी बजाना बहुत अच्छा लगता था। साथ ही वह खाली समय में अपनी कल्पना में छाए चित्रों को कागज पर उतारता। जब कभी मन उदास होता तो रंगबिरंगे फूलों के बीच बैठकर बाँसुरी की मधुर तान छेड़ देता। उसे सुनकर आसपास के काम करने वालों के साथ-साथ पेड़-पौधे भी झूमने लगते थे। ऐसा प्यारा समां बँधता जिसमें वह अपने आपको भी भूल जाता था। मोहक वातावरण में अरुण सोचने लगता कि दुनिया कितनी सुंदर है। पता नहीं लोग क्यों आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं? बचपन में अरुण ने अपने दादा-दादी से राजा-रानियों और परियों की कहानियाँ सुनी थी। अरुण सोचता कि वह कहानी अगर कहानी न होकर सचमुच ही होती तो कितना अच्छा होता, दुनिया की सारी कड़वाहट ही खत्म हो जाती। एक दिन अरुण कुछ ज्यादा ही उदास था। वह बिना किसी को बताए शाम को खेत पर आकर चुपचाप अपना काम करने लगा। शाम घिर आई पर वह काम करता ही रहा। पास में ही एक छोटा तालाब था। वहीं घने पेड़ के नीचे अधलेटा होकर उसने बाँसुरी की मधुर तान छेड़ दी। थोड़ी देर बाद ही उसे लगा कि जैसे पायलों की आवाज आ रही है। उसने हैरानी के साथ इधर-उधर देखा लेकिन कुछ दिखाई नहीं दिया। रुनझुन की आवाज धीरे-धीरे तेज हो रही थी। वह बेचैन हो उठा। लगा कि जरूर कोई बात है। लेकिन क्षणभर बाद ही उसने देखा कि नन्हीं-नन्हीं परियाँ रंगबिरंगे कपड़े पहनकर एक-दूसरे के हाथेां में हाथ डाले नाच रही हैं और वे गुनगुना भी रही हैं। अरुण यह देखकर पुलकित हो उठा। उसने ऐसा सुंदर दृश्य पहले कभी नहीं देखा था। आगे क्या हुआ? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए….
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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