डा. महेश परिमल
अपनी युवा होती बिटिया से एक दिन माँ ने कहा- बेटा अब वक्त आ गया है कि तुझसे सेक्स के बारे में कुछ बात की जाए. तब बिटिया का जवाब था- पूछो माँ, जो कुछ भी पूछना हो, शरमाना मत, मैं सब-कुछ बताऊँगी. सोचो उस समय माँ पर क्या गुजरी होगी? इसी तरह एक और घटना है. पहली कक्षा में पढ़ने वाली नन्हीं छात्रा ने बताया कि आज उनकी क्लास में एक लड़के ने एक लड़की की पप्पी लेते हुए आई लव यू कहा.
ये दोनों घटनाएँ आज के बदलते हुए समाज की एक ऐसी तस्वीर है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. न तो उस बिटिया ने वह ज्ञान अपने साथियों से पाया, न ही पुस्तकों से और न ही किसी और से. उस नन्हे लड़के की हरकत थी, लेकिन उसे भी ये सब सीखने के लिए कहीं और नहीं जाना पड़ा. ये ज्ञान उन्हें आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा से प्राप्त हुआ. शायद आप मेरी बात नहीं समझे. आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा याने हमारे ही घर में शान से बैठा हमारा टीवी. और उस में लगने वाला केबल. बस यही दुश्मन आज हमारे घर के भीतर घुसकर हम सबके मस्तिष्क पर हमला कर रहा है और हम हैं कि इसे बिलकुल न समझते हुए खुश हैं कि हमारा बच्चा ज्ञानवान बन रहा है.
टीवी का हमारे संस्कार से गहरा नाता है. टीवी आज जो कुछ हमें परोस रहा है, वह हमारी ंजिंदगी में बिलकुल भी नहीं होता. क्योंकि उसकी दुनिया अमीरों की दुनिया होती है. टीवी पर गरीबों की कहानी कभी नहीं आती. वह तो अमीरों का ही पोषक है. गरीबों की दास्तान सुनने के लिए हमारे पास ंजरा भी वक्त नहीं है. लेकिन एक लखपति करोड़पति कैसे बन जाता है, यह हमारे लिए प्रेरणा का विषय होता है. हम भी उसी की तरह पल भर में करोड़पति होना चाहते हैं. टीवी हमें यह सिखाता है कि कैसे बिना परिश्रम के तमाम कायदे-कानून को बला-ए-ताक पर रखकर करोड़पति बना जा सकता है. सारे काले धंधे हमें टीवी पर ही देखने को मिलते हैें. हम उसी से सीख रहे हैं. फिर हमारी संतानों का क्या? वे भी तो वही सब देख रहे हैं, जो हम देख रहे हैं. उनका अपना संसार है. जब वे टीवी पर कई तरह की हत्याएँ, चालबाजी, पैंतरेबाजी देखते हैं, तो वैसा ही करने का उनका भी मन करता है. कभी-कभी वे ऐसा कर भी लेते हैें, तब बड़ा मजा आता है, धीरे-धीरे ऐसा करना उनकी आदत में शुमार हो जाता है.
हम शायद यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आज टीवी के धारावाहिकों में जानबूझकर वही दिखाया जा रहा है, जो विज्ञापन मीडिया चाहता है. विज्ञापन मीडिया याने धारावाहिकों को प्रायोजित करने वाला एक बड़ा समुदाय. इसे यह अच्छी तरह से मालूम है कि आज के मनुष्य पर उसके ड्राइंग रुम पर ही हमला बोला जा सकता है, तभी वह उससे प्रभावित हो सकता है. टीवी पर आज वह नहीं दिखाया जा रहा है, जो समाज में हो रहा है, बल्कि वही दिखाया जा रहा है, जो भविष्य में समाज में होना है. आप देख ही रहे हैं, समाज में आज वही हो रहा है, जिसे टीवी दिखाता रहा है.
