शुक्रवार, 11 मार्च 2022

अकूत प्राकृतिक सम्पदा का स्वामी है यूक्रेन



10 मार्च 2022 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित

अकूत प्राकृतिक सम्पदा का स्वामी है यूक्रेन

डॉ. महेश परिमल

बचपन में सुनी गई कहानियों में तिलिस्मी खजाने की बात निकल ही आती थी। हम लगता था कि कैसा होगा, यह तिलिस्मी खजाना। जिज्ञासाओं की तरंगें दूर तक जाकर लौट आती थीं। हम कल्पना ही नहीं कर पाते थे कि उस तिलिस्मी खजाने में क्या-क्या हो सकता है। पर आज हम रोज ही रुस-यूक्रेन के बीच युद्ध की खबरें पढ़-सुन रहे हैं। वहां होने वाले कोहराम को लेकर हम सभी चिंतित भी हैं। पर यह किसी ने सोचा कि आखिर रुस के लिए यूक्रेन इतना महत्वपूर्ण क्यों है? वास्तव में ऐसा नहीं है, जैसा कि बताया गया है। नाटो की सदस्यता वाली बात तो एक भुलावा है। वास्तविकता यह है कि यूक्रेन के पास जो तिलिस्मी खजाना है, पुतिन की नजर उस पर है। यूक्रेन के पास 21 सदी का सबसे बडृा खजाना अनुपयोगी पड़ा हुआ है। उसके पास इतनी अधिक स्वच्छ ऊर्जा है कि वह भविष्य की औद्योगिक कहानी लिख सकता है। इस तिलिस्मी खजाने का नाम है, लिथियम। जी हां, यूक्रेन के पास लिथियम का सबसे बड़ा भंडार है। रुस की नजर इसी भंडार पर है।

पहले हम लिथियम की विशेषताओं के बारे में जानेंगे। लिथियम एक रासायनिक तत्व है। साधारण परिस्थितियों में यह प्रकृति की सबसे हल्की धातु और सबसे कम घनत्व-वाला ठोस पदार्थ है। रासायनिक दृष्टि से यह क्षार धातु समूह का सदस्य है और अन्य क्षार धातुओं की तरह अत्यंत अभिक्रियाशील (रियेक्टिव) है, यानी अन्य पदार्थों के साथ तेज़ी से रासायनिक अभिक्रिया कर लेता है। लकड़ी से भी हल्का होने के कारण लिथियम का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों में अधिक हो रहा है। क्योंकि भविष्य इलेक्ट्रिक वाहनों का है, इसलिए लिथियम की उपयोगिता बढ़ने लगी है। लिथियम का उपयोग वाहनों की बैटरी बनाने के लिए किया जाता है। यही नहीं मोबाइल फोन एवं लेपटॉप में भी इसका उपयोग होता है। इसकी उपयोगिता के कारण इसके दाम एक साल में चार गुना बढ़ गए हैं। यहां लीथियम ऑक्साइड 5 लाख टन से भी ज्यादा मौजूद है। यूक्रेन में लीथियम रिजर्व के साथ कॉपर, कोबाल्ट और निकेल के भी भंडार हैं। इसी सम्पदा के कारण ही केवल रुस ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों की नजर भी यूक्रेन पर है।

यूरोप में यूक्रेन ही ऐसा एकमात्र देश है, जहां सबसे अधिक यानी चार करोड़ दस लाख लोग शिक्षित हैं। ये लोग कर्मशील है, किसी भी तरह का काम करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। सबसे अधिक यूरेनियम का भंडार भी यूक्रेन के पास है। टाइटेनियम के भंडार के मामले में यूक्रेन दूसरे नम्बर पर है। इसी तरह मैगनीज भंडारके मामले में भी यूक्रेन विश्व में दूसरे नम्बर पर है।2.3 अरब टन यानी विश्व का 12 प्रतिशत मैगनीज यूक्रेन के पास है। लोहे के भंडार के मामले में भी यूक्रेन दूसरे नम्बर पर है। मर्करी यानी पारे के भंडार के मामले में भी यह दूसरे नम्बर पर है। इस समय विश्व की नजर क्रूड आइल पर है, पर इस समय यूक्रेन के पास 22 ट्रीलियन क्यूबिक मीटर्स जितना शेल गैस का भंडार है। इस भंडार के साथ वह पूरे यूरोप में तीसरे नम्बर पर और विश्व में 13 नम्बर पर है। कोयले के भंडार के मामले में यूक्रेन विश्व में सातवें नम्बर पर है। प्राकृतिक सम्पदा के नाम पर यह विश्व के चौथे क्रम में है। सूर्यमुखी तेल के निर्यात में यूक्रेन पहले नम्बर पर है। सबसे अधिक उपजाऊ जमीन भी यूक्रेन के पास ही है। खेतीबाड़ी के विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि यूक्रेन के पास इतनी क्षमता है कि वह 60 करोड़ लोगों का पेट भर सकता है।

