बुधवार, 21 अप्रैल 2021

आलेख - पहाड़ के आँसू - डाॅ. महेश परिमल

इस बार पहाड़ फिर जी भरकर रोया है। पहाड़ को रोना क्यों पड़ा? यह समझने को कोई तैयार ही नहीँ है। बस लोग पहाड़ द्वारा की गई तबाही के आंकड़ों में ही उलझे हैं। संसद में प्रधानमंत्री के आँसू सभी को दिखे, पर पहाड़ के आँसू किसी की नज़र में नहीं आए। बरसों से रो रहे हैं पहाड़। पर कोई हाथ उसकी आंखों तक नहीं पहुँचा। पहाड़ के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरने वाले लोग अब गुम होने लगे हें। आखिर रोने की भी एक सीमा होती है। इस रुलाई के पीछे बहुत बड़ा दु:ख है। इस बार यह दु:ख नाराजगी के रूप में बाहर आया है। पहाड़ों को अब गुस्सा आने लगा है। पहाड़ को  हमने सदैव पूजा है। पहाड़ ने हमें हमेशा कुछ न कुछ अच्छा दिया ही है। अगस्त्य ऋषि के सामने पहाड़ भी झुक जाते थे। इसी ऋषि का एक आश्रम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है। हमारे देश में पहाड़ों की विशेष पूजा-अर्चना होती है। पहाड़ को कोई नाराज नहीं करना चाहता। पहाड़ सदैव मुस्कराते रहें, इसके लिए मानव कई तरह के जतन करता रहता है। पहाड़ संस्कृति को बचाने में सहायक होते हैं। हमारे पुराणों में पहाड़ सदैव ही पूजनीय रहे हैं। पहाड़ यदि विशाल होना जानते हैं, तो वे झुकना भी जानते हैं। इस पूरे लेख का आनंद लीजिए, ऑडियो की सहायता से...




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