ये आज के समाज की सच्चाई है कि हम अपने दुश्मन को नहीं पहचान पा रहे हैं. इस टीवी ने आज हमें अपना गुलाम बना लिया है. वैसे तो गुलामी कभी किसी को पसंद नहीं है, लेकिन टीवी की इस गुलामी को हमने आज सहजता से स्वीकार कर लिया है. आज हालत यह हो गई है कि जब तक हम सास-बहू के किस्से को दिन भर में एक दो बार नहीं देख लेते या अपनों के बीच चर्चा नहीं कर लेते, हमें अच्छा ही नहीं लगता. हम बड़े ही गर्व से कहते हैं कि देखो तो पायल ने कितना बड़ा पैंतरा खेला. वह तो लगता है वीरानी परिवार को खत्म करके ही रहेगी.
कभी सोचा है इस टीवी ने आज नारी की हालत कैसी कर दी है. आज टीवी पर तो नारी नारी के रूप में न होकर एक डायन के रूप में नजर आती है. हम और आप आज हजार पाँच सौ रुपए के लिए तनाव में आ जतो हैं. लेकिन टीवी की ये आधुनिक नारियाँ लाखों-करोडाें का ही व्यापार करती हैं. इन लोगों के सामने इनका दुश्मन दिखाई देता है, लेकिन हमें तो हमारा ही दुश्मन दिखाई नहीं दे रहा है.
टीवी ने आज इंसान की परिभाषा ही बदल कर रख दी है. ऐसे में कैसे स्थापित हो संस्कारवान समाज. जब हम ही संस्कारवान नहीं हैं, तो अपने बच्चों से यह कैसे अपेक्षा करें कि वे संस्कारवान बनें? आज हमारे ही घर में आने वाले हमारे माता-पिता को हम अपना कजिन बताते नहीं शरमाते. अब तो उन्हें घर के कुछ ही विशेष कार्यक्रमों में ही बुलाया जाता है. डिलीवरी के समय, किसी की बीमारी के समय या फिर ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में जिसमे माता-पिता की उपस्थिति अत्यावश्यक हो. आज हमारे ही नजरों में हमारे माता-पिता का महत्व कुछ भी नहीं रह गया है.
हमने ऐसा क्यों किया? क्योंकि हम आज जो कुछ भी कर रहे हैं, वही टीवी पर देख रहे हैं. टीवी पर आने वाला धारावाहिक हमें कई मामलों में अच्छा इसीलिए लगता है कि हम उसमें अपनी परम्पराओं को टूटता हुआ देखते हैं. आज घर में माता-पिता की उपस्थिति हमें खलती है, हमारे एकांत को तोड़ती है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इन सबके पीछे हमारे ड्राइंग रुम में सजा हमारा टीवी ही है.
टीवी को यदि हमें अपना दोस्त समझना है, तो पहले यह देख लें कि हमें टीवी पर आने वाला ऐसा कौन सा धारावाहिक देखना है, जिसमें संस्कारों को मजबूत होना दिखाया जाता हो. पसीने से कमाए धन के बारे में बताया जाता हो. अपने से बड़ों का आदर करना बताया जाता हो. हमारे भीतर के सोए पड़े इंसान को जगाने का काम करता हो. हमारे बच्चों को यह बताए कि बिना मेहनत के मिलने वाला धन हमारे लिए मिट्टी है. मेहनत से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है, यही नहीं हमें हमेशा दूसरों की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए, ऐसे संस्कार देने का काम यदि टीवी करे, तो निश्चित ही वह हमारा दोस्त है. अन्यथा उससे बड़ा हमारा कोई शत्रु नहीं.
अंत में एक बात यही कहना चाहूँगा कि टीवी जब तक हमारा है, वह हमारा दोस्त है, हमारा साथी है, पर जिस दिन हम टीवी के हो गए, वह हमारा दुश्मन बन जाता है. वह हम पर रांज करता जाता है और हम कुछ नहीं कर पाते. यदि हम आज टीवी के सचमुच गुलाम हो गए हैं, तो वह समय दूर नहीं, जब आपका बच्चा आपसे गालियों से बात करेगा और आप कुछ नहीं कर पाएँगे. आप को इसके लिए तैयार रहना होगा.
? डा. महेश परिमल, 403, भवानी परिसर, इंद्रपुरी भेल, भोपाल. 462022.
