रविवार, 18 अप्रैल 2021

कविता - गरमी की छुट्टियाँ - भारती परिमल

वो गरमी की छुट्टियाँ 
पुकारती हैं मुझे
वो बचपन का 
बेफिक्र समय
पुकारता है मुझे।

वो परीक्षा शुरू होते ही
उसके खत्म होने की बेताबी
और आखरी पेपर होते ही
स्कूल से घर न लौटने की बेफिक्री
नींद से टूटता रिश्ता
मस्ती से जुड़ता नाता
रिश्ते-नातों की ये 
भूल-भुलैया सताती है मुझे
वो गरमी की छुट्टियाँ 
पुकारती हैं मुझे...

इस कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए ऑडियो की मदद से...




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