बुधवार, 14 जनवरी 2009
हमारी दानशीलता से भिखारी बनते करोड़पति
डॉ. महेश परिमल
दृश्य एक
भारत-बंगला देश सीमा पर स्थित एक गाँव, जिसका नाम है बेणुपुर। इस गाँव में एक सुबह एक महँगी चमचमाती मर्स्ािडीज कार प्रवेश करती है। इस कार में खूब ही महँगा शूट पहने हुए एक व्यक्ति बैठा है। एक नजर वह अपनी विशाल स्टेट पर फेरता है। उसके खेत पर काम करते मजदूर उसका अभिवादन करते हैं। एक गर्वभरी मुस्कान के साथ उसकी गाड़ी एक भव्य आलीशान बंगले के सामने रुकती है। वह अपने बंगले में प्रवेश करता है। पत्नी और बच्चों से मिलता है। अपने धंधे के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताता है। अपनी बातों से वह अपने परिजनों को ऐसा फाँसता है कि परिजन भी ऑंख बंद कर उसकी बातों पर भरोसा कर लेते हैं।
दृश्य दो
अल्लाह के नाम पर कुछ दे दे बाबा। मौला के नाम पर कुछ दे दो बाबा। अल्लाह आपकी हिफाजत करेगा। इस बेबस इंसान को कुछ मिलेगा बाबा, अल्लाह आपको सुखी रखेगा। इस तरह के जुमलों के साथ कोई आपके सामने आए, जिसके दो हाथ न हों, तो निश्चित ही आपको दया आएगी और आपका हाथ जेब की तरफ चला जाएगा। हम यह सोचते हैं कि हमने बहुत बड़ा पुण्य कमाया। उस भिखारी की आत्मा हमें दुआएँ देगी। हम यह सोचकर रह जाते हैं और उस भिखारी को कुछ न कुछ देते रहते हैं।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उक्त दोनों ही दृश्य एक ही व्यक्ति से संबंधित हैँ। वही व्यक्ति एक ओर बहुत बड़ी स्टेट और आलीशान बंगल का मालिक है, तो दूसरी ओर बेबस होकर भीख माँगने वाला एक भिखारी। एक ही व्यक्ति के दो रूप। ऐसा हमारे देश में भी हो सकता है। इस तरह के हजारों भिखारी हमारे देश में हैं, जो अपनी विवशता बताकर भीख माँग रहे हैं और हम सब पुण्य कमाने के चक्कर में इन्हें लखपति से करोड़पति बना रहे है। भीख देने से हमारी स्थिति में भले ही बदलाव न आए, पर इनकी स्थिति में बदलाव आ जाता है। ये अपने क्षेत्र में वैभवशाली व्यक्ति के रूप में पहचाने जाते हैं। हमारी कमजोरी का फायदा उठाकर ये भिखारी धन्ना सेठ बन जाते हैं और हमें पता ही नहीं चलता।
हमें क्या किसी को भी पता नहीं चलता, यदि उस भिखारी को जयपुर में पुलिस दबिश के दौरान पकड़ा न जाता। इस बंगलादेशी भिखारी का नाम है मोहम्मद जाकिर। छोटी उम्र में ही एक दुर्घटना में अपने दोनों हाथ गँवाने वाले गरीब परिवार का लड़का। आवक का कोई साधन नहीं। दो दशक पहले किसी तरह वह भारतीय सीमा में घुस गया। कुछ महीने कोलकाता में रहने के बाद वह मुम्बई पहुँच गया। मुम्बई में वह गेटवे ऑफ इंडिया के सामने भीख माँगता। वह बताता है- कुदरत का कमाल तो देखो, यहाँ के लोग बहुत ही दयालु हैं। मुझे अपाहिज मानकर दो-पाँच रुपए दे देते हैं, कभी कोई विदेशी होता है, तो वह पचास रुपए भी दे देता है। गेट वे ऑफ इंडिया के सामने भीख माँगकर महीने में वह दस हजार रुपए आराम से कमा लेता था।