ड्राइंग रुम में बैठा घर का दुश्मन
? डा. महेश परिमल
अपनी युवा होती बिटिया से एक दिन माँ ने कहा- बेटा अब वक्त आ गया है कि तुझसे सेक्स के बारे में कुछ बात की जाए. तब बिटिया का जवाब था- पूछो माँ, जो कुछ भी पूछना हो, शरमाना मत, मैं सब-कुछ बताऊँगी. सोचो उस समय माँ पर क्या गुजरी होगी? इसी तरह एक और घटना है. पहली कक्षा में पढ़ने वाली नन्हीं छात्रा ने बताया कि आज उनकी क्लास में एक लड़के ने एक लड़की की पप्पी लेते हुए आई लव यू कहा.
ये दोनों घटनाएँ आज के बदलते हुए समाज की एक ऐसी तस्वीर है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. न तो उस बिटिया ने वह ज्ञान अपने साथियों से पाया, न ही पुस्तकों से और न ही किसी और से. उस नन्हे लड़के की हरकत थी, लेकिन उसे भी ये सब सीखने के लिए कहीं और नहीं जाना पड़ा. ये ज्ञान उन्हें आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा से प्राप्त हुआ. शायद आप मेरी बात नहीं समझे. आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा याने हमारे ही घर में शान से बैठा हमारा टीवी. और उस में लगने वाला केबल. बस यही दुश्मन आज हमारे घर के भीतर घुसकर हम सबके मस्तिष्क पर हमला कर रहा है और हम हैं कि इसे बिलकुल न समझते हुए खुश हैं कि हमारा बच्चा ज्ञानवान बन रहा है.
टीवी का हमारे संस्कार से गहरा नाता है. टीवी आज जो कुछ हमें परोस रहा है, वह हमारी ंजिंदगी में बिलकुल भी नहीं होता. क्योंकि उसकी दुनिया अमीरों की दुनिया होती है. टीवी पर गरीबों की कहानी कभी नहीं आती. वह तो अमीरों का ही पोषक है. गरीबों की दास्तान सुनने के लिए हमारे पास ंजरा भी वक्त नहीं है. लेकिन एक लखपति करोड़पति कैसे बन जाता है, यह हमारे लिए प्रेरणा का विषय होता है. हम भी उसी की तरह पल भर में करोड़पति होना चाहते हैं. टीवी हमें यह सिखाता है कि कैसे बिना परिश्रम के तमाम कायदे-कानून को बला-ए-ताक पर रखकर करोड़पति बना जा सकता है. सारे काले धंधे हमें टीवी पर ही देखने को मिलते हैें. हम उसी से सीख रहे हैं. फिर हमारी संतानों का क्या? वे भी तो वही सब देख रहे हैं, जो हम देख रहे हैं. उनका अपना संसार है. जब वे टीवी पर कई तरह की हत्याएँ, चालबाजी, पैंतरेबाजी देखते हैं, तो वैसा ही करने का उनका भी मन करता है. कभी-कभी वे ऐसा कर भी लेते हैें, तब बड़ा मजा आता है, धीरे-धीरे ऐसा करना उनकी आदत में शुमार हो जाता है.
हम शायद यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आज टीवी के धारावाहिकों में जानबूझकर वही दिखाया जा रहा है, जो विज्ञापन मीडिया चाहता है. विज्ञापन मीडिया याने धारावाहिकों को प्रायोजित करने वाला एक बड़ा समुदाय. इसे यह अच्छी तरह से मालूम है कि आज के मनुष्य पर उसके ड्राइंग रुम पर ही हमला बोला जा सकता है, तभी वह उससे प्रभावित हो सकता है. टीवी पर आज वह नहीं दिखाया जा रहा है, जो समाज में हो रहा है, बल्कि वही दिखाया जा रहा है, जो भविष्य में समाज में होना है. आप देख ही रहे हैं, समाज में आज वही हो रहा है, जिसे टीवी दिखाता रहा है.
