गुरुवार, 5 जनवरी 2017
नीति कथा –2 – चतुर कौआ
कहानी का अंश…. बड़ी तेज गरमी पड़ रही थी। कुछ समय से वर्षा नहीं हुई थी। इसलिए सारे ताल-तलैया सूख गए थे। पशु-पक्षी प्यासे मरने लगे। बेचारा कौआ पानी की तलाश में इधर-उधर मारा-मारा उड़ रहा था। लेकिन उसे कहीं पानी नहीं मिला। आखिरकार वह शहर की ओर उड़ा। उसे एक बाग में एक पेड़ के नीचे एक घड़ा दिखाई दिया। उसने अपने आपको बड़ा भाग्यशाली समझा और तुरंत घड़े के पास नीचे उतर गया। लेकिन उसका भाग्य बड़ा ओछा था। घड़े में पानी बहुत कम था। उसने पानी तक पहुँचने की हर प्रकार से जी-तोड़ मेहनत की, लेकिन वह पानी न पी सका। दुखी होकर वह इधर-उधर देखने लगा। अचानक उसकी निगाह पास में पड़े कंकड़ों पर पड़ी। उन्हें देखते ही उसे अचानक एक तरकीब सूझी। वह अपनी चोंच में दबाकर एक बार में एक कंकड़ लाता और उसे घड़े में डाल देता। घड़े में कंकड़ पड़ जाने के कारण पानी की सतह धीरे-धीरे उपर उठने लगी। इस प्रकार पानी घड़े के मुँह तक आ गया और कौए ने उसे पीकर अपनी प्यास बुझाई। कहा भी गया है – आवश्यकता आविष्कार की जननी है।
इस कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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