गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
करोड़पति जनप्रतिनिधि या निधिप्रति?
डॉ. महेश परिमल
राज्यसभा के सांसदों ने अपनी संपत्ति जाहिर कर दी है। इसमें 100 से अधिक सांसद ऐसे हें, जिनकी संपत्ति एक करोड़ रुपए से भी अधिक हैं। महाराष्ट्र में विपक्ष सांसद के रूप में चुने गए राहुल बजाज राज्यसभा के सबसे अधिक धनवान सांसद हैं। इनकी कुल संपत्ति 300 करोड़ रुपए से भी अधिक है। इनके बाद जनता दल एस के सांसद एम ए एम रामास्वामी का नाम आता है, जिनकी संपत्ति 278 करोड़ रुपए है। इनके बाद 272 करोड़ रुपए के साथ कांग्रेस के सुब्रमणी रेड्डी हैं। सबसे अधिक सांसद कांग्रेस के हैं, जिनकी संख्या 33 है। इसके बाद भाजपा के 21 और सपा के केवल 7 सांसद ही करोड़पति हैं।
सवाल यह उठता है कि आखिर सांसदों को इतनी अधिक राशि सरकार की तरफ से मिलती ही क्यों है? आखिर ये जनप्रतिनिधि हैं, निधिप्रति नहीं। इनके पास इतनी अधिक संपत्ति आती कहाँ हैं? किस काम के लिए यह सरकार से धन प्राप्त करते हें? देश में महँगाई कितनी भी बढ़ जाए, पर इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इनकी संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती है, इन पर कभी आयकर छापा भी नहीं पड़ता। जनप्रतिनिधि होने के नाम पर ये इतनी अधिक निधि के मालिक हो जाते हैं कि कई पीढ़ियाँ तर जाएँ। इन करोड़पति सांसदों और विधायकों से कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वे महँगाई को समझ पाएँगे? आम जनता के दु:ख-दर्द को महसूस करेंगे? कोई उनसे यह पूछने वाला नहीं है कि उनकी संपत्ति मात्र कुछ ही वर्षो में इतनी अधिक कैसे हो गई? क्या जनता का प्रतिनिधित्व करना इतना फायदेमंद सौदा है? यदि सचमुच ऐसा ही है, तो फिर देश के हर नागरिक को एक बार तो जनप्रतिनिधि बनना ही चाहिए। जब तक इस देश में आम जनता का प्रतिनिधि वीआईपी होगा, तब तक गरीब और गरीब होते रहेंगे और अमीर और अमीर?
देश की गरीब से गरीब जनता से विभिन्न करों के रूप में धन बटोरने वाली सरकार के जनप्रतिनिधि लगातार स्वार्थी बनते जा रहे हैं। उन्हें दूसरों की खुशी बर्दाश्त नहीं होती। अपना तो देख नहीं पाते, पर दूसरे जो अपनी मेहनत से प्राप्त कर रहे हैं, वह उनकी आँखों में खटक रहा है। कुछ माह पहले हमारे मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा थां कि देश की निजी कंपनियों के सीईओ को दिए जाने वाले वेतन में कटौती की जाए। इनसे भी आगे निकले कृषि मंत्री शरद पवार। वे कहते हैं कि देश में मानसून की बेरुखी के कारण अब महँगाई बढ़ती रहेगी, आम जनता को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए।
उक्त दोनों मंत्रियों के बयान कितने बचकाना हैं, यह सर्वविदित है। अब इन्हंे कौन बताए कि जरा अपने गरेबां में झाँक लेते, तो शायद ऐसा नहीं कहते। क्या कभी यह सुनने में आया कि किसी मत्री, सांसद या विधायक को धन की कमी के कारण भूखे रहना पड़ा, या फिर इलाज नहीं करवा पाए? या फिर अपनी बेटी की शादी नहीं कर पाए? जब सब पर मुसीबत आती है, तब इन पर क्यों नहीं आती? मंदी के दौर में भी इन लोगों के खर्च पर किसी प्रकार की कटौती नहीं हुई, फिर भला ये कैसे कह सकते हैं कि गरीब जनता महँगाई से निबटने के लिए तैयार रहें। क्या ये अपनी तरफ से कुछ ऐसी कोशिशें नहीं कर सकते, जिससे आम जनता को राहत मिले। दूसरी ओर यदि कंपनियाँ अपने कर्मचारियोंे के कामों से खुश होकर उन्हें यदि अच्छा वेतन देती हैं, तो हमारे मंत्री को भला क्या आपत्ति है?
नेशनल इलेक्शन वॉच के अनुसार हरियाणा के चार सबसे अमीर कांग्रेसी विधायकों के खजाने में 800 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। देश की जनता यह पूछना चाहती है कि क्या इन विधायकों पर किसी प्रकार का कानून लागू नहीं होता? उनके परिवारों को महँगाई क्यों आड़े नहीं आती? कुछ दिलचस्प बातें भी सामने आईं, जिसमें एक विधायक ने यह कहा है कि उनके पास संपत्ति के नाम पर केवल 3000 रुपए ही हैं। एक विधायक ने तो यहाँ तक कहा है कि उसके पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं है? सवाल यह उठता है कि आखिर चुनाव में खर्च करने के लिए उनके पास धन कहाँ से आया? शायद ये विधायक देश की जनता को मूर्ख समझते हैं।
यदि सांसद-विधायक बनने के बाद संपत्ति इतनी तेजी से बढ़ती है, तो देश के हर नागरिक को यह अधिकार होना चाहिए कि वह 5 वर्ष तक सांसद या विधायक बने। हमारा देश इन विधायकों की संपत्ति नहीं हो सकता। ये भले ही स्वयं को भारत का भाग्य विधाता कहें, पर सच क्या है, यह जनता बहुत ही अच्छी तरह से जानती है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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:) .......
जवाब देंहटाएंजिस राज्य के मंत्री महलों में रहते हैं वहां की जनता झोंपड़ों में वास करती है...चाणक्य
जवाब देंहटाएंयही कारण है की हमारा देश विश्व के निर्धनतम देशों में अग्रणी है तो 'धन कुबेरों ' की गिनती में भी सिरमौर है।