ये आज के समाज की सच्चाई है कि हम अपने दुश्मन को नहीं पहचान पा रहे हैं. इस टीवी ने आज हमें अपना गुलाम बना लिया है. वैसे तो गुलामी कभी किसी को पसंद नहीं है, लेकिन टीवी की इस गुलामी को हमने आज सहजता से स्वीकार कर लिया है. आज हालत यह हो गई है कि जब तक हम सास-बहू के किस्से को दिन भर में एक दो बार नहीं देख लेते या अपनों के बीच चर्चा नहीं कर लेते, हमें अच्छा ही नहीं लगता. हम बड़े ही गर्व से कहते हैं कि देखो तो पायल ने कितना बड़ा पैंतरा खेला. वह तो लगता है वीरानी परिवार को खत्म करके ही रहेगी.
कभी सोचा है इस टीवी ने आज नारी की हालत कैसी कर दी है. आज टीवी पर तो नारी नारी के रूप में न होकर एक डायन के रूप में नजर आती है. हम और आप आज हजार पाँच सौ रुपए के लिए तनाव में आ जतो हैं. लेकिन टीवी की ये आधुनिक नारियाँ लाखों-करोडाें का ही व्यापार करती हैं. इन लोगों के सामने इनका दुश्मन दिखाई देता है, लेकिन हमें तो हमारा ही दुश्मन दिखाई नहीं दे रहा है.
टीवी ने आज इंसान की परिभाषा ही बदल कर रख दी है. ऐसे में कैसे स्थापित हो संस्कारवान समाज. जब हम ही संस्कारवान नहीं हैं, तो अपने बच्चों से यह कैसे अपेक्षा करें कि वे संस्कारवान बनें? आज हमारे ही घर में आने वाले हमारे माता-पिता को हम अपना कजिन बताते नहीं शरमाते. अब तो उन्हें घर के कुछ ही विशेष कार्यक्रमों में ही बुलाया जाता है. डिलीवरी के समय, किसी की बीमारी के समय या फिर ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में जिसमे माता-पिता की उपस्थिति अत्यावश्यक हो. आज हमारे ही नजरों में हमारे माता-पिता का महत्व कुछ भी नहीं रह गया है.
हमने ऐसा क्यों किया? क्योंकि हम आज जो कुछ भी कर रहे हैं, वही टीवी पर देख रहे हैं. टीवी पर आने वाला धारावाहिक हमें कई मामलों में अच्छा इसीलिए लगता है कि हम उसमें अपनी परम्पराओं को टूटता हुआ देखते हैं. आज घर में माता-पिता की उपस्थिति हमें खलती है, हमारे एकांत को तोड़ती है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इन सबके पीछे हमारे ड्राइंग रुम में सजा हमारा टीवी ही है.
टीवी को यदि हमें अपना दोस्त समझना है, तो पहले यह देख लें कि हमें टीवी पर आने वाला ऐसा कौन सा धारावाहिक देखना है, जिसमें संस्कारों को मजबूत होना दिखाया जाता हो. पसीने से कमाए धन के बारे में बताया जाता हो. अपने से बड़ों का आदर करना बताया जाता हो. हमारे भीतर के सोए पड़े इंसान को जगाने का काम करता हो. हमारे बच्चों को यह बताए कि बिना मेहनत के मिलने वाला धन हमारे लिए मिट्टी है. मेहनत से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है, यही नहीं हमें हमेशा दूसरों की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए, ऐसे संस्कार देने का काम यदि टीवी करे, तो निश्चित ही वह हमारा दोस्त है. अन्यथा उससे बड़ा हमारा कोई शत्रु नहीं.
अंत में एक बात यही कहना चाहूँगा कि टीवी जब तक हमारा है, वह हमारा दोस्त है, हमारा साथी है, पर जिस दिन हम टीवी के हो गए, वह हमारा दुश्मन बन जाता है. वह हम पर रांज करता जाता है और हम कुछ नहीं कर पाते. यदि हम आज टीवी के सचमुच गुलाम हो गए हैं, तो वह समय दूर नहीं, जब आपका बच्चा आपसे गालियों से बात करेगा और आप कुछ नहीं कर पाएँगे. आप को इसके लिए तैयार रहना होगा.
