मंगलवार, 30 मार्च 2021
Anamika Kahani
अनामिका परिवार में ईश्वर के अनुपम वरदान की तरह आई थी। चंद्र की सोलह कलाओं की तरह उसका रूप निखरता ही जा रहा था। कोई उसे इन्द्रलोक की अप्सरा कहता तो कोई परीलोक की सबसे सुंदर परी। उसकी सुंदरता की तारीफ करते हुए लोगों के होंठ थकते नहीं थे। यही कारण था कि धीरे-धीरे अभिमान, घमंड, दर्प, अहंकार ये सारे शब्द शब्दकोश से निकलकर अनामिका के आसपास का एक आवरण बन गए। इनसे लिपटी अनामिका अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी। यदि सहेलियाँ उसके आसपास होती, तो उसे लगता कि ये लोग उसकी सुंदरता के कारण ही उससे दूर नहीं जाना चाहती इसलिए उसे घेरे हुए हैं। परिवार में किसी के विवाह या अन्य अवसर पर सगे-संबंधियों का आना होता, तो वहाँ भी अनामिका पर सभी की निगाहें टिकी रहती। इस विशेष महत्व ने अनामिका को और भी अधिक नकचढ़ी बना दिया था। स्कूल के फेयरवेल में जब उसे मिस ब्यूटी का खिताब मिला, तो वह खुश तो बहुत हुई पर लोगों से यही कहती रही कि ये तो होना ही था। भला मुझसे खूबसूरत कोई है यहाँ? इस तरह अनामिका दर्प का छलकता जाम हाथों में लिए जीवन सफर में आगे बढ़ रही थी... भारती परिमल की इस कहानी का आनंद लीजिए, ऑडियो की मदद से...
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कहानी,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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