साल में एक बार वह अपने वतन जाता। अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर। क्लीन शेव कर, उजले कपड़े पहनकर बंगलादेश में जब वह अपने गाँव पहुँचता है, तो लोग उसकी इात करते हैं। पहले तो उसने अपने ही गाँव में कुछ जमीन खरीदी, पाँच साल पूरे होते तक तो उसने मकान भी खरीद लिया। उसके बाद इसी भीख की कमाई से जमीन-जायदाद खरीदना शुरू कर दिया। धन आने से अपनी बेटी देने वाले भी उसे मिल गए। दोनों हाथों से नाकाम होने के बाद भी उसे अपनी बेटी देने वालों की लाइन लग गई। मोहम्मद जाकिर की शादी हो गई, आज वह पांच बच्चों का पिता है। पर भीख माँगने की आदत ऐसे लगी कि छोड़ने का नाम ही नहीं लेती। किसी तरह सीमा तक पहुँचकर वहाँ हमारे जाँबाजों को कुछ रिश्वत देकर वह भारत में घुस आता था। एक बार किसी ने मजाक में कह दिया कि अजमेर शरीफ चले जाओ, ख्वाजा साहब गरीबनवाज हैं, बस जाकिर अजमेर आ गया।
राजस्थान का पवित्र शहर अजमेर। जहाँ ईरान से 12 सदी में आए सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्फ ख्वाजा गरीब नवाज साहब की दरगाह है। यहाँ रोज हजारों हिंदू-मुस्लिम सजदा करने आते हैं। अपनी चाहत पूरी करने आते हैं। ऐसा विश्वासा है कि यहाँ आकर जो भी मुराद माँगो, वह अवश्य पूरी होती है। मोहम्मद जाकिर को अजमेर मुम्बई के बजाए अधिक अनुकूल लगा। यहाँ तो दोनों समय भोजन भी मुफ्त मिल जाता था। भीख की राशि पूरी बच जाती। उधर बंगलादेश में उसके परिजनों को भी अधिक समय तक बाहर रहने पर कोई आपत्ति न थी। उसके दिन आराम से कट रहे थे।
आखिर एक दिन तो भांडा फूटना ही था। सो फूट गया। हुआ यूँ कि जयपुर में आतंकवादियों द्वारा बम विस्फोट किए जाने के बाद वहाँ सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी हो गई। लोगों से पूछताछ बढ़ गई। पुलिस ने जाकिर से पूछताछ की, उसका पता पूछा। पता कैसे बताता? वह तो घ ुसपैठिया था। उसकी बातचीत से शक हुआ कि वह बंगलाभाषी है, तो पुलिस ने सख्ती की। बड़ी मुश्किल से उसने अपना पता बताया। जब पुलिस बंगलादेश जाकर उस पते पर पहुँची, तब पता चला कि यह भिखारी तो करोड़पति है।
हमारी दया पर पलने वाले इस भिखारी के बाद मुम्बई के म्युनिसिपल अधिकारियों और रिश्वतखोर कर्मचारियों की बदौलत उसका राशनकार्ड भी बन गया। यही नहीं जे.जे. हास्पिटल की ओर से जारी किया गया विकलांगता का प्रमाण पत्र में इस भिखारी ने जुटा लिया। इस तरह से उसने हमारे देश की कानून-व्यवस्था को धता बताते हुए लाखों रुपए कमाए और उन सभी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया, जो उसकी विकलांगता को देखकर उसे भीख दिया करते थे। उक्त करोड़पति भिखारी आज पुलिस की गिरफ्त में है, पर उसे क्या फर्क पड़ता है, आखिर वहाँ भी तो उसे खाना मुफ्त में ही मिल रहा है। वह अपनी संपति तो भारत को दान नहीं कर देगा। फिर मामला दूसरे देश का है। उसने ऐसा कोई अपराध भी नहीं किया है, जिसे कानून जुर्म मानता हो। इन सवालों के बीच आखिर हमारी दयानतगिरी, दानशीलता, रहम का क्या होगा, जो किसी बेबस को देखकर जेब में हाथ डालने को विवश कर देती है।
डॉ. महेश परिमल
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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bheekh maangne ka dhandha to zordar hai.
जवाब देंहटाएंभीख मे इतनी सम्भावनाये , कोशिश करे तो कैसे हाथ पैर साबित है
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