सोमवार, 12 जनवरी 2009

मेमोरी डेवलोपमेंट छात्र जीवन का अहम बिंदु

रामचंद्र मौर्य
ज्यादातर लोगों की यह समस्या और शिकायत होती है कि वे चीजों को लंबे समय तक याद नहीं रख पाते। कभी-कभी चिंता या दुख भी याददाश्त कमजोर होने का कारण माने जाते हैं। ढलती उम्र का तो यह सामान्य लक्षण हो सकता है लेकिन स्कूल कॉलेजों में अध्ययनरत अनेक छात्र-छात्राएं भी इस समस्या से परेशान रहते हैं। अत: इस पर गौर किया जाना जरूरी है। कमजोर याददाश्त वाले बच्चों को समझ में नहीं आता कि ऐसा कौन सा नुस्खा अपनाया जाए कि वे परीक्षा के लिए याद की गई पाठ्य-सामग्री को न भूलें और अच्छे अंक लाएं। दरअसल इंसान के दिमाग के अंदर एकत्रित सूचनाएं समय के साथ धुंधली होने लगती हैं लेकिन छात्रगण कुछ उपाय करके अपनी मेमोरी को शॉर्प बना सकते हैं और कोर्स के कंटेंट को इस तरह याद कर सकते हैं कि उस पर समय या मनोवैज्ञानिक दबावों का असर न पड़े। मेमोरी डेवलेपमेंट के लिए मनोवैज्ञानिक कई प्रकार की हिदायतें देते हैं जिन पर अमल करने पर निश्चित ही याददाश्त बढ़ेगी और आत्मसात की गई पाठ्य-सामग्री विस्मृत नहीं होगी।
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक हम दिन भर में जो भी देखते, सुनते, महसूस करते या पढ़ते हैं, वह सब हमारे दिगाम के एक भाग में स्टोर हो जाता है। जब हम किसी विषय विशेष की याद करना चाहते हैं और वह हमें याद नहीं आता तो हम कहते हैं कि हम उस चीज को भूल गए हैं लेकिन यह बात पूरी तरह सच नहीं है। दरअसल हमारी मेमोरी में वह विषय स्टोर तो है लेकिन समय के प्रभाव, सूचनाओं के बोझ तथा चिंतित रहने व मनोवैज्ञानिक दबावों के कारण दिमाग में दब जाता है। उसे रिकॉल करने का सही तरीका लोग नहीं जानते हैं। इसलिए जरूरत इस बात की है कि चीजों को इस तरह याद किया जाए कि आवश्यकता पड़ने पर पूरा विषय हमें तुरंत याद आ जाए। मेमोरी डेवलेपमेंट कैसे किया जाए, पाठ्य सामग्री को कैसे याद किया जाए, इन बातों को जानने के पहले जानें कि मनोवैज्ञानिक मेमोरी डेवलेपमेंट के बारे में क्या कहते हैं।
माइंड पार्ट्स
मनोवैज्ञानिको के मुताबिक इंसान का दिमाग दो हिस्सों में बंटा होता है। बायां हिस्सा एनालिसिस (विश्लेषण), कैलकुलेशन (गणना) और लॉजिक (तर्क) के काम करता है। दाहिना हिस्सा इमेजिनेशन (कल्पनाशक्ति), क्रिएटिविटी (सृजनात्मकता), ड्रीम्स (सपने देखना) और फैंटेसी (हवाई कल्पना) के काम करता है। माना जाता है कि दिमाग के बाएं हिस्से का इस्तेमाल ज्यादातर टीचर, मैकेनिकल इंजीनियर, एकाउंटेंट जैसे लोग करते हैं क्योंकि इनके काम में तर्क, गणना और विश्लेषण की प्रमुखता रहती है। दिमाग के दाहिने हिस्से का उपयोग पेंटर, एक्टर, ग्राफिक डिजाइनर, कवि-लेखक आदि ज्यादा करते हैं क्योंकि इनका काम कल्पना की उड़ान पर ज्यादा निर्भर होता है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हम जो पढ़ते हैं, हमारा दिमाग औसत रूप में उसका 25 फीसदी कंटेंट याद रखता है। इसी तरह हम जो सुनते हैं उसका 35 फीसदी, जो देखते हैं उसका 50 फीसदी और जो बोलते हैं उसका 60 फीसदी और जो काम करते हैं उसका 75 फीसदी हिस्सा मानव मस्तिष्क में स्टोर हो जाता है। कभी-कभी मानसिक रूप से अलर्ट होकर आंखे खुली रखकर हम जो कुछ पढ़ते, देखते, सुनते, बोलते या याद करते हैं उसका 95 फीसदी मैटर हम औसतन याद रख पाते हैं लेकिन जिन विषयों के प्रति हम अलर्ट नहीं रहते, हमारा दिमाग उनको 10 मिनट भी याद नहीं रख पाता। दरअसल, हर व्यक्ति विशेष का आई-क्यू अलग-अलग आंकड़ों में होता है। जिसकी मानसिक-क्षमता, सोचने की क्षमता अधिक होती है वह चीजों को