डा. महेश परिम
अपनी युवा होती बिटिया से एक दिन माँ ने कहा- बेटा अब वक्त आ गया है कि तुझसे सेक्स के बारे में कुछ बात की जाए. तब बिटिया का जवाब था- पूछो माँ, जो कुछ भी पूछना हो, शरमाना मत, मैं सब-कुछ बताऊँगी. सोचो उस समय माँ पर क्या गुजरी होगी? इसी तरह एक और घटना है. पहली कक्षा में पढ़ने वाली नन्हीं छात्रा ने बताया कि आज उनकी क्लास में एक लड़के ने एक लड़की की पप्पी लेते हुए आई लव यू कहा.
ये दोनों घटनाएँ आज के बदलते हुए समाज की एक ऐसी तस्वीर है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. न तो उस बिटिया ने वह ज्ञान अपने साथियों से पाया, न ही पुस्तकों से और न ही किसी और से. उस नन्हे लड़के की हरकत थी, लेकिन उसे भी ये सब सीखने के लिए कहीं और नहीं जाना पड़ा. ये ज्ञान उन्हें आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा से प्राप्त हुआ. शायद आप मेरी बात नहीं समझे. आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा याने हमारे ही घर में शान से बैठा हमारा टीवी. और उस में लगने वाला केबल. बस यही दुश्मन आज हमारे घर के भीतर घुसकर हम सबके मस्तिष्क पर हमला कर रहा है और हम हैं कि इसे बिलकुल न समझते हुए खुश हैं कि हमारा बच्चा ज्ञानवान बन रहा है.
टीवी का हमारे संस्कार से गहरा नाता है. टीवी आज जो कुछ हमें परोस रहा है, वह हमारी ंजिंदगी में बिलकुल भी नहीं होता. क्योंकि उसकी दुनिया अमीरों की दुनिया होती है. टीवी पर गरीबों की कहानी कभी नहीं आती. वह तो अमीरों का ही पोषक है. गरीबों की दास्तान सुनने के लिए हमारे पास ंजरा भी वक्त नहीं है. लेकिन एक लखपति करोड़पति कैसे बन जाता है, यह हमारे लिए प्रेरणा का विषय होता है. हम भी उसी की तरह पल भर में करोड़पति होना चाहते हैं. टीवी हमें यह सिखाता है कि कैसे बिना परिश्रम के तमाम कायदे-कानून को बला-ए-ताक पर रखकर करोड़पति बना जा सकता है. सारे काले धंधे हमें टीवी पर ही देखने को मिलते हैें. हम उसी से सीख रहे हैं. फिर हमारी संतानों का क्या? वे भी तो वही सब देख रहे हैं, जो हम देख रहे हैं. उनका अपना संसार है. जब वे टीवी पर कई तरह की हत्याएँ, चालबाजी, पैंतरेबाजी देखते हैं, तो वैसा ही करने का उनका भी मन करता है. कभी-कभी वे ऐसा कर भी लेते हैें, तब बड़ा मजा आता है, धीरे-धीरे ऐसा करना उनकी आदत में शुमार हो जाता है.
हम शायद यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आज टीवी के धारावाहिकों में जानबूझकर वही दिखाया जा रहा है, जो विज्ञापन मीडिया चाहता है. विज्ञापन मीडिया याने धारावाहिकों को प्रायोजित करने वाला एक बड़ा समुदाय. इसे यह अच्छी तरह से मालूम है कि आज के मनुष्य पर उसके ड्राइंग रुम पर ही हमला बोला जा सकता है, तभी वह उससे प्रभावित हो सकता है. टीवी पर आज वह नहीं दिखाया जा रहा है, जो समाज में हो रहा है, बल्कि वही दिखाया जा रहा है, जो भविष्य में समाज में होना है. आप देख ही रहे हैं, समाज में आज वही हो रहा है, जिसे टीवी दिखाता रहा है.
