मंगलवार, 13 जनवरी 2009
ईगल (चील्ह) के सात सिद्धान्त!
पहलाः
ईगल ऊँची उड़ान भरता है। उसके साथ गौरया या दूसरे छोटे पक्षी नहीं होते हैं। कोई दूसरा पक्षी उसके साथ उड़ ही नहीं सकता। ईगल हमेशा गौरया और कौवों से अलग ही रहता है।
ईगल, ईगल के साथ उड़ता है।
दूसराः
ईगल की निगाहें बहुत तेज़ होती है। ईगल पाँच किलोमीटर तक की दूरी से भी अपने लक्ष्य पर दृष्टि को केंद्रित कर सकता है। जब वह अपने शिकार कको लक्ष्य बना लेता है तो फिर दुसरी तरफ देखता भी नहीं है। उसकी निगाहें बिल्कुल अपने लक्ष्य पर ही आकर ठहर जाती हैं। फिर तो चाहे जितनी कठिन बाधायें बीच में क्यों न आ जायें वह बिना अपना लक्ष्य हासिल किये नहीं रुकता।
अगर दृष्टि हो और एक लक्ष्य पर उसे केन्द्रित कर दिया जाय, तो फिर बाधायें सफलता के आड़े नहीं आती हैं।
तीसराः
ईगल मरी हुई चीजें नहीं खाता है।वह सिफ ताज़ा और जि़न्दा शिकार ही खाता है। गिद्ध मरे हुए जानवर खाते हैं, लेकिन ईगल नहीं।
आप जो कुछ देखते-सुनते हैं, खासतौर से फिल्मों और टेलीवीज़न में, उसके प्रति सचेत रहिए। हमेशा खुद को नई जानकरियों से लैस रखते हुए अपने ज्ञान को समसामयिक बनाये रखिये।
चौथाः
ईगल तूफानों से प्यार करता है। जब बादल घिरना आरम्भ करते हैं तो वह रोमांचित हो जाता है। वह तूफानी हवाओं को ऊँचाई पर उड़ान भरने के लिए प्रयोग करता है। अगर वह एक बार वह तूफानी हवा की धाराओं को पा जाता है, फिर तो बादलों से भी ऊपर चला जाता है। यह ईगल को उड़ते हुए पंखों को आराम करने का अवसर प्रदान करती हैं। दूसरी तरफ तूफानी हवाओं के बीच दूसरे पक्षी पेड़ों की शाखाओं और पत्तियों के बीच छुप जाते हैं।
हम जीवन की में आने वाली बाधा रूपी तूफानों के सहारे और भी अधिक ऊँचाइयों को छू सकते हैं। बहादुर हमेशा चुनौतियों को स्वीकार करके लाभान्वित होते हैं।
पाँचः
ईगल विश्वास करने से पहले जाँचता है। जब मादा ईगल मिलन के लिए नर ईगल के संपर्क में आती है तो वह नर को आकर्षित करते हुए नीचे की तरफ उड़ान भरती है और लकड़ी की एक टहनी को उठाती है। फिर वह नर को आकर्षित करने के लिए दुबारा हवा में उड़ जाती है। जब वह काफी ऊँचाई पर जाकर टहनी को छोड़ देती है और उसे गिरते हुए देखती है, तब नर उस टहनी का पीछा करता है। वह जितनी तेज़ी से नीचे गिरता है वह उतनी ही तेज़ी से उसका पीछा करता है। उसे टहनी को गिरने से पहले पकड़ना होता है। वह उसे पकड़कर वापस मादा ईगल के पास ले आता है। तब मादा ईगल उस टहनी को लेकर ऊँचाई पर जाकर फिर उसे नर को लाने के लिए छोड़ देती है। फिर वह तब तक के लिए ऊँचाइयों पर चली जाती है जब तक कि उसे यकीन न हो जाय कि नर ईगल पकड़ने की कला में निपुड़ नहीं हो गया। इस तरह टहनी का पकड़ना समर्पण दर्शाता है। तब कहीं जाकर मादा ईगल नर ईगल को मिलन का अवसर देती है।
चाहे व्यक्तिगत जीवन हो या सामाजिक सहभागिता के लिए लागों के समर्पण की भावना को ज़रूर परखना चाहिए।
छः
