मंगलवार, 20 जनवरी 2009

कोई कुछ नहीं करेगा


नीरज नैयर

हम भारतीयों को मुगालते में जीना पसंद है. हम मुगालते में हैं कि अमेरिका हमारे दुश्मन को अपना दुश्मन मानेगा, हम मुगालते में हैं कि पाकिस्तान हमारी धमकियों से डरकर कार्रवाई करेगा, हम मुगालते में हैं कि विश्व समुदाय पाक पर जुबान जमा खर्ची के बजाए सख्त कदम उठाएगा.
जबकि हम खुद इस बात को भली-भांति जानते हैं कि कोई कुछ नहीं करने वाला. मुंबई हमले को एक महीना बीत चुका है बावजूद इसके न तो पाकिस्तान ने कोई कार्रवाई की और न ही हमने कोई माकूल जवाब देने की हिम्मत जुटाई. हम अब भी कभी मुस्लिम राष्ट्रों को पाक की खिलाफत करने को कह रहे हैं तो कभी उसके मददगार चीन को.
अमेरिका और यूरोपीय देश भले ही मुंबई हमले में भारत के साथ खड़े होने की बात कह रहे हो मगर यह सोच लेना कि वह पूरी तरह से हमें समर्थन देंगे गलत होगा क्योंकि सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं और भारत का साथ देने के नाम पर वो उन्हें कुर्बान नहीं कर सकते. अफगानिस्तान में तालिबान और अलकायदा से लड़ने के लिए उन्हें पाकिस्तान की जरूरत है इसलिए वो पाकिस्तान पर घुर्रा तो सकते हैं पर काट नहीं सकते. इसी तरह भी हमारा साथ देने के मूड में दिखाई नहीं पड़ रहा है. रूस भारत का पुराना साथी रहा है मगर मौजूदा माहौल में साथ देने के बजाए वो भारत-पाक को शांत रहने की नसीहत दे रहा है. जबकि उसकी खुफिया एजेंसी खुद इस बात का खुलासा कर चुकी है कि मुंबई हमलों में दाऊद का हाथ था.
वैसे रूस का रूखा व्यवहार कोई अचरज की बात नहीं है. भारत के अमेरिका के नजदीक आने की बेताबी के चलते रूस पहले से ही दूरी कायम किए हुए था. मनमोहन सिंह की महज 28 घंटे की मास्को यात्रा के साथ ही यह साफ हो गया था कि दोनों देशों के बीच पुरानी वाली बात नहीं रही. पाकिस्तान जिस तरह का रुख जाहिर कर रहा है उससे इस बात की संभावना कम ही दिखाई पड़ती है कि वह बिना चोट खाए बाज आने वाला है. रक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि भारत को प्रेशर डिप्लोमेसी के साथ-साथ पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करके कड़ा संदेश देना चाहिए. वायुसेना इस काम के लिए पुरी तरह तैयार है. बड़ी संख्या में संभावित अड्डों की पहचान कर ली गई है.
महज सात मिनट में उन्हें जमींदोंज किया जा सकता है. मुंबई हमले को एक महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी पड़ोसी मुल्क ने कोई वायदा नहीं निभाया है. उल्टा उसने प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जमात-उद-दावा के गिरफ्तार आतंकवादियों को भी छोड़ दिया है. पाकिस्तान अमेरिका के दबाव को भी लगातार नजर अंदाज किए जा रहा है. अभी हाल ही में अमेरिका ने अपने सबसे बड़े सैन्य आफिसर एडमिरल माइक मुलेन को पाकिस्तान दबाव बनाने के इरादे से भेजा था. लेकिन पाक इस मौके पर भी अपने तेवर दिखाने से बाज नहीं आया. उसने मुलेन की मौजूदगी में लड़ाकू विमानों को इस्लामाबाद के ऊपर से उड़ाकर यह संदेश देने का प्रयास किया कि उसकी सेना अमेरिकी दबाव को कितनी अहमियत देती है.
