शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010
अब समझ में आया पढ़ाई इतनी महँगी क्यों?
डॉ. महेश परिमल
आईपीएल में होने वाले विवाद का खेल खत्म हो गया हो। पर धन का खेल तो अब शुरू हुआ है। बेशुमार दौलत के नशे में लोग क्या-क्या नहीं कर सकते, यह इससे पता चलता है। अब एक दूसरा ही नाटक शुरू हो गया है। पालकों को अब पता चल रहा है कि आखिर मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई इतनी महँगी क्यों होती है? कॉलेजों को मान्यता देने के नाम पर जब संचालकों से रिश्वत के रूप में करोड़ों की रकम ली जाती हो, तो फिर यही धन विद्यार्थियों से ही तो वसूला जाएगा। शिक्षा के नाम पर पनपने वाले इस माफिया का एक नाम केतन देसाई के रूप में हमारे सामने आया है। हम इसे भी आइसबर्ग का एक छोटा सा हिस्सा कह सकते हैं। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और ऑल इंडिया काउंसिल फार टेक्नीकल एजुकेशन भ्रष्टाचार का अखाड़ा बन गए हैं।
हमारे देश में इस तरह के कई केतन देसाई पल रहे हैं। इस केतन देसाई के यहाँ सीबीआई के छापों में अब तक 1800 करोड़ के कालेधन का पता चला है। छापे जारी हैं, ये आँकड़े तेजी से बढ़ भी रहे हैं। सवाल यह है कि सरकार ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को इतने सारे अधिकार दे कैसे दिए कि वे कॉलेजों से करोड़ों की रिश्वत लेकर उन्हें मान्यता प्रदान करें। पिछले 20 वर्षों से एक व्यक्ति एक ही पद पर रहकर भ्रष्टाचार करता रहा और सरकार को भनक तक नहीं लगी। क्या यह संभव है? इनके हौसले इतने बुलंद हैं कि यदि प्रधानमंत्री को भी अपने क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज खोलना हो, तो पहले इनकी भेंट पूजा करो, तभी कॉलेज खुल पाएगा। आखिर नई कॉलेज खोलने के लिए नियम इतने कड़े क्यों बनाए गए हैं? इतने कड़े नियमों से कोई कॉलेज खुल ही नहीं पाएगा। यदि खुलता है, तो इसका यही मतलब है कि कॉलेज संचालक ने करोड़ों की रिश्वत दी है, तभी उसकी कॉलेज को मान्यता मिल पाई है।
सीबीआई ने जिस तरह से मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष केतन देसाई की धरपकड़ की है, उसी तरह पिछले वर्ष ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्नीकल एजुकेशन के मंत्री नारायण राव की धरपकड़ की गई थी, उस समय वे हैदराबाद में इंजीनियरिंग कॉलेज के संचालकों से रिश्वत ले रहे थे। इस मामले में ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्नीकल एजुकेशन के अध्यक्ष राम अवतार यादव की मिलीभगत होने की जानकारी मिली थी। इसी तरह देश भर में आर्किटेक्चर कॉलेज को मान्यता देने वाली काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर भी भ्रष्टाचार के दलदल में समाई हुई है। कॉलेज संचालक इन्हें रिश्वत देते हें, फिर शिक्षा के नाम पर छात्रों को लूटते हैं। इन संस्थाओं में इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है, और इसकी जानकारी हमारे खुफिया तंत्र को नहीं है। यह आश्चर्य की बात है। इसका यही आशय है कि रिश्वत की राशि सभी संबंधित लोगों तक ईमानदारी से पहुँच रही है।
सन् 2001 में केतन देसाई के खिलाफ डॉ. हरीश भल्ला ने दिल्ली हाईकोर्ट में भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता आरोप लगाया था। इस प्रकरण में डॉ. भल्ला ने केतन देसाई पर भ्रष्टाचार और पद का दुरुपयोग का आरोप भी लगाया। भल्ला ने अपनी रिट पिटीशन में केतन देसाई के घर पड़े आयकर छापे का भी हवाला दिया, जिसमें उनकी पत्नी और बेटी के नाम अनजाने व्यक्ति द्वारा 64 लाख रुपए जमा कराए गए थे। इस आवेदन में पुणो और गाजियाबाद में मेडिकल कॉलेज को मान्यता देने के नाम पर रिश्वत लेने की बात भी कही गई थी। इसका फैसला यह आया कि केतन देसाई को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ केतन देसाई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इस दौरान उन्होंने अपने किसी चहेते को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बैठा दिया। पूरे 7 साल तक केतन देसाई परदे के पीछे से मेडिकल काउंसिल का संचालन करते रहे। 2009 में तिकड़म लड़ाकर वे पुन: उसी पद पर आरुढ़ हो गए। जब तक दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द न किया जाए, तब तक केतन देसाई किस तरह से पुन: मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष बन सकते हैं? यहाँ यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि अभी कुछ महीने पहले ही केतन देसाई वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में चुने गए।
केतन देसाई की धरपकड़ के साथ ही मेडिकल काउंसिल का भ्रष्टाचार बाहर आया है। सवाल यह है कि क्या इससे भ्रष्टाचार जड़ से खत्म होगा? अब यदि केतन देसाई के स्थान पर कोई और आ जाता है, तो क्या यह सिस्टम बदल जाएगा? यदि सिस्टम नहीं बदलता, तो फिर वहाँ उस पद पर जो भी होगा, उसे भ्रष्टाचार के लिए बाध्य होना ही पड़ेगा। मेडिकल कॉलेजों की दी जाने वाली मान्यता को लेकर जो नियम कायदे बनाए गए हैं, उसे पारदर्शी करने की आवश्यकता है। यही नहीं मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष को अंतहीन अधिकार भी न दिए जाएँ, इस पर भी अंकुश रखा जाए। यदि कॉलेज संचालक यहाँ करोड़ों की रिश्वत नहीं देंगे, तो यह आशा की जा सकती है कि मेडिकल की शिक्षा कुछ सस्ती हो जाए।
पहले के जमाने में वैद्य का बेटा अपने अनुभव के आधार पर वैद्य बन जाता था। इसकी शिक्षा के लिए उसे किसी कॉलेज में जाने की आवश्यकता भी नहीं होती थी। कुछ वर्ष पहले तक यह नियम था कि किसी डॉक्टर के साथ दस वर्ष तक काम करने वाला कंपाउंडर एक डॉक्टर के रूप में प्रेक्टिस कर सकता है। चार्टर्ड एकाउंटेंट बनाने के लिए कोई कॉलेज नहीं है, किसी भी अनुभवी चार्टर्ड के यहाँ नौकरी कर फिर चार्टर्ड एकाउंटेंट की परीक्षा देकर कोई भी चार्टर्ड एकाउंटेंट बन सकता है। तो फिर मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा को इतना अधिक जटिल क्यों बना दिया गया है? इस शिक्षा को सरल और सस्ता बनाया जाएगा, तभी मेडिकल काउंसिल और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन में होने वाले भ्रष्टाचार का अंत हो सकता है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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