ये आज के समाज की सच्चाई है कि हम अपने दुश्मन को नहीं पहचान पा रहे हैं. इस टीवी ने आज हमें अपना गुलाम बना लिया है. वैसे तो गुलामी कभी किसी को पसंद नहीं है, लेकिन टीवी की इस गुलामी को हमने आज सहजता से स्वीकार कर लिया है. आज हालत यह हो गई है कि जब तक हम सास-बहू के किस्से को दिन भर में एक दो बार नहीं देख लेते या अपनों के बीच चर्चा नहीं कर लेते, हमें अच्छा ही नहीं लगता. हम बड़े ही गर्व से कहते हैं कि देखो तो पायल ने कितना बड़ा पैंतरा खेला. वह तो लगता है वीरानी परिवार को खत्म करके ही रहेगी.
कभी सोचा है इस टीवी ने आज नारी की हालत कैसी कर दी है. आज टीवी पर तो नारी नारी के रूप में न होकर एक डायन के रूप में नजर आती है. हम और आप आज हजार पाँच सौ रुपए के लिए तनाव में आ जतो हैं. लेकिन टीवी की ये आधुनिक नारियाँ लाखों-करोडाें का ही व्यापार करती हैं. इन लोगों के सामने इनका दुश्मन दिखाई देता है, लेकिन हमें तो हमारा ही दुश्मन दिखाई नहीं दे रहा है.
टीवी ने आज इंसान की परिभाषा ही बदल कर रख दी है. ऐसे में कैसे स्थापित हो संस्कारवान समाज. जब हम ही संस्कारवान नहीं हैं, तो अपने बच्चों से यह कैसे अपेक्षा करें कि वे संस्कारवान बनें? आज हमारे ही घर में आने वाले हमारे माता-पिता को हम अपना कजिन बताते नहीं शरमाते. अब तो उन्हें घर के कुछ ही विशेष कार्यक्रमों में ही बुलाया जाता है. डिलीवरी के समय, किसी की बीमारी के समय या फिर ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में जिसमे माता-पिता की उपस्थिति अत्यावश्यक हो. आज हमारे ही नजरों में हमारे माता-पिता का महत्व कुछ भी नहीं रह गया है.
हमने ऐसा क्यों किया? क्योंकि हम आज जो कुछ भी कर रहे हैं, वही टीवी पर देख रहे हैं. टीवी पर आने वाला धारावाहिक हमें कई मामलों में अच्छा इसीलिए लगता है कि हम उसमें अपनी परम्पराओं को टूटता हुआ देखते हैं. आज घर में माता-पिता की उपस्थिति हमें खलती है, हमारे एकांत को तोड़ती है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इन सबके पीछे हमारे ड्राइंग रुम में सजा हमारा टीवी ही है.
टीवी को यदि हमें अपना दोस्त समझना है, तो पहले यह देख लें कि हमें टीवी पर आने वाला ऐसा कौन सा धारावाहिक देखना है, जिसमें संस्कारों को मजबूत होना दिखाया जाता हो. पसीने से कमाए धन के बारे में बताया जाता हो. अपने से बड़ों का आदर करना बताया जाता हो. हमारे भीतर के सोए पड़े इंसान को जगाने का काम करता हो. हमारे बच्चों को यह बताए कि बिना मेहनत के मिलने वाला धन हमारे लिए मिट्टी है. मेहनत से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है, यही नहीं हमें हमेशा दूसरों की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए, ऐसे संस्कार देने का काम यदि टीवी करे, तो निश्चित ही वह हमारा दोस्त है. अन्यथा उससे बड़ा हमारा कोई शत्रु नहीं.
अंत में एक बात यही कहना चाहूँगा कि टीवी जब तक हमारा है, वह हमारा दोस्त है, हमारा साथी है, पर जिस दिन हम टीवी के हो गए, वह हमारा दुश्मन बन जाता है. वह हम पर रांज करता जाता है और हम कुछ नहीं कर पाते. यदि हम आज टीवी के सचमुच गुलाम हो गए हैं, तो वह समय दूर नहीं, जब आपका बच्चा आपसे गालियों से बात करेगा और आप कुछ नहीं कर पाएँगे. आप को इसके लिए तैयार रहना होगा.
? डा. महेश परिमल, 403, भवानी परिसर, इंद्रपुरी भेल, भोपाल. 462022.
