पेट्रोल युग के अंत की शुरुआत
आप रास्ते पर कहीं चले जा रहे हैं, वाहन को आप पूरी तरह से संतुलित गति से चला रहे हैं। अचानक आपको करीब छूते हुए एक दो पहिया वाहन बेआवाज निकल जाते हैं। आप हड़बड़ा जाते हैं। आपका वाहन असंतुलित हो जाता है। आप झुंझलाकर आज की पीढ़ी पर दोषारोपण करने से नहीं चूकते। यदि ऐसा आपके साथ बार-बार हो रहा है, तो यह तय है कि आप समय के साथ कदमताल नहीं कर पा रहे हैं। आपकी आंखों के सामने से बदलाव की बयार बह रही है, आप उसे अनदेखा कर रहे हैं। आप शायद यह समझ नहीं पा रहे हैं कि यह बदलाव का युग है। हमारे सामने से ही एक ऐसे युग का अंत शुरू हो गया है, जिसके बारे में हमने कभी सोचा ही नहीं था। जी हाँ, आपको छूते हुए जो वाहन गुजरा, वह पेट्रोल से नहीं बैटरी से चल रहा था। इसलिए उसमें आवाज नहीं थी। वह खामोशी से आपको छूता हुआ गुजर गया। आपके कान पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के आदी हो गए हैं। इसलिए आप बैटरी से चलने वाले वाहन की खामोशी को समझ नहीं पाए हैं। इसलिए युवा पीढ़ी को दोष देने लगे।
देखते ही देखते हम सब कोयला, पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस से चलने वाले वाहनों को लुप्तप्राय होता देख रहे हैं। बहुत ही जल्द उपरोक्त चीजों से चलने वाले वाहन हमें देखने को ही नहीं मिलेंगे। ऐसे वाहनों का युग अब समाप्त होने वाला है। अब तो एयरपोर्ट से आपको कहीं जाना हो, तो आपकी कैब भी बैटरी से चलने वाली ही होगी। सड़कों पर ट्रेफिक जाम के तहत हार्न की बेसुरी आवाजें अब आपको परेशान नहीं करेंगी। आप बड़े शौक से जाम का आनंद भी ले सकेंगे। ऐसा इसलिए संभव है कि दुनिया के 195 देशों के बीच यह ऐतिहासिक सहमति बनी है कि कोयला, पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल अब वाहनों में कम से कम हो। वाहनों को चलाने के लिए अब अत्याधुनिक संसाधनों का उपयोग किया जाएगा। अन्य कई विकल्प भी तलाशे जाएंगे। इसके लिए कई देशों के बीच कई समझौते भी हुए हैं।
पिछले महीने 30 नवम्बर से दुबई में शुरू होकर यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस या कहा जाए कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज(यएनएफसीसीसी) 12 दिसम्बर को समाप्त हुई। ग्लोबल वार्मिंग और विश्वव्यापी पॉलिसी के मुद्दे पर दुनियाभर के देश सहमत हुए। सभी ने एक स्वर से कहा कि अब कोयला, पेट्रोल,डीजल और प्राकृतिक गैस को अलविदा कह देना चाहिए। इनका उपयोग लगातार कम से कम करके हम एक नए युग में प्रवेश कर सकते हैं। ऊर्जा के अन्य विकल्पों को तलाशना होगा, बल्कि नए अनुसंधान एवं नए प्रयोगों पर भी ध्यान देना होगा। इस पर ऐतिहासिक करार भी हुआ। सभी का मानना था कि हमने धरती की छाती से बहुत सारी ऊर्जा निकाल ली है, अब धरती को बख्शो, उसे चैन से जीने दो। अब तक उसने मनुष्य जाति की खूब सेवा की, अब उस पर अत्याचार नहीं करना है।