यूक्रेन में सबसे अधिक जौ का उत्पादन होता है, इसलिए यहां बीयर विपुल मात्रा में बनाई जाती है। जौ का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है यह छोटा-सा देश। मुर्गी के अंडों के मामले में यह नौवें क्रम में है। मक्के के उत्पादन में यह देश दुनिया में तीसरे क्रम में है। मक्के के निर्यात में यह चौथे नम्बर पर है। आलू के उत्पादन में भी पूरे विश्व में यह चौथे नम्बर पर है। मधुमक्खी पालन में यूक्रेन पांचवें नम्बर पर है। यहां गेहूं का उत्पादन भी विपुल मात्रा में होता है। गेहूं के निर्यात में यह विश्व में आठवें क्रम में है। अमोनिया गैस के उत्पादन में यूक्रेन यूरोप में सबसे पहले नम्बर पर है।रुस यदि यूक्रेन पर कब्जा कर लेता है, तो उसके अर्थतंत्र को बहुत बड़ा सहारा मिल सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इसका उचित तरीके से दोहन किया जाए तो यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े लीथियम रिजर्व देशों में से एक होगा। 

यूक्रेन ने कई बार भारत से यह आग्रह किया है कि वह पुतिन को समझाए। पर भारत की ओर से उसे ठंडा प्रतिसाद मिला है। इसकी वजह भी है। वास्तव में यूक्रेन का रुख कई बार भारत विरोधी रहा है। चीन-पाकिस्तान मिलकर जिस तरह से भारत का परेशान कर रहे हैं, उस मामले में यूक्रेन भारत का साथ नहीं दे रहा है। यूक्रेन ने एक बार नहीं, कई बार भारत का विरोध किया है। कश्मीर मामले में यूक्रेन ने यूएनओ में भारत के विरोध में मतदान किया था। यूएनओ में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए यूक्रेन ने चीन के साथ मिलकर भारत का विरोध किया था। यूक्रेन पाकिस्तान को अत्याधुनिक हथियार बेच रहा है। अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठन को यूक्रेन समर्थन दे रहा है। यह तो उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है, इसलिए उसने भारत से अपील की है। इस दिशा में भारत ने अभी तक कोई ऐसा काम नहीं किया है, जिससे यूक्रेन को लाभ मिले। भारत के ठंडे प्रतिसाद से ही यूक्रेन को समझ लेना चाहिए कि भारत उसका साथ पूरी तरह से क्यों नहीं दे रहा है।

डॉ. महेश परिमल


सोशल नेटवर्क:यूक्रेन की जीत-रूस की हार

साइबर वॉर में रूस की बदनामी

डॉ. महेश परिमल

रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध लगातार जारी है। दोनों तरफ से लगातार दावे-प्रतिदावे किए जा रहे हैं। युद्ध के मैदान में भले ही रूस का पलड़ा भारी हो, पर सोशल मीडिया में सहानुभूति बटोरने में यूक्रेन आगे रहा है। इसे उसकी जीत के रूप में देखा जा रहा है। रूस के सैनिक जब यूक्रेन पर हमला कर रहे हैं, तो रूसी सैनिकों को भी आत्मग्लानि हो रही है। उन्हें लगता है कि वे अपने ही भाइयों को मार रहे हैं। कई ऐसे भी देश हैं, जो खुलकर रूस का विरोध तो नहीं कर रहे हैं, पर यूक्रेन को गुप्तरूप से सहायता भी पहुंचा रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन की धमकी का भी उन पर कोई असर नहीं हुआ है। इस तरह से देखा जाए, तो शक्तिशाली होते हुए भी रूस सोशल नेटवर्क पर हार रहा है और कमजोर यूक्रेन जीत रहा है।

रूसी सेनाओं ने यूक्रेन के दो बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया है। युद्ध अब अपने आखिर पड़ाव पर है। रूस ने जितनी सैन्य तैयारी यूक्रेन को हराने के लिए की थी, उतनी तैयारी सोशल नेटवर्क पर सेना के हौसले बुलंद करने के लिए नहीं कर पाया। सोशल नेटवर्क के इस मैदान पर रूस की हार हो रही है, उधर कमजोर यूक्रेन अब तक जिस हौसले के साथ उसका मुकाबला कर रहा है, इससे वह लोगों की सहानुभूति बटोरने में कामयाब भी हो रहा है। उस पर सहानुभूति प्रकट करने वालों में रूसी नागरिक भी हैं। सच तो यह है कि युद्ध में सोशल नेटवर्क कहीं भी काम नहीं आता। परंतु लोग युद्ध के बारे में क्या सोचते हैं, इसकी जानकारी सोशल नेटवर्क से ही मिलती है। कुछ लोग इस पर बराबर अपनी नजरें रखते हैं और अपने विचार साझा करते रहते हैं। इस साइबर वॉर में यूक्रेन को सहानुभूति मिल रही है और रूस की लगातार बदनामी हो रही है।