ड्राइंग रुम में बैठा घर का दुश्मन
? डा. महेश परिमल
अपनी युवा होती बिटिया से एक दिन माँ ने कहा- बेटा अब वक्त आ गया है कि तुझसे सेक्स के बारे में कुछ बात की जाए. तब बिटिया का जवाब था- पूछो माँ, जो कुछ भी पूछना हो, शरमाना मत, मैं सब-कुछ बताऊँगी. सोचो उस समय माँ पर क्या गुजरी होगी? इसी तरह एक और घटना है. पहली कक्षा में पढ़ने वाली नन्हीं छात्रा ने बताया कि आज उनकी क्लास में एक लड़के ने एक लड़की की पप्पी लेते हुए आई लव यू कहा.
ये दोनों घटनाएँ आज के बदलते हुए समाज की एक ऐसी तस्वीर है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. न तो उस बिटिया ने वह ज्ञान अपने साथियों से पाया, न ही पुस्तकों से और न ही किसी और से. उस नन्हे लड़के की हरकत थी, लेकिन उसे भी ये सब सीखने के लिए कहीं और नहीं जाना पड़ा. ये ज्ञान उन्हें आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा से प्राप्त हुआ. शायद आप मेरी बात नहीं समझे. आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा याने हमारे ही घर में शान से बैठा हमारा टीवी. और उस में लगने वाला केबल. बस यही दुश्मन आज हमारे घर के भीतर घुसकर हम सबके मस्तिष्क पर हमला कर रहा है और हम हैं कि इसे बिलकुल न समझते हुए खुश हैं कि हमारा बच्चा ज्ञानवान बन रहा है.
टीवी का हमारे संस्कार से गहरा नाता है. टीवी आज जो कुछ हमें परोस रहा है, वह हमारी ंजिंदगी में बिलकुल भी नहीं होता. क्योंकि उसकी दुनिया अमीरों की दुनिया होती है. टीवी पर गरीबों की कहानी कभी नहीं आती. वह तो अमीरों का ही पोषक है. गरीबों की दास्तान सुनने के लिए हमारे पास ंजरा भी वक्त नहीं है. लेकिन एक लखपति करोड़पति कैसे बन जाता है, यह हमारे लिए प्रेरणा का विषय होता है. हम भी उसी की तरह पल भर में करोड़पति होना चाहते हैं. टीवी हमें यह सिखाता है कि कैसे बिना परिश्रम के तमाम कायदे-कानून को बला-ए-ताक पर रखकर करोड़पति बना जा सकता है. सारे काले धंधे हमें टीवी पर ही देखने को मिलते हैें. हम उसी से सीख रहे हैं. फिर हमारी संतानों का क्या? वे भी तो वही सब देख रहे हैं, जो हम देख रहे हैं. उनका अपना संसार है. जब वे टीवी पर कई तरह की हत्याएँ, चालबाजी, पैंतरेबाजी देखते हैं, तो वैसा ही करने का उनका भी मन करता है. कभी-कभी वे ऐसा कर भी लेते हैें, तब बड़ा मजा आता है, धीरे-धीरे ऐसा करना उनकी आदत में शुमार हो जाता है.
हम शायद यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आज टीवी के धारावाहिकों में जानबूझकर वही दिखाया जा रहा है, जो विज्ञापन मीडिया चाहता है. विज्ञापन मीडिया याने धारावाहिकों को प्रायोजित करने वाला एक बड़ा समुदाय. इसे यह अच्छी तरह से मालूम है कि आज के मनुष्य पर उसके ड्राइंग रुम पर ही हमला बोला जा सकता है, तभी वह उससे प्रभावित हो सकता है. टीवी पर आज वह नहीं दिखाया जा रहा है, जो समाज में हो रहा है, बल्कि वही दिखाया जा रहा है, जो भविष्य में समाज में होना है. आप देख ही रहे हैं, समाज में आज वही हो रहा है, जिसे टीवी दिखाता रहा है.