जब ईगल अन्डे देने की तैयारी करते हैं तो नर और मादा दोनों पहाड़ी की ऐसी ऊँची चोटी की खोज करते हैं जहाँ कोई परभक्षी न पहुँच सके। इसके बाद नर ज़मीन पर आकर पत्थर के टुकड़े इकट्ठा करके चट्टान की दरार में रखता है। उसके बाद वह फिर धरती की तरफ उड़ान भरता है और टहनियाँ इकट्ठा करके लाता है और अन्डे देने के लिए घोसले का निर्माण करता है। फिर वह धरती की तरफ उड़ान भरके काँटे एकत्रित करके लाता है और और टहनियों के ऊपर रख देता है। इसके बाद फिर ज़मीन से जाकर नरम घास लाकर काँटों को ढंक देता है। इस तरह पहली पर्त तैयार हो जाने के बाद नर ईगल दुबार धरती पर जाकर और काँटे एकत्रित करके उससे घोसले को ढंक देता है। दुबारा वापस जाकर घास लाकर उन्हें काँटों के ऊपर रख देता है। इसके बाद अपेन परों को तोड़कर घोंसले को पूरा करता है। घोंसले के कंटीले तिनके परभक्षियों से रक्षा करते हैं। दोनों नर-मादा चील्ह परिवार को बढ़ाने में हिस्सेदारी निभाते हैं। मादा अन्डे देकर उनकी रक्षा करती है। नर घोसला बनाता है और शिकार करता है, फिर मादा ईगल उन्हें उड़ना सिखाने के लिए उन्हें घोसले से बाहर फेंक देती है। वह अपने बचाव की कोशिश में दुबारा घोसले के अन्दर आ जाते हैं। इस बीच वह घोसले की मुलायम पर्त को हटा लेती है। इससे बच्चों के वापस आने पर काँटें उन्हें चुभते हैं। तब शायद उन्हें आश्चर्य होता है कि उनके माँ-बाप जो उन्हें बहुत प्यार करते थे वह इस तरह का क्रूर व्यवहार क्यों करते हैं? माँ फिर भी उन्हें उठाकर बाहर फेंक देती है। डरे हुए बच्चों को बाप उन्हें गिरने से बचाता है। इस तरह की प्रक्रिया से वह एक दिन खुद उड़ने लगते हैं। जब उन्हें यह पता चलता है कि हम उड़ भी सकते हैं तो वह बहुत उत्तेजित होते हैं।
घोसले के निमार्ण की तैयारी हमें बदलाव की प्रेरणा देती है। तैयारी तभी सफल होती है जब उसमें भागीदार पूर्ण रूप से हिस्सेदारी निभाते हैं। यद्यपि कंटीले तिनको का स्पर्श दुखद होतो है, लेकिन वह यह प्रेरणा देता है कि कष्ट का मार्ग ही हमें सफलता की तरफ ले जाता है। काँटे हमें यह भी शिक्षा देते हैं कि उससे बचते हुए भी हमें आगे बढ़ना है। चुभन का एहसास हमे उससे गुज़रने के बाद ही होता है और इससे यह शिक्षा मिलती है कि कठिनाइयों से संघर्ष हमें सफलता की तरफ ले जाता है।
सातः
जब ईगल बूढ़ा हो जाता है और उसके पंख कमज़ोर हो जाते हैं वह उतनी तेज़ी से नहीं उड़ पाता है जितनी तेज़ी से उड़ता था , तब अपनी मौत को निकट जानकर वह अपनी जगह को त्याग कर एक चट्टान पर चला जाता है और वहाँ जाकर अपने पंखों को त्याग देता है। इस तरह उसका शरीर पंखविहीन हो जाता है। वह उस स्थान पर तबतक रहता है, जब तक कि उसके नये पंख न आ जायें, तब वह दुबारा उस स्थान से बाहर आता है।
पुरानी आदतें जो कि हमारे मार्ग में बाधा बन रही हों तो उसे त्याग देने में ही भलाई है।
प्रस्तुतिः वकार और ईश मुहम्मद
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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