जल्दी आत्मसात करता है और लंबे समय तक उसे मेमोरी में स्टोर करके रखता है लेकिन जिस व्यक्ति का आई क्यू कम होता है वह चाहकर भी विषयवस्तु को न तो समझ सकता है और न लंबे समय तक उसे याद रख सकता है। अगर हम पॉजिटिव सोच रखें, सकारात्मक प्रयास करें और आत्मविश्वास से लैस रहें तो अपनी आई क्यू भी बढ़ा सकते हैं और सोचने-समझने की क्षमता विकसित कर मेमोरी डेवलेपमेंट को बरकरार भी रख सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि हमारा दिमाग किसी भी विषयवस्तु को औसतन 24 घंटे तक ठीक ढंग से याद रखता है और उसके बाद उसे भूलने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसलिए छात्र-छात्राओं को चाहिए कि पढ़े गए विषय को याद रखने के लिए उसे बार-बार दोहराते रहें और याद करने के बजाए समझने की कोशिश करें। याद की गई विषयवस्तु तो भूल सकते हैं लेकिन समझी गई पाठ्य-सामग्री नहीं भूली जाती। पढ़ी गई बातों को याद रखने के लिए जरूरी है कि उन्हें व्यवस्थित ढंग से याद किया जाए और सही समय पर सही तरीके से उनका रिवीजन किया जाए। माना जाता है कि किसी भी चैप्टर को पढ़ने के सात दिन के अंदर उसका रिवीजन किया जाना चाहिए। एक से डेढ़ महीने के अंदर दूसरा और 6 महीने के बाद तीसरे रिवीजन से वह लंबे समय तक याद रहता है। प्रश्न यह है कि किसी विषयवस्तु या पाठ्य-सामग्री को किस तरह याद किया जाए कि हम सालों साल उसे भूल न पाएं।
एकाग्र होकर करें पढ़ाई
हमारा दिमाग हर वक्त एक साथ कई चीजों के बारे में सोचता रहता है। उदाहरण के लिए पढ़ते वक्त भी हमारा दिमाग ऐसी कई बातों के बारे में सोचता है जिसका पढ़ाई से कोई मतलब नहीं होता, जिससे पढ़ाई में बाधा पड़ती है, इसे मन का भटकाव भी कहते हैं। इसकी वजह से मन पढ़ाई में नहीं रम पाता और हम जो पढ़ते हैं, वह पूरी तरह याद नहीं हो पाता। इसके लिए जरूरी है कि जो पढ़ें, एकाग्रता से पढ़ें और एक समय में अपना पूरा ध्यान एक ही काम में लगाएं। चित्त की चंचल प्रवृत्ति से बचें। मन को भटकने न दें। एकाग्र होकर की गई पढ़ाई हमेशा याद रहती है।
एकाग्रता की जहां तक बात है तो शुरूआत में हो सकता है कि मन को जितना बांधने, संयमित रहने की कोशिश करें, वह उतना ही अधिक भटकने लगे लेकिन पॉजिटिव थिंकिंग, योग-प्राणायाम, ध्यान या मेडिटेशन करके मन की चंचल वृत्तियों से बचा जा सकता है। मन की एकाग्रता के लिए प्राणायाम और ध्यान सबसे बढ़िया तरीका है। पढ़ी गई अध्ययन सामग्री को बार-बार भूलने की स्थिति में पढ़ने के बाद तुरंत किताब बंद कर, आंखें बंद करके पढ़े हुए विषय के बारे में सोचें और देश-दुनिया से बेखबर होकर ध्यान करें। इसका निश्चित ही मेमोरी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
लिखाई-पढ़ाई को लेकर अगर आपके अंदर पॉजिटिव थिंकिंग है, मेहनत-लगन से पढा़ई करने का जज्बा रखते हैं तो निश्चित ही प्रतिभा निखरेगी, आई क्यू बढ़ेगा, मेमोरी का डेवलेपमेंट बरकरार रहेगा। वैसे तो मेमोरी बढ़ाने का दावा करने वाले कुछ टॉनिक भी बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि ये टॉनिक मनोवैज्ञानिक असर के तहत ही काम करते हैं। ये भले ही शरीर में कुछ दूसरे बदलाव लाते हों जिससे दिमाग की सक्रियता बढ़ती हो लेकिन सबसे अहम यह कि एक धारणा बन जाती है कि याददाश्त टॉनिक से ही तेज हो रही है। असलियत में इसी धारणा की वजह से हम अपनी मेमोरी को बढ़ता हुआ महसूस करते हैं। पर इससे बड़ा सच यह है कि यदि बिना कोई टॉनिक या दवा लिए सिर्फ यह सोचा जाए कि मेरी याददाश्त भी किसी आईएस टॉपर से कम नहीं है और मैं भी उसी तरह से पाठ्य-सामग्री को कंठस्थ कर सकता हूं तो मेमोरी वाकई पहले से बेहतर हो जाएगी। दरअसल यह हमारे शरीर की प्रवृत्ति है कि हम जो सोचते हैं, उसी के अनुरूप हमारा शरीर ढलने लगता है। तभी तो मनोवैज्ञानिक व डॉक्टर हमेशा पॉजिटिव थिंकिंग की सलाह देते हैं।