पाक इस बात को अच्छी तरह जानता है कि अमेरिका एक सीमा तक ही उसपर दबाव डाल सकता है. क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान के साथ लड़ाई में अमेरिकी और नाटो सैनिकों को भेजा जाने वाला 75 फीसदी साजो सामान पाकिस्तान के रास्ते होकर ही गुजरता है. ऐसे में अमेरिका पाक से सीधी लड़ाई लेकर वॉर ऑन टेरर को कमजोर नहीं करना चाहेगा. अमेरिका कूटनीतिक पैंतरेबाजी अपनाकर दोनों देशो के बीच महज तनाव टालने में जुटा है. अमेरिकी नेतृत्व ने भारत सरकार को 20 जनवरी तक संयम बरतने की सलाह दी है. हालांकि इसके पीछे उसका तर्क है कि तब तक नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा सत्ता संभाल लेंगे.
वाशिंगटन यह कतई नहीं चाहता कि जब अमेरिकी चुनाव में इतिहास रचने वाले ओबामा व्हाइट हाउस की कमान थाम रहे हों उस वक्त भारत-पाक एक दूसरे पर मिसाइल दाग रहे हों. कुछ दिन पहले ही अमेरिकी विदेशमंत्री कोंडालीजा राइस ने प्रणव मुखर्जी को फोन करके यह टटोलने की कोशिश की कि भारत सैन्य कार्रवाई की क्या योजना बना रहा है.
अमेरिकी की यह कवायद पूरी तरह से मुंबई हमले और उसके बाद पनपे तनाव को खत्म करने की है. वो भारत के रुख का भले ही समर्थन कर रहा हो मगर वो भारत को पाक पर तवज्जो देने के मूड में कतई नहीं है. अमेरिका को यकीन है कि 20 जनवरी के बाद भारत का सारा ध्यान गणतंत्र दिवस की तैयारियों पर केंद्रित हो जाएगा. इस तरह जनवरी निकल जाएगी. फरवरी में कश्मीर घाटी में जमकर बर्फबारी होने की संभावना बढ़ जाएगी, लिहाजा भारत को सैन्य कार्रवाई कुछ और दिन के लिए टालनी पड़ेगी.
इसके बाद अगर भारत पाक के खिलाफ सख्त कदम उठाएगा तो शायद उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उतना समर्थन नहीं मिलगा जितना अभी मिल रहा है. पाकिस्तान भी इसी कोशिश में है कि युद्धोउन्माद फैलाकर विश्व समुदाय का ध्यान मुंबई घटना से भटकाया जाए. जितना लंबा वक्त पाकिस्तान गुजार लेगा मुंबई हमले की बात अपने आप दब जाएगी. मामले के ठंडे पड़ने के बाद पाक के हौसले तो बुलंद होंगे ही वहां से संचालित आतंकवादी संगठनों को पुन: मुंबई जैसे हमले करने का मौका मिल जाएगा. भारत को अगर पाकिस्तान को सबक सिखाना है तो उसे और कड़े कदम उठाने होंगे.
अमेरिका आदि देश केवल तभी पाक के खिलाफ सख्ती बरतेंगे जब उन्हें भारत यह एहसास कराए कि यदि पाक को आर्थिक और सैन्य मदद बंद नहीं की गई तो भारत सैन्य कार्रवाई करेगा. यदि भारत पाकिस्तान पी हमला करता है तो इसका प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ना लाजमी है. अमेरिका को अगर पाक पर वास्तविक दबाव डालना है तो इसके साथ तत्काल सभी सैनिक मदद बंद करने की घोषणा करनी चाहिए. जब तक भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने पाकिस्तान के प्रति कड़े रुख जाहिर नहीं करेगा तब तक कोई भी कुछ नहीं करने वाला.

नीरज नैयर

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