ये आज के समाज की सच्चाई है कि हम अपने दुश्मन को नहीं पहचान पा रहे हैं. इस टीवी ने आज हमें अपना गुलाम बना लिया है. वैसे तो गुलामी कभी किसी को पसंद नहीं है, लेकिन टीवी की इस गुलामी को हमने आज सहजता से स्वीकार कर लिया है. आज हालत यह हो गई है कि जब तक हम सास-बहू के किस्से को दिन भर में एक दो बार नहीं देख लेते या अपनों के बीच चर्चा नहीं कर लेते, हमें अच्छा ही नहीं लगता. हम बड़े ही गर्व से कहते हैं कि देखो तो पायल ने कितना बड़ा पैंतरा खेला. वह तो लगता है वीरानी परिवार को खत्म करके ही रहेगी.
कभी सोचा है इस टीवी ने आज नारी की हालत कैसी कर दी है. आज टीवी पर तो नारी नारी के रूप में न होकर एक डायन के रूप में नजर आती है. हम और आप आज हजार पाँच सौ रुपए के लिए तनाव में आ जतो हैं. लेकिन टीवी की ये आधुनिक नारियाँ लाखों-करोडाें का ही व्यापार करती हैं. इन लोगों के सामने इनका दुश्मन दिखाई देता है, लेकिन हमें तो हमारा ही दुश्मन दिखाई नहीं दे रहा है.
टीवी ने आज इंसान की परिभाषा ही बदल कर रख दी है. ऐसे में कैसे स्थापित हो संस्कारवान समाज. जब हम ही संस्कारवान नहीं हैं, तो अपने बच्चों से यह कैसे अपेक्षा करें कि वे संस्कारवान बनें? आज हमारे ही घर में आने वाले हमारे माता-पिता को हम अपना कजिन बताते नहीं शरमाते. अब तो उन्हें घर के कुछ ही विशेष कार्यक्रमों में ही बुलाया जाता है. डिलीवरी के समय, किसी की बीमारी के समय या फिर ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में जिसमे माता-पिता की उपस्थिति अत्यावश्यक हो. आज हमारे ही नजरों में हमारे माता-पिता का महत्व कुछ भी नहीं रह गया है.
हमने ऐसा क्यों किया? क्योंकि हम आज जो कुछ भी कर रहे हैं, वही टीवी पर देख रहे हैं. टीवी पर आने वाला धारावाहिक हमें कई मामलों में अच्छा इसीलिए लगता है कि हम उसमें अपनी परम्पराओं को टूटता हुआ देखते हैं. आज घर में माता-पिता की उपस्थिति हमें खलती है, हमारे एकांत को तोड़ती है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इन सबके पीछे हमारे ड्राइंग रुम में सजा हमारा टीवी ही है.
टीवी को यदि हमें अपना दोस्त समझना है, तो पहले यह देख लें कि हमें टीवी पर आने वाला ऐसा कौन सा धारावाहिक देखना है, जिसमें संस्कारों को मजबूत होना दिखाया जाता हो. पसीने से कमाए धन के बारे में बताया जाता हो. अपने से बड़ों का आदर करना बताया जाता हो. हमारे भीतर के सोए पड़े इंसान को जगाने का काम करता हो. हमारे बच्चों को यह बताए कि बिना मेहनत के मिलने वाला धन हमारे लिए मिट्टी है. मेहनत से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है, यही नहीं हमें हमेशा दूसरों की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए, ऐसे संस्कार देने का काम यदि टीवी करे, तो निश्चित ही वह हमारा दोस्त है. अन्यथा उससे बड़ा हमारा कोई शत्रु नहीं.
अंत में एक बात यही कहना चाहूँगा कि टीवी जब तक हमारा है, वह हमारा दोस्त है, हमारा साथी है, पर जिस दिन हम टीवी के हो गए, वह हमारा दुश्मन बन जाता है. वह हम पर रांज करता जाता है और हम कुछ नहीं कर पाते. यदि हम आज टीवी के सचमुच गुलाम हो गए हैं, तो वह समय दूर नहीं, जब आपका बच्चा आपसे गालियों से बात करेगा और आप कुछ नहीं कर पाएँगे. आप को इसके लिए तैयार रहना होगा.
डा. महेश परिम