पर्यावरण में होने वाले बदलाव को देखते हुए पूरे विश्व की सरकारों के बीच वार्तालाप काफी समय से चल रहा था। इसमें सबसे बड़ी बात यह थी कि कोई भी सच्चाई को स्वीकारने के लिए तैयार ही नहीं था। सभी जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे प्रदूषण भी एक कारक है। इसके पीछे पेट्रोल, डीजल, कोयला ही दोषी हैं। पर इसे कोई भी मानने को तैयार नहीं था। अब रह-रहकर सभी ने इस ओर ध्यान दिया और सच को स्वीकारने की हिम्मत दिखाई। इसी का परिणाम है कि ऊर्जा के नए स्रोतों की खोज की गई, उस पर अनुसंधान हुए। परिणाम हम सबके सामने है। पहले जिसे स्वीकारने की हिम्मत नहीं थी, अब वे ही धरती से प्राप्त ऊर्जा को अलविदा कहने को तैयार थे। इस पर अरब देश जिनकी अर्थव्यवस्था ही पेट्रोल-डीजल पर निर्भर है, वे तो विरोध में आ गए। पर सच को स्वीकारने में उन्हें दे नहीं लगी। अभी जो समझौता हुआ है, उसे यूनाइटेड नेशंस की उपलब्धि मानी जा रही है कि उसने फॉसिल फ्यूल के युग के अंत की शुरुआत की दिशा में पहला कदम रखा।
जिन बातों पर सभी देशों की सहमति हुई, उसमें मुख्य हैं- औसतन ग्लोबल वार्मिंग 1.5 को चरणबद्ध तरीके से घटाकर ऐसा एनर्जी सिस्टम विकसित किया जाए, जिसके कारण पर्यावरण के लिए हानिकारक माने जाने वाले ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस यानी जीसीजी का उत्सर्जन 2030 तक 43 प्रतिशत और 2035 तक 60 प्रतिशत घट जाए। दूसरे शब्दों में सीएनजी गैस इमिशन का स्तर घटाकर 2019 में जिस स्तर पर था, वहां तक खींचकर लाया जाए। इस पर सभी सहमत थे। शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों से आग्रह किया गया कि वे 2030 तक अपने नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को तीन गुना करें। कोयला-प्राकृतिक गैस-पेट्रोल-डीजल की खपत कम करने की कोशिशों से कई देशों की अर्थव्यवस्था पर भारी असर होगा। इसके लिए लॉस एंड डेमेज फंड की स्थापना की जाएगी। ताकि आर्थिक रूप से कमजोर देशों की सहायता की जा सके। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में अमेरिका सबसे आगे है, इसलिए उससे यह कहा गया है कि वे इस फंड में अधिक से अधिक सहयोग करे।
ऐसा पहली बार हुआ है कि अंतिम दस्तावेज में धरती से प्राप्त ऊर्जा शब्द का उपयोग किया गया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन कहती हैं, "यह समझौता सही नहीं है, लेकिन एक बात बिल्कुल स्पष्ट है: दुनिया का कोई भी देश इस बात से इनकार नहीं करता है कि हमें धरती से प्राप्त ऊर्जा के उपयोग करने की बुरी आदतों को छोड़ना होगा। सीधी-सी बात है। इस वर्ष हम सबने ऋतुओं का खेला देखा, किस तरह से वे प्रकृति के खिलाफ जा रही हैं। ठंडे प्रदेशों में गर्मी हो रही है। नदियां भी जब चाहे, तब रौद्र रूप ले रही हैं। इन्हीं हालात को देखकर इस बार इस शिखर सम्मेलन में कई देशों के प्रतिनिधियों ने पुरजोर हिस्सा लिया। इसी का नतीजा है- कार्बन केप्चर एंड यूटीलाइजेशन एंड स्टोरेज। इसका आशय यही हुआ कि धरती से प्राप्त ऊर्ज का उत्पादन भले ही जारी रखा जाए, पर इससे पैदा होने वाली गैसे ग्रीन हाउस को प्रभावित न कर पाएं।
काफी समय पर इस दिशा पर ध्यान दिया गया। अब स्थिति धीरे-धीरे सामान्य होगी, ऐसी आशा की जा सकती है। हम सब समय के साथ चलें, वक्त की पुकार को सुनें। आधुनिकता को अपनाएं, अपडेट रहें, तभी हम सब देख पाएंगे, एक युग के अंत की शुरुआत...।
डॉ. महेश परिमल



%20%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0-page-004.jpg)































_page-0008.jpg)















%20%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%95%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0-page-004.jpg)