यूक्रेन के विश्वसनीय ट्विटर हेंडल पर लगातार वॉर की जानकारी देखने को मिल रही है। लोगों की उस पर नजर है। परंतु रूव की प्रमुख ट्विटर हेंडल कई मामलों में अपडेट नहीं है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की अपने नागरिकों के साथ सोशल नेटवर्क के माध्यम से लगातार सम्पर्क में रहते हैं। उधर रूस के राष्ट्रपति पुतिन इस मामले में रुखे हैं। पूरे विश्व के रसूखदार लोग सोशल नेटवर्क पर रूस की निंदा करते दिखाई दे रहे हैं। कई लोग उससे नफरत भी करने लगे हैं। 50 लाख समर्थकों वाला रूस का ब्लॉगर यूरी डडे भी अपने देश के खिलाफ है। 

सोशल मीडिया में युद्ध का अवलोकन करने वाले लोगों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है- पहले तो वे लोग हैं, जो युद्ध के दृश्यों को देखते भर है, पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते। दूसरे वे हैं, जो युद्ध के खिलाफ हैं और अपने विचार भी व्यक्त कर रहे हैं। तीसरे वर्ग में वे हैं, जो रूस का खुलेआम समर्थन कर रहे हैं और यूक्रेन के राष्ट्रपति को बेवकूफ मान रहे हैं। ये लोग पुतिन के अंधभक्त हैं। चौथे वर्ग में वे हैं, जो इस युद्ध के कारण पूरे विश्व में बढ़ने वाली महंगाई से चिंतित हैं। फरवरी में कई लोगों ने अभियान चलाया था कि रूस का ट्विटर हेंडल बंद कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद भी रूस ने अपने ट्विटर हेंडल पर किसी तरह का बचाव नहीं किया। ज्वाइंट सोशल नेटवर्क फेसबुक, ट्विटर, गूगल, यू-ट्यूब आदि रूस के खिलाफ हैं। रूसी मीडिया पर आने वाली तस्वीरें आदि को फेक्ट चेकिंग सिस्टम से अलग रखने की मांग रूस की अधिकृत मेटावर्स ने की थी, परंतु मेटावर्स ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब रूस में मेटावर्स की सर्विस बंद कर दी थी। गूगल के विज्ञापनों से रूस को होने वाली आय पर अंकुश लग गया। गूगल की अच्छी खासी आय रूस को प्राप्त होती थी। अब हालात यह हैं कि गूगल ऐड सर्विस के तहत मिलने वाले विज्ञापनों में अब रूस को किसी भी तरह का लाभ प्राप्त नहीं होगा।

उधर यू-ट्यूब ने रूसी चैनलों पर विज्ञापन प्रायोजित करना भी बंद कर दिया है। यूक्रेन ने यू-ट्यूब को वहां प्रकाशित रूसी विज्ञापनों को ब्लॉक करने के लिए  कहा है। यूक्रेन की मांगों के जवाब में, यू-ट्यूब ने यूक्रेन में सभी रूसी विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगा दिया है। रशिया टुडे नामक एप्लीकेशन पर भी प्रतिबंध लगाने की यूक्रेन की मांग को यू ट्यूब ने स्वीकार कर ली है। चीनी एप्लीकेशन टिकटॉक पर भारत में प्रतिबंध है, परंतु वह यूक्रेन में युद्ध की तस्वीरें डाल रहा है। चीन भले ही रूस का समर्थन कर रहा हो, इसके बाद भी यूक्रेन के राष्ट्रपति के अनुरोध को स्वीकारते हुए टिकटॉक ने युद्ध का विरोध करने वाले लोगों के संदेशों को भेजना शुरू कर दिया है। बीस लाख फालोअर्स वाले टिकटॉक ने रशिया “ओपन योर आइज’ लिखकर अपनी पोस्ट डाल रहा है। सोशल नेटवर्क पर कई लोग तो बकवास ही करते हैं। इस युद्ध में अमेरिका यूक्रेन को धोखा दिया, इस पर बहुत ही कम लोग अपने विचार रखते हैं। आखिर में यही कहा जा सकता है कि युद्ध के मैदान में भले ही रूस की जीत हो रही हो, पर सोशल प्लेटफार्म पर वही रूस हार रहा है। यूक्रेन लोगों की सहानुभूति बटोर रहा है। युद्ध की समाप्ति के बाद लोग रूस पर लानत-सलामत भेजने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे, यह तय है। उधर यूक्रेन हारकर भी विजेता की तरह अपना सिर ऊंचा रखेगा।

डॉ. महेश परिमल




 

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