टुकड़ों में करें अध्ययन
आजकल पाठ्य-विषयों के सेलेबस व विषयवस्तु का दायरे इतना बढ़ गया है कि यह संभव ही नहीं है कि संपूर्ण अध्ययन सामग्री को एक साथ आत्मसात किया जा सके। इसके लिए अध्ययन सामग्री को टुकड़ों में बांटकर प्रतिदिन पढ़ाई करें। जो अध्याय पढ़ें, उस दिन उसी का ध्यान करें और तब तक ध्यान करें जब तक पढ़ी गई सामग्री किताब से पूरी तरह मेल नहीं खाती। इस तरह धीरे-धीरे संपूर्ण अध्ययन सामग्री को ग्रहण कर लेंगे और मेमोरी प्रॉब्लम से बचेंगे। यानी व्यवस्थित तरीके से पढा़ई करें। कोशिश करें कि जो भी मैटर आप पढ़ें, उसे डायग्राम या संक्षिप्त रूप में इस तरह लिख लें कि उसे देखते ही आपको पूरा मैटर याद आ जाए।
संबंध बनाकर याद करें
कोई भी नई बात हमें तभी याद होती है जब हम उसे अपने दिमाग में पहले से स्टोर किसी बात से जोड़कर देखते हैं। उदाहरण के लिए- चंद्रमा के किसी पर्यायवाची शब्द को याद करने के लिए हम उसे पहले से याद चंद्रमा की परिभाषा के साथ जोड़ देते हैं। इसके बाद जब कभी वह शब्द हमारे सामने आता है तो हमें चंद्रमा की परिभाषा याद आ जाती है और हम जान जाते हैं कि यह शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची है। मनोविदों के मुताबिक स्टडी करते समय हमें प्वॉइंट बनाकर उसे किसी ऐसी चीज से जोड़ने की कोशिश करना चाहिए जो हमें आसानी से उस प्वॉइंट और मैटर की याद दिला सके। हो सके तो दिमाग में उस प्वॉइंट की एक इमेज बना लें। जब भी जरूरत होगी उस इमेज को याद करते ही पूरा विषय व्यक्ति के जेहन में उभर जाएगा।
सामूहिक चर्चा
मेमोरी डेवलेपमेंट का एक और रास्ता है सामूहिक चर्चा। अध्ययन सामग्री को पढ़ें और अपने सहपाठियों के साथ उस पर चर्चा करें। पढ़ने के बाद विचार-विमर्श करने पर विषयवस्तु याद हो जाती है और कभी नहीं भूलती। इस मामले में नोट्स बनाकर अध्ययन का तरीका भी काफी कारगर होता है। अध्ययन के बाद नोट्स बनाते समय निश्चित ही कुछ चीजें आपको याद नहीं आ सकती हैं, ऐसे में संबंधित पुस्तक की जरूरत पड़ सकती है। पुस्तक का इस्तेमाल करने के बाद फिर से नोट्स बनाएं तो बार-बार इस प्रैक्टिस के क्रम में विषयवस्तु स्थायी रूप से कंठस्थ हो जाती है।
कुछ अलग सोचें
व्यक्ति का दिमाग उसे कुछ अलग हटकर सोचने-करने के लिए प्रेरित करता रहता है। खासकर रचनात्मक कार्यों में तो नयापन बहुत जरूरी है। अगर सृजनात्मक कार्यों में नयापन नहीं है तो ऐसी थिंकिंग, ऐसे कार्य का कोई मोल नहीं। वैसे हमारा दिमाग अजीब चीजों को जल्दी पकड़ता है और सामान्य चीजों के मुकाबले उन्हें लंबे समय तक याद भी रखता है। इसलिए जितना संभव हो सके रचनात्मक अध्ययन शैली अपनाएं।
मेमोरी पर भरोसा जरूरी
हमेशा पॉजिटिव सोचें और ऐसा सोचें कि मेरा दिमाग सबसे बेहतर है और मैं किसी से भी कम नहीं हूं। मैं चीजों को लंबे समय तक याद रख सकता हूं। कौन सा ऐसा काम है जिसे मैं नहीं कर सकता। सफल लोग जो काम करके आगे बढ़ चुके होते हैं उनके पदचिह्नों पर चलकर हम उनकी तरह क्यों नहीं बन सकते आदि-आदि। अगर आप बार-बार ऐसा सोचेंगे तो निश्चित ही मनोबल बढ़ेगा, आत्मविश्वास बढ़ेगा, मानसिक क्षमता बढ़ेगी और मेमोरी का डेवलेपमेंट होगा। नकारात्मक चिंतन से हमेशा बचने की कोशिश करें और दूसरों को भी इससे बचने की सलाह दें।
रामचंद्र मौर्य

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